Last Updated on January 15, 2020 by admin
अग्निकुमार रस क्या है ? : What is Agnikumar Ras in Hindi
अग्निकुमार रस टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसका उपयोग बदहजमी ,भूख न लगना, एसिडिटी,मंदाग्नि ,संग्रहणी, कब्ज आदि रोगों में उपचार के लिए किया जाता है।
अग्निकुमार रस के घटक द्रव्य : Agnikumar Ras Ingredients in Hindi
- शुद्ध पारद – 10 ग्राम
- शुद्ध गंधक – 10 ग्राम
- शुद्ध वत्सनाभ – 10 ग्राम
- शुद्ध टंकण – 10 ग्राम
- कालीमिर्च का वस्त्रपूत चूर्ण – 80 ग्राम
- शंख भस्म – 20 ग्राम
- कपर्दिक भस्म – 20 ग्राम
- पके जम्मीर निम्बू (गलगल) का स्वरस – 200 मि.लि.
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- कजली (पारद गंधक) – जन्तुघ्न, योगवाही, सहयोगी औषधियों के गुणों में वृद्धि करने वाली एवं उन्हें स्थायित्व प्रदान करने वाली, रसायन।
- बछनाग – विष (शोधन होने पर एवं उचित मात्रा में प्रयोग होने पर अमृतवत् कार्यकारी) व्यवायी, विकाशी, ज्वरघ्न, शूलघ्न, आम पाचक, वात कफ नाशक।
- टंकण – सारक, लेखन, विषघ्न, वछनाग के विष का निवारक।
- शंख भस्म – दीपक, पाचक, आमनाशक, पितशामक।
- कपर्दिक भस्म – आम पाचक, विषध्न, जन्तुघ्न, दीपक, पाचक।
- जम्भीर स्वरस – रोचक, अम्ल, दीपक, पाचक, शूलहर, अनुलोमक।
अग्निकुमार रस बनाने की विधि :
सर्वप्रथम शुद्ध वच्छनाग एवं कज्जली को खरल करवायें, एक जीव हो जाने पर टंकण डालकर खरल करवायें, टंकण भी जब अच्छी प्रकार मिल जाय तो शंख और कपर्दिक दोनों भस्में डालकर खरल करवायें, जब भस्मों की श्वेततः भी लुप्त हो जाये तो काली मिर्च डाल कर खरल करवायें जब सभी द्रव्य अच्छी प्रकार मिल जायें तो जाम्भीर निम्बु का रस मिलाकर खरल करवायें। रस समाप्त हो जाने पर जब गोली बनने योग्य हो जाय तो 100 मि.ग्रा. की वटिकायें (टेबलेट) बनवा कर धूप में सुखा लें, और सुरक्षित कर लें।
उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।
अग्निकुमार रस की खुराक : Dosage of Agnikumar Ras
एक से तीन गोली दिन में दो से चार बार आवश्यकतानुसार ।
अनुपान – उष्णोदक, शीतल जल, निम्बुपानी अथवा रोगानुसार।
अग्निकुमार रस के उपयोग और फायदे : Agnikumar Ras Benefits & Uses in Hindi
अजीर्ण (बदहज़मी) में अग्निकुमार रस के प्रयोग से लाभ (Agnikumar Ras Benefits in Indigestion Treatment in Hindi)
आयुर्वेद में अजीर्ण को रोगों का मूल कहा गया है, प्रायः सभी और विशेषतः उदर रोगों का मूल कारण अजीर्ण ही होता है। अजीर्ण के छ: भेद माने गये हैं जिनमें –
विष्टब्धाजीर्ण – वायु की विकृति से विष्टब्धाजीर्ण,
आमाजीर्ण – कफ की विकृति से आमाजीर्ण,
विदग्धाजीर्ण – पित्त की विकृति से विदग्धाजीर्ण,
रसशेषाजीर्ण – रसधातु का पूर्ण पाचन न होने से रसशेषाजीर्ण और
प्राकृतिक प्रतिवासर – भोजन के उपरान्त कुछ देर के लिए नित्य रहने वाली अजीर्ण प्राकृतिक प्रतिवासर कही गई है।
अग्निकुमार रस का प्रयोग पित्त विकृति द्वारा उत्पन्न विदग्धाजीर्ण, जिसमें अम्लोदगार कण्ठ में दाह, आमाशय वेदना, इत्यादि लक्षण होते हैं, को छोड़ कर अन्य सभी अजीर्णो में होता है।
तीव्रावस्था में जब अजीर्ण के कारण उदर शूल, अनाह, लालास्रावाधिक्य, उदर गौरव इत्यादि लक्षण हों, अग्नि कुमार रस की तीन तीन गोलियाँ प्रत्येक चार घण्टे उपरान्त सुखोष्ण जल से देने से शूल, आध्यमान (अफारा) प्रभृति लक्षण शान्त हो जाते हैं। तदुपरान्त तीन गोलियाँ प्रत्येक भोजन के एक घण्टा पूर्व निम्बु पानी से देने से एक सप्ताह में अजीर्ण रोग से मुक्ति मिल जाती है।
आमाजीर्ण और विष्टब्धाजीर्ण में इस रस का प्रयोग अधिक सफलता पूर्वक होता है।
