Last Updated on July 22, 2019 by admin
प्रसन्नता और स्वास्थ्य : Health and Happiness
कोई व्यक्ति अपने विषय में जैसा सोचेगा वैसा ही वह हो जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही अपने ही विचारों की उपज होता है। वह अपने को जैसा भी बनाना चाहे, वैसा अवश्य ही बना सकता है। वास्तव में प्रसन्नता वह अद्भुत शक्ति है जो हतोत्साह होने पर हमें धैर्य प्रदान करती है। दरिद्रावस्था में धनवान बना देती है तथा असहायावस्था में सच्ची मित्र और सहानुभूति की पोषक होती है।
प्रसन्नता प्राप्ति के सरल उपाय :
हँसने के विषय में एक बात यह भी प्रसिद्ध है कि-“हँसो और मोटे हो जाओ ।’ अर्थात् हँसने से आदमी मोटा (हृष्ट-पुष्ट) हो जाता है। ऐसा प्रायः देखा भी जाता है कि मोटे आदमी अधिकतर हँसोड़ होते हैं। इस कथन में आपको अतिशयोक्ति अवश्य लगती हो किन्तु यह ध्रुव सत्य है कि खिलखिलाकर हँसने से भूख दुगुनी हो जाती है। जो लोग हँसोड़े स्वभाव के होते हैं उन्हें कब्ज बहुत कम होता है। वे खूब खाते हैं और खूब पचाते हैं। हँसने के कारण पेट की माँसपेशियाँ जाग्रत होकर कर्मशील हो जाती हैं। जिससे पाचक रस अधिक मात्रा में उत्पन्न होने लगते हैं। जिसके फलस्वरूप शरीर में खून का दौरा तेजी से होने लगता है, जो उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने में परम सहायक होता है।
हँसना एक व्यायाम :
हँसना एक प्रकार का सुखकर व्यायाम भी है। इस क्रिया के करने से मुँह, गर्दन, छाती एवं उदर के बहुत-से स्नायुओं को एक साथ भाग लेना पड़ता है जिससे वे सबल, सुदृढ़ तथा क्रियाशील बनते हैं। मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओं तथा मुँह और उदर की माँस पेशियों, नसों और नाड़ियों की हँसने से सबसे अच्छी कसरत हो जाती है । हँसमुख स्वभाव के व्यक्ति के गाल गोल, सुन्दर और चमकीले होते हैं और उसका चेहरा गुलाब के फूल की भाँति खिला रहता है। जिन्हें हँसने की आदत होती है, उन्हें फेफड़े सम्बन्धी रोग बहुत कम होते हैं।
हँसना कई रोगों की औषधि :
हँसना कितने ही रोगों की रामवाण औषधि है। क्षय रोग जैसे भयंकर मारक रोगों में भी हँसना जादू के समान काम करता है। पुराने कब्ज के रोगी हँसने से अच्छे होते देखे गए हैं। हँसने के कुछ उदाहरण हम अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं-
☛ पेरिस में एक चिकित्सक अपने रोगियों को केवल हँसाकर उन्हें आश्चर्यजनक ढंग से रोगमुक्त करता रहा। वह प्रत्येक रविवार को सबेरे के समय एक बड़े हॉल में अपने रोगियों को उनकी आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठाता था। उसके बाद वह ग्रामोफोन पर एक ऐसा रिकार्ड बजाता था, जो हास्यरस से परिपूर्ण होता और जिसको सुनकर सारे-के-सारे रोगी एक साथ हँसना आरम्भ करते और सारा हॉल हँसी के कहकहों से गूंज उठता । उक्त डॉक्टर का कथन है कि इस प्रकार हँसने और दूसरों का हँसना सुनने से रोगियों का स्वास्थ्य बहुत ही जल्दी सुधर जाता है।
☛ एक समाचार पत्र में छपा था-”एक बार एक व्यक्ति ज्वर से पीड़ित हुआ । उसे डॉक्टर ने पीने की दवा दी । उस रोगी का एक पालतू बन्दर था। अपने मालिक को दवा पीते देखकर उस बन्दर ने भी मौका पाकर वही दवा थोड़ी मात्रा में पी ली । दवा कड़वी थी जिसको पीते ही बन्दर बुरा-सा मुँह बनाने लगा और उस सम्बन्ध में अपने मालिक का दोष समझकर उसे ही घुड़कने लगा । बन्दर की उस समय की अजीबोगरीब, विचित्र भावभंगिमा देखकर रोगी को बड़े जोरों की हँसी आ गई और वह हँसते-हँसते लोटपोट होकर आधा घण्टा तक हँसता ही रहा। डॉक्टर ने दो घण्टे के बाद उस रोगी व्यक्ति को देखा, तो रोगी का ज्वर उतर चुका था और वह उसी क्षण से बिल्कुल स्वस्थ हो गया।”।
जब आप अकेले बैठे हों तो किसी हास्योत्पादक मनोरंजक घटना का स्मरण करें और हँसें । दर्पण के सामने बैठकर कहकहा लगावें । छोटे-छोटे बच्चों से बातें करें। उनकी तोतली भाषा में आपके प्रश्नों के जो विचित्र उत्तर उनसे मिलेंगे, उनमें हँसने का मसाला ।
आपको काफी मिल जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन कम-से-कम एक बार तो अवश्य ही खिलखिलाकर हँसना चाहिए, ताकि रोग पास ही न आए। यदि रोग हों तो भाग जाएँ। गालों पर झुर्रियाँ न पड़े और बुढ़ापा सदैव ही कोसों दूर रहे।
