Last Updated on July 22, 2019 by admin
लक्ष्मी नारायण रस के फायदे , गुण और उपयोग : laxmi narayana ras ke fayde
✦ इस रसायन के सेवन से वात-पित्त और कफात्मक ज्वर, हैजा, विषम ज्वर, अतिसार, संग्रहणी, रक्तातिसार, आम-शूल, सूतिका रोग और वात-व्याधि का नाश होता है। ( और पढ़े –बुखार के कारण ,लक्षण और इलाज )
✦ यह रसायन पसीना लाकर ज्वर को उतारता है तथा रक्तादि धातुओं में से दूषित कीटाणुओं को निकाल देता है।
✦ अधिक दिनों तक ज्वर रहने पर दोष धातु (रस-रक्तादि) में लीन होकर धातुगत ज्वर उत्पन्न करता है। ऐसी अवस्था में लक्ष्मी नारायण रस के उपयोग से रसादि धातुगत ज्वर नष्ट हो जाते हैं।
✦ इसका प्रभाव वातानुबन्धी अर्थात् वात-विकार से उत्पन्न हुए ज्वरों पर भी पड़ता है। जैसे पक्षाघात, अपतन्त्रक-अर्दित आदि रोगों में होनेवाले ज्वर को भी यह शीघ्र दूर करता है। ( और पढ़े –वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
✦ बच्चों का धनुष्टंकार रोग – इसमें रह-रह कर वायु के आक्षेप (झटके) आते रहते हैं। झटके आने पर बच्चा बेहोश हो जाता, मुट्ठी बन्ध जाती श्वास रूक जाती तथा शरीर की नसें कभी ढीली और कभी कड़ी हो जाती हैं। यह रोग बच्चों के लिए बहुत खतरनाक है। ज्वर का टेम्परेचर (गर्मी) १०४ से १०५ तक होते देखा गया है। सौ में ७५ बच्चों की मृत्यू इस रोग से हो जाती है। ऐसे भयंकर रोग के लिए यह रसायन बहुत उपयोगी है। इस दवा से प्रकुपित वात की शान्ति होकर रक्त-संचार ठीक से होने लगता है और धीरे-धीरे वात के झटके भी कम होने लगते हैं। झटके की अवधि १२-२४ घण्टे तक है। झटके कम होने पर २-४ रोज में बुखार भी कम हो जाता है।
✦ स्त्रियों को बच्चा पैदा होने के बाद ठण्डी हवा लग जाने से वात प्रकुपित होकर ज्वर हो जाता है। यदि शीघ्र ही इसका प्रतिकार नहीं किया गया, तो सिर में दर्द, अधिक प्यास, सम्पूर्ण शरीर में दर्द, ज्वर की गर्मी बहुत बढ़ी हुई तथा कभी-कभी कमजोरी से भयंकर बेहोशी आदि लक्षण उपस्थित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में इस रसायन के सेवन से बहुत शीघ्र लाभ होता है। इस रसायन के सेवन-काल में दशमूल स्वाथ या दशमूल -अर्क अथवा दशमूलारिष्ट भोजनोत्तर पीने को अवश्य दें। शरीर में दशमूल तैल या नारायण तेल की मालिश करावें। इससे प्रकुपित वात शान्त हो जाता तथा शरीर में नवीन रक्त की वृद्धि होती है।
✦ पाचन क्रिया में गड़बड़ी होने के कारण आँखे खराब हो जाती हैं, जिससे ज्वर, अतिसार आदि रोगों की उत्पत्ति होती है। आँतों की विकृति से उत्पन्न ज्वर में लक्ष्मीनारायण रस के प्रयोग से बहुत शीघ्र फायदा होता है। यदि उपेक्षा की गयी तो यही ज्वर आन्त्रिक-सन्निपात या अतिसार में परिणत हो जाता है, जिससे रोगी को अत्यन्त कष्ट होता है। ( और पढ़े – दस्त रोकने के रामबाण 13 देशी इलाज)
✦ अतिसार होने पर रोगी की शक्ति बहुत जल्दी क्षीण होने लगती है। दस्त बहुत पतला और दुर्गंधयुक्त होता है। दस्त एक बार में साफ न होकर बार-बार होता है। ऐसी हालत में लक्ष्मीनारायण रस का उपयोग से लाभ होता है, क्योंकि इसका प्रभाव विशेषतः अन्त्र, यकृत् तथा ग्रहणी पर होता है।- औ. गु. ध. शा.
मात्रा और अनुपान :
१-२ गोली सुबह-शाम अदरक रस और मधु के साथ दें।
लक्ष्मी नारायण रस बनाने की विधि : laxmi narayana ras bnane ki vidhi
शुद्ध हिंगुल, शुद्ध गन्धक, शुद्ध बच्छनाग, सुहागे की खील, कुटकी, अतीस, पीपल इन्द्रजौ, अभ्रक भस्म, सेन्धा नमक प्रत्येक समभाग लेकर सबको एकत्र खरल करके दन्तीमूल और त्रिफला के रस में पृथक्-पृथक् ३-३ दिन तक घोंट कर २-२ रत्ती की गोलियाँ बना छाया में सुखाकर रख लें।
– रस. यो. सा. द्वि. भा.
लक्ष्मी नारायण रस के नुकसान / दुष्प्रभाव : laxmi narayana ras ke nuksan
1- चिकित्सक द्वारा सलाह दी गई इस दवा को सटीक खुराक में सीमित अवधि के लिए लें।
2- अधिक मात्रा में इसके सेवन से हानिप्रद प्रभाव उत्पन्न हो सकता है
3- इसे डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।