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विशूचिका (हैजा) रोग में अग्निकुमार रस से फायदा (Agnikumar Ras Benefits to Cure Cholera in Hindi)
आमाजीर्ण का ही उग्र रूप है, अतिस्निग्ध, तीक्ष्ण, भारी, शीतल, शीतलीकृत (Freezed) भोजन, पर्युषित (बासी) भोजन, मक्खियों द्वारा दूषित जीवाणुओं द्वारा संक्रमित तथा असमय एवं अधिक मात्रा में सेवित भोजन में ‘अन्नविष’ की उत्पत्ति हो जाती है, यह घोर अन्नविष उदर में सूई चुभने जैसी वेदना, उदर शूल, अनाह, छर्दि. एवं अतिसार उत्पन्न करके आत्यायिकता उत्पन्न कर देता है। ऐसे में उपरोक्त ‘अग्निकुमार रस’ चार चार गोलियाँ उष्णोदक से देने से लाभ करता है। दूसरी मात्रा रोग की अवस्था पर निर्भर करती है, यदि लक्षण शान्त होने लगे तो दो या तीन घण्टे में और लक्षण यथावत रहे तो प्रत्येक घण्टे ली जा सकती है।
सहायक औषधियों में संजीवनी वटी, चित्रकादिवटी, लशुनादिवटी, कर्पूररस, इत्यादि का सेवन भी करवाना चाहिये, रोग के शमन होने पर भी कुछ दिन तक ‘अग्नि कुमार रस’ का प्रयोग प्रत्येक भोजन के पूर्व निम्बू जल से अवश्य करवाना चाहिए।
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क्षुभित आन्त्र संलक्षण में अग्निकुमार रस के सेवन से लाभ
यह ग्रहणी का ही एक प्रकार है जो कफज ग्रहणी से समानता रखता है। रोगी हृष्ट-पुष्ट होता है उसे प्रातः तीन चार बार शौच जाना पड़ता है, एक बार प्रातः जागते ही पुनः चाय पीने के उपरान्त, पुनः नहाते समय अथवा नहाने के बाद या प्रातः का अल्पाहार लेने के उपरान्त। मल बंधा हुआ नहीं होता कभी तरल, कभी कुछ गाढा, रोगी को मल त्याग करने में अतिशीघ्रता होती है। पाँच दस मिण्ट के लिए रुकना सम्भव नहीं होता। इसके उपरान्त पूरा दिन वह ठीक-ठाक रहता है अपना कार्य सफलतापूर्वक करता है। हाँ कभी कभार दूध, राजमा, पत्तेवाली सब्जियाँ, पपीता इत्यादि खाने से अथवा किन्हीं मनोशारीरिक कारणों से उसे अतिसार हो जाता है, जो सामान्य चिकित्सा से ठीक भी हो जाता है।
ऐसे रोगियों को ‘अग्नि कुमार रस’ तीन गोली प्रत्येक भोजन के एक घण्टा पूर्व, उष्णोदक से सेवन करवाने से आन्त्र का क्षोभ दूर होकर मल गाढा होने लगता है, शौच जाने की अतिशीघ्रता, शीघ्रता में परिवर्तित हो जाती है। यह रोग जीर्ण प्रकार का है अत: चिकित्सा भी लम्बे समय तक लेनी पड़ती है।
सहायक औषधियों में कर्पूर रस, ‘ग्रहणी कपाट रस’, लशुनादिवटी, चित्रकादिवटी, नृपतिवल्लभ रस, चिञ्चाभल्लातकवटी, कुटजादिलोह, कुटजारिष्ट इत्यादि का प्रयोग भी करना चाहिए।
हिक्का (हिचकी) में अग्निकुमार रस का उपयोग फायदेमंद
हिक्का (हिचकी) वस्तुतः रोग न होकर अनेक रोगों का लक्षण है। इनमें अधिकांशतः होने वाली हिक्का अजीर्ण के कारण ही होती है, उस हिक्का में ‘अग्नि कुमार रस’ एक सफल औषधि है। अग्नि कुमार रस की दो दो गोलियाँ एक एक घण्टे के अन्तराल से शीतल जल से देने से हिचकी समाप्त हो जाती है, अम्ल पित्त जन्य, वृक्कामय जनित अथवा विषजन्य हिक्काओं में अग्नि कुमार रस का प्रयोग नहीं होता।
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श्वास रोग मिटाए अग्निकुमार रस का उपयोग
श्वास भी एक आमाशयोत्थ व्याधि है। आमाशय ही कफोत्पत्ती का स्थान है अतः श्वास रोग में रोगी को स्नेहपानोपरान्त विरेचन देकर तत्पश्चात् अग्नि कुमार रस की तीन तीन गोलियाँ दिन में तीन बार उष्णोदक से देने से कफ की उत्पत्ति रुक जाती है। अत: रोग की सम्प्राप्ति भंग होने के कारण श्वास के आक्रमणों में कमी आने लगती है, यह चिकित्सा श्वास के आक्रमण के समय नहीं अपितु आक्रमण के पश्चात् प्रारम्भ करनी चाहिये ।
