Last Updated on June 28, 2021 by admin
तिल क्या है ? (Sesame Seeds in Hindi)
तिल का उपयोग भोजन में सर्दी के मौसम में अधिक होता है। रंग भेद से तिल तीन प्रकार का होता है। लाल, काला और सफेद। औषधि के रूप में काले तिल का उपयोग अच्छा माना जाता है। रेबड़ी बनाने के लिए तिल तथा चीनी का उपयोग किया जाता है। भारत में तिल की खेती अधिक मात्रा में की जाती है। तिल की खेती स्वतंत्र रूप में या रूई, अरहर, बाजरा तथा मूंगफली आदि किसी भी फसल के साथ मिश्रित रूप में की जाती है। तिल उत्पादन के क्षेत्र में भारत का प्रमुख स्थान है।
तिल का तेल :
तिल का तेल भारी, तर तथा गर्म होता है। यह शरीर में ताकत की वृद्धि करने वाला, मल को साफ करने वाला, शरीर के रंग को निखारने वाला, तिल का तेल कफ, वायु और पित्त को नष्ट करने वाला, रक्तपित्त (खूनी पित्त) को दूर करने वाला, गर्भाशय को साफ और शुद्ध करने वाला, भूख को बढ़ाने वाला तथा बुद्धि को तेज करने वाला होता है। मधुमेह (डायबिटिज़), कान में दर्द, योनिशूल तथा मस्तिष्क के दर्द को समाप्त करने वाला होता है।
रंग : तिल काला, सफेद और लाल प्रकार के होते हैं।
स्वाद : तिल का रस खाने में मीठा, कड़वा, कषैला और चरपरा होता है।
तिल की प्रकृति :
तिल की प्रकृति भारी तथा गर्म होती है। यह चिकना होता है। तिलों से एक धुंधले पीले रंग का द्रव निकाला जाता है जिसे तिल का तेल या मीठा तेल कहा जाता है। इसकी गंध रुचिकर होता है। इस तेल में प्रोटीन आदि तत्व पाये जाते हैं। तिल के बीज में सिसेमोलिन, सिमेमिआ, लाइपेज, प्रधानता, ओतिक, निकोटिनिक एसिड, पामिटिक, लिनोलीक एसिड तथा थोड़ा-सी मात्रा में स्टियरिक और अरेकिडिक एसिड के ग्लिसराइडस पाये जाते हैं।
तिल के गुण (Til ke Gun in Hindi)
तिल कफ, पित्त को नष्ट करने वाला, शक्ति को बढ़ाने वाला, सिर के रोगों को ठीक करने वाला, दूध को बढ़ाने वाला, व्रण (जख्म), दांतों के रोग को ठीक करने वाला तथा मूत्र के प्रवाह को कम करने वाला होता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने तथा वात को नष्ट करने में लाभकारी होता है। काला तिल अच्छा तथा वीर्य को बढ़ाने वाला होता है। विद्वानों के अनुसार सफेद तिल मध्यम गुण वाला और लाल तिल कम गुणशाली होता है। तिल में पुराना गुड़ मिलाकर सेवन करने से वीर्य की कमी दूर होती है तथा पेट में वायु बनने की शिकायत दूर होती है।
तिल के फायदे और उपयोग (Til ke Fayde aur Upyog in Hindi)
1. दांतों के रोग :
• लगभग 25 ग्राम तिल को चबा-चबाकर खाने से दांत मजबूत होते हैं।
• मुंह में तिल को भरकर 5-10 मिनट रखने से पायरिया (मसूढ़ों से खून का आना) ठीक होकर दांत मजबूत होते हैं।
• काले तिल को पानी के साथ खाने से दांत मजबूत हो जाते हैं।
• लगभग 60 ग्राम काले तिल को चबाकर खा लें, इसके बाद एक गिलास ठंडा पानी लें। ऐसा प्रतिदिन करने से दांतों के रोग ठीक हो जाते है। लेकिन इसका प्रयोग करते समय गुड़-चीनी का सेवन न करें।
• तिल के तेल से 10-15 मिनट तक कुल्ला कुछ दिनों तक लगातार करने से हिलते हुए दांत मजबूत हो जाते हैं और पायरिया भी ठीक हो जाता है।
• रुई के फोहे को तिल के तेल में भिगोकर मुंह में रखने से दांतों का दर्द नष्ट हो जाता है।
• पायरिया को ठीक करने के लिए तिल को चबाकर खाने से लाभ मिलता है।
• दांत हिल रहे हो तो काले तिल 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खायें। इसका 15 से 20 दिन तक प्रयोग करने से दांतों के सभी प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं।
• दांतों के सभी प्रकार के रोगों को ठीक करने के लिए रोजाना सुबह दांतुन करने के बाद लगभग 30 ग्राम काले तिल को धीरे-धीरे खूब चबाकर खाएं और ऊपर से एक गिलास पानी पीयें। तिल में गुड़, चीनी आदि न मिलायें।
• दांत दर्द व मसूढ़ों की सूजन को ठीक करने के लिए तिल, चीता और सफेद सरसों को गर्म पानी के साथ पीसकर लुगदी (पेस्ट) बना लें और इसे दांतों पर प्रतिदिन सुबह-शाम लगाएं।
2. कान के रोग :
• तिल के तेल में लहसुन की कली डालकर, गर्म करके, उसकी बूंदे कानों में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
• बहरेपन का रोग दूर करने के लिए 50 मिलीलीटर तिल के तेल में लहसुन की 5 कली डालकर गर्म कर लें और छान लें तथा इसके बाद इसकी 2-3 बूंदे कान में डालने से लाभ मिलता है।
• बहरापन (कान से कम सुनाई) देने पर उपचार करने के लिए 25 मिलीलीटर काले तिल के तेल में लगभग 40 ग्राम लहसुन को पीसकर जलाकर तेल बना लें इसके बाद इस तेल को छानकर रोजाना 2-3 बार कान में डालने से अधिक आराम मिलता है।
