Last Updated on July 24, 2019 by admin
परिचय :
★ शलभ का अर्थ पतंगा (एक प्रकार का कीड़ा) होता है जिसके पीछे का भाग ऊपर उठा होता है।
★ इस आसन को करते समय व्यक्ति के पीछे का भाग ऊपर उठा होता है अर्थात दोनों पैर ऊपर उठे होते हैं इसलिए इसे शलभासन कहते हैं।
★ मणिपूरक चक्र को विकसित करने में शलभासन सहायक होता है।
शलभासन को 2 प्रकार से किया जाता है।
पहली विधि (First method):
★ फर्श पर चटाई या दरी बिछाकर इस आसन को करें। पहले पेट के बल या मुंह के बल चटाई पर लेट जाएं।
★ दोनों हाथों को पीछे की ओर बगल में शरीर से सटाकर रखें तथा मुट्ठियां बांध लें।
★ हाथ के अंगूठे वाले भाग को फर्श से सटाकर रखें।
★ पैरों व एड़ियों को सटाकर अंगूठों को फर्श पर सपाट रखें।
★ अब गहरी सांस लेकर अपने सिर को सीधा रखते हुए ठोड़ी को फर्श पर टिका दें। (फर्श पर ठोडी को लगाने की जगह पर कपड़ा डाल लें)।
★ अब अपने दोनों हाथों को कड़ा करके अपने पैरों को आपस में मिलाते हुए ही जितना ऊंचा उठा सकें उठाएं।
★ इस स्थिति में अपने शरीर का पूरा भाग दोनों मुट्ठियों पर रखें। ऊपर उठाते समय पैरों को बिल्कुल सीधा रखें तथा पैरों को घुटनों से मुड़ने न दें।
★ कुछ समय तक इसी स्थिति में सांस लेकर रुके परन्तु सांस रोक न सकें तो धीरे-धीरे पैरो को सामान्य स्थिति में ले आएं। इस आसन को 2 से 3 बार करें।
★ इस आसन को शुरू-शुरू में दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाने की जगह पर एक ही पैर को ही फर्श से ऊपर उठाकर इस आसन को कर सकते हैं।
★ इस क्रिया में पहले एक पैर को फर्श से ऊपर उठाएं तथा दूसरे पैर को फर्श पर ही लगा रहने दें।
★ इसी प्रकार से दोनो पैरों को बारी-बारी से ऊपर उठाकर इस आसन को करना चाहिए। इसे अर्द्ध शलभासन कहते हैं।
★ इस अर्द्ध शलभासन को शलभासन की शुरूआती अवस्था में करने से शलभासन को करने में आसानी होती है।
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दूसरी विधि ( Second method ):
★ पहले फर्श पर चटाई बिछाकर पेट के बल लेट जाएं।
★ अपने पूरे शरीर को बिल्कुल सीधा रखें। दोनों हाथों को कंधों के पास फर्श पर लगाकर रखें।
★ अब धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर, गर्दन तथा पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाने की कोशिश करें।
★ इस क्रिया में शरीर का पूरा भार पेट पर पड़ने दें।
★ ध्यान में रखें कि कमर से पैर तक का हिस्सा बिल्कुल न मुड़ने पायें।
★ 10 से 20 सैकेंड तक शलभासन की स्थिति में रहें और फिर वापस अपनी सामान्य स्थिति में आ जाएं।
★ कुछ समय आराम करें और पुन: इस क्रिया को करें। शुरू-शुरू में यह आसन 1-2 बार करें तथा धीरे-धीरे इसको बढ़ाते हुए 3-5 बार तक करें।
=> जिसे यह दोनों प्रकार का शलभासन आसन करने में कठिनाई हो उसे पहले `अर्द्ध शलभासन करना चाहिए। इसके बाद पहली विधि व दूसरी विधि वाले शलभासन को करना चाहिए।विशेष-
सावधानी : salabhasana precautions
★ हर्निया रोगी, कमजोर हृदय वालों व पेप्टिक अल्सर के रोगियों को शलभासन नहीं करना चाहिए।
★ यह आसन आंतों के रोगी के लिए भी लाभकारी नहीं है।
ध्यान :
इस आसन में पेट, पीठ के नीचे का भाग तथा हृदय पर ध्यान एकाग्र करना चाहिए।
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आसन से रोगों में लाभ :shalabhasana benefits in hindi
★ शलभासन को करने से ऑक्सीजन अत्याधिक मात्रा में फेफड़ों में पहुंचती है, जिससे फेफड़ों के रोग दूर होते हैं तथा फेफड़े प्रकोष्ठ लचीले व मुलायम बनते हैं। वायु का दबाव प्रकोष्ठ में जाकर उसे सक्रिय करता है। यह आसन फेफड़ों के लिए अधिक लाभदायक है।
★ इसके अभ्यास से छाती चौड़ी होती है।
★ यह आसन पाचनतंत्र को ठीक करता है तथा भूख को बढ़ाता है।
★ यह मेरूदंड (रीढ़ की हड्डी) और पेड़ु के लिए लाभदायक है।
★ यह आसन मुख, आंख, छाती, गर्दन, कन्धे, तथा शरीर के सभी ऊपरी भाग को मजबूत बनाता है।
★ शलभासन मानसिक तनाव को दूर करता है तथा स्मरण शक्ति का विकास करता है।
★ इस आसन से पेट के सामने वाली मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
★ यह आसन पेट की अधिक चर्बी को कम करता है।
★ जिस व्यक्ति के शरीर में कंपकपी रहती है उसके लिए यह आसन लाभकारी है।
★ यह आसन कंपकंपी दूर कर शरीर को मजबूत, स्थिर व स्फूर्ति देता है।
★ यह आसन नाभि का टलना ठीक करता है तथा कब्ज को दूर करता है।
★ इस आसन के द्वारा गुर्दों (किडनी), यकृत (जिगर) पेक्रियाज आदि सभी अन्दरूनी अंग सक्रिय बने रहते हैं।
★ इस आसन के अभ्यास से गैस बनना, पेट के रोग, बदहजमी, मुंह से अधिक थूक आना, पेशाब खुलकर न आना आदि सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
★ शलभासन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी है। इस आसन का प्रभाव प्रजनन अंग पर पड़ता है जिससे वे स्वस्थ एवं सक्रिय बने रहते हैं।
★ यह पेट व गर्भाशय की सूजन को दूर करता है।