Last Updated on July 17, 2020 by admin
स्वस्थ व निरोगी जीवन जीने के उपाय : nirogi jeevan ke upay
nirogi jeevan kaise jiye
जीवन में इन आयुर्वेद के नियमो का जरूर पालण करें और निरोगी रहें –
1). शक्कर की बनी मिठाइयाँ, चाय, कॉफ़ी, अति खट्टे फल, अति तीखे, अति नमकयुक्त तथा उष्ण तीक्ष्ण व नशीलें पदार्थों के सेवन से वीर्य में दोष आ जाते हैं ।
2). प्रात: उठते ही ६ अंजलि जल पियो । सूर्यास्त तक २ से ढाई लीटर जल अवश्य पी जाओ । गर्मियों में व जब शरीर से श्रम करो, तब इससे अधिक जल की आवश्यकता होती है ।
3). जिन सब्जियों का छिलका बहुत कड़ा न हो, जैसे गिल्की, परवल, टिंडा आदि, उन्हें छिलकेसहित खाना अत्यंत लाभकारी है । जिन फलों के छिलके खा सकते हैं, जैसे सेवफल, चीकू आदि, उन्हें खूब अच्छी तरह धो के छिलकों के साथ ही खाना चाहिए । दाल भी छिलकेसहित खानी चाहिए । चोकर तथा छिलके में पोषक तत्त्व होते हैं और इनसे पेट साफ़ रहता है । सब्जी, फल आदि धोने के बाद कीटनाशक आदि रसायनों का अंश छिलकों पर न बचा हो इसका ध्यान रखें, अन्यथा नुकसान होगा । सेवफल को चाकू से हलका – सा रगड़कर उस पर लगी मोम उतार लेनी चाहिए ।
4). घी – तेल में तले हुए पकवानों का कभी – कभी ही सेवन करना चाहिए । नित्य या प्राय: तली हुई पुडी –पकवान, पकौड़े, नमकीन खाने से कुछ दिनों में पेट में कब्ज रहने लगेगा, अनेक बीमारियाँ बढ़ेंगी ।
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5). खटाई में नींबू व आँवले का सेवन उत्तम है । कोकम व अनारदाने का उपयोग अल्प मात्रा में कर सकते हैं । अमचुर हानिकारक है।
6). भोजन इतना चबाना चाहिए कि गले के नीचे पानी की तरह पतला हो के उतरे । ऐसा करने से दाँतो का काम आँतों को नहीं करना पड़ता | इसके लिए बार – बार सावधान रहकर खूब चबा के खाने की आदत बनानी पड़ती है ।
7). अच्छी भूख लगने पर ही भोजन करें, बिना भूख का भोजन विकार पैदा करता है।
8). भोजन के बाद स्नान नहीं करना चाहिए । अधिक यात्रा के बाद तुरंत स्नान करने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है । थोड़ी देर आराम करके स्नान कर सकते हैं ।
निरोगी जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र : nirogi jeevan ke upay
छोटी – छोटी बड़ी बातें –
☛ भोजन, विद्याध्ययन, शयन और स्त्री-सहवास – ये चारों काम सन्ध्या समय कदापि नहीं करना चाहिए। सन्ध्या समय, दिन व रात का सन्धिकाल होता है और यह समय प्रभु-स्मरण करने का होता है इसलिए सर्यास्त के समय ईश-प्रार्थना व उपासना करना ही श्रेष्ठ एवं श्रेयस्कर है।
☛ क्या आप जानते हैं कि कई रोगों की जड़ क्या है ? शारीरिक रोगों की जड़ है दोष (वात पित्त आदि) और मल का कुपित होना तथा मानसिक रोगों की जड़ है तृष्णा और ईर्ष्या । शरीर का शत्रु अजीर्ण है और मन का शत्रु असन्तोष है।
☛ तन्दुरुस्त बने रहने के लिए भूख से थोड़ा कम खाना और ग़म खाना, ठीक निश्चित समय पर भोजन करना और ठीक समय पर सो जाना, सुबह जल्दी उठना, सूर्योदय से पहले नित्य कर्म कर लेना, रात में आहार न लेना, सदा प्रसन्न चित्त रहना, हंसते हंसते व खिलखिलाते रहना, चिन्ता फ़िक्र न करना और मन में किसी के भी प्रति ईर्ष्या द्वेष न रखना- इतने काम करना ज़रूरी है।
☛ बिना उचित विचार किये खर्च करना, कोई संगी साथी न होने पर भी, अपने खुद के बल पर ही लड़ने-झगड़ने के लिए हर वक्त तैयार रहना और पर स्त्री गमन करना- ये तीनों काम ऐसे व्यक्ति को शीघ्र ही नष्ट कर देते हैं अतः बुद्धिमान व्यक्ति को इन तीनों कामों से दूर रहना चाहिए।
☛ बहुत लम्बी आयु सुखपूर्वक जीना हो तो अच्छे परोपकार के काम करना चाहिए, अपने शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा करना चाहिए और किसी के भी प्रति वैर भाव नहीं रखना चाहिए। अच्छी पाचन शक्ति, न रोकने योग्य वेगों को न रोकना, स्त्री सहवास में अति न करना, हिंसा भाव न रखना और चिन्ता न करना- ये पांच काम आयु को लम्बी करते हैं।
☛ शराब को पीना तो दूर, हाथ भी नहीं लगाना चाहिए और न शराबी से मित्रता ही करना चाहिए क्योंकि शराबी मित्र शराब पीने पर विवश करते हैं। इसकी शुरूआत को एक आध पेग से होती है पर जैसे छोटी सी चिंगारी बाद में शोला बन जाती है वैसे ही शराब की मात्रा बढ़ती जाती है। फिर पहले शराबी शराब को पीता है बाद में शराब शराबी को पी जाती है। इसीलिए कहा है कि शराब ! मुंह लगी खराब !!
☛ पढ़ना-लिखना, हिसाब-किताब का काम करना, कोई पुस्तक या पत्रिका पढ़ना या लेख लिखना आदि दिमागी काम लगातार 6-7 घण्टे से ज्यादा नहीं करना चाहिए। दिमाग़ी थकावट का अनुभव हो तो काम रोक कर थोड़ी देर के लिए विश्राम कर लेना चाहिए।
☛ सिर्फ नेत्रहीन ही अन्धा नहीं होता बल्कि आंख वाले अन्धे भी होते हैं। ऐसे लोग अक्ल के अन्धे होते हैं जिनमें कोई क्रोध से अन्धा होता है, कोई लोभ लालच के वश में हो कर अन्धा होता है तो कोई कामवासना के कारण अन्धा हो जाता है। कुछ लोग मोह में अन्धे होते हैं तो कुछ लोग नशे के कारण अन्धे हो जाते हैं। ये सभी प्रकार के अन्धे अपने शरीर और स्वास्थ्य का नाश करते रहते हैं। जो अपना भला-बुरा नहीं देखता वह आंखों के होते हुए भी अन्धा ही है।