• 40 मिलीलीटर हुलहुल के रस को 10 मिलीलीटर तिल के तेल में मिलाकर पकाएं। पकने के बाद जब बस तेल ही बाकी रह जायें तो इसे आग पर से उतार कर छान लें। इस तेल को कान में डालने से कान मे से मवाद बहना बंद हो जाता है।
• कान के कीड़े को मारने के लिए तिल के तेल की 2 से 3 बूंदे कान में डालें। इससे लाभ मिलेगा।
• तिल का तेल, धतूरे का रस, सेंधानमक, मदार के पत्ते और अफीम को कड़ाही में डालकर पका लें। जब पकने के बाद सब कुछ जल जाये तो उसे उतारकर और छानकर एक शीशी में भर लें। नीम के पत्तों और फिटकरी को पानी में डालकर पकाकर कान को इस पानी से पहले साफ कर लें। फिर बनाये हुये तेल की 5-6 बूंदे रोजाना कान में डालने से कान से मवाद बहना, कान का दर्द और बहरापन दूर हो जाता है।
• 125 मिलीलीटर तिल के तेल को 50 मिलीलीटर मूली के रस में मिलाकर पका लें। जब पकने के बाद तेल ही बच जाये तो उसे छानकर शीशी में भर लें। इसकी 2-3 बूंदे कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
• अजाझाड़ा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल, फूल) की राख को तिल के तेल में डालकर पका लें। इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है।
3. जख्म (घाव) :
• घाव को ठीक करने के लिए तिल के तेल में रूई से बने फोहे या कपड़े की पट्टी भिगोकर घावों पर बांधने से लाभ मिलता है।
• तिल को पीसकर शहद और घी मिलाकर उसे घावों पर लगाकर पट्टी बांधने से घाव ठीक हो जाते हैं।
• तिलों की पोटली (पुल्टिश) बनाकर घाव पर बांधने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
• तिल का तेल घावों पर लगाने से वे ठीक होने लगते हैं।
• पुराने घाव पर तिल की पट्टी बांधने से आराम मिलता है।
4. फोड़े-फुंसियां : 100 मिलीलीटर तिल के तेल में भिलावे मिलाकर पकाएं जब यह जल जाए तो इसमें 30 ग्राम सेलखड़ी को पीसकर मिला दें। इसका उपयोग फोड़ें-फुंसियों पर लगाने से लाभ मिलता है। इसके उपयोग से हर प्रकार के जख्म ठीक हो जाते हैं। इसको लगाने के लिए मुर्गी के पंख का उपयोग करना चाहिए।
5. नाक के रोग :
• काली मिर्च या अजवाइन को तिल के तेल में डालकर गर्म करें। इस तेल को नाक पर लगाकर मलने सें बंद नाक खुल जाती है।
• नाक की फुंसियों को ठीक करने के लिए तिल के तेल में पत्थरचूर के पत्तों के रस को मिलाकर नाक पर लगाएं।
6. एड़ियां (बिबाई) फटना :
• देशी पीला मोम 10 ग्राम और तिल का तेल 40 मिलीलीटर को मिलाकर गर्म करके पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को बिवाई पर लगाने से लाभ मिलता है।
• तिल के तेल में मोम और सेंधानमक मिलाकर गर्म करें। इस तेल को फटी हुई एड़ियों पर लगाएं। इससे एड़ियों का फटना ठीक हो जाता है।
7. मासिकधर्म का रुक जाना (रजोलोप) :
• लगभग 8 चम्मच तिल, गुड़, 10 काली मिर्च को पीसकर मिला लें। इसे एक गिलास पानी में डालकर गर्म करें जब आधा पानी बच जाए तो इसे दूसरे बर्तन में रखकर ठंडा करें। मासिकधर्म आने के 15 मिनट पहले से मासिक स्राव तक रोजाना सुबह और शाम पीने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
• लगभग 25 ग्राम तिल तथा एक ग्राम मिर्च के चूर्ण साथ दिन में 3 बार सेवन करने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
• तिल, जौ का चूर्ण और चीनी को शहद में मिलाकर खाने से प्रसूता स्त्रियों में खून का बहना बंद हो जाता है।
• काले तिल, त्रिकुटा और भारंगी सभी की 3-3 मिलीलीटर मात्रा लेकर काढ़ा बनाकर गुड़ अथवा लाल शक्कर के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बंद मासिकधर्म खुल कर आता है।
• मासिकधर्म (माहवारी) आने में रुकावट होने पर तिल के पंचांग (जड़, तना, पत्ता, फल और फूल) का काढ़ा 60 मिलीलीटर या तिल का चूर्ण 15 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
• तिल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन पीने से मासिकधर्म खुलकर आता है।
• तिल के काढ़े में सोंठ, कालीमिर्च और पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से मासिकधर्म की रुकावट दूर हो जाती है।
• काले तिल 10 ग्राम की मात्रा में 500 मिलीलीटर पानी के साथ कलईदार बर्तन में पकाएं। जब यह लगभग 50 मिलीलीटर की मात्रा में बचे तो इसमें पुराना गुड़ मिला दें। मासिकधर्म शुरू होने से 5 दिन पहले सुबह के समय इसे पीने से मासिकधर्म शुरू हो जाएगा। ध्यान रहें कि मासिकधर्म आ जाने के बाद इसका सेवन न करें।
8. मासिकधर्म सम्बंधी परेशानियां :
• 5 ग्राम तिल, 7 दाने कालीमिर्च, एक चम्मच पिसी सोंठ, 3 दाने छोटी पीपल। सभी को एक कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें। इसे पीने से मासिकधर्म सम्बंधी शिकायतें दूर हो जाती है।
