Last Updated on April 15, 2022 by admin
गिलोय (अमृता, गुडुची) क्या है ? : Giloy (Amrita) in Hindi
गिलोय की गणना आयुर्वेद ने महत्त्वपूर्ण, उपयोगी तथा श्रेष्ठ औषधियों में की जाती है। इन दस औषधियों में गिलोय इतनी महत्वपूर्ण और गुणकारी औषधि है कि आयुर्वेदिक ग्रन्थ भाव प्रकाश निघण्टु’ जड़ी बूटियों का वर्णन करने वाले एक अध्याय का नाम ही गिलोय (गुडूची) के नाम पर ‘गुडूच्यादि वर्ग:’ रखा है। इसके गुणों के आधार पर संस्कृत में इसको कई गुण वाचक नाम दिये गये हैं जैसे मधुपर्णी, अमृता, अमृतवल्लरी, कुण्डली, चक्र लक्षणिका, छिन्नहा, वत्सादनी, सोमवल्ली, जीवन्ती, रसायनी, तन्त्रिका आदि।
गिलोय कोई पौधा या वृक्ष के रूप में नहीं बल्कि एक लम्बी बेल के रूप में होती है जो बहुत लम्बी और वर्षों तक बनी रहती है जो वृक्ष के सहारे से चढ़ती व बढ़ती है। जो गिलोय नीम के वृक्ष पर चढ़ती और रहती है उसे नीम गिलोय कहते हैं। नीम गिलोय औषधि के रूप में सबसे उत्तम मानी जाती है। इसके पत्ते हृदय के आकार के और लम्बे डण्ठल वाले होते हैं। फूल बारीक पीले रंग के झुण्ड के रूप में होते हैं। फल भी लाल रंग के गुच्छे की तरह होते हैं। इसकी जड़ और काण्ड (तना) को उपयोग में लिया जाता है।
विपाक में मधुर होने से शक्ति और आयु बढ़ाने वाली होती है और उष्ण वीर्य होते हुए भी पित्त शामक होती है। रसायन गुण वाली होने से यह सप्त धातुओं को पुष्ट करती है और शरीर को बल देती है। ज्वर और जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) को दूर करने के लिए यह श्रेष्ठ औषधि का काम करती है। इसका स्वाद कड़वा होता है।
गिलोय का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- संस्कृत – गुडूची ।
- हिन्दी – गिलोय ।
- मराठी – गुलवेल ।
- गुजराती – गलो।
- बंगला – गुलंच ।
- तैलुगु – तिप्पतोगे।
- तामिल – शिण्डिलकोडि।
- कन्नड़ – गरुड़ बेल।
- पंजाब – गिलो।
- कोकण – गरुड़वेल।
- गोआ – अमृतबेल ।
- करनाटकी – अमरदवल्ली।
- फ़ारसी – गिलोई ।
- इंगलिश – टिनोस्पोरा (Tinospara).।
- लेटिन – टिनोस्पोरा का फोलिया (Tinospara cordifolia).
गिलोय के औषधीय गुण :
गिलोय कटु, तिक्त व कषाय रस युक्त, विपाक में मधुर रस युक्त, रसायन संग्राही, उष्णवीर्य, लघु, बलदायक, जठराग्नि तेज़ करने वाली और त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) का शमन करने वाली, आम (आंव) प्यास, जलन, प्रमेह, खांसी, एनीमिया, कामला, वात रक्त (गाउट), कुष्ठ, ज्वर, क्रिमि आदि व्याधियों को नष्ट करने वाली होती है। आइये जाने गिलोय का सेवन कैसे करें |
गिलोय सेवन विधि और मात्रा :
- इसका चूर्ण छोटा आधा चम्मच,
- पानी के साथ, काढ़ा या ताज़ा रस आधा कप,
- गिलोय सत्त्व के रूप में आधा ग्राम से एक ग्राम मात्रा में पानी के साथ सुबह और शाम को सेवन करना चाहिए।
गिलोय के फायदे व औषधीय प्रयोग : Health Benefits and Uses of Giloy in Hindi
- ज्वर, जीर्ण ज्वर, मोती ज्वर (टायफाइड) और तीनों दोष का शमन करने के लिए गिलोय का उपयोग सर्वश्रेष्ठ है और निरापद है। जहां तक सम्भव हो गिलोय की ताज़ी बेल काट कर प्रयोग करना चाहिए। संग्रह करके रखना हो तो ग्रीष्म काल के अन्त और वर्षा शुरू होने से पहले इसे खूब सुखा कर रखना चाहिए इसके ऊपर की छाल हटा कर टुकड़े करके कूट पीस कर या टुकड़े करके संग्रह करना चाहिए।
