Khanjanikari Ras in Hindi | खंजनिकारी रस के फायदे ,उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on February 28, 2020 by admin

खंजनिकारी रस (वटी) क्या है ? : What is Khanjanikari Ras in Hindi

खंजनिकारी रस (वटी) टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। इस औषधि का उपयोग लकवा, साइटिका, वहूमूत्र, सोम रोग, वृद्धावस्था की कमजोरी, वात आदि रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।

(अ) पहली विधि :

खंजनिकारी रस (वटी) के घटक द्रव्य : Khanjanikari Ras Ingredients in Hindi

  • शुद्ध कुचला – 10 ग्राम,
  • रजत भस्म – 10 ग्राम,
  • लोह भस्म 100 पुटी – 10 ग्राम

भावनार्थ : अर्जुनत्वक (अर्जुनछाल) क्वाथ, आवश्यकतानुसार

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कुचला : उष्ण, वेदनाशामक, वातनाड़ी बल कारक, वातनाशक।
  2. रजत भस्म : चाक्षुष्य (नेत्र संबंधी), वातनाड़ी क्षोभ शामक, बल्य, बृष्य(वीर्य और बल बढ़ाने वाला), वात नाड़ी बल्य।
  3. लोह भस्म : रक्तबर्धक, शोथ हर (सूजन मिटाने वाला), पाण्डु (पीलिया) नाशक, बल्य, बृष्य, रसायन ।
  4. अर्जुन त्वक(छाल) : हृद्य (हृदय के लिए लाभप्रद), अस्थि सन्धानक , शोथध्न, व्रणरोपक।

खंजनिकारी रस (वटी) बनाने की विधि :

सर्व प्रथम शुद्ध कुचला के चूर्ण को खरल में डालकर इतना खरल करवाएँ कि उसका श्लक्षण चूर्ण बन जाए, फिर दोनों भस्मों को मिला कर एक दिन खरल करवाएँ अब अर्जुनत्वक क्वाथ डाल कर एक दिन खरल करके 250 मि.ग्रा. की वटिकायें बनवा कर धूप में सुखा कर सुरक्षित कर लें।

खंजनिकारी रस (वटी) की खुराक : Dosage of Khanjanikari Ras

एक वटिका प्रातः सायं भोजन के उपरान्त, आवश्यक होने पर एक वटिका दोपहर को भी दे सकते हैं।

अनुपान :

दुध, मधु , रास्नादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ।

विशेष : इस कल्प में पारद न होने पर भी ग्रंथकार ने इसका नाम खंजनकारी रस दिया है, सम्भवतः रस कल्पों की भांती सद्यः (शिघ्र) फलदायक होने के कारण? मेरे विनम्र मत में इसे खंजनकारि वटी कहना अधिक उपयुक्त होगा, क्योंकि परम पूज्य यादव जी त्रिक्रम जी आचार्य ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ ‘सिद्धयोग संग्रह’ में इसी नाम से खंजनकारि रस लिखा है जिसमें लोह भस्म के स्थान पर मल्ल सिन्दूर है। अतः उसे खंजनकारी रस कहना उपयुक्त है।

खंजनिकारी रस (वटी) के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Khanjanikari Ras in Hindi

लकवा (पक्षाघात) में खंजनिकारी रस के प्रयोग से लाभ

खंजनिकारी रस (वटी) का प्रयोग नवीन पक्षाघात में नहीं होता, पक्षाघात के जीर्ण रोगियों जिन्हें पक्षाघात हुए 6 मास हो चुके हों इस रसायन का प्रयोग सफलता पूर्वक होता है। रोगी एवं रोग का बलाबल देखकर एक-दो वटिकाएं प्रातः सायं भोजन के बाद देने से वांछित फल मिलता है, अनुपान में मधुसर्पि से चटा कर रास्ना सप्तक क्वाथ देना उपयुक्त रहता है। दस-दस दिन का अन्तराल देकर औषध प्रयोग से अद्भुत लाभ मिलता है।

चालीस दिन तक इसका सेवन करवाने के बाद सहायक औषधियाँ , ताप्यादि लोह, विन्धवासी योग, वृहद्वात चिन्तामणि रस, रस राजरस, कृष्ण चतुर्मुखरस, वातकुलान्तक रस, योगेन्द्र रस में किसी एक या दो की योजना चालीस दिन तक करनी चाहिए। यदि आवश्यकता हो तो पुनः खंजनिकारी रस (वटी) का एक आवर्तन करवाया जा सकता है।

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साइटिका (Sciatica) में लाभकारी है खंजनिकारी रस का सेवन

