मिट्टी चिकित्सा के फायदे व इसके दैनिक लाभप्रद उपयोग | Mud Therapy in Hindi

Last Updated on August 29, 2019 by admin

मिट्टी चिकित्सा के लाभ : Mud Therapy Benefits

मिट्टी दवा भी है – यह तो सर्वविदित ही है कि हमारा शरीर जिन 5 तत्त्वों से बना है, मिट्टी उनमें से एक है। परन्तु आधुनिकता की दौड़ ने हमें मिट्टी से भी दूर कर दिया है। हम मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचते हैं। हमारी अज्ञानता के कारण हमें मिट्टी से इन्फेक्शन का खतरा रहता है, जो सत्य नहीं। सभ्यता की अन्धी भाग-दौड़ ने हमें प्रकृति से कितना दूर कर दिया है!

☛ मिट्टी भी एक दवा है, शायद हममें से बहुत-से लोग यह नहीं जानते होंगे। प्राकृतिक चिकित्सालयों में मिट्टी का प्रयोग बहुतायत से होता आ रहा है, बल्कि मिट्टी चिकित्सा तो-प्राकृतिक चिकित्सा का एक महत्त्वपूर्ण अंग ही है।

☛ ‘रिटर्न टू नेचर’ नामक पुस्तक में इसके लेखक एडोल्फ जस्ट ने लिखा है कि चोट लगने पर, आग से जल जाने पर, बन्दूक की गोली लग जाने पर, शरीर में फोड़े-फुन्सियाँ होने पर, दाद-खाज जैसे त्वचा रोगों पर, रोग विषसंचित होकर किसी स्थान में सूजन आ जाने पर, बिच्छू, ततैया या साँप के काट लेने पर, हड्डी के टूट जाने पर, यहाँ तक कि कोढ़ का रोग हो जाने पर भी रोग के स्थान पर मिट्टी गीली करके लगानी चाहिए। वास्तव में मिट्टी में विजातीय विषों और गर्मी को खींच लेने की अद्भुत शक्ति होती है। प्रभावित स्थान पर इसको लगाते ही यह अपना काम तत्काल प्रारम्भ कर देती है। प्रायः मिट्टी लगाते ही रोगी को शान्ति मिलती है। विजातीय द्रव्यों के कारण शरीर में गर्मी की अधिकता होने पर मिट्टी जल्द ही गरम हो जाती है। ऐसी दशा में उस मिट्टी को हटाकर दूसरी मिट्टी लगाई जानी चाहिए।

मुँह के छाले, आँख दुखना तथा नाक से खून आने आदि लक्षणों में मिट्टी का प्रभाव अद्भुत है।

☛ स्थानीय रोगों के साथ-साथ अन्य रोगों जैसे-दस्त, बुखार, बवासीर, पेचिश, कब्ज, नींद न आना (अनिद्रा), सिरदर्द, उच्च रक्तचाप, तनाव आदि रोगों में भी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है।

☛ मिट्टी से स्नान करने पर त्वचा साबुन की अपेक्षा कहीं अधिक स्निग्ध और मुलायम हो जाती है। इस बात का अनुभव कभी भी किया जा सकता है।

☛ बालों के लिए मिट्टी से बढ़कर लाभदायक अन्य कोई भी चीज या औषधि नहीं है। सिर में रूसी होना, बाल झड़ना तथा बालों के अन्य रोगों के लिए मिट्टी ही एक प्रभावकारी औषधि है।

☛ चिकित्सा के लिए ली जाने वाली मिट्टी साफ-सुथरी एवं चिकनी होनी चाहिए। गन्दे स्थान की या खाद वाली मिट्टी प्रयोग में नहीं लानी चाहिए। साफ स्थान की 2-3 फुट गहरे स्थान की मिट्टी चिकित्सा कार्य के लिए उपयुक्त है। मिट्टी में से कंकड़-पत्थर, घास के तिनके आदि निकालकर उसे कूटकर-छानकर रख लेना चाहिए । प्रयोग करने के पहले मिट्टी को पानी में भिगो देना चाहिए।

☛ बुखार, दस्त, अल्सर या कब्ज आदि रोगों में मिट्टी की पट्टी बनाकर नाभि से नीचे रखते हैं। इसके लिए एक साफ मोटे कपड़े पर मिट्टी की आधा इंच मोटी तहें फैलाकर नाभि के नीचे इस प्रकार रखते हैं कि-त्वचा मिट्टी के सम्पर्क में रहे। 20 से 30 मिनट तक इस पट्टी को रखा जा सकता है।

☛ पेट पर मिट्टी का प्रयोग खाली पेट या भोजन के 4 घण्टे बाद ही करना चाहिए। आँखों पर मिट्टी का प्रयोग करते समय मिट्टी अधिक गीली नहीं करनी चाहिए, जिससे उसकी टिकिया-सी बनाकर आँखों पर रखी जा सके। बबासीर के मस्सों पर भी ऐसी ही मुलायम मिट्टी की टिकिया का प्रयोग किया जाना चाहिए।

☛ प्राकृतिक चिकित्सालयों में पूरे शरीर पर भी मिट्टी का लेप किया जाता है । विशेषकर यह लेप त्वचा के रोगों में बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। त्वचा के छिद्रों को खोलने के लिए यह एक अति उत्तम उपचार है।

तनाव, शरीर में गर्मी, नींद न आना आदि में पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप करते हैं। जख्मों पर भी मिट्टी का प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए घाव पर एक साफ मलमल का कपड़ा रखकर उस पर मिट्टी लगानी चाहिए।