सहायक औषधियों में ताल सिन्दूर, समीरपन्नग रस, श्वासकास चिन्तामणि रस, श्वास कुठाररस, कण्टकार्यवलेह, व्याघ्री हरीतकी कणकासव इत्यादि का आवश्यकतानुसार अवश्य प्रयोग करवाना चाहिये।
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जीर्ण प्रतिश्याय ( सर्दी जुकाम ) ठीक करे अग्निकुमार रस का प्रयोग
व्यवसाय में ऐसे रोगी मिलते हैं, जिन्हें किसी भी बहाने जैसे-शीत लगने, शीतल जल पीने, दही खाने आवश्यकता से अधिक भोजन करने धूल धूप, धुओं के सम्पर्क में आने, किसी अन्य प्रतिश्याय के रोगी को देखने से प्रतिश्याय हो जाता है, कई लोगों के प्रतिश्याय के साथ कास भी हो जाती है, सर्वाङ्गवेदनायें, थकावट, मलावरोध, मन्द ज्वर, शिरः शूल इत्यादि लक्षण भी दृष्टि गोचर होते हैं, इस रोग का मुख्य कारण होता है ‘अग्नि मान्द्य’ और अग्नि मान्द्य द्वारा कफ (आम) की उत्पत्ती।
अग्नि कुमार रस, वात कफ नाशक है, और आम नाशक भी, अत: अग्नि कुमार रस की तीन-तीन गोलियाँ प्रत्येक भोजन के एक घण्टे पूर्व उष्णोदक से देने एवं निदान परिवर्जन करवा देने से एक सप्ताह में ही अग्नि संधुक्षित (प्रज्वलित या उद्दीप्त) होकर आमोत्पत्ती रुक जाती है परिणाम स्वरूप प्रतिश्याय के लक्षण लुप्त होने लगते हैं।
ऐसे रोगी सामान्यतः कृश होते हैं। कफनाशक अग्नि कुमार रस के सेवन में उन में कुछ अधिक कृशता आ सकती है, अत: भोजन के उपरान्त उनको वलारिष्ट 10 मि.लि., द्राक्षारिष्ट 10 मि.लि. बिना जल मिलाये पिलाना चाहिये।
यदि शुक्र धातु के क्षय की सम्भावना हो तो उपरोक्त आसवों के मिश्रण के साथ एक गोली ‘पुष्पधन्वारस’ प्रातः सायं भी दे सकते हैं, परन्तु पुष्पधन्वारस के सेवन काल में मैथुन का परित्याग अवश्य करवा देना चाहिये। अन्यथा शुक्र वृद्धि का दुरूपयोग करके रोगी अपने रोग को बढ़ा सकता है। रोगी के शरीर भार में वृद्धि, रोग के ह्रास का मान दंड होती है, अत: जैसे-जैसे रोगी के भार में वृद्धि हो, औषधि की मात्रा घटाते जाना और अन्त में औषधि के बिना पथ्य पालन पर रखना चाहिये धीरे-धीरे स्वास्थ्य होने पर रोगी स्वतः ही पथ्य पालन छोड़ देता है।
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मुख वैरस्य में अग्निकुमार रस का उपयोग फायदेमंद
ऐसे रोगी जो अपने को स्वास्थ समझते हैं परन्तु मुँह का स्वाद कभी कड़वा, कभी खट्टा कभी बेस्वाद मुँह में पानी आना इत्यादि लक्षणों की शिकायत, लेकर आते हैं, उनको अग्नि कुमार रस दो-तीन गोली दिन में दो तीन बार देने से वह एक ‘सप्ताह में ही आरोग्य लाभ कर लेते हैं ।
सहायक औषधि के रूप में द्राक्षरिष्ट 20 मि.लि. बराबर जल मिला कर प्रातः सायं भोजन के बाद देने से और अधिक लाभ मिलता है।
अग्निकुमार रस के दुष्प्रभाव : Agnikumar Ras Side Effects in Hindi
- अग्निकुमार रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- अग्निकुमार रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
- अग्नि कुमार रस अत्यन्त उपयोगी परन्तु वछनाग युक्त होने के कारण विषाक्त औषधि है, अत: इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक करना चाहिये, वछनाग के योग, रस वाहिनियों का स्रोतो विर्वत करके हृदय की गति को मन्द कर देते हैं रक्त चाप गिर जात है एवं शीतलस्वेद आने लगते हैं। कस्तूरी भैरव रस, मृत संजीवनी सुरा, हिङ्गु कर्पूरवटी के सेवन से स्थिति सुधर जाती है। ऐसी प्रतिक्रिया केवल .01 प्रतिशत रोगियों में होती है।
- रसौषधियों के सेवन काल में वर्णित पूर्वोपायों का पालन भी करना चाहिये।
अग्निकुमार रस का मूल्य : Agnikumar Ras Price
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Dhootapapeshwar Agnikumar Rasa – 50 Tablets – 103 Rs
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