हास्य की छोटी बहन मुस्कान :
यानि मुस्कराहट हास्य की छोटी बहिन है । मुस्कराता हुआ चेहरा सभी पसन्द करते हैं और मुस्कराने से स्वयं को भी असीम प्रसन्नता होती है। बड़ी-से-बड़ी तकलीफ का सामना करना हो तो हँसते-मुस्कराते हुए उसका सामना करने की कोशिश कीजिए। तकलीफ स्वतः ही आधी रह जाएगी ।
मुसीबतों का ‘निडर’ इस तरह सामना कीजिए।
जब-जब भी गम मिलें, बस मुस्करा दीजिए ।।
बालचरों (Scouts) को हर मुश्किल में मुस्कराते रहने की शिक्षा इसी कारण से दी जाती है। रोगी को देखना हो तो उसके पास मुस्कराते हुए जाइए और मुस्कराते हुए ही उससे बातें कीजिए। इस प्रकार आप रोगी का आधा दुःख दर्द हर लेंगे। जो व्यक्ति दुःख और सुख दोनों ही में समान रूप से मुकराता रहता है, वह धन्य है। रस्किन ने एक जगह लिखा है-
‘मृदुल स्वभाव, होठों की हल्की मुस्कान और कुछ स्नेह भरे शब्द किसी को इतना सुख दे सकते हैं, जिसको लाखों रुपयों से भी नहीं खरीदा जा सकता। इसमें अपना कुछ खर्च भी नहीं होता व इससे दूसरे के जीवन में आनन्द की ज्योति जगमगाने लगती है।’
गुनगुनाना :
प्रसन्नता का तीसरा सरल साधन गुनगुनाना है । किसी मनपसन्द गीत के बोलों को निम्न स्वर में, धीमे-धीमे मौज-मस्ती के साथ बार-बार दोहराना, गुनगुनाना कहलाता है। इससे भी हृदय को काफी शान्ति मिलती है।
गाना-गायन तो प्रसन्नता का अचूक साधन है किन्तु इसके यह मायने नहीं है कि प्रसन्नता प्राप्ति के लिए संसार के सभी लोग अपना काम-धाम छोड़कर चोटी के गवैया बनने के लिए प्राण-प्रण से जुट जाएँ। जो भी अच्छा-बुरा आपको गाना आता हो उसी को कभी-कभी खुले हृदय से मस्त होकर गाने से प्रसन्नता की यथेष्ट उपलब्धि होती है।
मनोरंजन :
मनोरंजन, हँसी-मजाक एवं आमोद-प्रमोद सब एक ही बात हैं । जीवन में मनोरंजन का अभाव मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्तियों को कुण्ठित कर देता है। इसलिए अपने अवकाश के कुछ क्षण हमें मनोरंजन करने वाले कार्यों में अवश्य ही लगाने चाहिए। संसार का कोई भी काम चाहे कितना ही प्रिय क्यों न हो, उसे लगातार देर तक करते रहने पर उससे थकान आना स्वाभाविक है। मन बहलाव वाला कोई अन्य काम उस थकान या तनाव को दूर करने की पूरी-पूरी क्षमता रखता है। वह नया उत्साह लाता है और नवीनतम विचारों के लिए उचित मार्ग प्रस्तुत करता है।
मनोरंजन से मन और शरीर दोनों का विकास होता है और काम करने से जल्दी थकावट नहीं आती। चालीस वर्ष की आयु से अधिक अवस्था वाले लोगों को चाहिए कि वे अपने मनोरंजन हेतु कोई-न-कोई साधन अवश्य चुन लें । इससे उनका शेष जीवन सुखमय व्यतीत होगा । बहुत-से बूढ़े व्यक्ति भजन कीर्तन करना, पूजा के गीत, गाना, भजन आदि को अपने मनोरंजन का साधन बनाते हैं। कुछ लोग तैरने का शौक अपनाते हैं। कुछ लोग शिकार का तो कुछ लोग टिकट आदि संग्रह करने का। ये सभी शौक उनकी तन्दुरुस्ती को लाभकारक सिद्ध होते हैं और उनके मस्तिष्क को कुछ देर के लिए सांसारिक बखेड़ों से अलग रखते हैं।
वे स्त्रियाँ जो पुरुषों के साथ उनके मनोरंजन के तरीकों में भाग नहीं ले सकती, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों, लोकगीत सम्बन्धी किताबों, हल्के तथा शिक्षाप्रद सामाजिक उपन्यासों और कहानियों को पढ़ सकती हैं । ढोलक पर मधुर गीत गाकर अपना और अपनी सहेलियों का दिल खुश कर सकती हैं और सावन में झूलकर और सावन के गीत गाकर अपना दिल बहला सकती हैं।
ग्रामीणांचलों में बिरहा, कहरवा, आल्हा, विजयमल, राधेश्यामकृत रामायण आदि आज देहातियों के मनोरंजन के साधन कहे जाते हैं । जिनसे उनकी सूखी नस-नाड़ियों में स्वस्थ रक्त दौड़ने लग जाता है । अवकाश के दिनों में मनोरंजन हेतु हम सामूहिक रूप से बाहर जाकर उद्यान, जंगल या किसी अन्य रमणीक स्थान में ‘पिकनिक’ कर सकते हैं। किसी झील या सरिता में नौका-विहार कर सकते हैं। तथा किसी प्राकृतिक स्थान की सैर कर सकते हैं आदि । घरेलू मनोरंजन के साधनों में ताश, शतरंज, गुंजफा तथा चौपड़ या कैरम आदि खेलना अधिक प्रचलित है। जब तक ये मनोरंजन के खेल खेले जाते हैं, खेलने वाले के मस्तिष्क से चिन्ता, दुःख आदि गायब रहते हैं, जिससे शरीर को सुख की प्राप्ति होती है तथा शक्ति संचय भी होता है।