☛ कील-मुंहासों के लिए चेहरे पर मिट्टी का लेप किया जाता है। फोड़े-फुन्सियों, गर्मियों में निकलने वाली घमौरियों तथा त्वचा रोगों पर आवश्यकतानुसार दिन में कई बार ‘मिट्टी का प्रयोग किया जा सकता है।

☛ मिट्टी का प्रयोग निरापद है, फिर भी किसी सुयोग्य प्राकृतिक चिकित्सक से इस सम्बन्ध में सलाह ली जानी चाहिए। इसके लिए अपने निकट के किसी भी प्राकृतिक चिकित्सालय से सम्पर्क किया जा सकता है।

☛ प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का सबसे अधिक उपयोग पट्टी या पुल्टिश के रूप में होता है। याद रखें-जल पट्टी के समान हाथ, पैर, माथा, कन्धा, पेट तथा आँख आदि पर इसका प्रयोग किया जा सकता है। चिकित्साकार्य के लिए जो मिट्टी उपयोग में लाई जाती है, उसमें मल-मूत्र अथवा अन्य किसी प्रकार की गन्दगी न हो। मिट्टी,बहुत बालू युक्त या लसलसी नहीं होनी चाहिए। तीन चौथाई बालू और एक चौथाई लसलसी हो ।

☛ एक बार संग्रह कर घर में रखने के लिए मिट्टी को अच्छी प्रकार धूप में सुखाकर रखना चाहिए। यदि सूखी मिट्टी में पानी डालने पर उसमें से सड़ी दुर्गन्ध निकले तो उस मिट्टी को कभी भी चिकित्सा कार्य के लिए उपयोग में नहीं लाना चाहिए।

☛ पट्टी देते समय मिट्टियों को अच्छी प्रकार से छानकर अविकल मक्खन के समान बनाकर प्रयोग में लाना चाहिए । मिट्टी को छानकर पहले एक भीगे कपड़े के ऊपर आधा इंच से कुछ अधिक ऊँचा करके रख सकते हैं। इसके पश्चात् धीरे-धीरे वह कपड़ा एक हाथ से उठाकर उन-उन मिट्टियों को इस प्रकार से रोगी के शरीर के निर्दिष्ट स्थान पर रखना चाहिए जिससे मिट्टी कपड़े से बाहर न जाए और शरीर के ऊपर मिट्टी रखने पर सब जगह मिट्टी आधा इंच ऊँची रहे।

☛ जल पट्टी के समान मिट्टी की पट्टी भी इच्छानुसार शीतल या आवृत्त पट्टी के रूप में प्रयोग की जा सकती है। माह शरीर के जिस हिस्से पर मिट्टी की पट्टी रखी जाती है उसके नीचे तथा आस-पास के भाग की भीतरी गरमी को वह खींच लेती है। इसलिए मिट्टी की पट्टी की ठण्डक धीरे-धीरे कम होती जाती है। लगभग पौन घण्टे में और कभी-कभी आधा घण्टे में ही ठण्डक बिल्कुल चली जाती है, मिट्टी का पानी सूख जाता है। इस प्रकार गर्मी के दूर होने से वहाँ उत्पन्न हुई शिथिलता जाती रहती है और अन्त में गतिशीलता आ जाती है। यही कारण है कि मिट्टी से तत्काल फायदा मालूम होता है।

☛ कब्ज दूर करने के लिए मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक उपचार का एक विशेष अंग बन गया है।

मिट्टी के दैनिक लाभप्रद उपयोग

1- मिट्टी से समस्त प्रकार की दुर्गन्ध सरलतापूर्वक दूर हो जाती है, इसलिए इससे साबुन का काम बेझिझक लिया जा सकता है।

2- बालू मिली हुई मिट्टी से दाँत अच्छी प्रकार साफ होते हैं। इसलिए मिट्टी सबसे अच्छा दन्त मंजन है।

3- मिट्टी से बने मकान, पक्की ईंटों के मकानों की अपेक्षा अधिक स्वास्थ्यवर्द्धक होते हैं और उनका सस्ते में निर्माण भी हो जाता है। मिट्टी के घर गर्मी के मौसम में ठण्डे रहते हैं तथा सर्दियों में गरम रहते हैं। जबकि पक्के मकान गर्मियों में तपकर गर्म रहते हैं, यहाँ तक कि बिजली के पंखों से भी राहत नहीं मिल पाती। इसी प्रकार यह सर्दियों में ठण्डे रहते हैं, अतः अँगीठी या हीटर के प्रयोग के बिना पक्के मकानों के अन्दर जाड़ों में रहना मुश्किल होता है।

4- सफाई के लिए मिट्टी से घरों को पोतना, हमारे देश की पुरानी प्रथा है।

5- यह बात भी शत-प्रतिशत सत्य है कि मिट्टी के पात्रों में किसी भी प्रकार का भोजन खराब नहीं होता। जबकि धातु के बने बर्तनों में देर तक कोई भी भोजन रखने अथवा पकाने से वह खराब हो जाता है। मिट्टी की हाँडियों में पकाया हुआ भोजन जितना अधिक स्वादिष्ट और मीठा होता है, धातुओं के बर्तनों में पकाया हुआ भोजन उसका दशांश भी स्वादिष्ट नहीं होता। इसके अतिरिक्त मिट्टी की हाँडी में पकाया हुआ भोजन स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लाभप्रद भी अधिक होता है।

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