Last Updated on July 22, 2019 by admin
अकरकरा के फायदे : Akarkara Khane ke Fayde
सामान्य परिचय :
★ अकरकरा का पौधा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता है। भारत में यह कश्मीर, आसाम, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में, गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कहीं-कहीं उगता है।
★ वर्षा के शुरू में ही इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है।
★ अकरकरा का तना रोएन्दार और ग्रंथियुक्त होता है।
★ अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग की होती है।
★ इसके फूल पीले रंग के गंधयुक्त और मुंडक आकर में लगते हैं।
★ जड़ 8 से 10 सेमी लंबी और लगभग 1.5 सेमी चौड़ी तथा मजबूत और मटमैली होती है।
रंग : अकरकरा ऊपर से काला और अंदर से सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद तेज, चरपरा, ठंडा, चुनचुनाहट पैदा करने वाला होता है।
प्रकृति : अकरकरा की प्रकृति गरम और खुश्क होती है।
गुण :
★ अकरकरा कडु़वी, रूक्ष, तीखी, प्रकृति में गर्म तथा कफ और वातनाशक है।
★ इसके अलावा यह कामोत्तेजक , धातुवर्द्धक (वीर्य को बढ़ाने वाला), रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), शोथहर (सूजन को कम करने वाला), मुंह दुर्गंधनाशक (मुंह की बदबू) को नष्ट करना), दन्त रोग, हृदय की दुर्बलता (दिल की कमजोरी), बच्चों के दांत निकलने के समय के रोग, तुतलाहट, हकलाहट, रक्तसंचार (शरीर में खून के बहाव) को बढ़ाने में भी गुणकारी हैं।
हानिकारक प्रभाव :
★ अकरकरा का बाहृय प्रयोग अधिक मात्रा में करने से त्वचा का रंग लाल हो जाता है तथा उस पर जलन होती है।
★ यदि इसका सेवन आन्तरिक रूप से अधिक किया गया हो तो इससे- नाड़ी की गति बढ़ना, दस्त लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी छाना, रक्तपित्त आदि दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं।
★ फेफड़ों के लिए भी यह हानिकारक होता है, क्योंकि इससे उनकी गति बढ़ जाती है।
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अकरकरा से विभिन्न रोगों का उपचार :
1. पक्षाघात (लकवा) :
• अकरकरा की सूखी डण्डी महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा दूर होता है।
• अकरकरा की जड़ को बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है।
• अकरकरा की जड़ का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
2. सफेद दाग (श्वेतकुष्ठ) : अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर श्वेत कुष्ठ पर लगाने से कुष्ठ थोड़े समय में ही अच्छा हो जाता है।
3. सिर के दर्द में :
• यदि सर्दी के कारण से सिर में दर्द हो तो अकरकरा को मुंह में दांतों के नीचे दबायें रखें। इससे शीघ्र लाभ होगा।
• बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम अकरकरा का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से लगातार एक समान बने रहने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है।
• अकरकरा को जल में पीसकर गर्म करके माथे पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
4. दांत रोग :
• अकरकरा को सिरके में घिसकर दुखते दांत पर रखकर दबाने से दर्द में लाभ होता है।
• अकरकरा और कपूर को बराबर की मात्रा में पीसकर नियमित रूप से सुबह-शाम मंजन करते रहने से सभी प्रकार के दांतों की पीड़ा दूर हो जाती है।
• अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, फूली हुई फिटकिरी, कालीमिर्च, सेंधानमक बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें। इससे नियमित मंजन करते रहने से दांत और मसूढ़ों के समस्त विकार दूर होकर दुर्गंध मिट जाती है।
5. नाक के रोग : अकरकरा के चूर्ण को नाक से सूंघने से बंध-रोग (नाक से छींक न आना) दूर हो जाता है।
6. तुतलापन, हकलाहट :
• अकरकरा और कालीमिर्च बराबर लेकर पीस लें। इसकी एक ग्राम की मात्रा को शहद में मिलाकर सुबह-शाम जीभ पर 4-6 हफ्ते नियमित प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलेगा।
• अकरकरा 12 ग्राम, तेजपात 12 ग्राम तथा कालीमिर्च 6 ग्राम पीसकर रखें। 1 चुटकी चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम जीभ पर रखकर जीभ को मलें। इससे जीभ के मोटापे के कारण उत्पन्न तुतलापन दूर होता है।
7. पेट के रोग : छोटी पीपल और अकरकरा की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम, भोजन के बाद सेवन करते रहने से पेट सम्बंधी अनेक रोग दूर हो जाते है।
8. दमा (श्वास) होने पर :
• अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को सूंघने से ‘वास का अवरोध दूर होता है।
• लगभग 20 ग्राम अकरकरा को 200 मिलीलीटर जल में उबालकर काढ़ा बनायें और जब यह काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाये तो इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को सेवन कराने से अस्थमा रोग ठीक हो जाता है।
9. हिचकी : एक ग्राम अकरकरा का चूर्ण 1 चम्मच शहद के साथ चटाएं।
10. बाजीकरण : अकरकरा, सफेद मूसली और असगन्ध सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित लें।
11. मस्तक की पीड़ा में :
• अकरकरा की जड़ को पीसकर मस्तक पर हल्का गर्म लेप करने से मस्तक की पीड़ा मिटती है।
• अकरकरा को दांतों के बीच में रखने से प्रतिश्याय (जुकाम) से होने वाला सिर दर्द मिटता है। इसको चबाने से लार छूटकर दाड़ की पीड़ा मिट जाती है।
12. दिमाग को तेज करने के लिए : अकरकरा और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, इसको आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि तेज होती है।
