कचनार के 35 चमत्कारी फायदे और उपयोग : Kachnar Ke Fayde Aur Upyog Hindi Mein

Last Updated on August 30, 2024 by admin

कचनार क्या है ? : Kachnar in Hindi

कचनार का पेड़ १५ से २० फीट तक ऊँचा होता है । इसकी शाखाएँ नाजुक और झुकी हुई रहती हैं। इसकी छाल १ इंच मोटी, खरदरी, भूरी और सफेद रंग की होती है । इसके पत्ते हरे और चौड़े होते हैं । ये प्रारम्भ में नीचे जुड़मा और ऊपर जुदा होते हैं। पौष माह में इसके पत्ते गिरते हैं और फाल्गुन से जेष्ठ तक नये पत्ते आते हैं । इसकी कलियाँ लम्बी और हरी होती हैं । इसके फूल दो इञ्च लम्बे, बड़े और सफेद, पीले तथा लाल रङ्ग के होते हैं । इन फूलों में थोड़ी २ सुगन्ध आती है । इन फूलों पर एक-एक बालिश्त लम्बी फलियां आती हैं। ये फलियाँ कड़वे स्वाद की होती हैं । इस पेड़ में भूरे रङ्ग का एक प्रकार का गोंद लगता है, जो पानी में फुल जाता है । इसकी छाल रंगने के कामों में आती है ।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

  • संस्कृत – कांचन, रक्तपुष्प, कान्तार, कनकप्रभ, कचनार, कोविदार इत्यादि ।
  • हिन्दी – कचनार ।
  • बङ्गाली – सफेद कांचन ।
  • मराठी – कांचन वृक्ष, कोरल ।
  • गुजराती – चम्पाकासी, चम्पो, काचनार ।
  • फारसी – कचनार ।
  • लेटिन – Bauhinia Tancatosa, Bauhinia Racemosa ( बोहिनिया टेकडोसा ) ।

कचनार के औषधीय गुण और प्रभाव : Kachnar ke Gun in Hindi

आयुर्वेदिक मत –

  • आयुर्वेदिक मत से लाल कचनार शीतल, सारक, अग्निदीपक, कसैला, ग्राही तथा कफ, पित्त, व्रण, कृमि, कण्ठमाला, कुष्ठ, वात, गुदाभ्रंश और रक्तपित्त को दूर करता है ।
  • इसके फूल शीतल, कसैले, रूखे, ग्राही, मधुर, हलके तथा पित्त, क्षय, प्रदर, खांसी और रक्त रोग दूर करती हैं ।
  • सफेद कचनार ग्राही, कसैला, मधुर, रुचिकारक, रुक्ष तथा श्वास, खाँसी, पित्त, रक्तविकार, क्षत और प्रदर रोग को नाश करता है । शेष गुण लाल कचनार के समान ही रहते हैं ।

पीली कचनार-

  • पीली कचनार ग्राही, दीपन, व्रणरोपक, कसैली तथा मूत्रकृच्छु, कफ और वातनाशक है ।
  • सुश्रुत के मतानुसार इस वनस्पति के सब हिस्से दूसरी औषधियों के साथ सर्पदंश और बिच्छू के विष पर उपयोग में लिये जाते हैं । सर्पदंश में इसके ताजा बीजों की लई बना कर सिरके के साथ काटे हुये स्थान पर लगाते हैं ।
  • चक्रदत्त के मतानुसार लाल कचनार के छिलके को चावल के पानी और अदरक के साथ कण्ठमाला और गले की गाँठ पर लगाने से लाभ होता है ।
  • वाग्भट के मतानुसार कचनार के चूर्ण और कमल वृक्ष के सम्मेलन से तैयार किया हुआ घी मस्तिष्क, बौद्धिक शक्ति और स्मरणशक्ति को बढ़ाने में बहुत सहायता पहुंचाता है ।

यूनानी मत –

  • यूनानी मत से कचनार दूसरे दर्जे से सर्द और खुश्क है । किसी-किसी के मत से यह समशीतोष्ण है ।
  • यूनानी ग्रंथकार इसको काबिज अर्थात् कब्जियत पैदा करनेवाला, खुश्की पैदा करनेवाला तथा मेदे और अांतों को कूवत देनेवाला मानते हैं ।
  • इसका प्रयोग पेट के कीड़ों को मारता है, खून के फसाद को दूर करता है और कण्ठमाला में मुफीद है ।
  • इसकी छाल का चूर्ण प्रमेह में लाभदायक है ।
  • इसकी कलियां खाँसी, दस्त, बवासीर, मासिक धर्म को अधिकता और पेशाब की राह से खून जाने में मुफीद है।

