Last Updated on March 22, 2020 by admin
चन्द्रशेखर रस क्या है ? : What is Chandrashekhar Ras in Hindi
चन्द्रशेखर रस टैबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक औषधि है । इस औषधि का विशेष उपयोग पित्तश्लेष्मिक ज्वर में – शरीर में जलन, तन्द्रा ,भूख न लगना और कभी किसी अंग में ठण्ड लगे ऐसे लक्षण उत्पन्न होने पर किया जाता है ।
चन्द्रशेखर रस के घटक द्रव्य : Chandrashekhar Ras Ingredients in Hindi
- पारद शुद्ध – 10 ग्राम,
- गंधक – 20 ग्राम,
- काली मिर्च – 10 ग्राम,
- टंकण शुद्ध – 10 ग्राम,
- मिश्री – 50 ग्राम,
- कटुकी – 25 ग्राम (भावना के लिए)
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- पारद गंधक (कज्जली) : योग वाही, जन्तुघ्न, रसायन, अन्य औषधियों के गुणों में वृद्धि करने वाली।
- काली मिर्च : दीपक, पाचक, लेखन, प्रमाथी, स्रोतोशोधक।
- टंकण : रेचक, लेखन, कफ सारक, विषघ्न ।
- मिश्री : मधुर, शीत, कफबर्धक, कफ सारक, बल्य, शीतल, छर्दि, रक्त पित्त शामक।
- कुटकी : यकृत पित्त स्रावक, पित्तरेचक, भेदक, हृदय, तिक्त, रुक्ष, कटु,शीत।
उपरोक्त लघुयोग में काली मिर्च पित्त बर्धक है परन्तु स्रोतों विशोधक है, यह पित्त की वृद्धि कर के, पित्तवाही, स्रोतों के मुखों को खोल कर यकृत से पित्त को बाहर निकालती है इसमें इसकी सहायता, कुटकी अपने रेचन विशेष रूप से पित्त का रेचन करवा कर यकृतपित्त के स्रोतस का शोधन करती है, टंकण भी लेखन, रेचन गुणों के कारण कफ को पतला कर देता है, अत: कफ द्वारा हुआ स्रोतोरोध धीरे-धीरे ढीला पड़ने लगता है, मिश्री अपने मधुर शीत गुणों द्वारा कफ की वृद्धि तो करती है परन्तु वह कफ को पतला कर देती है, अतः कफ द्वारा हुआ स्रोतो रोध, समाप्त होने लगता है, इसके साथ-साथ मिर्च द्वारा उत्पन्न हुए उष्माधिक्य को भी मिश्री अपने शीतल गुण द्वारा शान्त करती हैं अत: यह टंकण, मिर्च और कुटकी की क्रियाओं में सहायक होती है। कज्जली के योग उपरोक्त सभी द्रव्यों के गुणों में वृद्धि हो जाती है, एवं जन्तुघ्न एवं विषघ्न गुणों द्वारा रोग से उत्पन्न सेन्द्रीय विषों का नाश होता है, अपने रसायन गुण से रोगी के स्वास्थ लाभ का मार्ग प्रशस्त करती है।
चन्द्रशेखर रस बनाने की विधि :
- सर्व प्रथम कुटकी का यव कुट चूर्ण कर उसे 400 मि.लि. पानी में उबालें 100 मि.लि. शेष रहने पर उतार कर ठंडा करें और स्वच्छ कपड़े से छान कर सुरक्षित कर लें।
- शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक को पत्थर के खरल में डालकर निश्चन्द्र कज्जली होने तक खरल करवाएँ तदुपरान्त, शुद्ध टंकण डालकर खरल करवाएँ जब टंकण भी कज्जल वत् हो जाए तो काली मिर्च का चूर्ण डालकर खरल करवायें, सभी के एक समान होने पर कुटकी का क्वाथ थोडा-थोडा डालकर खरल करवाएँ, इस प्रकार तीन दिन कम से कम, 24 घण्टे लगातार खरल करवायें क्वाथ यदि कम पड़ जाएँ तो नवीन क्वाथ बनवा कर डलवायें। गोली बनने योग्य होने पर, 100 मि.ग्रा. की गोलियां बनवा कर धूप में सुखा कर सुरक्षित रखें।
