Last Updated on September 1, 2019 by admin
गणेश जी की मूर्ति से वास्तु उपाय :
घर में वास्तु दोष निवारण में प्रयोग किए जाने वाले अनेक मंत्रों व उपकरणों का लाभ जरूर मिलता है। घर ही क्यों, आफिस, फैक्ट्री, दुकान, व्यवसाय स्थल सब जगह वास्तु यंत्रों का प्रयोग किया जाता है। व्यवसायी व्यवसाय लाभ व बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसा करता है। गृह-स्वामी दुख-दरिद्र दूर करने व घर में बरकत लाने के लिए ऐसा करता है। फैक्ट्री मालिक प्रोडेक्शन वृद्धि व कारोबार जमाने के लिए वास्तु मंत्रों की मदद लेता है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हर व्यक्ति अपने-अपने तरीके से सुख समृद्धि, शांति व ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए उपाय करता है। वास्तु मंत्र निश्चय ही फल प्रदान करते है। वास्तु मंत्रों व उपकरणों में सबसे ज्यादा सशक्त व प्रभावशाली मंत्र है- भगवान श्री गणेश की प्रतिमा या श्री गणेश का प्रतीक चिन्ह जिनका प्रयोग हर शुभ कार्य में किया जाता हैं। शादी-ब्याह, तीज-त्योहार, घर-दूकान, प्रापटों को खरीद बिक्रो, फैक्ट्री, व्यवसाय, हर शुभ कार्य की शुरूआत श्री गणेश को याद करके की जाती है। अत: श्री गणेश की प्रतिमा या प्रतीक चिन्ह सभी वास्तु यंत्रों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। क्योंकि भगवान गणेश देवों के देव हैं, अतः भारत वर्ष के सभी हिन्दू घरों में इनकी पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा कोई भी घर नहीं होगा, जहां गणेश जी की प्रतिमा स्थापित न हुई हो। या होती न हो।
हमारे हिन्दू धर्म में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करता है, गणेश जी व्यक्ति तथा उस घर की रखवाली करते हैं तथा घर में विद्यमान अशुभ शक्तियों को नष्ट करके घर मालिक को धन-धान्य से परिपूर्ण करते है। लोगों की इसी मान्यता व विश्वास को वास्तु में भी उकेरित किया गया है। यही कारण है कि न केवल पूजा-अर्चना के लिए ही, बल्कि घर में सुख-शांति व वास्तु दोषों के निवारण के लिए भी गणेश जी को घर-घर में स्थान दिया जाता है। इस तरह सभी वास्तु यंत्रों में गणेश जी का यंत्र दोहरा लाभ प्रदायक यंत्र माना जाता है। एक पूजा-पाठ के उदेश्य से तथा दूसरा वास्तु दोष निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। जहां तक वास्तु दोष निवारण यंत्र के रूप में गणेश जी की प्रतिभा स्थापित करने की बात है, तो इसका निश्चित रूप से अन्य वास्तु यंत्रों के मुकाबले ज्यादा लाभ मिलता है। आइए जानते हैं कि इस यंत्र की स्थापना से गृह स्वामी को क्या क्या लाभ प्राप्त होते है।
☛ यदि किसी भी भवन का दक्षिण मुखी दोष हो (जैसे भवन का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में खुलता हो), तो द्वार की चौखट के ऊपर बाहर व अंदर दोनों ओर गणेश जी की प्रतिमा लगा देने से यह दोष अपने आप मिट जाता है। गृहस्वामी को दूसरे हफ्ते से ही इसका फल मिलने लगता है। याद रखें-प्रतिमा न ज्यादा बड़ी हो और न ही ज्यादा छोटी होनी चाहिए।
☛ आजकल बाजार में गणेश जी की बंदन वार (तोरण) भी उपलब्ध है। इसका भी लोग खूब प्रयोग कर रहे है। प्रायः तीज-त्यौहारों पर घर के मुख्य द्वार को सजाने के लिए बंदनवारों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे घर क सौंदर्य में चार चांद लग जाते है। वास्तु दोषों का निवारण तो होता है। मुख्य द्वार साफ, स्वच्छ व जगमगाता रहे, तो इसके जरिए घर में प्रवेश करने वाली शुभ ऊर्जाएं अपने साथ नाना प्रकार के सुख लेकर आती हैं।
☛ वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर कारोबार मंदा हो, दूकान नहीं चल रही हो फैक्ट्री में उत्पादन घट गया हो, आदि मामलों में व्यवसाय स्थल पर गणेश जी के प्रतिरूप स्वास्तिक के चिहन को ताम्रपत्र में अथवा पूजा की थाली में अंकित करके उसकी नियमित रूप से कार्य आरंभ करने के पूर्व पूजा की जाती है तो निश्चित रूप से उस जगह का उद्धार होगा। यानी ऐसा करने से व्यवसाय में वृद्धि व बरकत होगी।