- गिलोय का उपयोग किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है किसी भी रोग के रोगी की चिकित्सा में किया जा सकता है और किसी भी आयु वाला किसी भी ऋतु में कर सकता है।
- इसका उपयोग चूर्ण, रस सत्त्व, काढ़ा, फाण्ट आदि के रूप में अन्य औषधियों के साथ सहायक औषधि या अनुपान के रूप में अधिकतर किया जाता है, केवल गिलोय का अकेला उपयोग बहुत कम होता है।
- जैसे भूखे व्यक्ति के लिए भोजन करना ज़रूरी है उसी तरह किसी भी रोग के रोगी के लिए किसी भी ऋतु में, किसी भी आयु में बच्चा, जवान बूढ़ा, गर्भवती या प्रसूता स्त्री के लिए गिलोय का उपयोग ज़रूरी व हितकारी है।
- दोषों को सामान्य करना इसकी विशिष्ट उपयोगिता है अतः धातुओं और वात पित्त आदि दोषों को, उनकी घट-बढ़ को दूर कर उन्हें सम्यक अवस्था में रखना गिलोय की सबसे बड़ी उपयोगिता है।
- पित्त प्रकोप (एसिडिटी) को शान्त करने में इसका उपयोग बहुत गुणकारी सिद्ध होता है। इसका उपयोग निरोग व्यक्ति भी कर सकता है।
कुछ रोगों में इसके उपयोग के बारे में विवरण प्रस्तुत है।
1. पाचन संस्थान में गिलोय के फायदे : आजकल आहारविहार के नियमों का पालन होना कठिन हो गया है जिसके फलस्वरूप उदर रोगों से पीड़ित रोगियों की संख्या बहुत बढ़ गई है। जैसे मन्दाग्नि होने से अपच होना जिससे खुल कर भूख नहीं लगना, क़ब्ज़ होना, पित्त व वात (एसिडिटी व गैस) का प्रकोप होना, धीरे धीरे शरीर में कमज़ोरी आना, थोड़े से परिश्रम से ही थकावट होना, सांस फूल जाना आदि परिणाम होते हैं। गिलोय के उपयोग से भूख बढ़ती है, आहार का ठीक से पाचन होने लगता है, कमज़ोरी व निस्तेजता दूर होती है, रक्त की शुद्धि और रक्त कणों की वृद्धि होती है। जिससे शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है।
इसके सेवन से पित्त स्राव नियमित होने लगता है, यकृत की पित्त वाहक नलिका और आमाशय की श्लेष्मिक कला में उत्पन्न अभिष्यन्द (भारीपन) दूर होता है जिससे पित्त प्रकोप जन्य अपच और मन्द-मन्द उदर दर्द बन्द होता है, कामला रोग में लाभ होता है, अतिसार, जीर्ण प्रवाहिका (डीसेण्ट्री) और अम्लपित्त (हायपर एसिडिटी) रोग में लाभ होता है। इन सब विकारों के दूर होने से, गिलोय का सेवन, पाचन संस्थान के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होता है और पाचनसंस्थान स्वस्थ बना रहता है।
2. त्वचा रोग में गिलोय के फायदे : गिलोय त्वचा रोगों के लिए मुख्य औषधि मानी जाती है। इसके सेवन से त्वचा में जलन, खुजली, दाद, त्वचा पर फोड़े फुन्सी होना और वातरक्त रोग के कारण रक्त स्राव होना आदि रोगों में लाभ होता है। ( और पढ़े – त्वचा की 6 प्रमुख समस्या और उनके उपाय)
3. आम वात में गिलोय के फायदे :
- खाया हुआ आहार पूरी तरह से और यथा समय न पचता हो तो इसकी जानकारी मल के चिकने होने और दस्त होते समय पेट में मरोड़ के साथ दर्द होने से मिलती है। इस व्याधि को दूर करने के लिए गिलोय की बेल का एक टुकड़ा लगभग 10 ग्राम वज़न में ले कर, कूट कर, दूध के साथ ठण्डाई की तरह घोंट पीस कर छान लें। इसे सुबह शाम पीने और पथ्य आहार का सेवन करने से आम वात रोग दूर हो जाता है।