• 5 ग्राम काले तिल को गुड़ में मिलाकर माहवारी (मासिक) शुरू होने से 4 दिन पहले सेवन करना चाहिए। जब मासिकधर्म शुरू हो जाए तो इसे बंद कर देना चाहिए। इससे माहवारी सम्बंधी सभी विकार नष्ट हो जाते हैं।
9. मस्तक का दर्द :
• तिल के पत्तों को सिरके या पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से माथे का दर्द कम हो जाता है।
• तिलों को दूध में पीसकर मस्तक पर लेप करने से मस्तक का दर्द ठीक हो जाता है।
10. नारू (बाला) : तिल को खली में पीसकर लेप करने से नारू मिट जाता है।
11. आमातिसार (आंवयुक्त पेचिश):
• तिल के पत्तों को पानी में भिगोने से लुआब (लसदार) बन जाता है। इस लुआब का सेवन रोगी को कराने से आमातिसार में लाभ मिलता है।
• तिल के पत्तों के लुआब में थोड़ा अफीम डालकर सुबह और शाम सेवन करने से आमातिसार में लाभ मिलता है।
12. प्रवाहिका (पेचिश) : 6 से 12 ग्राम तिल और कच्चे बेल के गूदे का मिश्रण दिन में सुबह और शाम लेने से लाभ होता है।
13. कब्ज :
• लगभग 6 ग्राम तिल को पीस लें, फिर इसमें मीठा मिलाकर खाने से कब्ज खत्म हो जाती है।
• तिल, चावल और मूंग की दाल की खिचड़ी बनाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है।
• 60 ग्राम तिल को कूटकर इसमें समान मात्रा में गुड़ मिलाकर खाने से कब्ज समाप्त हो जाती है।
• तिल का छिलका उतारकर, मक्खन और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर प्रत्येक दिन सुबह-सुबह खाने से मल (ट्टटी) का रूकना ठीक हो जाता है और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
• तिल की लकड़ी की छाल 5 से 10 ग्राम पीसकर पीने से कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है।
14. आंखों के रोग : काले तिलों का ताजा तेल रोजाना सोते समय आंखों में डालते रहने से अनेक प्रकार के आंखों के रोग ठीक हो जाते हैं।
15. बालों के रोग :
• तिल के पौधे की जड़ और पत्तों के काढ़े से बालों को धोने से बालों का रंग काला हो जाता है।
• काले तिलों के तेल को शुद्ध करके बालों में लगाने से बाल असमय में सफेद नहीं होते हैं। प्रतिदिन सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल हमेशा मुलायम, काले और घने रहते हैं।
• तिल के फूल और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर घी तथा शहद में पीसकर सिर पर लेप करने से गंजापन दूर होता है।
• तिल के तेल की मालिश करने के 1 घंटे बाद एक तौलिया गर्म पानी में डुबोकर उसे निचोड़कर सिर पर लपेट लें तथा ठंडा होने पर दोबारा गर्म पानी में डुबोकर निचोड़कर सीने पर लपेट लें। इस प्रकार कम से कम 5 मिनट लपेटे रहने दें तथा इसके बाद ठंडे पानी से सिर को धो लें। ऐसा करने से बालों की रूसी दूर हो जाती है तथा बालों के अन्य कष्ट भी खत्म हो जाते हैं।
• बालों को काला करने तथा बालों को झड़ने से रोकने के लिए प्रतिदिन तिल खाएं और इसके तेल को बालों में लगाएं। इससे बाल काले, लम्बे और मुलायम हो जाते हैं।
• काला तिल, सूखा आंवला, सूखा भृंगराज, मिश्री, चारों को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इसमें से 6 ग्राम चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम खाकर ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पी लें तथा इसके साथ-साथ ब्रहाचर्य जीवन का भी पालन 1 साल तक करें। इससे लाभ मिलेगा।
• 250 ग्राम काला तिल, 250 ग्राम गुड़ दोनों को सही तरह से कूटकर रख लें। इसमें से रोजाना 50 ग्राम चूर्ण को खाने से शरीर में ताकत आती है। इससे अधिक पेशाब नहीं लगता और सफेद बाल भी काले हो जाते हैं।
• बालों के झड़ने पर तिल का तेल लगाने से लाभ मिलता है और यह सिर को भी ठंडा रखता है।
• 10-10 ग्राम तिल के फूल, गोखरू नमक को एक साथ पीसकर मक्खन में मिलाकर बालों की जड़ में मालिश करने से बालों के सभी रोग मिट जाते हैं।
• सफेद तिल और चीते की जड़ और माठा (मठ्ठा) इन चारों औषधियों को मिलाकर पीने से पलित (बाल सफेद होना) रोग ठीक हो जाता है।
• तिल का लड्डू बनाकर खाने और सिर पर तिल के तेल से मालिश करने से बालों के रोग ठीक हो जाते हैं।
16. खांसी :
• तिल के लगभग 100 मिलीलीटर काढ़े में 2 चम्मच चीनी डालकर पीने से खांसी ठीक होने लगती है।
• 4 चम्मच तिल 1 गिलास पानी में मिलाकर इतना उबालें कि पानी आधा बच जायें। इसे रोजाना 3 बार पीने से सर्दी लगकर आने वाली सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
• यदि सर्दी लगकर खांसी हुई तो चार चम्मच तिल और इतनी ही मिश्री या चीनी मिलाकर एक गिलास पानी में उबालें। इस पानी को पीने से खांसी ठीक होने लगती है।