☛ यदि आप नए घर में शिफ्ट हो रहें हों, अथवा बहुत पुराने बंद पडे मकान का ताला खोलकर उसमें रहने के लिए आ रहे हो, तो ऐसे में जैसे ही आप घर के अंदर प्रवेश करें, तो यह महसूस करने की कोशिश करें कि क्या आपको नकारात्मकता का अहसास होता है? बहुत संभव है, ऐसा हो। ऐसे में बगैर कोई उपाय किए घर में रहना मंगलकारी नहीं होगा। जाहिर है कि घर में वास्तु दोष है। ऐसे में गणेश जी को याद करिए और दरवाजे में प्रवेश करते ही ठीक सामने की और मुख्य द्वार की और देखती हुई गणेश जी की लगभग 9 इंच की एक प्रतिमा स्थापित करिए। यह प्रतिमा अनिष्ट से आपकी रक्षा करेगी।
☛ क्या आप नए घर में प्रवेश कर रहे हैं? जरा ठहरिए। घर की मुख्य लॉबी में पूर्व दिशा की दीवार पर लगभग 6 इंच की गणेश जी की एक प्रतिमा लगाइए। यह नए घर में ऊर्जा की कमी नहीं होने देगी तथा आपके सारे कष्टों को दूर करेगी।
☛ घर के ब्रहम स्थल में तुलसी जी के पौधे के साथ-साथ गणेश जी की प्रतिमा भी रखें। दोनों की पूजा-अर्चना करें। घर में खुशियां भर उठेगी। सफलता मिलेगी। क्योंकि ऐसा करने से पूरे भवन को सकारात्मक ऊर्जा मिलने लगती है। तुलसी जी का पौधा तो वास्तु दोष निवारण में मददगार है ही, ऊपर से गणेश जी की प्रतिमा होने से दोहरा लाभ मिल जाता है। एक वातावरण की शुद्धि करता है, तो दूसरा सकारात्मकता का विस्तार करता है।
☛ वास्तु दोष निवारण यंत्रों में स्वास्तिक का जवाब नहीं है। स्वास्तिक भगवान गणेश का प्रतीक चिन्ह है। हिन्दुस्थान में लगभग सभी घरों के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक के चिन्ह अंकित होते देखे जा सकते है। यह घर में शुभ ऊर्जा को आकर्षित करता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, भवन में मुख्य प्रवेश द्वार की दायीं ओर शेली, हल्दी व लाल रंग सिंदूर से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर प्रवेश द्वार की और भी सकारात्मक बनाया जा सकता है।
☛ घर में, फैक्ट्री में, दूकान में, दफ्तर में, किसी भी व्यावसायिक स्थल में गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करने के दौरान मूलमूत बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। अन्यथा लाभ के बजाए हानि ही होगी।
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सामान्य निर्देशः
✦ किसी भी आवासीय स्थल अथवा व्यावसायिक भवनों में गणेश जी की ढेर सारी प्रतिमाएं लगाने का कोई लाभ नहीं मिलता है। वास्तु में कहा जाता है। कि घर या व्यवसाय स्थल में एक देवता की एक से ज्यादा मूर्तियां नहीं होनी चाहिए। घर या व्यवसाय स्थल में मूर्तियों को सही दिशा व क्रम से लगाने का भी विधान है। गणेश जी की प्रतिमा को घर या व्यवसाय स्थल की विभिन्न दीवारों पर नहीं लगाना चाहिए। बल्कि इसके भी नियम हैं।
✦ गणेश जी की प्रतिमा या मूर्ति को घर या बाहर कुछ इस प्रकार रखें कि गणेश जी को नमन करते समय व्यक्ति का मुख सदा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इस तरह से गणेश जी की प्रतिमा का मुख दक्षिण अथवा पश्चिम की और स्वतः होगा।
✦ अगर गणेश जी की प्रतिमा को पूजा घर में रखते हैं, तो इस बात का ध्यान रखें कि मुर्ति प्रवेश द्वार के एकदम सामने न रखी हो। पूजा घर में रखी गणेश जी की मूर्ति भग्न अवस्था में भी ना हो।
✦ गणेश जी दक्षिण मुखी देवता है। दक्षिणामिमुखी देवता अशुभ शक्तियों के प्रतिनिधि हैं। अतः गणेश जी की पूजा करने से अशुभ शक्तियां खुश होती हैं और घर छोड़कर चली जाती है।
✦ गणेश जी का प्रतीक चिन्ह है- लडडुओं से भरा थाल, हाथी की आकृति, ऊँ में अद्भत शक्ति है। यह चिरयौवन व ऊर्जा का प्रतीक है। अगर किसी भी स्थल में वास्तु दोष उत्पन्न हो गया हो, तो ॐ का उच्चारण करें, दोष निवारण होगा। मानसिक शांति मिलेगी।