- आधा चम्मच गिलोय का चूर्ण और आधा चम्मच पिसी सोंठ दो कप पानी में डाल कर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब छान कर ठण्डा कर लें। यह काढ़ा सुबह शाम पीने से या गिलोय के काढ़े में 2 छोटे चम्मच अरण्डी का तेल मिला कर पीने से भी आम वात रोग दूर होता है। ( और पढ़े – वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार)
4. विदग्धाजीर्ण और श्वास रोग में गिलोय के फायदे : पित्त का प्रकोप बने रहने से विदग्ध अजीर्ण नामक व्याधि होती है जिसमें अपचा आहार पेट में पड़े पड़े अम्लपित्त (हायपर एसिडिटी) की स्थिति निर्मित करता है। कड़वी खट्टी डकार आती है और कभी कभी श्वास का दौरा पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में अजीर्ण या श्वास कष्ट को दूर करने के लिए उष्ण-उपचार करने से हानि ही होती है। इस व्याधि के उपचार के लिए गिलोय-सत्त्व व कर्पादिक भस्म 1-1 ग्राम, पिसी काली मिर्च छोटा आधा चम्मच तीनों को थोड़े से घी में मिला कर पेस्ट बना लें। इसे सुबह, दोपहर, शाम चाट कर सेवन करने से दोनों व्याधियों में आराम होता है।
5. शारीरिक निर्बलता में गिलोय के फायदे : मियादी बुखार और ज्यादा बढ़े हुए ज्वर से पीड़ित रोगी जब रोग से मुक्त होता है तब उसका शरीर बहुत कमज़ोर हो जाता है, पाचन शक्ति मन्द हो जाती है जिसे मन्दाग्नि होना कहते हैं, शरीर दुबला पतला हो जाता है और न भी हो तो भी कमज़ोर तो हो ही जाता है। मन में कार्य करने की उमंग और तन की शक्ति में भारी कमी हो जाती है। इस स्थिति में गिलोय सत्व आधा ग्राम (चार रत्ती) और स्वर्ण मालिनी वसन्त एक गोली पीस कर मिला कर शहद के साथ सुबह शाम चाटने से, थोड़े समय में पाचन शक्ति बढ़ जाती है जिससे शारीरिक निर्बलता दूर होती है, शरीर पुष्ट और शक्ति शाली होता है। और चेहरे पर रौनक़ आ जाती है। ( और पढ़े – बल वीर्य वर्धक चमत्कारी 18 उपाय )
6. विभिन्न ज्वर में गिलोय के फायदे : किसी भी प्रकार का ज्वर हो, गिलोय सत्व एक ग्राम या गिलोय चूर्ण आधा चम्मच शहद के साथ सुबह शाम सेवन करना चाहिए।
7. सिर दर्द में गिलोय के फायदे : एक प्रकार का सिर दर्द होता है जो आधे सिर में ही होता है इसलिए इसे आधा सीसी कहते हैं। यह सिर दर्द सुबह सूर्योदय होने के साथ शुरू होता है, मध्यान्ह काल तक बढ़ता जाता है और शाम होते होते दर्द दूर हो जाता है। इस व्याधि को दूर करने के लिए गिलोय सत्व एक ग्राम और मुक्ता पिष्टी एक रत्ती (एक ग्राम में आठ रत्ती होती है) इसलिए आठ ग्राम गिलोय सत्व और मुक्ता पिष्टी एक ग्राम मिला कर अच्छी तरह घुटाई करके एक जान कर लें और इसकी आठ पुड़िया बराबर मात्रा की बना लें। एक-एक पुड़िया सुबह सूर्योदय से पहले मिश्री मिले दूध या रबड़ी के साथ सेवन करें। दोपहर और रात को सोते समय सिर्फ एक ग्राम गिलोय सत्व शहद में मिला कर या शर्बत बनफशा के साथ ले लें। इस चिकित्सा से थोड़े समय में । आधा सीसी का दर्द दूर हो जाता है। ( और पढ़े – सिर दर्द के 41 घरेलू नुस्खे)