• तिल के काढ़े में चीनी या गुड़ मिलाकर लगभग 40 मिलीलीटर रोजाना 3-4 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ होता है।
• सूखी खांसी में तिल के ताजा पत्तों का रस 40 मिलीलीटर रोजाना 3-4 बार पीने से अधिक लाभ मिलता है।
17. खूनी अतिसार (खूनी दस्त) :
• 10 ग्राम काले तिल को पीसकर उसमें 20 ग्राम चीनी और बकरी का दूध 40 मिलीलीटर मिलाकर बच्चों को पिलाना चाहिए। इससे बच्चों के खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।
• 40 ग्राम काले तिलों को 10 ग्राम चीनी में मिलाकर लें। इसमें लगभग 3-6 ग्राम की मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार लेना चाहिए। इससे दस्त के साथ खून का आना बंद हो जाता है।
• तिल को पीसकर, मक्खन में मिलाकर खाने से खूनी अतिसार में लाभ होता है।
18. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) : 1 से 2 ग्राम तिल के तने का रस दही के पानी के साथ दिन में 2 बार लेना चाहिए। इससे मूत्रकृच्छ नष्ट हो जाता है।
19. बिस्तर पर पेशाब करना :
• तिल और गुड़ को एक साथ मिलाकर बच्चे को खिलाने से बच्चे का बिस्तर पर पेशाब करने का यह रोग समाप्त हो जाता है।
• रोगी के बिस्तर पर पेशाब करने की आदत छूड़ाने के लिए तिल और गुड़ के साथ अजवायन का चूर्ण मिलाकर रोगी को खिलाएं, इससे लाभ मिलेगा।
• तिल के तेल को पिलाने से बच्चे के द्वारा रात में पेशाब करने की बीमारी में लाभ होता हैं।
20. बहुमूत्र रोग (पेशाब का बार-बार आना) :
• 40 ग्राम काले तिल और 20 ग्राम अजवायन को पीसकर और छानकर इसमें 60 ग्राम गुड़ मिलाकर 5-5 ग्राम सुबह और शाम पानी के साथ खाने से बुढ़ापे में बार-बार पेशाब आने का रोग दूर हो जाता है।
• 3-3 ग्राम काले तिल और अजवायन को गुड़ में मिलाकर 1 हफ्ते तक सुबह और शाम खाने से बार-बार पेशाब आना कम हो जाता है।
• 6 ग्राम काले तिल और प्रवाल भस्म को खाने से मूत्रातिसार (बार-बार पेशाब आना) का रोग दूर हो जाता है।
• काला तिल 400 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम और गुड़ साठ ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 6-6 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से बुढ़ापे में ज्यादा आने वाला पेशाब कम होता है।
• सुबह-शाम गुड़ से बने हुऐ तिल का 1-1 लड्डू 7 दिनों तक खाने से बार-बार पेशाब आना बंद होता है।
• तिल 10 ग्राम पीसकर 50 ग्राम गुड़ में मिलाकर रोज खायें इससें बहुमूत्रता में लाभ मिलता है।
• लगभग 50 ग्राम काले तिल, 25 ग्राम अजवायन 100 ग्राम गुड़ को मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 8 ग्राम चूर्ण को सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से बच्चों के बार-बार पेशाब करने की बीमारी दूर हो जाती है।
• तिल के लड्डू सुबह और शाम खाने से अधिक पेशाब आना बंद हो जाता है।
21. जलना :
• तिलों को पानी में पीसकर लेप बना लें। जले हुए अंग पर इसका मोटा लेप करने से जलन दूर होकर आराम मिलता है।
• तिल के बीजों को समान मात्रा में नारियल का तेल मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
22. गर्भाशय के रोग :
• लगभग आधा ग्राम तिल का चूर्ण दिन में 3-4 बार सेवन करने से गर्भाशय में जमा हुआ खून बिखर जाता है।
• 100 मिलीलीटर तिल से बना हुआ काढ़ा प्रतिदिन पीने से मासिकधर्म में होने वाले गर्भाशय के कष्ट दूर हो जाते हैं।
23. मासिकधर्म से सम्बंधित रुकावट :-
• तिल के 100 मिलीलीटर काढ़े में 2 ग्राम सौंठ, 2 ग्राम काली मिर्च और 2 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से गर्भाशय के कष्ट तथा मासिकधर्म की रुकावट दूर हो जाती है।
• 10 ग्राम तिल और 10 ग्राम गोखरू को रात में पानी में भिगोकर सुबह उनका रस निकालकर उसमें थोड़ा बूरा डालकर पीने से बंद मासिकधर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
• तिलों का चूर्ण आधा ग्राम की मात्रा में दिन में तीन-चार बार पानी के साथ लेने से मासिकधर्म नियमित रूप से आने लगता है।
• तिल का काढ़ा बनाकर लगभग 100 मिलीग्राम सुबह और शाम पीने से मासिकधर्म समय से आने लगता है।
24. पथरी :
• तिल के पेड़ की छाया में सूखी कोमल कोपलों की राख लगभग 8 से 10 ग्राम तक रोजाना खाने से पथरी गलकर निकल जाती है।
• तिल के फूलों के 4 मिलीलीटर रस में 2 चम्मच शहद और 250 मिलीलीटर दूध मिलाकर पीने से पथरी गलकर खत्म हो जाती है।
• तिल के पौधे की लकड़ी की राख (भस्म) लगभग 8 से 15 ग्राम तक सिरके के साथ सुबह और शाम भोजन से पहले लेने से पथरी गलकर मल के द्वारा बाहर निकल जाती है।