विशेष : मूलपाठ में मत्स्य पित्त की भावना लिखी है, परन्तु हमारे यहाँ मत्स्य (रोहित मत्स्य) पित्त, अनुपलब्ध है अभाव में हम कुटकी क्वाथ में मर्दन करवाते हैं। परन्तु इससे भी योग के गुणों में कमी नहीं आती। जहाँ मत्स्य पित्त उपलब्ध हो वहाँ उसी से मर्दन करके बनवाना चाहिये, परन्तु मत्स्य पित्त वाला योग प्रभूत गुण सम्पन्न एवं उग्र बनता है, उससे कई बार पित्त की वृद्धि भी हो जाती है, इसीलिए पथ्य में कफ बर्धक आहार का एवं चावलों का प्रयोग लिखा है । कुटकी क्वाथ में भावित कल्प में पित्त वृद्धि की कोई संभावना नहीं होती अतः उपरोक्त कफ बर्धक पथ्य की भी कोई आवश्यकता नहीं होती।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
चन्द्रशेखर रस की खुराक : Dosage of Chandrashekhar Ras
एक से तीन गोली, दिन में दो से तीन बार । भोजन से पूर्व
अनुपान :
शीतल जल
चन्द्रशेखर रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Chandrashekhar Ras in Hindi
आम ज्वर में चन्द्रशेखर रस के प्रयोग से लाभ
आम ज्वरों में औषधि सेवन का निषेध है परन्तु यदि आमावस्था में भी पित्त की उग्रता के कारण ज्वर वेग अधिक हो। (104° से 106 F) तो चन्द्र शेखर रस के सेवन से स्वेदोत्पत्ती, और मुद्रेचन हो कर ज्वर उतर जाता है। ज्वर के 102 F से नीचे पहुँचने पर मृदु एवं शीतल ज्वर हर योगों जैसे – प्रवाल गडूची सत्व, गोदन्ती भस्म संशमनीवटी इत्यादि को प्रयोग करवायें ।
मत्स्य पित्त की भावना वाले चन्द्रशेखर के प्रयोग के उपरान्त ग्लूकोज जल, प्रभृतिशीतल पदार्थों का प्रयोग करवाना चाहिए।
पित्तश्लेष्मिक ज्वर में चन्द्रशेखर रस का उपयोग लाभदायक
पित्तश्लेष्मिक ज्वर में ज्वर का ताप अधिक हो तब इस रस का प्रयोग होता है। परन्तु रोगी को यदि छर्दि (उल्टी), उत्कलेश (आमाशय की अम्लता के कारण कलेजे के पास मालूम होनेवाली जलन) और हिक्का (हिचकी) हो तो इस का प्रयोग नहीं करवाना चाहिए।
ऐसी अवस्था में रसादि रस, संशमनीवटी, गडूची सत्व, कपूर कचरी इत्यादि औषधियां सिद्धिप्रद होती है। केवल उष्णता बढ़ने (HIGHGRADE FEVER) पर ही चन्द्र शेखर रस का प्रयोग होता है वह भी कवेल ज्वर के शमन होने तक।
विशेष : आयुर्वेदिक औषधियों में ज्वरघ्न योगों का प्रमुख घटक, वत्सनाभ होता है, परन्तु कुछ लोगों को इसके प्रयोग से हृदयावसाद,शीतल स्वेद, हृदयगति मन्दता और रक्तचाप का ह्रास होकर आत्यायिक स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसे रोगियों के ज्वर का शमन करने के लिए चन्द्रशेखर रस एक उत्तम औषधि है।
पीलिया में लाभकारी है चन्द्रशेखर रस का सेवन
याकृतपित्त के मार्गों का अवरोध ही कामला का कारण होता है, यह अवरोध कफ के कारण हो, शोथ के कारण हो, अश्मरी (पथरी) के कारण हो, अथवा स्रोतोरोध के कारण जब तक अवरोध बना रहेगा, याकृतपित्त, अपने स्वभाविक मार्गों द्वारा आंत्र में स्रवित नहीं होता, तब तक रोगी का मल भी श्वेत रहेगा और नेत्र, नख, त्वक (त्वचा), भी पीत ही रहेंगे। अत: कामला रोग की चिकित्सा में सर्व प्रथम लक्ष्य होता है पित्त का रेचन इस कार्य के लिए चन्द्र शेखर रस एक उत्तम कल्प है, टंकण कफ, अश्मरी अथवा अन्य अवरोधक पर्दाथों को कलिन्न (गला) कर के ढीला कर देता है ।