13. जीभ के विकार के कारण हकलापन : अकरकरा की जड़ के चूर्ण को कालीमिर्च व शहद के साथ 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर जीभ पर मालिश करने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। इसे 4-6 हफ्ते प्रयोग करें।
14. गले के रोग में :
• अकरकरा चूर्ण की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायकों (सिंगर) का स्वर सुरीला हो जाता है।
• तालू, दांत और गले के रोगों में इसके कुल्ले करने से बहुत लाभ होता है।
15. मुख दुर्गन्ध (मुंह से बदबू आने पर) : अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, कालीमिर्च, सेंधानमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूढ़ों के सभी विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है।
16. हृदय रोग :
• अर्जुन की छाल और अकरकरा का चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में सुबह और शाम आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कम्पन और कमजोरी में लाभ होता है।
• कुलंजन, सोंठ और अकरकरा की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीमीटर की मात्रा में शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। फिर इसे पीने से हृदय रोग मिटता है।
17. ज्वर (बुखार) होने पर :
• अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है।
• अकरकरा 10 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 मिलीलीटर अदरक का रस मिलाकर लेने से सिन्नपात ज्वर में लाभ मिलता है।
• अकरकरा 10 ग्राम और चिरायता 10 ग्राम लेकर कूटकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ लेने से बुखार समाप्त होता है।
18. खांसी :
• अकरकरा का 100 मिलीलीटर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है।
• अकरकरा के चूर्ण को 3-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते कफ को बाहर निकाल देती है।
19. मंदाग्नि : शुंठी का चूर्ण और अकरकरा दोनों की 1-1 ग्राम मात्रा को मिलाकर फंकी लेने से मंदाग्नि और अफारा दूर होता है।
20. शरीर की शून्यता और आलस्य होने पर : अकरकरा के 1 ग्राम चूर्ण को 2-3 पीस लौंग के साथ सेवन करने से शरीर की शून्यता और इसकी जड़ के 100 मिलीलीटर काढ़े पीने से आलस्य मिटता है।
20. गृध्रसी (सायटिका) : अकरकरा की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी मिटती है।
21. अर्दित (एक प्रकार का वायु रोग जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता है) होने पर :
• उशवे के साथ अकरकरा का 100 मिलीलीटर काढ़ा मिलाकर पिलाने से अर्दित मिटता है।
• अकरकरा का चूर्ण और राई के चूर्ण को शहद में मिलाकर जिहृवा पर लेप करने से अर्धांगवात मिटती है।
22. दांतों में दर्द :
• अकरकरा को बारीक पीसकर पॉउडर बना लें। उसके पॉउडर में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कपूर को मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को दांतों के बीच के खाली जगहों को भरें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है तथा मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है।
• अकरकरा का बारीक चूर्ण बनाकर मसूढ़ों पर मालिश करने से व खोखले दांतों की जड़ में लगाने से कीड़े नष्ट होकर दर्द खत्म हो जाता है।
• अकरकरा व कपूर के चूर्ण को रूई में लपेटकर लौंग के तेल में भिगो लें। इसे दर्द वाले दांत के नीचे दबाकर रखें तथा मुंह का राल (लार) बाहर गिरने दें। इससे दांत का तेज दर्द जल्द ठीक होता है।
• गर्मी के कारण दांतों में दर्द रहता हो तो अकरकरा, तज और मस्तांगी को बराबर मात्रा में लें। इन सबको पीस-छानकर प्रतिदिन दांतों पर मलें। इससे रोग में जल्द आराम मिलता है।
• अकरकरा और कपूर दोनों बराबर लेकर पीसकर मंजन करने से सभी प्रकार की दांतों की पीड़ा मिटती है।
• अकरकरा की जड़ के काढ़े से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है और हिलते हुए दांत जम जाते हैं।
• अकरकरा की जड़ को दांतों पर मलने से दांतों का दर्द दूर होता है।
23. जुकाम के कारण उत्पन्न सिर दर्द : अकरकरा को दांतों के बीच दबाने से जुकाम का सिर दर्द दूर हो जाता है।
24. मसूढ़ों का रोग : अकरकरा के पत्तों को पानी में उबालकर प्रतिदिन गरारे करें। यह मुंह के सभी रोग को नष्ट करती है।
25. बालाचार, बालग्रह : अकरकरे को धागे में बांधकर बच्चे के गले में पहनाने से मिरगी, आ़क्षेप आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
26. मासिक-धर्म की अनियमितता : अकरकरा का काढ़ा बनाकर पीने से मासिक-धर्म समय पर होता है।
27. पेट में पानी का भरना (जलोदर) : अकरकरा का चूर्ण सुबह और शाम पीने से जलोदर में लाभ होता है।
28. शीतपित्त : अकरकरा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से शीत पित्त का विकार दूर होता है।
29. मिरगी (अपस्मार) :
• अकरकरा को सिरके में पीसकर शहद के साथ मिलाकर जिस दिन मिरगी न आये उस दिन रोगी को चटाने से मिरगी आना बंद हो जाता है।
• अकरकरा, ब्राह्मी और शंखहूली का काढ़ा बनाकर मिरगी के रोगी को देने से मिरगी आना बंद हो जाती है।
• 15 ग्राम पिसा हुआ अकरकरा और 30 ग्राम बीज निकले हुए मुनक्का को मिलाकर उसकी चने के आकार के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसे सुबह और शाम को एक-एक गोली लेने से और पिसे हुए अकरकरा को नाक में सूंघने से मिरगी का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
• ब्राह्मी के साथ इसका काढ़ा बना करके पिलाने से मिर्गी में लाभ होता है।
• अकरकरा को बारीक पीसकर थोड़ा-सा शहद मिलाकर सुंघाने से मिर्गी दूर होती है।