• 1 से 2 ग्राम तिल के तने का क्षार (खार) दही के पानी के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से पथरी गलकर निकल जाती है।
25. आमवात, सन्धिवात (जोड़ों के दर्द) : लगभग 4 ग्राम तिल और सोंठ का मिश्रण दिन में दो बार सेवन करने से आमवात में लाभ मिलता है।
26. मर्दाना ताकत के लिए (पुरुषार्थ) : तिल और अलसी का 100 मिलीलीटर काढ़े को सुबह और शाम भोजन से पहले सेवन करने से मर्दाना ताकत बढ़ती है।
27. सूजाक (गिनोरिया) : ताजे तिल के पौधे को 12 घंटे तक पानी में भिगोकर उस पानी को पीने या तिल के 5 मिलीलीटर रस को दूध या शहद के साथ देने से पेशाब में जलन ठीक हो जाती है तथा पेशाब साफ आता है।
28. मुंहासे :तिलों की छाल को सिरके के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे ठीक हो जाते हैं।
29. पेट में दर्द (अफारा) :
• तिल के तेल में हींग, सूंघनी या काला नमक मिलाकर गर्म करके पेट पर मालिश करने और सेंकने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
• तिलों को पीसकर पेट पर लेप करने से पेट के दर्द में आराम होता है।
• साफ तिल के तेल को दालचीनी या लौंग में मिलाकर छोटी-छोटी गोलिया बनाकर खाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।
30. वात रोग :
• तिल के तेल की मालिश करने से वात रोग में लाभ मिलता है।
• तिल के तेल में लहसुन का काढ़ा और सेंधानमक मिलाकर खाने से वात रोग खत्म हो जाता है।
• काले तिल और अरण्ड की कुली 50-50 ग्राम लेकर भेड़ के दूध में पीसकर लेप करने से वात रोग ठीक होने लगता है।
31. स्त्री रोग : लगभग 6-12 ग्राम काले तिलों का चूर्ण गुड़ के साथ सुबह और शाम लेने से स्त्री रोग में लाभ मिलता है।
32. गुल्म (न पकने वाला फोड़ा) : 8 ग्राम काले तिल, 2 ग्राम सोंठ और 4 ग्राम गुड़ के मिश्रण को गर्म दूध के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।
33. चिप्प (कुनख) : लगभग 10 ग्राम तिल के तेल में 10 ग्राम हल्दी का चूर्ण मिलाकर लेप बना लें। इस लेप लगाने से चिप्प ठीक हो जाता है।
34. सूजन :
• 2 चम्मच तिल को पीसकर भैंस के मक्खन और दूध में शरीर के सूजन वाले भाग पर लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
• 10 ग्राम तिल और 100 ग्राम मूली को एक साथ खाने से चमड़ी के नीचे इकट्ठा हुआ पानी खत्म हो जाता है। इस तरह से शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
• तिल के काढ़े और यष्टिमधु की जड़ के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर बदन पर लेप करने से बदन की सूजन खत्म हो जाती है।
• तिल, नींबू के पत्ते, सेंधानमक, हरिद्राप्रफल, दारुहरिद्रा की जड़ और त्रिवृत की जड़ के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर इसको घी में काढ़ा बनाकर रोगी को देने से उसके शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
• 50 मिलीलीटर तिल के तेल में 25 ग्राम रत्नजोत के चूर्ण को डालकर उबालें। नीचे उतारकर इसमें आधा ग्राम कपूर चूरा मिलाकर घोटकर मालिश करने से सूजन मिट जाती है।
35. अंडकोष की सूजन : 25 ग्राम काले तिल में 25 ग्राम एरण्ड के बीजों की गिरी को एक साथ पीसकर अंडकोष पर लगाकर इस पर एरण्ड के पत्ते रखकर पट्टी बांध लें। इससे सूजन कम हो जाती है।
36. विष (जहर) खत्म करने के लिए :
• तिल की छाल और हल्दी को पानी में पीसकर लेप करने से मकड़ी का जहर उतर जाता है।
• तिल को पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बिल्ली के काटे स्थान पर लगाने से जहर का असर कम हो जाता है।
• तिलों को सिरके में पीसकर डंक के स्थान पर लगाए इससे भिरड़ (बर्रे) का जहर उतर जाता है।
• तिलों की लुगदी को घी के साथ लेने से विषम बुखार (टायफाइड) में लाभ होता है।
• तिल का तेल, कुटे हुए तिल, गुड़ और आक (मदार) के दूध को बराबर मात्रा में पिलाने से हड़क-वात के जहर में लाभ मिलता है।
• तिल का तेल व पानी को गर्म करके गर्म-गर्म पीने से धतूरे का जहर उतर जाता है।
37. दमा (श्वास) : सर्दी के महीने में तिल-गुड़ के लड्डू या गजक का सेवन करते रहने से दमा रोग नष्ट हो जाता है।
38. नंपुसकता (नामर्दी) :
• काले तिल, मिर्च, भारड़ी, सोंठ, पीपल और गुड़ बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर 21 दिन तक पीने से शरीर की गर्मी बढ़ती है।
• नंपुसकता को दूर करने के लिए तिल को गोखरू दूध में उबालकर पीने से लाभ मिलता है और धातु स्राव बंद हो जाता है और नामर्दी दूर हो जाती है।
• तिल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम सुबह-शाम सेवन करने से सेक्स पावर बढ़ती है और नंपुसकता दूर हो जाती है।