कालीमिर्च प्रमाथी गुण के कारण स्रोतों विर्वत करवाती है और कुटकी अपने रेचक गुण के कारण पित्त को यकृत के बाहर निकाल कर आन्त्र में स्रवित कर देती है। स्रोतो शोधन होने पर कामला स्वत: नष्ट हो जाता है अतः अवरोध जन्य कामला में चन्द्र शेखर रस एक उत्तम औषधि प्रमाणित होती है, चन्द्र शेखर रस की तीन-तीन गोलियाँ प्रात: दोपहर सायं शीतल जल या मूली स्वरस से देने पर तीन दिन में लाभ दृष्टि गोचर होने लगता है।
सहायक औषधियों में आरोग्यवर्धिनी वटी, पुनर्नवादि मण्डूर, मण्डूर वज्र वटक, कन्या लोहादिवटी, कुमार्यासव, रोहीतिकारिष्ट इत्यादि का प्रयोग भी लाभदायक होता है।
क्षुधाल्पता (भूख न लगना) में लाभकारी चन्द्रशेखर रस
यकृत के रोगों में क्षुधानाश एक प्रधान लक्षण होता है परन्तु मन्दाग्नि, अजीर्ण, कोष्टवद्धता इत्यादि अन्य कारणों अथवा यकृत क्रिया मन्दता के कारण रोगी की भूख कम हो जाती है। भोजन के समय पर उसके सामने भोजन परोस दिया जाए तो वह खा भी लेता है। परन्तु भोजन के प्रति उसके मन उत्सुकता नहीं होती शारीरिक रूप से भी तीव्र क्षुधानुभूती का अभाव रहता है। ऐसी अवस्था में चन्द्र शेखर रस की दो गोलियाँ भोजन के आधा घण्टा पूर्व निम्बु जल से देने से रोगी की भूख खुलने लगती है। भोजन में उसे स्वाद आने लगता है। इसके सेवन से मलावरोध भी नहीं रहता, परन्तु दस्त भी नहीं लगते यह एक सोम्य रेचक है जिसकी आन्त्र पर क्रिया धीरे-धीरे होती है।
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शीत पित्त रोग मिटाता है चन्द्रशेखर रस
शरीर में किसी औषधि, खाद्य पदार्थ, पुष्प पराग, सुगंधित एवं अन्य द्रव्यों के प्रयोग स्वरूप एक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। जिसके कारण शरीर पर ततैया के डंक वत् शोथ (सूजन) कण्डू (खुजली) उत्पन्न हो जाती है आधुनिक शब्दावली में इसे आर्टीकेरिया अथवा एलर्जी नाम से सम्बोधित किया जाता है।
तीव्र प्रकार की प्रतिक्रियाओं में श्वास (फुफ्फुस एवं श्वास नलिका में शोथ के कारण) तीव्र प्रवाहिका (पेचिश) एवं उदरशूल (लध्वान्त्र शोथ के कारण) विचर्चिका (त्वक शोथ के कारण) इत्यादि अनेक लक्षण मिलते हैं ।
इस रोग की चिकित्सा के लिए एण्टी ऐलर्जिक औषधियों की एक श्रृंखला उपलब्ध है। परन्तु अधिकांशत: रोगी जीर्णावस्था में पहुँच जाते हैं, इन औषधियों से केवल सामयिक लाभ मिलता है, जिसे तत्काल प्राप्त करने के लिए रोगी इनका प्रयोग करता रहता है। परन्तु उसे पता तब चलता है जब वह औषधि का व्यसनी (आदि) हो गया होता है। औषधि उसकी विवशता बन जाती है। इस समय ही प्रायशः रोगी आयुर्वेद की शरण में आते हैं। आयुर्वेद में इस रोग की संज्ञा शीत पित्त है, इस रोग में प्रधान रूप से कफ की विकृति होती है, परन्तु केवल कफ विकृति से इस रोग की उत्पत्ती सम्भव नहीं होती, कफ के साथ पित्त या वात का अनुबन्ध आवश्यक होता है। कई बार तो वात और पित्त दोनों का अनुबन्ध होता है। इसीलिए जीर्ण शीतपित्त, प्रायः त्रिदोषज होता है।
इन दोषों की विकृति का मूल कारण होता है आन्त्र में मल संचय, मलों और दोषों का अन्यान्योऽश्रित सम्बन्ध होता है । मल संचय दोषों को प्रकुपित करता हैं तो प्रकुपित दोष मल संचय का कारण बनते हैं। शीत पित्त, इसी दुष्चक्र का परिणाम होता है।