कचनार के उपयोग : Kachnar Ke Upyog in Hindi

  • पीले कचनार की छाल का काढ़ा पिलाने से आंतों के कीड़े मरते हैं। इसकी सूखी फलियों के चूर्ण को फंकी देने से अव वाले दस्त बन्द होते हैं ।
  • इसकी जड़ की छाल का क्वाथ पिलाने से जिगर का वरम उतरता है ।
  • लाल कचनार की जड़ का क्वाथ पिलाने से हाजमे की कमजोरी मिटती है । ३ माशे अजवायन के चूर्ण की फंकी देकर ऊपर से इसकी जड़ का क्वाथ पिलाने से पेट का फूलना दुरुस्त हो जाता है ।
  • मिश्री और मक्खन में इसकी कलियों का चूर्ण मिलाकर चटाने से खूनी बवासीर दूर होती है ।
  • इसकी छाल या फूल के क्वाथ को ठंडा करके शहद मिला कर पिलाने से गंडमाला में लाभ होता है तथा खून साफ होता है ।
  • इसकी छाल के क्वाथ में बावची के तेल की ३० ब द डाल कर पिलाने से कुष्ठ रोग में लाभ होता है ।
  • डायमीक के मतानुसार कचनार के पेड़ की छाल और अनार के फूल ‘इन दोनों के काढ़े से यदि कुल्ले किये जांय तो मुंह के छालों में फायदा पहुंचाता है ।
  • इसकी कलियों का काढ़ा खाँसी, खूनी बवासीर, पेशाब की राह से खून जाना तथा अत्यधिक रजःस्राव पर उपयोगी है।
  • कर्नल चोपरा के मतानुसार यह औषधि पेचिश की बीमारी में फायदा करनेवाली और विष निवारक है । इसके फल मूत्रल, बीज पौष्टिक और कामोद्दीपक हैं । यह साँप और बिच्छु के अहर में लाभदायक है।
  • केस और महस्कर के मतानुसार सीप और विच्छू के जहर में इसके सब हिस्से उपयोगी हैं ।
  • सन्याल और घोष के मतानुसार भीतरी उपचार में इसकी छाल विशेषरूप से काम में ली
    शोधक, पौष्टिक और संकोचक है ।
  • कंठमाला रोग में यह अत्यन्त उपयोगी है । इस रोग में गले की ग्रंथि बढ़ जाने पर इसे चावल के पानी और सोंठ के साथ उपयोग में लिया जाता है ।
  • विद्रधि रोग में इसकी ताजी छाल का रस फायदेमन्द है ।
  • यह वनस्पति अवि रक्तातिसार में विशेष उपयोगी है।
  • यह आंतों के अन्दर के कीड़ों को नाश करती है । कुष्ठ रोग में भी यह लाभदायक है।
  • दक्षिण भारत के देशी चिकित्सक इसकी छोटी और सुखी हुई कलियों को और कोमल फूलों को व रक्तातिसार में लेने की सिफारिश करते हैं । इसकी छाल का शीतनिर्यास संकोचक वस्तु की तौर पर कुल्ले करने के लिये काम में लिया जाता है ।
  • मलावार कास्ट में इसकी जड़ के छिलके का काढ़ा यकृत के प्रदाह पर दिया जाता है। यह कृमिनाशक भी माना जाता है ।
    घाव और अबुद पर इसकी छाल को कूट कर बाह्य उपचार की तरह लगाने के काम में लेते हैं ।

कचनार के फायदे : Kachnar Ke Fayde in Hindi

1. मुंह के छाले – इसकी अन्तरछाल ५ तोले लेकर उस को आध सेर पानी में उबालना चाहिये । जब पाव भर पानी रह जाय तब उस पानी से कुल्ला करना चाहिये । मुंह के छालों की यह एक अत्यन्त अनुभूत और चमत्कारिक औषधि है । जिन लोगों के छाले किसी भी औषधि से नहीं मिटते हैं उनको भी इस औषधि से अवश्य लाभ होगा । यहाँ तक कि सूतिकारोगग्रस्त स्त्रियों के छालों को भी यह आराम करती है । ( और पढ़े –मुंह के छालों के सबसे असरकारक देशी इलाज )

2. आँतों की कृमि – इसकी छाल का अथवा इसकी कलियों का क्वाथ पिलाने से आतों के कीड़े मरते हैं ।

3. फोड़े – इसकी जड़ का चावलों के धोवन के साथ पुल्टिस बनाकर बांधने से फोड़ा जल्दी पक जाता है । ( और पढ़े – फोड़े फुंसी बालतोड़ के 40 घरेलू उपचार )

4. दन्त पीड़ा – इसकी लकड़ी के कोयलों का दन्तमञ्जन करने से पीड़ा मिटती है ।

5. खुनी बवासीर – मिश्री और मक्खन के साथ इसकी कलियों का चूर्ण बना कर चाटने से तथा जामुन, मौलश्री और कचनार की छाल को पानी में औटा कर उस पानी से गुदा को धोने से खूनी बवासीर मिटती है । ( और पढ़े – खूनी बवासीर का रामबाण इलाज )

6. गंडमाला – चावलों के धोवन के साथ कचनार की छाल को मिलाकर और उस पर सौंफ भुरका कर पिलाने से गंडमाला में लाभ होता है ।

7. गैस की तकलीफ: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है। सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से अफरा (पेट फूलना) व गैस की तकलीफ दूर होती है।

8. खांसी और दमा: शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।

9. दांतों का दर्द:

