एलोपैथी चिकित्सा इस समय सारे संसारमें तेजीसे फैल रही है। उसके अनुसंधान भी सभी क्षेत्रों में हो रहे हैं, परंतु जिन परिणामों की इस विज्ञान को आशा थी, वे नहीं मिल पा रहे हैं।
एलोपैथी चिकित्सा के फायदे : Allopathic Treatment Ke Fayde in Hindi
✓ एलोपैथी चिकित्सासे कुछ लाभ होना निर्विवाद है, जैसे यह मनुष्यको तुरंत राहत दिला देती है। मनुष्य यह चाहता है कि मुझे कष्टोंसे शीघ्रसे-शीघ्र राहत मिल सके। एलोपैथी चिकित्सा उसमें सफल रही है।
✓ दूसरा निर्विवाद लाभ सफल शल्यचिकित्सा है। एलोपैथीने शल्यचिकित्सामें वास्तवमें आशातीत सफलता प्राप्त की है। पहले तो परम्परागत औजारों द्वारा शल्यचिकित्सा की जाती थी, परंतु विज्ञानके बढ़ते चरणोंने इन औजारों का स्थान विज्ञान की नयी तकनीकों को दे दिया है। इसमें लेज़रका प्रयोग उल्लेखनीय है। अणु तकनीकने भी इस चिकित्सा-पद्धतिमें बहुत सहायता की है। अब तो विज्ञान निरन्तर इस ओर प्रयत्नशील है। कि जहाँ तक हो, शल्यचिकित्सा में चीर-फाड़ कम-से कम करना पड़े।
✓ एलोपैथी चिकित्सा विज्ञान के स्थापित सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें नित्य नया प्रयोग होता रहता है, जो इस चिकित्सा पद्धति को प्रगतिकी ओर ही ले जा रहा है, परंतु इन सबके होते हुए भी इसको अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। इस पद्धतिमें इंजेक्शन एक ऐसी ही प्रक्रिया है, जिसके परिणाम शीघ्र ही सामने आ जाते हैं और इसके द्वारा मनुष्यको तत्काल राहत मिलती है। इस प्रक्रियासे कई कठिन रोगों पर अंकुश लगानेमें सहायता मिली है।
✓ वैज्ञानिक पद्धति पर चलते हुए इस चिकित्सा पद्धति में विभिन्न परीक्षणों का विशेष महत्त्व है। यदि परीक्षणों में रोगके लक्षण नहीं आते तो डॉक्टर यह मानकर चलता है कि रोगीको कोई रोग नहीं है, परंतु वास्तविकता यह नहीं होती। परीक्षणों में कहीं-न-कहीं कुछ कमियाँ रह ही जाती हैं, जिनके लिये वे और परीक्षण करना चाहते हैं। नये-नये यन्त्र निकाले जा रहे हैं, नयी-नयी तकनीक विकसित की जा रही है, जिससे परीक्षण पूर्ण हो सके, परंतु यह कितना सफल हुआ है, यह तो भविष्य ही बता पायेगा।
एलोपैथी चिकित्सा के नुकसान : Allopathic Treatment Ke Nuksan in Hindi
✗ एलोपैथीसे लाभ तो जो हैं, वे प्रत्यक्ष ही हैं, पर इस पद्धतिमें जो सबसे बड़ा दोष है, वह है दवाइयोंका प्रतिकूल प्रभाव (साइड इफ़ेक्ट)। एक तो दवाइयाँ रोग को दबा देती हैं, इससे रोग निर्मूल नहीं हो पाता, साथ ही वह किसी अन्य रोग को जन्म भी दे देता है। यह इस पैथीके मौलिक सिद्धान्त की ही न्यूनता है।
✗ दूसरी बात है अधिकतर रोग डॉक्टरों के अनुसार असाध्य भी हैं। जैसे हृदयरोग, कैंसर, एड्स, दमा, मधुमेह आदि। यहाँतक कि साधारण से लगनेवाले रोग जुकाम का भी एलोपैथी में कोई उपचार नहीं। पेटसे सम्बन्धित जितने भी रोग हैं, वे तो अधिक डॉक्टरों के समझ में कम ही आते हैं। उदररोगोंका परीक्षण भी कठिन होता है तथा उसके सकारात्मक परिणाम भी नहीं मिल पाते। उदररोगोंका जितना सटीक एवं सफल उपचार आयुर्वेदमें है, उतना और दूसरी चिकित्सापद्धति में देखने में नहीं आता। अधिकतर रोग उदर से प्रारम्भ होते हैं, अतः यदि वहाँ पर अंकुश लगाया जा सके तो कई रोगोंका निदान स्वत: हो सकता है। मनुष्य अधिकतर स्वस्थ और नीरोग रह सकता है।