8. मधुमेह में गिलोय के फायदे : आजकल एड्स रोग की तरह मधुमेह रोग के रोगी भी बड़ी तेज़ी से बढ़ रहे हैं। जिसका कारण भी वही है आहार-विहार का अनियमित और अनुचित होना जिसकी वजह से यकृत (लिवर) और अग्न्याशय (पेंक्रियाज़) पर बराबर दुष्प्रभाव पड़ता रहता है और इन अंगों की कार्यप्रणाली विकृत हो जाती है और रक्त में शर्करा की मात्रा आवश्यकता से अधिक बढ़ जाती है। इस स्थिति को मधुमेह (डायबिटीज़) रोग कहते हैं। इस रोग के लिए आवश्यक पथ्य-अपथ्य का पालन करते हुए गिलोय का ताज़ा रस 4 चम्मच और पाषाणभेद चूर्ण छोटा आधा चम्मच (3 ग्राम) फीके दूध के साथ सुबह शाम लेने से लाभ होता है। ( और पढ़े – मधुमेह के 25 रामबाण घरेलु उपचार)
9. दृष्टि दोष में गिलोय के फायदे : नेत्र ज्योति में कमी हो जाए। तो इसे ठीक करने के लिए गिलोय, हरड़, बहेड़ा और आंवला- चारों 100-100 ग्राम ले जौ कुट (मोटा मोटा) कूट लें। इसे 2 चम्मच ले कर दो कप पानी में डाल कर उबालें। जब आधा कप बचे तब उतार कर छान लें व ठण्डा कर लें। इसमें दो चम्चम शहद और पीपल का चूर्ण आधा चम्मच डाल कर सुबह शाम पीने से थोड़े दिनों में नेत्र ज्योति ठीक हो जाती है।
10. हिचकी में गिलोय के फायदे : गिलोय और सोंठ का बारीक पिसा हुआ महीन चूर्ण 10-10 ग्राम एक गिलास भर उबलते हुए गरम पानी में डाल कर, ढक दें और ठण्डा होने के लिए रख दें। जब बिल्कुल ठण्डा हो जाए तब हाथ से मसलकर कपड़े से छान लें। इस विधि से तैयार किये गये पानी को फाण्ट कहते हैं। एक कप फाण्ट में एक कप ठण्डा दूध मिला कर सुबह शाम पीने से हिचकी चलना बन्द हो जाता है।
11. पित्तज ज्वर में गिलोय के फायदे : जिन स्त्रियों को पित्त प्रकोप के कारण रक्त प्रदर रोग होता है उनके रक्त प्रदर का रक्त स्राव पतला और गरम होता है। इस व्याधि को दूर करने के लिए गिलोय का रस चार चम्मच में दो चम्मच शहद मिला कर सुबह शाम पीना चाहिए। इसके साथ गिलोय सत्व एक ग्राम और त्रिवंग भस्म दो रत्ती शहद के साथ दोनों वक्त लेना चाहिए।
12. वात जन्य रोग में गिलोय के फायदे : वात प्रकोप के कारण गैस बढ़ना, पेट फूलना, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द होना आदि व्याधियां होती हैं। गिलोय, एरण्ड की जड़, सोंठ, देवदारु, रास्ना और हरड़इनका चूर्ण 1-1 चम्मच दो कप पानी में डाल कर काढ़ा करें। पानी आधा कप रह जाए तब छान कर ठण्डा करके सुबह शाम पिएं।
13. पैरों की जलन में गिलोय के फायदे : गिलोय और एरण्ड बीज की गिरी- समान वज़न में ले कर दही के साथ पीस कर तलवों पर लेप करें और एक घण्टे बाद धो डालें। जलन होना बन्द हो जाएगा।
14. आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. एस.पी. सिंह ने बताया कि गिलोय में रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। इसका प्रयोग विषम ज्वर, कुष्ठ रोग, वात रक्त, प्रमेह, कृमि, पेशाब में जलन, मन्दाग्नि आदि रोगों में किया जाता है। डॉ. सिंह ने बताया कि कुष्ठ एवं जीर्ण आमवात में ताज़ी गिलोय का कल्क 10 तोला, अनन्त मूल का चूर्ण 10 तोला, 100 ग्राम उबले जल में डाल कर 2 घण्टे बन्द पात्र में रख कर छान कर पीने से अच्छा लाभ होता है।
