Last Updated on September 7, 2021 by admin
स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है गाय का दूध :
संस्कृत में दूध के तीन मूल नाम मुख्यत: प्रचलित हैं-दुग्ध, क्षीर और पय। ‘दुग्धं क्षीरे पूरिते च’, ‘क्षीरं पानीयदुग्ध यो:’, ‘पयः क्षीरे च नीरे च’ – इन तीनों नामों की व्युत्पत्तियां संस्कृत में बहुप्रचलित हैं। इनके अलावा दूध के हजारों विशेषण नाम संसार की हर भाषा में प्रयोग में लाए जाते हैं। दक्षिण भारत की प्राचीन बोली में इसे ‘पाल’ कहा जाता है। यही नाम इसका तमिल में भी है। अंग्रेजी में इसे ‘मिल्क’ कहते हैं। दूध शब्द संस्कृत के ‘दुग्ध’ का अपभ्रंश रूप है।
देसी गाय के दूध का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व :
1. हिन्दू धर्मग्रन्थों में दूध के गुणों की अत्यधिक महिमा बखान की गई है। इसके अलावा ईसाई, यहूदी, मुस्लिम, पारसी इत्यादि प्राचीन ग्रंथ भी दूध देने वाले पशुओं के महत्व के गुणगान से भरे पड़े हैं।
2. हिन्दुओं में गाय का सर्वोपरि महत्व उसके दूध के कारण ही है। यहूदी और ईसाइयों में भेड़ और बकरी के दूध का प्रचलन रहा है। उत्तरी यूरोप और रूस के इलाकों में गाय और घोड़ी का दूध प्रचलित है। अरब जैसे रेगिस्तानी क्षेत्रों में ऊंटनी के दूध का उपयोग होता रहा है। भारत में गाय, भैंस, बकरी इत्यादि का दूध पुराने समय से ही उपयोगी माना जाता रहा है।
3. हिन्दुओं के पूज्य और संसार के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों में गाय की पूज्यता उसके दुग्ध के कारण ही है। पौराणिक ग्रंथों में भी कहा गया है – गावो हि पूज्याः सततं सर्वेषां नात्र संशयः।
अर्थात् जो व्यक्ति स्वयं गाय का हनन करे या किसी अन्य से मरवाए, हरण करे या हरण करवाए, उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए। इसी प्रकार वेदों, पुराणों और अन्य धर्मशास्त्रों में गाय और उसके दूध का महत्व उसके गुणों के कारण विस्तारपूर्वक लिखा गया है।
4. हिन्दुओं में गाय को अत्यंत पवित्र माना जाता है। पहले गोवध का प्रायश्चित मृत गाय की पूंछ लेकर एक वर्ष, तीन वर्ष इत्यादि समय तक भिक्षा मांगने पर पूर्ण होता था। आज भी गोवध को हिन्दुओं में अत्यंत घृणा से देखा जाता है। गाय को ‘माता’ का स्थान इसी कारण दिया गया है क्योंकि माता ही ऐसी प्राणी है जो जीवन धारण करने के लिए दूध प्रदान करती है।
5. पूजा की थाली में घी का दीपक जलाकर रखना, देव-पूजन, यज्ञ-हवन इत्यादि में शुद्ध घी का प्रयोग करना, धार्मिक कृत्यों में दूध और घी का उपयोग करना आदि बातें इस बात का परिचायक हैं कि दूध और घी का महत्व मानव जीवन में सर्वोपरि है।
6. हिन्दुओं में शिवमूर्ति पर दूध चढ़ाना दूध की इसी महत्ता का परिचायक है। जैन लोग भी अपनी देवमूर्तियों को दूध से ही स्नान कराते हैं। दूध से स्नान कराना पवित्रता और श्रेष्ठतम वस्तु की भावना प्रकट करता है।
7. घरों में गाय पालना एक पवित्र धर्म माना जाता है जो भारत में दूध-घी के सर्वोत्कृष्ट गुणों के कारण ही है।
8. ऋषि-मुनिगण भी सदैव अपने आश्रमों में गाय पालते थे। गाय को सभी तीर्थों का वास माना गया है। शास्त्रों में तो यहां तक प्रतिपादन है कि गाय के शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित समस्त तैतीस करोड़ देवता निवास करते है।
9. दूध में पाए जाने वाले अनुपम गुणों के कारण ही इसे समस्त पदार्थों में सर्वोत्तम माना गया है। यह सबसे अच्छा और सुपाच्य पदार्थ है। विभिन्न साग-सब्जियों एवं अन्य खाद्य पदार्थों को पचाने में शरीर की जितनी ऊर्जा व्यय होती है, उससे आधी भी दूध को पचाने में व्यय नहीं करनी पड़ती। वास्तव में यह पचा-पचाया रस है जो अति शीघ्र शारीरिक अवयवों में परिवर्तित हो जाता है। इसे न काटने की, न चबाने की जरूरत है। और न ही इसके लिए आंतों को पचाने में कोई श्रम करना पड़ता है। इसे शरीर की समस्त धातुओं में वृद्धि करने वाला ‘मधुर रस’ कहा गया है।
10. दूध की इन्हीं विशेषताओं ने भारत में गाय को सर्वश्रेष्ठ पशु का महत्व प्रदान किया है। यहां तक कि गाय को ‘गोमाता’ कहकर उसका सदैव सम्मान किया जाता है। उसे पौराणिक नाम ‘कामधेनु’ देने का अर्थ भी यही है कि ‘गाय’ ही एकमात्र पशु है जिसके संवर्द्धन से समस्त इच्छाएं पूर्ण की जा सकती हैं।आइये जाने गाय के दूध के गुणों के बारे में