✗ डॉक्टरों के पास एक ही अस्त्र है कि वे ‘एन्टीबाईटिक’ दवाई देते हैं, जो लाभ कम और हानि अधिक करती है। इन दवाइयोंका उदरपर सीधा दुष्प्रभाव पड़ता है और व्यक्तिकी पाचनक्रिया उलट-पलट हो जाती है। यदि वह उस दवाईको शीघ्र ही बंद न कर दे तो दूसरी व्याधियाँ उग्र रूप ले लेती हैं। इस चिकित्सा-पद्धतिमें औषधिसे अधिक शल्यचिकित्सा सफल हो पायी है। यहाँतक कि जिन कई रोगोंका आयुर्वेद अथवा यूनानी या होम्योपैथिक चिकित्सामें औषधियोंसे उपचार हो जाता है, वहाँ भी एलोपैथी शल्यचिकित्साका सहारा लेती है। दूसरे शब्दों में यह पद्धति शल्य चिकित्सा पर अधिक आधारित होती जा रही है। इससे यह चिकित्स अन्य चिकित्सा-पद्धतियों से महँगी भी होती जा रही है और साधारण व्यक्तिको पहुँचसे बाहर होती जा रही है।
✗ एलोपैथीमें यह भी देखने में आया है कि कई ऐसे रोग हैं, जिनका कोई कारण डॉक्टरों की समझमें नहीं आता। वे उसका नाम ‘एलर्जी’ दे देते हैं, इसका उनके पास कोई उपचार नहीं है। डॉक्टर लोग इस ‘एलर्जी’ के उपचार के विषय में सतत प्रयत्नशील हैं, परंतु अभीतक उन्हें विशेष सफलता नहीं मिल पायी है। इस कथित रोगके विशेषज्ञ भी हो गये हैं, परंतु परिणाम कोई विशेष नहीं मिल पाया है।
आयुर्वेदिक और एलोपैथिक में कौन है ज्यादा असरदार ? :
यह कहा जा सकता है कि एलोपैथिक चिकित्सा से लाभ सीमित हैं, परंतु इससे हानियाँ अधिक हैं। इसलिये आज संसार के जिन देशों में केवल इसी चिकित्सा पद्धति का अनुसरण हो रहा है, वे भी दूसरी चिकित्सा पद्धतियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यूरोप के कुछ देश होम्योपैथिक अथवा प्राकृतिक चिकित्सा की ओर आकर्षितहो रहे हैं। जब कि अमरीका के लोग अब आयुर्वेद की ओर विशेष आकर्षित हो रहे हैं। वहाँ उस विषय में अनुसंधान भी तेजी से किये जा रहे हैं, इसके उदाहरण हैं कि कुछ आयुर्वेदिक औषधियाँ अमरीका से भारत आ रही हैं और वे सफलता पूर्वक प्रयोग में लायी जा रही है |
यह तथ्य तो सही है कि एलोपैथिक चिकित्सा वैज्ञानिक कसौटी पर खरी है। इसलिये इसका प्रचार प्रसार भी अधिक हो सका, परंतु मेरे विचार से यह चिकित्सा पद्धति अपने-आपमें पूर्ण नहीं है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति अपने-आपमें पूर्ण है, परंतु इसका अधिक प्रचार नहीं हो पाया। इसमें हमारी मानसिकता विदेशी पद्धति श्रेष्ठ है—भी एक मुख्य हेतु है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में विश्वास बढ़ाना हम सबका कर्तव्य होना चाहिये; क्योंकि यह श्रेष्ठ, सफल एवं पूर्ण चिकित्सा पद्धति है।
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