  • कचनार के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें। इस मंजन से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है।
  • कचनार की छाल को जलाकर उसके राख को पीसकर मंजन बना लें। इससे मंजन करने से दांत का दर्द और मसूड़ों से खून का निकलना बंद होता है।

10. दांतों के रोग: कचनार की छाल को पानी में उबाल लें और उस उबले पानी को छानकर एक शीशी में बंद करके रख लें। यह पानी 50-50 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करें। इससे दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।

11. अफारा (पेट में गैस बनना): कचनार की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से अफारा दूर होता है।

12. जीभ व त्वचा की सुन्न होना: कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से रोग में लाभ होता है। इसका प्रयोग रोजाना सुबह-शाम करने से त्वचा एवं रस ग्रंथियों की क्रिया ठीक हो जाती है। त्वचा की सुन्नता दूर होती है।

13. कब्ज:

  • कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत की तरह बनाकर सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और मल साफ होता है।
  • कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले 2 चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।

14. कैंसर (कर्कट): कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।

15. दस्त का बार-बार आना: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है।

16. पेशाब के साथ खून आना: कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है। इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।

17. बवासीर (अर्श):

  • कचनार की छाल का चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में एक गिलास छाछ के साथ लें। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से बवासीर एवं खूनी बवासीर में बेहद लाभ मिलता है।
  • कचनार का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से बवासीर ठीक होता है।

18. खूनी दस्त: दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में जल्दी लाभ मिलता है।

19. रक्तपित्त:

  • कचनार के फूलों का चूर्ण बनाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम चटाने से रक्त पित्त का रोग ठीक होता है। कचनार का साग खाने से भी रक्त पित्त में आराम मिलता है।
  • यदि मुंह से खून आता हो तो कचनार के पत्तों का रस 6 ग्राम की मात्रा में पीएं। इसके सेवन से मुंह से खून का आना बंद हो जाता है।
  • कचनार के सूखे फूलों का चूर्ण बनाकर लें और यह चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इसके सेवन से रक्तपित्त में लाभ होता है। इसके फूलों की सब्जी बनाकर खाने से भी खून का विकार (खून की खराबी) दूर होता है।

20. कुबड़ापन:

  • अगर कुबड़ापन का रोग बच्चों में हो तो उसके पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से कुबड़ापन दूर होता है।
  • 60 से 120 मिलीग्राम कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।
  • कुबड़ापन के दूर करने के लिए कचनार का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए।

21. घाव: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से घाव ठीक होता है। इसके काढ़े से घाव को धोना भी चाहिए।

22. स्तनों की गांठ (रसूली): कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 240 से 480 मिलीग्राम की मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक होती है।

23. उपंदश (गर्मी का रोग या सिफिलिस): कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, छोटी कटेरी के जड़ व पत्ते और पुराना गुड़ 125 ग्राम। इन सभी को 2.80 किलोग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं और यह पकते-पकते जब थोड़ा सा बचे तो इसे उतारकर छान लें। अब इसे एक बोतल में बंद करके रख लें और सुबह-शाम सेवन करें।

24. सिर का फोड़ा: कचनार की छाल, वरना की जड़ और सौंठ को मिलाकर काढ़ा बना लें। यह काढ़ा लगभग 20 से 40 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए। इसके सेवन से फोड़ा पक जाता है और ठीक हो जाता है। इसके काढ़े को फोड़े पर लगाने से भी लाभ होता है।

25. चेचक (मसूरिका): कचनार की छाल के काढ़ा बनाकर उसमें सोने की राख डालकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से लाभ होता है।

26. गले की गांठ: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीग्राम काढ़े में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले की गांठ ठीक होती है।

27. कंठमाला: कचनार की छाल को पीसकर, चावलों के पानी में डालकर उसमे मिश्री मिलाकर पीने से कण्ठामाला (गले की गांठे) ठीक हो जाती हैं।

28. गलकोष प्रदाह (गलेकोश की सूजन): खैर (कत्था) के फल, दाड़िम पुश्प और कचनार की छाल। इन तीनों को मिलाकर काढ़ा बना लें और इससे सुबह-शाम गरारा करने से गले की सूजन मिटती है। सिनुआर के सूखे पत्ते को धूम्रपान की तरह प्रयोग करने से भी रोग में आराम मिलता है।

29. गला बैठना: कचनार मुंह में रखकर चबाने या चूसने से गला साफ होता है। इसको चबाने से आवाज मधुर (मीठी) होती है और यह गाना गाने वाले व्यक्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।

30. सूजन: कचनार की जड़ को पानी में घिसकर लेप बना लें और इसे गर्म कर लें। इसके गर्म-गर्म लेप को सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।

31. मुंह में छाले होना: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा-सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है।

32. बवासीर: कचनार की एक चम्मच छाल को एक कप मट्ठा (छांछ) के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से बवासीर में खून गिरना बंद होता है।

33. प्रमेह: कचनार की हरी व सूखी कलियों का चूर्ण और मिश्री मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इसके चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक खाने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।

34. गण्डमाला: कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर आधे कप की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।

35. भूख न लगना: कचनार की फूल की कलिकयां घी में भूनकर सुबह-शाम खाने से भूख बढ़ती है।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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