Last Updated on May 23, 2020 by admin
कुमुदिनी क्या है ? : What is Water Lily (Kumudini) in Hindi
कमल और कुमुदिनी दोनों में प्रायः समानता है। जो सूर्य विकासी होता है वह कमल और जो चन्द्र विकासी होता है वह कुमुद किंवा कुमुदिनी कहा जाता है। आचार्य चरक ने इसे कषायवर्ग में तथा मूत्रविरजनीय गण में लिया है और आचार्य सुश्रुत ने इसके नाम से उत्पलादिगण का वर्णन किया है। यह कमलकुल (निम्फिएसी) की वनौषधि है।
कुमुदिनी का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Water Lily (Kumudini) Found or Grown?
कुमुदिनी भारत में उष्ण प्रदेशों में सर्वत्र तालाबों में एवं वर्षाकालीय जलाशयों में पाया जाता है। यह कश्मीर में अधिक होता है।
कुमुदिनी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Water Lily (Kumudini) in Different Languages
Water Lily (Kumudini) in –
- संस्कृत (Sanskrit) – कुमुद, उत्पल
- हिन्दी (Hindi) – कुमुद, कुमुदिनी,कोई, कुई
- गुजराती (Gujarati) – पोय
- मराठी (Marathi) – कमोद
- बंगाली (Bangali) – कुमुद
- तामिल (Tamil) – अल्लितमराई
- तेलगु (Telugu) – अल्लितामर
- अंग्रेजी (English) – वाटर लिलि (Water Lily)
- लैटिन (Latin) – निम्फिया एल्बा (Nymphaea alba Linn)
कुमुदिनी का पौधा कैसा होता है ? :
- कुमुदिनी का पौधा – कुमुदिनी का क्षुप कमल के समान जलज और बड़ा होता है। इसके कन्द से एक या दो या अधिक नलाकार काण्ड निकलकर जल के ऊपर पत्र युक्त हो जाते हैं।
- कुमुदिनी के पत्ते – पत्र कुछ छोटे 6-10 इंच व्यास के वृत्ताकार होते हैं, अधस्तल पर रोमश होते हैं तथा हरिताभ पीतवर्ण के होते हैं। कुछ दिनों बाद उक्त कन्द के मध्यभाग से एक और पुष्पवाली नली निकलती है।
- कुमुदिनी का फूल – पुष्प कमल के पुष्प के समान ही किन्तु उससे कुछ छोटा होता है। पुष्प एकल, 2-10 इंच व्यास के श्वेत होते हैं। ये पूष्प रात में चन्द्रोदय होने पर खिलते हैं और प्रातः काल होने पर सम्पुटित हो जाते हैं। पुष्प के भीतर चक्राकार में स्त्रीकेशर स्थित होते हैं। इनमें से कुछ परस्पर संसक्त हो जाते हैं और कई कर्णिका में दबे रहते हैं।
- कुमुदिनी का फल – फल वर्तुल, स्पंज समान, लगभग एक इंच व्यास के होते हैं। इसके भीतर कोषों में सरसों के समान, लालिमायुक्त श्वेत बीज होते हैं जो पकने पर काले पड़ जाते हैं। इन्हें भेट या बेरा कहते हैं। भूनने पर ये रामदाना के समान खिल जाते हैं किन्तु इनकी खीलें बहुत हल्की और श्वेतवर्ण होती हैं।
कुमुदिनी के प्रकार :
कुमुदिनी की अनेक जातियाँ हैं। एक प्रमुख प्रजाति N.stellata willd है जो नीलोत्पल (नीलोफर) नाम से प्रसिद्ध है। इसे आचार्य ने दाह प्रशमन महांकषाय में तथा आचार्य सुश्रुत ने अञ्जनादिगण में पढ़ा है। इसे उत्पल भी कहते हैं। इसके पुष्प प्राय: नील होते हैं। अत: इसे नीलोत्पल कहते हैं। इसे अंग्रेजी में “इण्डियन ब्लू वाटर लिलि” कहते हैं। ये पुष्प किसी उत्पल पर लाल भी आते हैं उसे N.MouchaliBurm.F कहते हैं तथा कुमुदिनी जिस पर श्वेतपुष्प आते हैं जिसका वर्णन ऊपर किया जा चुका है।
इसके अतिरिक्त भी इसकी अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनके कुछ के पुष्प प्रात: काल खिलते हैं और कुछ के रात में। उक्त श्वेत (कुमुदिनी) की अपेक्षा नीलोत्पल हीन गुण हैं।
कुमुदिनी का रासायनिक विश्लेषण : Water Lily (Kumudini) Chemical Constituents
इसके भौमिक काण्ड में आर्द्रता 53.95 प्रतिशत होती है। प्रोटीन, वसा, स्टार्च और कार्बोहाइड्रेट भी होते हैं। बीजों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट काण्ड से अधिक होते हैं।
कुमुदिनी के पौधे का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Kumudini in Hindi
पुष्प, बीज, मूल, नाल, पंचांग।
सेवन की मात्रा :
- पुष्पस्वरस -10 से 20 मि.लि.