विषम एवं जीर्ण ज्वर के लिए गुडूची के क्वाथ एवं स्वरस में छोटी पीपल एवं मधु मिला कर पीने से लाभ होता है। उन्होंने बताया कि बहुवर्षीय तथा अमृत के समान गुणकारी होने के कारण इसे ‘अमृता’ भी कहा जाता है। गिलोय स्वरस लेने से मल -मूत्र संबधित रोगों में अच्छा लाभ करता है। गिलोय से अनेक आयुर्वेदिक औषधियां भी बनाई जाती है।
गिलोय से निर्मित उत्तम आयुर्वेदिक दवा (योग) :
गिलोय के साथ अन्य वनौषधियों का प्रयोग करके बनाये जाने वाले कुछ उत्तम योगों की मात्रा, सेवन-विधि और लाभ के विषय में संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत है। ये योग आयुर्वेदिक औषधि निर्माताओं द्वारा निर्मित बाज़ार में आयुर्वेदिक औषधि विक्रेताओं के यहां बने बनाए मिलते हैं।
1. गिलोय का शर्बत – इस शर्बत को 4 बड़े चम्मच भर आधा कप पानी में घोल कर सुबह शाम पीना चाहिए। यह शर्बत ज्वर दूर करने वाला तेज़ बुखार को उतारने वाला, पित्त प्रकोप का शमन करने वाला और आंख, छाती, पेट व पेशाब में होने वाली जलन दूर करने वाला है। इसके सेवन से पेशाब खुल कर होता है, प्यास व जीर्ण ज्वर का शमन होता है, शरीर से पसीना निकलना बन्द होता है।
2. गिलोय अर्क – यह अर्क 50 मि.लि. और 50 मि.लि. ठण्डा पानी दोनों को मिला कर सुबह शाम पीना चाहिए। यह अर्क आम वात, वात रक्त, प्रमेह, रक्त पित्त, जीर्ण ज्वर, पित्तज ज्वर, रक्त में गर्मी बढ़ना और मधुमेह रोग आदि व्याधियों को दूर करता है।
3. अमृतारिष्ट – गिलोय को अमृता भी कहते हैं इसलिए इस योग का नाम अमृतारिष्ट है। भोजन के तुरन्त बाद, आधा कप ठण्डे पानी में अमृतारिष्ट 4-5 बड़े चम्मच डाल कर पिएं। यह औषधि पुराना बुखार, विषम ज्वर, रसरक्तादि धातुगत ज्वर, यकृत और प्लीहा के ज्वर आदि सभी प्रकार के ज्वर दूर करने के लिए उत्तम गुण करती है। इसे 1-2 मास तक सेवन करना चाहिए।
4. अमृतादि गुग्गुलु – इस औषधि की 2-2 गोली गरम पानी के साथ सुबह दोपहर शाम को लेना चाहिए। यह औषधि वात रक्त, बवासीर, मन्दाग्नि, आम वात, भगन्दर, प्रमेह, रक्त दोष, वात प्रकोप और क़ब्ज़ आदि व्याधियां दूर करती है।
5. गुडूच्यादि तैल – गुडूची गिलोय का ही नाम है इसलिए इस योग का नाम गुडूच्यादि तैल रखा गया है। इस तेल की मालिश करने से वात रक्त, त्वचा के विकार, पसीना अधिक आना, विसर्प, खुजली, जलन आदि व्याधियां दूर होती हैं।
6. गुडूच्यादि क्वाथ – क्वाथ का अर्थ है काढ़ा। इस क्वाथ (काढ़ा) को दिन में 3-4 बार 2-2 | बड़े चम्मच भर थोड़े से पानी में मिला कर पीने से सब प्रकार के बुखार, जलन, जी मचलाना और लौट-लौट कर बुखार आना आदि व्याधियां दूर होती हैं।
7. संशमनी वटी – इस वटी के घटक द्रव्यों में गिलोय ही प्रमुख द्रव्य है। यह वटी पुराने और हड्डी में जमे हुए बुखार को दूर करती है, एनीमिया, क्षय, खांसी, प्रदर, धातु स्राव, धातु क्षीणता, कमज़ोरी आदि दोष दूर कर शरीर में बल बढ़ाती है।यह वटी कोमल प्रकृति वाले, छोटे बच्चे, गर्भवती और प्रसव के बाद प्रसूता स्त्री के लिए भी निरापद है और हितकारी सिद्ध होती है।
गिलोय के नुकसान : giloy side effects in hindi
- गिलोय को चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
- गिलॉय रक्त शर्करा के स्तर को भी कम कर सकता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)