39. गुदे में जलन होना : तिल का तेल और नीम का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर गुदा पर लगायें। इससे गुदा पाक का प्रदाह (जलन) तथा जख्म मिट जाते हैं।
40. जीभ और मुंख का सूखापन : तिलका की छाल चबाने से मुंह का सूखापन खत्म होता है। इसके प्रयोग से लार ग्रंथि की श्राव बढ़ती है।
41. स्तनों का जमा दूध निकालना : काले तिलों को दूध या पानी में पीसकर हल्का गर्म करें और इससे पीड़ित स्त्रियों की छाती पर लेप करें। इससे छाती (सीने) का जमा हुआ दूध निकल जाता है।
42. सिर की रूसी : तिल का तेल लगाने से रूसी खत्म हो जाती है।
43. गर्भ का सुदृढ़ (मजबूत) करने के लिए : धुले हुए तिल और जौ 20-20 ग्राम की मात्रा में कूट-छानकर इसमें लगभग 40 ग्राम की मात्रा में खांड मिलाकर रख दें, फिर इसकी 5 ग्राम की मात्रा सुबह शहद के साथ सेवन करने से गर्भ सुदृढ़ होता है।
44. पेट में गैस बनना : आधा चम्मच काले तिल, थोड़ा-सा कपूर, एक लाल इलायची, आधा चम्मच अजवाइन, 2 चुटकी काला नमक को मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट की गैस खत्म हो जाती है।
45. मुंह का रोग : सरसों का तेल, सफेद तिल, लोंग 5-5 ग्राम की मात्रा में मिलाकर मोटा-मोटा कूट लें। फिर इस कूटन को 150 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई रह जाए तब इसे छानकर इसमें आधी चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से मुंह से लार गिरना बंद हो जाता है।
46. अर्श (बवासीर):
• तिल को पानी के साथ पीसकर मक्खन के साथ दिन में 3 बार भोजन से 1 घंटा पहले चाटने से लाभ मिलता है और बवासीर के मस्से से खून निकलना रुक जाता है।
• तिल, नाग केशर और शर्करा का चूर्ण खाने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
• प्रतिदिन कुछ दिनों तक लगभग 60 ग्राम काले तिल खाकर ऊपर से ठंडा पानी पीने से बिना खून वाले बवासीर (वादी बवासीर) ठीक हो जाते हैं। इसे दही के साथ पीने से खूनी बवासीर भी नष्ट हो जाती है।
• लगभग 3-6 ग्राम तिलों का चूर्ण समान मात्रा में मक्खन के साथ दिन में 3 बार दें। इससे बवासीर से छुटकारा मिल जाता है।
• खूनी बवासीर को ठीक करने के लिए तिलों के 5 ग्राम चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर बकरी के 4 गुने दूध के साथ पीने से लाभ मिलता है।
• 50 ग्राम काले तिल को इतने पानी में ही भिगोएं जब तिल पानी को सोख लें। फिर इसे पीसकर इसमें 1 चम्मच मक्खन, 2 चम्मच पिसी हुई मिश्री मिलाकर सुबह और शाम लेने से बवासीर के मस्से से खून का बहना बंद हो जाता है।
• 10 ग्राम काले तिल को अच्छी तरह से पीसकर इसमें लगभग 125 से 150 मिलीलीटर बकरी के दूध में मिलाकर, उसमें 5 ग्राम चीनी डालकर सुबह पीने से खूनी बवासीर ठीक हो जाता है।
• तिल को मक्खन या चीनी में मिलाकर बकरी के दूध के साथ पीयें। इससे बवासीर में लाभ मिलता है।
• 10 ग्राम काले तिल को महीन कूटकर 20 ग्राम मक्खन मिलायें। इसको खाने से खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
• 60 ग्राम काले तिल खाकर ठंडा पानी पीयें और तिल का तेल बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्सें सूख जाते हैं और खूनी बवासीर में लाभ होता है।
47. भगन्दर : तिल, एरण्ड की जड़ और मुलहठी को 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर थोड़े-से दूध के साथ पीसकर भगन्दर पर लेप करने से रोग में आराम मिलता है।
48. चोट तथा मोच :
• तिल की खली को पानी के साथ पीसकर गर्म करके बांधने से चोट और मोच में लाभ मिलता है।
• तिल और अंरडी को अलग-अलग कूटकर तिल्ली के तेल में मिलाकर लेप करने से चोट की पीड़ा दूर हो जाती है।
• तिल की खली (तेल निकालने के बाद बचा हुआ पदार्थ) को पानी में पकाकर मोच पर गर्म-गर्म बांधने से मोच में आराम हो जाता है।
• तिल की खल (तेल निकालने के बाद बचा हुआ पदार्थ) कूटकर पानी में डालकर पकाकर गर्म ही चोट पर लगाने से लाभ मिलता है।
• तिल के तेल 50 ग्राम में अफीम 2 ग्राम की मात्रा में मिलाकर मोच की मालिश करें।
49. प्रदर रोग : तिल को पीसकर चूर्ण बनाएं। इसमें से 10 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से प्रदर में लाभ मिलता है।
50. प्रथम महीने गर्भ के विकार : तिल पदमाख, कमलकंद और शालि चावल (सेल्हा चावल) समान मात्रा में लेकर गाय के दूध के साथ पीसें और उसे शहद और मिश्री युक्त गाय के दूध में गर्भवती स्त्री को घोलकर पिलाने से प्रथम महीने होने वाले गर्भ के विकार नष्ट हो जाते हैं।
51. माहवारी को प्रारम्भ करने के लिए : तिल, सोंठ, मिर्च, पीपल, भारंगी, तीन वर्ष पुराना गुड़ सभी को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से रजोदर्शन (माहवारी) होना शुरू हो जाता है।