✦ घर में गणेश जी की प्रतिमा या प्रतीक चिन्ह को परिवार के मृत सदस्यों की तस्वीरों के साथ न लगाएं।
✦ घर के एक कमरे में एक ही गणेश जी की प्रतिमा लगाए। ढेर सारे फोटो या प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल न करें। हर जगह हर स्थान पर फोटो ही फोटो लगाने से अव्यवस्था उत्पन्न होती है।
✦ आवासीय भवन में श्री गणेश का आशीर्वाद देते स्वरूप अथवा भगवान के बैठे होने का चित्र लगाने से घर में बरकत आती है। वहीं व्यावसायिक स्थलों में गणेश जी के अन्य स्वरूपों के चित्र भी लगाए जा सकते है।
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✦ यदि आपका होटल का व्यवसाय हो, होटल में गणेश जी की प्रतिमा लगाना चाहते हो, तो प्रतिमा चयन में गणेश जी के उस रूप को वरीयता दें, जिस रूप में गणेश जी विश्राम कर रहे हों। इससे ग्राहकों में संतोष व आत्म संतुष्टि की भावना मजबूत होगी। ग्राहक भोजन करके संतुष्ट होंगे।
✦ यदि आपका फिल्म, मनोरंजन से जुड़ा व्यवसाय है अथवा संगीत, नृत्य का दफ्तर हो, तो अपने दफ्तर में गणेश जी के उस स्वरूप की प्रतिमा लगाए, जिसमें गणेश जी की नृत्य मुद्रा को इंगित किया होता है। इसका व्यवसाय पर खासा लाभ पड़ता देखा गया है।
✦ गणेश जी की प्रतिमा में खड़े रूप प्रतिमा का भी व्यवसाय स्थल में प्रयोग किया जा सकता है।
✦ याद रखें – घर या दफ्तर, फैक्ट्री, व्यवसाय स्थल पर गणेश जी की प्रतिमा वाली तस्वीर या कैलेंडर या मूर्ति या पेंटिंग – कुछ भी ऐसी दीवार पर न लगाएं, जिसके नजदीक शौचालय हो या दीवार के पीछे या आगे शौचस्थान हो। इससे गणेश जी के अपमान का बोध होता है। जब गणेश जी नाराज होते हैं, तब धरती में भूकंप आता है के समान घातक प्रभाव पड़ता है।
✦ मैंने कई भवनों में ऐसा देखा है, जहां सीढियों पर गणेश की । प्रतिमा अथवा उनके प्रतीक चिन्हों स्वास्तिक या ऊँ का प्रयोग किया गया दिखता है। जैसे-जैसे आप सीढ़ियां चढ़ते हैं गणेश जी नीचे आते जाते है। अगर वैज्ञानिक दृष्टि कोण से विचार किया जाए, तो ऐसी स्थिति पर नजर रखते हुए सीढ़ियां चढ़ना भी अवैज्ञानिक है, वहीं धार्मिक दृष्टि कोण से भी यह गलत है। वास्तु में इसका कोई लाभ मिलता भी है अब तक इसका कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। फिर इस तरह से गणेश जी की मूर्ति लगाने का क्या औचित्य है?
✦ घर में लगायी जाने वाली गणेश जी की प्रतिमा का आकार नौ इंच से ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए।
✦ व्यावसायिक स्थलों में लगायी जाने वाली गणेश जी की प्रतिमा या मुर्ति का आकार डेढ़ हाथ से ज्यादा बड़ा नहीं होना चाहिए। इस बात का अवश्य ध्यान रखें।
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✦ सार्वजनिक पूजा स्थलों, मंदिरों में लगायी जाने वाली गणेश जी की प्रतिमा या मूर्ति का आकार कुछ भी हो सकता है। इस पर कोई पाबंदी नहीं है।
✦ घर में या दफ्तर में, शैक्षणिक संस्थानों में अथवा किसी भी स्थल पर गणेश जी की प्रतिमा लगाने से उस स्थल के वास्तु दोषों का निवारण तो होता ही है, साथ ही इससे हमारे जीवन में चरित्र निर्माण व व्यक्तित्व निर्माण को भी बल मिलता है। जैसे गणेश जी की छोटी-छोटी आंखों से हमें यह सीख मिलती है कि हर चीज को बारीकी से देखो। इससे कभी धोखा नहीं मिलेगा। इसी तरह गणेश जी के बड़े-बड़े कान होते हैं। ये बड़े कान इस बात के द्योतक हैं कि ज्यादा सुनों। इस तरह से अगर कोई व्यक्ति आपको कुछ कहता है, तो उसे ध्यान से सुनिए। गणेश जी के छिपे मुख
का अर्थ है- सीमा में बोलना। हमें यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी बात को एक दायरे में ही कहें। दायरा उल्लंधन न करें। गणेश जी की लंबी सूंड़ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शत्रु को दूर से ही सुंधकर सावधान हो जाएं तथा गणेश जी के लंबे पेट से यह शिक्षा मिलती है कि ज्यादा से ज्यादा बातों को हजम करें व जरूरी बातों को बोलें।