- हिम – 50 से 100 मि.लि.
- पुष्प, मूलचूर्ण – 1 से 4 ग्राम
- बीज चूर्ण – 5 से 10 ग्राम
कुमुदिनी के औषधीय गुण : Kumudini ke Gun in Hindi
- रस – मधुर, कषाय, तिक्त ।
- गुण – लघु, स्निग्ध, पिच्छिल, मृदु (मूल एवं बीज रुक्ष) ।
- वीर्य – शीत।
- विपाक – मधुर।
- दोषकर्म – त्रिदोष हर (विशेषत:कफपित्त शामक)।
- इसके गुणधर्म प्राय: कमल के समान दाह प्रशमन (बाह्य प्रयोग एवं अन्तः प्रयोग में उपयोगी),मेध्य, छर्दिनिग्रहण (उल्टी में लाभप्रद), रक्तपित्त शामक,गर्भस्थापन, मूत्रविरजनीय, ज्वरघ्न, विषघ्न और बल्य हैं ।
- कुमुद के भुने बीज (भेंट, बेरा) ज्वर ग्रहणी आदि में पथ्य हैं ।
सुलघु कुकुदबीजं शीतं स्वादु ज्वरमञ्च।
शामयति मारुतपित्तं भृष्टं पथ्यं ग्रहष्यादौ।।
कुमुदिनी के फायदे और उपयोग : Benefits of Water Lily (Kumudini) in Hindi
बार-बार लगने वाली प्यास मिटाए कुमुदिनी का सेवन
कुमुदिनी पुष्प, नागरमोथा, धान की खील और वट के अंकुर समान मात्रा में लेकर महीन पीसकर शहद मिलाकर बेर जैसी गोलियाँ बनाकर मुख में रख चूसने से प्रबल तृष्णा का शमन होता है।
( और पढ़े – अधिक प्यास लगने के 37 घरेलू उपचार )
हृददव (दिल का अधिक धड़कना) में कुमुदिनी का उपयोग फायदेमंद
हृदय के पित्तजन्य स्पन्दन में कुमुदिनी पुष्पस्वरस में मिश्री मिलाकर देना चाहिये। कुमुदिनी का ताजा पुष्प वर्षा काल में ही विकसित होता है अत: ताजापुष्प के अभाव में शुष्क पुष्प या पंचांग का कषाय, फाण्ट या पानक बनाकर भी देने से हृदय को बल मिलता है। हृदय की पित्तजन्य विकृतियों में यह हितावह है।
कुमुदिनी पुष्प 50 ग्राम को 1/2 लिटर जल में क्वाथ तैयार करें जब 100 मि.लि. जल शेष रह जाय तब छानकर उसमें 200 ग्राम मिश्री डालकर विधिपूर्वक पानक तैयार कर लें।
मात्रा -10 से 20 मि.लि.।
गर्भपात से रक्षा करे कुमुदिनी का प्रयोग
कुमुदिनी पुष्प या नीलोफर, मुस्तक, उशीर, चन्दन और शतावरी 60 – 60 ग्राम लेकर इन्हें यवकुट कर एक लिटर 250 मि.लि. अर्क गुलाब में भिगोकर 12 से 13 घन्टों तक रखें। इसके बाद मन्दाग्नि पर क्वाथ कर आधा अर्क शेष रखकर छानकर उसे दुगनी मिश्री मिलाकर विधिवत् पानक तैयार कर लें। यह पानक गर्भवती के गर्भस्राव, छर्दि (उल्टी), दाह और बैचेनी में लाभदायक है। यह अपस्मार (मिर्गी), मूर्छा आदि में भी हितकर है।
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कुमुदिनी के इस्तेमाल से बुखार (ज्वर) में लाभ
कुमुदिनी पुष्प (शुष्क) को 50 ग्राम लेकर उसे 500 मि.लि. जल में रातभर भिगोकर प्रात: मसल
छानकर पिलावें। इससे तीव्रज्वर एवं ज्वरजन्य दाह, तृषा आदि का शमन होता है। इसके साथ ही बीजों की खील पथ्य में देनी चाहिये। इससे तीव्रज्वर के अतिरिक्त हृद्रव (दिल का अधिक धड़कना), छर्दि (उल्टी) आदि विकारों का भी शमन होता है।