साइटिका (गृध्रसी) में खंजनकारी वटी, विशेष लाभदायक औषधि है। इसके सेवन से पूर्व रोगी का सनेह पूर्वक शोधन अथवा एरण्ड तैल से विरेचन करवा लेने से अधिक लाभ होता है। यदि रोगी क्रूर कोष्ठी हो अथवा उसे मलावरोध रहता हो तो, अनुपान के रूप में रास्नादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ में एक-दो चम्मच एरण्ड तैल प्रत्येक मात्रा के साथ देने से अतीव लाभ होता है।

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वहूमूत्र में खंजनिकारी रस का उपयोग फायदेमंद

खंजनिकारी रस (वटी) वहूमूत्र की एक सफल औषधि है, विशेष रूप से वृद्धों के वहू मूत्र में एक गोली प्रातः सायं दूध से देने से दो दिन में लाभ होने लगता है,पूर्ण लाभ के लिए दस दिन की तीन अवृतियाँ करवाऐं, अनुपान में निशामलकी क्वाथ देने से और अधिक लाभ होता है।

सहायक औषधियों में चन्द्रप्रभा वटी, वहू मूत्रान्तक रस, पुष्पधन्वा रस, वसन्त कुसुमाकर रस, देने से वांछित फल प्राप्त होता है।

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सोम रोग मिटाए खंजनिकारी रस का उपयोग

सोम रोग होने पर महिला की योनि मार्ग से सतत् शीतल, जल सदृश स्राव होता रहता है । पाण्डु, पिण्डिको द्वेष्ठन, शिरशूल, अनमनस्तकता, मैथुनारुचि इत्यादि लक्षण मिलते हैं, महिला की आयु 35 से 50 वर्ष की होती है। खंजनिकारी रस(वटी) मधु से चटाकर दूध पिलाने से एक सप्ताह में ही लाभ हो जाता है।

सहायक औषधियों में सोमनाथ रस, प्रदरारिलोह, त्रिभुवन कीर्ती रस, निशामलकी इत्यादि औषधिएं उपर्युक्त रहती है ! इस रोग में चालीस दिन तक औषधि सेवन और ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक है।

वातनाड़ी शूल ठीक करे खंजनिकारी रस का प्रयोग

वातनाड़ी शूल, यथा शंखक, अनन्तवात, साइटिका (गृध्रसी) एवं अन्य प्रकार के वातनाड़ी शूलों में खंजनकारि रस एक प्रभावशाली औषधि है। एक गोली दिन में दो से तीन बार एरण्ड तैल मिले दशमूल क्वाथ से देने से शीघ्र लाभ होता है। पूर्ण लाभ के लिए 10 दिन तक औषधि का प्रयोग करवाएँ।

सहायक औषधियों में मिहिरोदय रस, वृहद्वात चिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस इत्यादि का सेवन भी प्रशस्त है।

वृद्धावस्था की अशक्ति दूर करने में खंजनिकारी रस करता है मदद

वृद्धावस्था में जब व्यक्ति जांघों की अशक्ति के कारण चलने में असमर्थ हो जाता है। अथवा चलते-चलते गिर पड़ता है। ऐसी अवस्था में खंजनकारी वटी एक गोली प्रातः, दोपहर, सायं दूध से देने से एक सप्ताह में टाँगों में जान आ जाती है। रोगी में उत्साह का संचार होने लगता है।

सहायक औषधियों में बलारिष्ट ,च्यवन प्राश, अश्वगंधारिष्ट, रस सिन्दूर, इत्यादि का प्रयोग करें।

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वातज वेदनाऐं (दर्द) में खंजनिकारी रस के इस्तेमाल से फायदा

वात वृद्धि के बिना वेदना असम्भव है, खंजनकारी वटी एक वटिका दिन में दो तीन बार दूध, चाय अथवा रास्नासप्तक क्वाथ से देने से वेदनाएं भी शान्त हो जाती है, और रोगी के उत्साह में वृद्धि होती है। अतः इस औषधि के तीन चार आर्वतन (दस-दस दिन के) करवाने चाहिए ।

सहायक औषधियों में योग राज गुग्गुलु, सिंहनाद गुग्गुलु, व्योषाद्य वटी, वृहद्वात चिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, इत्यादि का उपयोग भी करवा सकते हैं।

खंजनिकारी रस (वटी) के दुष्प्रभाव और सावधानी : Khanjanikari Ras Side Effects in Hindi

  1. खंजनिकारी रस (वटी) लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  2. कुचला विष है, विशेष रूप से लगातार अधिक समय तक सेवन करने से इसके विषाक्त प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं, अतः कुचला युक्त औषधि 10 दिन सेवन करवा कर 10 दिन के लिए स्थगित कर देनी चाहिए। दस दिन के पश्चात् पुनः दस दिन सेवन करवा सकते हैं।
  3. कुछ लोगों को कुचला सेवन से उष्णता की अनुभूती होती है। दूध में घृत मिलाकर देने से उष्णत्व नहीं होता ।
  4. जिन रोगों में मूत्र खुल कर आने की अपेक्षा हो उन्हें कुचलायुक्त योगों का प्रयोग नहीं करवाना चाहिए।
  5. उच्चरक्त चाप युक्त रोगियों को भी कुचले के योग नहीं देने चाहिये।

