Last Updated on October 7, 2023 by admin
अलसी क्या है ? linseed in hindi
अलसी की खेती मुख्यतः बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में होती है। इसका पौधा 2 से 4 फुट ऊंचा होता है। पत्ते रेखाकार 1 से 3 इंच लंबे होते हैं। फूल मंजरियों में हलके नीले रंग के होते हैं। फल कलश के समान आकार के होते हैं, जिसमें प्रायः 10 बीज होते हैं। बीज ललाई लिए चपटे, अंडाकार, चमकदार होते हैं। बीजों से अलसी का तेल बनता है। इसकी जड़ सफेद रंग की, पेंसिल जितनी मोटी और 4 से 10 इंच लंबी होती है।
अलसी का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- संस्कृत -अलसी।
- हिंदी- अलसी।
- मराठी -जवसु।
- गुजराती -अलशी, अलसी।
- बंगाली -मशिना।
- अंग्रेजी -लिनसीड (Linseed) ।
- लैटिन- लिनम् युसिटेटिसिमम् (Linum Usitatissimum) ।
अलसी के औषधीय गुण :
- आयुर्वेदिक मतानुसार अलसी मधुर, तिक्त, गुरु, स्निग्ध, गरम प्रकृति, भारी, पाक में तीखी, वात नाशक, कफ-पित्त वर्धक, नेत्र रोग, व्रण शोथ एवं वीर्य दोषों का नाश करती है।
- इसका तेल मधु, वात नाशक, कुछ कसैला, स्निग्ध, उष्ण, कफ़ और खांसी नाशक, पाक में चरपरा और नेत्रों के लिए हानिकारक है।
- यूनानी मतानुसार अलसी गर्म होती है। यह खांसी, गुर्दे की तकलीफों में, कामोद्दीपक, दुग्धवर्धक, मासिक धर्म नियामक, व्रण, दाद एवं रक्तस्राव में लाभकारी है।
- वैज्ञानिक मतानुसार अलसी के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ है कि इसके बीजों में 35-45 प्रतिशत तक स्थिर तेल होता है। इस तेल में लाइनोलिक एसिड युक्त ग्लिसरॉल का मिश्रण होता है।
- इसके अतिरिक्त आर्द्रता 6.6 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 28.8 प्रतिशत, प्रोटीन 25 प्रतिशत, खनिज 2.1 प्रतिशत, भस्म 3 से 5 प्रतिशत तक पाए जाते हैं। भस्म (राख) में कैल्शियम, सोडियम, पोटेशियम, मैग्नेशियम, लोहा, गंधक, फास्फोरस आदि तत्त्व होते हैं।
सेवन की मात्रा :
4 ग्राम
अलसी के लाभ और असरकारी नुस्खे :
1. वीर्य वर्द्धक : अलसी का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिसरी मिलाकर दो बार नियमित रूप से दूध के साथ कुछ हफ्ते तक पीने से बल-वीर्य बढ़ता है।
2. मुंह के छाले : अलसी का तेल छालों पर दिन में 2-3 बार लगाएं।
3. व्रण, फोड़ा : अलसी के बीजों के एक चौथाई बराबर सरसों के साथ पीसकर गरम कर लें। फिर लेप बनाकर लगाएं। दो-तीन बार के लेप से फोड़ा बैठ जाएगा या पक कर फूट जाएगा।
4. कब्ज़ : रात्रि में सोते समय एक से दो चम्मच अलसी के बीज ताजा पानी से निगल लें। आंतों की खुश्की दूर होकर मल साफ होगा। अलसी का तेल एक चम्मच की मात्रा में सोते समय पीने से यही लाभ मिलेगा।( और पढ़े – कब्ज का 41 रामबाण आयुर्वेदिक इलाज)
5. आग से जलने पर : चूने का निथरा पानी अलसी के तेल में फेंटकर जले हुए भाग पर लगाने से जलन और दर्द में आराम मिलता है और फफोले भी नहीं पड़ते। यदि घाव पूर्व में हो चुके हों, तो शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं।
6. पीठ, कमर का दर्द : सोंठ का चूर्ण अलसी के तेल में गर्म करके पीठ, कमर की मालिश करने से दर्द की शिकायत दूर हो जाती है।
7. कान दर्द : अलसी के बीजों को प्याज के रस में पकाकर छान लें। इसे दुखते कान में 2-3 बूंदें टपकाएं, दर्द दूर हो जाएगा।
8. स्तनों में दूध की वृद्धि : अलसी के बीज एक-एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ निगलने से प्रसूता के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
9. खांसी : सिंके हुए अलसी के बीजों का चूर्ण बना लें। इसमें एक चम्मच की मात्रा में शहद मिलाकर चटाने से खांसी दूर होती है। ( और पढ़े – कैसी भी खांसी और कफ हो दूर करेंगे यह 11 रामबाण घरेलु उपचार)
10. शारीरिक दुर्बलता : एक गिलास दूध के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी के बीज निगलते रहने से शारीरिक दुर्बलता दूर होकर पुष्टता आती है।
11. मूत्र में दाह, जलन : अलसी के बीजों का काढ़ा एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से मूत्र नली की जलन और मूत्र संबंधी कष्ट दूर होता है।
12. धातु पुष्टि हेतु : 50 ग्राम अलसी के बीजों में 10 ग्राम काली मिर्च मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण में से एक-एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें।
13. हृदय का बल : अलसी के फूलों को छाया में सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करने से हृदय को बल मिलता है।
अलसी के नुकसान :
- अत्यधिक मात्रा में सेवन किये जाने पर अलसी दृष्टि शक्ति, अंडकोष, पाचनतंत्र को नुकसान पहुंचाती है और शुक्रनाशक भी कही जाती है।
- बीजों में एक विषाक्त ग्लूकोसाइड लिनामेरिन होता है, जो अलसी के पत्ते, तने, फूल, जड़ में भी मौजूद रहता है। इसके दुष्परिणाम स्वरूप इसे खाने से पशुओं पर घातक प्रभाव पड़ता है।