52. मधुमेह (शूगर) : लगभग 15 से 20 ग्राम काले तिल और इसी के बराबर मात्रा में गुड़ लेकर दोनों को मिलाकर रोजाना सेवन करने से मधुमेह ठीक हो जाता है।
53. मोटापा : तिल के तेल की मालिश करने से शरीर पर चढ़ी फालतु की चर्बी कम होने लगती है।
54. स्तनों का उभार :
• तिल का तेल लगभग 10 से लेकर 20 मिलीलीटर की मात्रा एक दिन में सुबह और शाम सेवन करने से स्तनों के आकार में वृद्वि होती है।
• तिल के तेल की मालिश करने से स्तनों में उभार महसूस होने लगता है।
55. कील या कांटे के चुभने पर – जब कांटा चुभ गया हो तो उसे सुई से कुरेदकर निकालने का प्रयास न करें। कांटा निकालने के लिये तिल के तेल में नमक मिलाकर रूई भिगोकर कांटे लगे स्थान पर इसे रखकर ऊपर से पट्टी बांध लें। इससे कुछ ही समय में कांटा निकल जाएगा।
56. आधासीसी (माइग्रेन) :
• लगभग 2 ग्राम तिल और लगभग 5 ग्राम वायविडंग को पानी के साथ पीसकर सिर पर लेप करने से आधासीसी का दर्द खत्म हो जाता है।
• काले तिल, कच्ची हल्दी, बादाम और आंवले को 10-10 ग्राम की बराबर मात्रा में लेकर इन सब को जल के साथ पीसकर माथे पर लेप करें इससे आधासीसी ठीक हो जाता है।
• काले तिल और वायविडंग को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर गर्म पानी में मिलाकर सूंघने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है।
• तिल की खल, सेंधानमक, तेल और शहद को मिलाकर माथे पर लेप करने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है।
• तिल और बायविडंग पीसकर सिर पर लेप करने से आधे सिर के दर्द में लाभ मिलता है।
• तिल की पुरानी खली को गाय के पेशाब में पीसकर लेप करने से आधासीसी का रोग ठीक होता है।
57. सभी प्रकार के दर्द : तिलों को बारीक पीसकर गोला बनाकर पेट पर लगाने से `वातज शूल´ यानी वात के कारण होने वाले दर्द में लाभ मिलता है।
78. टीके से होने वाले दोष : 240 से 960 मिलीलीटर तिल के रस को छाछ (लस्सी) के साथ सुबह-शाम सेवन करने से टीका पकने के कारण बना घाव ठीक हो जाता है।
79. अरूंषिका (वराही) : तिलों को कूटकर और मुर्गे की बीट को गाय के पेशाब के साथ पीसकर सिर पर लगाने से अरुंषिका रोग या छोटी-छोटी फुंसियां ठीक हो जाती है।
60. योनि की जलन और खुजली : तिल का तेल 50 मिलीलीटर, नीम के पत्ते 10 ग्राम और मेहंदी के सूखे पत्ते 10 ग्राम की मात्रा में लेकर 10 ग्राम शुद्ध मोम में मिलाकर योनि पर लेप करने से योनि में होने वाली खुजली समाप्त हो जाती हैं।
61. योनि रोग :
• तिल के तेल के नीचे बैठी लेई तथा गोमूत्र लगभग 1-1 लीटर, 2 लीटर दूध और गिलोय 250 ग्राम चूर्ण को मिलाकर किसी बर्तन में डालकर धीमी आग पर पकायें। जब तेल के बराबर मात्रा बच जायें, तब बर्तन को उतारकर तेल में रूई का फोहा भिगो लें। इस फोहे को योनि में रखने से वादी और वायु से पैदा होने वाले रोग ठीक हो जाते हैं।
• तिल के तेल में भिगा हुई रूई का फोहा योनि में रखने से भी कठिन वातला और थोड़े स्पर्श से होने वाला योनि का दर्द ठीक हो जाता है।
• लगभग 6 ग्राम तिलों का चूर्ण गर्म पानी के साथ दिन में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
62. एक्जिमा (पामा) : 1 मिलीलीटर तिल के तेल में 250 ग्राम कनेर की जड़ को जलाकर, तेल को छानकर रख लें। इस तेल को रोजाना साफ रूई से एक्जिमा पर सुबह और शाम लगाने से एक्जिमा ठीक हो जाता है।
63. अपरस : काले तिल और बावची को बराबर मात्रा मे मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से 10 ग्राम चूर्ण को सुबह और शाम खाने से खून साफ हो जाता है और अपरस ठीक हो जाता है।
64. आंतों का बढ़ना :
• काले तिल, अजवायन 3-3 ग्राम गुड़ में मिलाकर सुबह-शाम 7 दिनों तक प्रयोग करें। इससे लाभ मिलेगा।
• काले तिल 40 ग्राम तथा अजवायन 20 ग्राम को कूटकर छान लें और इसमें गुड़ मिला लें। इसका सेवन प्रतिदिन करने से आंत का बढ़ना ठीक हो जाता है।
65. खाज-खुजली तथा दाद :
• तिल के तेल में चमेली का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर खाज-खुजली पर लगाने से आराम मिलता है।
• 250 मिलीलीटर तिल्ली के तेल में थोड़ी सी दूब (घास) डालकर आग पर पकाने के लिए रख दें। दूब (घास) जब लाल हो जाये तो उसे उतार कर छान लें और इस तेल को खुजली वाले स्थान पर लगायें।
• तिल के तेल में दूब (घास) का रस मिलाकर मालिश करने से खुजली ठीक हो जाती है।
• 250 मिलीलीटर तिल के तेल में 60 मिलीलीटर दूब (घास) का रस डालकर पका लें। इसके बाद इसे ठंडा कर लें और छानकर किसी बर्तन या बोतल में भर दें। इस तेल को 7 दिन तक खाज-खुजली पर लगाने से लाभ मिलता है।