देसी गाय के दूध पीने के फायदे : desi gay ka doodh ke laabh in hindi
1). दूध अनमोल गुणों का कोष है। प्राचीन भारतीय ऋषियों का आयुर्वेदिक मंत्र और आशीर्वचन ‘जीवेम शरदः शतम्’ दूध की शक्ति पर ही आधारित रहा है। दूध शरीर को मात्र शक्ति ही प्रदान नहीं करता, अपितु पुष्टि भी देता है। इसके सेवन से शरीर के समस्त धातुओं में वृद्धि होती है। दूध मनुष्य को ओज और तेज प्रदान करने का अनुपम साधन है। ( और पढ़े – दूध पीने के 98 हैरान कर देने वाले जबरदस्त फायदे)
2). आयुर्वेद में दूध को ‘सवौषधीसार’ अर्थात समस्त औषधियों का सत्व कहा गया है। इसे समस्त रोगों की औषधि बताया गया है जो असाध्य रोगों को भी दूर करने में सक्षम है। यह ‘आयुवर्द्धक’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘अक्षि-ज्योति’ अर्थात् आंखों की रोशनी बढ़ाने वाला, ‘मेध्य’ अर्थात् मस्तिष्क की मेधा शक्ति में वृद्धि करने वाला, ‘हृद्य’ अर्थात् हृदय को बल प्रदान करने वाला, ‘देव्य’ अर्थात् देवयज्ञों में उपयोग होने वाला, ‘अनिन्द्य’ अर्थात् कभी भी निन्दा के योग्य न माना जाने वाला, ‘वीर्यवान’ अर्थात् वीर्य में वृद्धि करने वाला, ‘बल्य’ अर्थात बल प्रदान करने वाला, ‘सेव्य’ अर्थात सेवन करने योग्य और ‘रसायन’ एवं ‘रसोत्तम’ अर्थात् समस्त रसों में श्रेष्ठ रस तथा विभिन्न रसों का सार माना गया है। ( और पढ़े – देशी गाय व भैंस के दूध के 6 बड़े अंतर)
3). आधुनिक वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार भी दूध सर्वोत्तम पेय पदार्थ है जिसे ‘संपूर्ण खाद्य’ माना जाता है। इसमें 85 प्रतिशत प्रोटीन होता है। कैल्शियम, पोटेशियम,आयोडीन, फॉस्फोरस, आयरन इत्यादि खनिज लवण और विटामिन ‘ए’, विटामिन ‘सी’, विटामिन ‘डी’, विटामिन ‘एच’, विटामिन ‘बी’ जैसे अनेक विटामिन भी इसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं। इससे प्राप्त वसा अर्थात् ‘फैट’ भी सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। जो अत्यंत सुपाच्य और हल्की होती है। इस प्रकार दूध एक ऐसा पदार्थ है जिसके सहारे मनुष्य अन्य खाद्य इत्यादि ग्रहण किए बिना भी संपूर्ण स्वस्थ जीवन बिता सकता है। ( और पढ़े – क्या आपको पता है कि गायों के दूध में BCM7 क्या होता है |)
4). जीर्ण ज्वरे मनोरोगे शोध-मूर्च्छा भ्रमेषुच, हितं एतद् उदाहृतम्।
आयुर्वेद के इस श्लोक का अर्थ है कि पुराने से पुराना ज्वर, मानसिक बीमारियां, सूजन, बेहोशी और भ्रम अर्थात मस्तिष्क विकारों को दूर करने में गाय का दूध-घी सर्वोत्तम हितकर है। ( और पढ़े – सोयाबीन दूध के फायदे और बनाने की विधि )
5). दूध-घी ‘आयुष्य’ अर्थात् आयु बढ़ाने वाला, ‘वृष्य’ अर्थात् पौरूष में वृद्धि करने वाला तथा ‘वयः स्थापन्द’ अर्थात् वय को सुस्थिर करने वाला है। ( और पढ़े – माँ का दूध बढ़ाने के सबसे असरकारक घरेलु नुस्खे)
6). श्रमे क्लमे हितम् एतद्। भाव प्रकाश निघण्टु के इस वाक्य से स्पष्ट है कि दूध श्रम और थकान का नाश करने वाला है।
7). माइग्रेन (आधासीसी दर्द) : सिर के आधे भाग में रक्त-संचार में रुकावट हो जाना इस रोग का मुख्य कारण है। स्त्रियों को यह रोग अधिक घेरता है जो उनके मासिक-चक्र, गर्भावस्था इत्यादि के कारण होता है। दिमागी काम की अधिकता, मानसिक चिन्ताएं और तनाव, वायु प्रकोप, प्रदूषणजन्य वातावरण में काम करना इत्यादि इस रोग के अन्य कारण हैं।
इसमें सूर्योदय होने के साथ ही सिर के आधे भाग में दर्द शुरू हो जाता है। यह दर्द सूर्यास्त तक बना रहता है। कभी-कभी अत्यंत तीव्र दर्द होता है। सर्दी लगना, चक्कर आना, मन्दाग्नि हो जाना, उल्टी होना अथवा प्रकाश की असहनीयता जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं।
उपचार – 250 मि.ली. गाय के दूध में 250 मि.ली. पानी मिलाएं। अब 5 लौंग, 5 टुकड़े दालचीनी और 2 टुकड़े पिप्पली-तीनों को पीसकर दूध-पानी में मिलाकर गुनगुना ही चूंट-घूट करके सेवन करें और कंबल लपेटकर सो जाएं। सुबह-शाम दो बार यह प्रयोग कुछ दिनों तक करें ।
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