ज्वरातिसार में कुमुदिनी के सेवन से लाभ
कुमुदिनी पुष्प, कमलकेशर और दाडिम (अनार) फल की छाल तीनों समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और 2-2 ग्राम चूर्ण देने से ज्वरातिसार में लाभ होता है। यह चूर्ण रक्तार्श (खूनी बवासीर), रक्तपित्त आदि में भी हितकर है। रक्तप्रदर एवं रक्तमेह में इस चूर्ण को तण्डुलोदक (चावल के पानी / मांड) के साथ देना चाहिये।
रक्तप्रदर मिटाए कुमुदिनी का उपयोग
कुमुदिनी पुष्प, नीलोफर और मुलेठी का हिमकषाय रक्तप्रदर को शान्त करता है। रक्तप्रदर में कुमुद पुष्प, जीरा, मुलेठी के चूर्ण को तण्डुलोदक (चावल के पानी / मांड) से देना चाहिये। श्वेतप्रदर में इसे मधु के साथ या तण्डुलोदक में कालानमक मिलाकर देना चाहिये।
( और पढ़े – रक्तप्रदर का रामबाण घरेलू उपचार )
शरीर में होने वाली जलन (दाह) में कुमुदिनी के इस्तेमाल से फायदा
कुमुदिनी पुष्प के कल्क का लेप दाह में हितकर है। इससे पित्तजन्य शोथ (सूजन) का भी शमन होता है।
त्वचा रोग में कुमुदिनी के प्रयोग से लाभ
कुमुदिनी के बीजों के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाना चाहिये। पुष्पों का स्वरस लगाना भी चाहिये।
प्रमेह रोग में कुमुदिनी का उपयोग फायदेमंद
कुमुदिनी पुष्प या नीलोफर, खस, हरड़, आंवला और नागरमोथा समान मात्रा में लेकर चतुर्थांश क्वाथ सिद्ध कर पिलाने से पित्तज प्रमेह में लाभ होता है।
दस्त मिटाए कुमुदिनी का उपयोग
कुमुदिनी मूल का चूर्ण तक्र (छाछ) के साथ देना चाहिये।
स्वरभंग (गला बैठना) में फायदेमंद कुमुदिनी का औषधीय गुण
स्वरभंग एवं कण्ठ के अन्य विकारों में कुमुदिनी मूल का स्वरस पिलाने से लाभ होता है।
रक्तपित्त में कुमुदिनी के सेवन से लाभ
कुमुदिनी फूलों का चूर्ण गोदुग्ध के साथ देने से रक्तपित्त (मुँह, नाक, गुदा, योनि आदि इंद्रियों से रक्त बहने का रोग) का शमन होता है। कहा है-
“उत्पलकुमुद पद्मकिंजल्कः सांग्राहिकरक्तपित्तप्रशमनानाम्“। (चरक सू. 25)
नक्तान्ध्य (रतौंधी) में लाभकारी कुमुदिनी
पुष्पों की केशर को गाय के गोबर के रस में घोंट कर गोलियाँ बनाकर आंखों में आंजना हितकारक है।
कुमुदिनी के दुष्प्रभाव : Kumudini ke Nuksan in Hindi
- कुमुदिनी शीतवीर्य एवं शामक द्रव्य हैं। इसके अतियोग या चिरकालिक प्रयोग से कामशक्ति का ह्रास होता है।
- अतिमात्रा वृक्कों (किडनी) को हानि पहुँचाती है।
- वात विकार के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिये।
दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए उष्ण एवं स्निग्ध उपचार, मधु सेवन हितकर है।
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)