• बावची, पवाड के बीज, सरसों, हल्दी, तिल, दारुहल्दी, कूट और मोथा को बराबर मात्रा में लेकर ताजे पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को खाज-खुजली और दाद पर लगाने से ये ठीक हो जाते हैं।
• 2 चम्मच तिल के तेल को गर्म करके उसमें तारमीरा का तेल मिला लें। फिर इसमें 2 चम्मच पिसी हुई राल और 1 चम्मच पीला मोम मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
66. हृदय रोग : लगभग 10 मिलीलीटर तिल के तेल, 1 ग्राम नमक तथा 15 से 30 मिलीलीटर दशमूल ( श्योनाक, बेल, खंभारी, अरलू, पाढ़ल, सरियवन, पिठवन, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी और गिलोय) का काढ़ा मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
67. कुल्हे से पैर तक दर्द होना (साइटिका रोग) – कुल्हे से पैर तक दर्द हो तो 50 मिलीलीटर तिल के तेल में 10 लहसुन की पुती को छीलकर गर्म करें। फिर उसे उतारकर ठंडा करके उससे मालिश करने से आराम मिलता है।
68. हिस्टीरिया : तिल, घृत कुमारी और नारियल के ठंडे तेल को मिलाकर सिर पर मालिश करने से हिस्टीरिया ठीक होने लगता है।
69. नाखून का जख्म – नाखून का जख्म अगर नाखून के फटने से हो तो उसके लिए 20 मिलीलीटर तिल का तेल, 10 मिलीलीटर सिरका और 5 ग्राम सरसों पिसी हुई मिलाकर गर्म करके मलहम बनाकर लगाने से नाखूनों का जख्म ठीक हो जाता है।
70. कुष्ठ (कोढ़) : 6 ग्राम निर्गुण्डी की जड़ के चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर 1 महीने तक खाने से कुष्ठ रोग ठीक हो जाता है।
71. त्वचा के रोग :
• 100 मिलीलीटर तिल का तेल और 100 मिलीलीटर हरी दूब का रस मिलाकर हल्की सी आग पर गर्म कर लें। जब यह पूरी तरह से गर्म हो जाये तो इसे उतारकर ठंडा कर लें और छान लें। इसे लगाने से हर प्रकार के त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
• सांप की केंचुली को जलाकर राख करके तिल के तेल में मिलाकर चेहरे पर तथा फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ मिलता है।
72. सूखा रोग :
• केंचुआ और बीरबहूटी को तिल के तेल में भूनकर छान लें। इस तेल से मालिश करने से सूखा रोग (रिकेट्स) समाप्त हो जाता है।
• तिल के तेल की मालिश करने से शरीर की रूक्षता कम हो जाती है।
73. लिंग दोष (शिश्न की कमी) – जौ को सूखा पीसकर तिल के तेल में मिलाकर लिंग पर लगाने से लिंग के इन्द्री दोष दूर हो जाते हैं।
74. बच्चों के रोग :
• तिल और चावलों को एक साथ पीसकर पेट की नाभि पर लेप करने से बच्चों को होने वाली खुजली ठीक हो जाती है।
• तिल, सारिवा, लोध और मुलहठी को एक साथ मिलाकर पीसकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कुल्ला करने से लाभ मिलता है।
• तिल और चावलों को एक जगह पीसकर नाभि (टुंडी) पर लेप करने से अथवा भारंगी और मुलेठी को पीसकर नाभि (टुंडी) पर लेप करने से बच्चों के सारे रोग ठीक हो जाते हैं।
75. सौंदर्य प्रसाधन : तिल का तेल सिर पर लगाने से बाल बढ़ने लगते हैं।
76. याददास्त कमजोर होना : तिल और गुड़ को बराबर मात्रा में मिलाकर लड्डू बना लें। इसे रोजाना सुबह और शाम खाकर ऊपर से दूध पीने से दिमाग की कमजोरी के साथ ही साथ मानसिक तनाव भी दूर हो जाता है।
77. शरीर को शक्तिशाली बनाना :
• लगभग 100-100 ग्राम की मात्रा में काले तिल और ढाक के बीजों को पीसकर और इनको छानकर इसमें 200 ग्राम चीनी मिलाकर इस मिश्रण को रोजाना 10-10 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम पानी के साथ लेने से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है।
• तिल और अलसी का काढ़ा बनाकर पीने से शरीर में संभोग (स्त्री प्रसंग) करने की क्षमता में वृद्धि होती है।
• लगभग 20 ग्राम की मात्रा में काले तिल और इतनी ही मात्रा में गोखरू को महीन पीसकर इसका चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को बकरी के दूध में डालकर खीर बना लें। इसे खाने से शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है। इसका सेवन लगातार 15 या 20 दिनों तक करने से शरीर की कमजोरी खत्म हो जाती है।
78. विनसेण्ट एनजाइना के रोग : शुद्ध कुसुम के असली तेल को तिल के तेल में मिलाकर गले में लगाने से इस रोग में आराम मिलता है।
79. श्वेत प्रदर :तिल के तेल में रूई के फोहे को भिगोकर योनि में रखने से श्वेत प्रदर ठीक हो जाता है।
तिल के दुष्प्रभाव (Til ke Nuksan in Hindi)
गर्भवती स्त्री को तिल नहीं खिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ गिरने की आशंका रहती है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)