(ब) दूसरी विधि :

खंजनिकारी रस बनाने की विधि :

सिद्ध योग संग्रह में वर्णित खंजनिकारी रस (वटी) का योग परमादरणीय वैद्य यादव जी त्रिकम जी आचार्य जी का अनुभूत योग है –

शुद्ध कुचले का कपडछान चूर्ण, मल्ल सिन्दूर और रौप्य भस्म सम भाग लें प्रथम मल्ल सिन्दूर को खूब महीन पीस कर उसमें अन्य द्रव्य मिला, अर्जुन वृक्ष की छाल के क्वाथ की सात भावनाएँ देकर, मूंग के बराबर गोलियाँ बना कर छाया में सुखा लें। एक दो गोली प्रातः सायं गाय के दूध या दशमूल क्वाथ के अनुपान से दें।

सेवन की मात्रा :

इसकी मात्रा 50 mg. दिन में दो या तीन बार पर्याप्त है। और इसे सदैव भोजन के उपरान्त दूध से देना अधिक श्रेष्ठ रहता है।

खंजनिकारी रस के लाभ और उपयोग :

  1. अर्दित, खञ्जवात और पुराने पक्षाघात में इससे अच्छा लाभ होता है।
  2. भैषज्यरत्नावली के खंजनिकारी रस से यह योग उग्र है, परन्तु यह उससे अधिक लाभदायक भी है।
  3. जिन रोगों में उसका उपयोग होता है, उन सभी में यह लाभप्रद है। उसके अतिरिक्त अर्दित, श्वास, निम्न रक्तचाप एवं नपुंसकता में भी लाभदायक है।
  4. इस योग में पारद, सोमल और कपीलु तीन विष है। अत: सावधानी पूर्वक छोटी मात्रा से प्रारम्भ करके धीरे-धीरे जितनी सहन हो सके मात्रा बढ़ानी चाहिए।
  5. प्रत्यक 10 दिन के बाद औषधि को दस दिन के लिए स्थगित कर देना चाहिए । उस काल में योग राज गुग्गुलु, सिंहनाद गुग्गुलु ,महा वात विध्वंसन रस, प्रभृति औषधियों की योजना करनी चाहिए।
  6. निम्न रक्त चाप के रोगियों को च्यवन प्राश, कौंच पाक, बादाम पाक, द्राक्षारिष्ट, अश्वगन्धारिष्ट, एवं बलारिष्ट का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
  7. श्वास के रोगियों में रेचन प्रत्येक सप्ताह करवाना चाहिए और अग्निबर्धक औषधियों यथा अग्नि कुमार रस, शंख वटी, चित्रकादिवटी लशुनादिवटी का प्रयोग भी करवाना चाहिए ।
  8. कफ शुष्क होने पर इस औषधि का प्रयोग स्थगित कर तालीसादि चूर्ण, सुधायष्टि (स्वानुभूत) (सौभाग्य भस्म एवं मधुयष्टि चूर्ण समभाग) 500 मि.ग्रा. से एक ग्राम, देने से कफ ढीला होकर निकलने लगता है।
  9. लकवा के रोगियों को आत्मगुप्तादि क्वाथ के साथ देने से निश्चित लाभ होता है। स्थानीय मालिश के लिए महामाष तैल उपयुक्त रहता है।
  10. लिंगेन्द्रीय शिथिलता में दूध से देने से लाभ होता है।

खंजनिकारी रस के नुकसान व उपयोग में सावधानीयाँ :

  • खंजनिकारी रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • इस योग के दो द्रव्य विषाक्त हैं कपीलु तथा मल्ल सिन्दूर, और रजत भस्म खनिज भस्म है। रजत भस्म बल्य, बृष्य और वात नाड़ी क्षोभ शामक है कपील और मल्ल सिन्दूर वातनाशक वेदना शामक एवं उष्ण हैं, अत: सावधानीपूर्वक छोटी मात्रा से प्रारम्भ करके धीरे-धीरे जितनी रोगी को सहन हो सके मात्रा बढ़ायें।
  • उच्चरक्त चाप के रोगियों को इसका कदापि सेवन न करवायें।
  • प्रयोग काल में घृत और दूध का प्रयोग करवायें।
  • पित्त प्रकृति के रोगियों के इसके सेवन से अम्लपित्त हो सकता है। अत: इसके साथ अविपत्तिकर चूर्ण की योजना कर दें।
  • रसौषधियों और विषौषधियों में लेने वाले पूर्वोपाय इस में भी अवश्य लें।

खंजनिकारी रस का मूल्य : Khanjanikari Ras Price

Baidyanath Khanjanikari Ras (20Tablet) PACK OF 3 – Rs 254

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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