त्रिदोषज एवं वातानुबन्ध वाले शीत पित्त में मनशिल, हरताल, मल्ल के योगों का प्रयोग होता है जब कि कफ पित्तानुबन्ध में चन्द्रशेखर रस दो दो गोलियाँ प्रात: दोपहर सायं भोजन के एक घण्टा पूर्व शीतल जल से देने से रोगी दूसरे दिन से लाभ अनुभव करने लगता है। कफ और पित्त का शमन होकर तथा इस योग के मृदु रेचन गुण के कारण आन्त्र में स्थित मल धीरे-धीरे निकल जाता है और दोष शमक एवं आन्त्र शुद्धि हो जाने पर रोग से मुक्ति मिल जाती है।
पूर्ण लाभ के लिए एक मण्डल (40 दिन) तक औषधि प्रयोग करवाना आवश्यक है।
सहायक औषधियों में कामदुधारस, प्रवाल पंचामृत रस, लघुसूत शेखर रस, आरोग्यवर्धिनी वटी, वृहद् हरिद्रा खण्ड, इत्यादि का प्रयोग प्रशस्त होता है।
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जीर्ण मलावरोध (कब्ज) में लाभकारी है चन्द्रशेखर रस का प्रयोग
जीर्ण मलावरोध का रोगी सदैव सम्यक् मल प्रवृत्ति के लिए चिन्तित रहता है। इसी चिन्ता के कारण रात को वह ठीक से सो भी नहीं पाता है। अत: चिन्ता से अनिद्रा, अनिद्रा के कारण प्रात: देर से उठना शौच का प्राकृतिक समय निकल जाने के कारण मलवद्धता, और मलोत्सर्ग न होने से चिन्ता का दुष्चक्र बन जाता है। ऐसी अवस्था में चन्द्रशेखर रस का प्रयोग नहीं होता, अग्नितुण्डी वटी, वात कुलान्तक रस, चन्द्र प्रभावटी इत्यादि कल्प लाभ प्रद होते हैं। परन्तु मलवद्धता का कारण यदि अग्नि मान्द्य, अजीर्ण याकृत पित्त का अवरोध अथवा याकृत पित्त स्राव हीनता हो तो ‘चन्द्र शेखर रस’ तीन-तीन गोलियाँ प्रातः सायं भोजन से पूर्व शीतल जल के साथ देने से पाचन क्रिया सुधर कर मलावरोध दूर हो जाता है।
सहायक औषधियों में आरोग्य वर्धिनी वटी, कुमार्यासव, रोहीतिकारिष्ट, अविपत्तिकर चूर्ण, चतु:सम चूर्ण प्रभृति औषधियों की योजना उत्तम रहती है। ऐसे रोगियों को गुलकन्द दो बड़े चम्मच प्रातः सायं भोजन से पूर्व लेने से भी लाभ होता है।
चन्द्रशेखर रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Chandrashekhar Ras Side Effects in Hindi
- चन्द्रशेखर रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- यह कल्प यदि इसे मत्स्य पित्त से भावित किया जाए तो अत्युग्र है, और रोगी में पित्त की वृद्धि कर देता है अत: इसकी मात्रा 100 से 150 मि.ग्रा. से अधिक नहीं बढ़ानी चाहिए और पथ्य में तक्र-भात ,बैंगन का भर्ता देना चाहिए परन्तु कुटकी क्वाथ से भावित कल्प सौम्य होता है, कुटकी पित्त रेचनी होने के कारण बढ़े हुए पित्त को विरेचन द्वारा शरीर के बाहर निकाल देती है। अतः रोगी पर किसी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।
- यह एक पूर्णत: निरापद योग है। फिर भी रसौषधि होने के कारण इसको 15 दिन प्रयोग करवा कर एक सप्ताह का विराम दे लेना चाहिए, एवं रस सेवन काल में की जाने वाली रक्त और मूत्र की पाक्षिक परीक्षाएँ भी करवाते रहना चाहिए।
चन्द्रशेखर रस का मूल्य : Chandrashekhar Ras Price
Baidyanath Chandrashekhar Ras (20Tablet) PACK OF 3 – Rs 190
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