Last Updated on October 1, 2020 by admin
आयुर्वेद की सुप्रसिद्ध अमृततुल्य औषधि अमृता वनस्पति सारे भारतवर्ष में पैदा होती है। हिन्दी में इसे गुडूची, गुड़वेल अथवा गिलोय कहते हैं। गुडूची दूसरे वृक्षों के सहारे से चढ़ती है और इसकी लता बड़ी तथा बहुवर्षायु होती है। जो गिलोय नीम के ऊपर चढ़ती है, वह नीम गिलोय कहलाती है और औषधि प्रयोग में सबसे उत्तम मानी जाती है।
इसके पत्ते हृदयाकृति पान के समान और लम्बे डंठल के होते हैं। फूल बारीक, पीले रंग के झुमकों में लगते हैं। फल लाल रंग के होते हैं और यह भी झुमको में ही लगते हैं। इस लता का तना अंगूठे के बराबर मोटा होता है। शुरू-शुरू में यह हरे रंग का होता है, मगर पकने पर धूसर रंग का हो जाता है। इस लता का तना ही औषधि प्रयोग के काम में आता है। इस सारी वनस्पति का स्वाद कड़वा होता है। बहुवर्षायु तथा अमृततुल्य गुणकारी रसायन होने से ही इसका नाम अमृता रखा गया है।
अमृता अर्थात क्या ? (Amrita in Hindi)
अमृता की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है कि जब श्री रामचन्द्रजी ने गर्वीले देवताओं के शत्रु रावण को मारा था, तो उस युद्ध में कुछ वानर भी राक्षसों के द्वारा मारे गए थे। तब इस पर हजार नेत्रों वाले देवताओं के राजा इन्द्र ने श्री रामचन्द्रजी पर अत्यन्त प्रसन्न होकर इस युद्ध में जो कोई भी वानर राक्षसों के द्वारा मारा गया था, उसको अमृत की वर्षा से सींचकर जीवित किया। वानरों के शरीर को अमृत से सींचते हुए पृथ्वी पर जहां जहां अमृत की बूंदे गिरी, वहां वहां पर गिलोय की उत्पत्ति हुई।
अमृता (गुडूची) तिक्त कषाय रस वाली एवम् मधुर विपाकी रसायन, संग्राही उष्ण वीर्य त्रिदोषशामक, आमपाचक एवं कृमिघ्न है। गुडूची को काटने पर अन्दर का भाग चक्राकार दिखाई देता है। गुडूची काण्ड में गिलोइन, ग्लूकोसाइड, गिलोयनिन, गिलोस्टेराल तथा वर्वेरिन नामक तत्व पाए जाते हैं। ग्रीष्मकाल में इस लता को एकत्रित करने से यह ज्यादा गुणकारक होती है।
अमृता के औषधीय गुण (Amrita ke Gun in Hindi)
- गिलोय घृत के साथ वात को, शक्कर के साथ पित्त को, शहद के साथ कफ को और सौंठ के साथ आमवात को दूर करती है।
- शरीर में उत्पन्न सभी रोग वात, पित्त तथा कफ दोषों के कारण होतें है। अमृता का शामक गुण होने के कारण वह प्रत्येक कुपित हुए दोष को सम अवस्था में ला देती है।
- अमृता जिस दोष के कारण व्याधि उत्पन्न होती है, उसे वह शान्त कर देता है और जिसकी कमी हो जाती है, उसको बढ़ाकर सम अवस्था में ले आता है। इस प्रकार घटे-बढ़े दोषों को समान स्थिति में लाकर शरीर को निरोग बनाने का गुण दूसरी किसी भी वनस्पति में नहीं है।
- अमृता ही एक ऐसी वनस्पति है, जो हर प्रकृति के मनुष्य को प्रत्येक रोग में दी जा सकती है।
- अमृता (गिलोय) की सूखी बेल की अपेक्षा ताजा बेल ज्यादा गुणकारक होती है।
- अमृता तिक्त कषाय, उष्णवीर्य, कटु, विपाकी, रसायन, बलकारक, अग्निप्रदीपक, हलकी, हृदय को हितकारी, आयुवर्धक, प्रमेह, ज्वर, दाह, तृष्णा, रक्तदोष, पाण्डुरोग, कामला, श्वास, कास, कृमि, अर्श, वातरक्त, विसर्प और मेद को हरने वाली है।
अमृता के फायदे और उपयोग (Amrita ke Fayde aur Upyog in Hindi)
1). उदर विकारों में लाभप्रद – जो व्यक्ति पेट के रोगों से ग्रसित हों, जिनकी प्लीहा और यकृत बिगड़ रहे हों, जिनको भूख न लगती हो, शरीर पीला पड़ गया हो, वजन कम हो गया हो और जो बड़ी-बड़ी औषधियों से निराश हो गए हों, उन्हें नीम पर चढ़ी हुई ताजा अमृता 18 ग्राम, अजमोद 2 ग्राम, पिप्पली 2 दाने, 7 नीमपत्र इन सबको कूटकर पावभर पानी में भिगोकर, हाथ से मसलकर, छानकर सुबह 15 से 30 दिनों तक पीने से पेट के समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं। अन्तड़ियों की पीड़ा में, जबकि अन्न बिल्कुल भी हजम नहीं होता है, तब यह औषधि चामत्कारिक लाभ दिखलाती है। अग्निमांद्य और अपचन रोग को यह जड़ से खत्म कर देती है। गिलोय सत्व जीर्णातिसार, रक्तातिसार और जीर्ण संग्रहणी को भी समूल नष्ट कर देता है।
2). पीलिया – ताजा अमृता (गिलोय) का स्वरस शहद के साथ प्रातःकाल लेने से बहुत जल्दी पीलिया खत्म हो जाता है। गिलोयपत्र का स्वरस तक्र में मिलाकर पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
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3). सर्पदंश – गिलोय कन्द (वह जड़ जो गूदेदार और बिना रेशे की हो) को 1 या 2 ग्राम की मात्रा में पानी में घोलकर आधा – आधा घन्टा की अवधि में पिलाने तथा कंद का स्वरस सर्पदंश के स्थान पर लगाने से तथा आंखों में डालने से बार-बार वमन होकर सर्पविष निकल जाता है।
4). पैतिक ज्वर – पैत्तिक ज्वर में नीम गिलोय (अमृता) का सत्व शहद के साथ दिया जाता है। जीर्णज्वर, श्वास जीर्णज्वर और श्वास – कास में इसका स्वरस या क्वाथ पीपल और शहद के साथ दिया जाता है।
5). रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर – ऐसे व्यक्ति, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई हो और जो हर समय किसी न किसी रोग से ग्रसित रहते हों तथा किसी भी रोग के पश्चात आई हुई कमजोरी को दूर करने के लिए सितोपलादि चूर्ण 2 ग्राम, प्रवालपिष्टि 2 रत्ती (1 रत्ती = 0.1215 ग्राम) तथा गिलोय सत्व 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटने से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है तथा जीवन विनिमय क्रिया सुधरकर सबल हो जाती है। इस औषधि के 1-2 मास के सेवन से ही मनुष्य निरोग होकर दीर्घायु वाला तथा क्रियाशील हो जाता है।
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6). मूत्रकृच्छ्र – मंजिष्ठादि क्वाथ के साथ अमृता के स्वरस या क्वाथ का सेवन करने से पुराना गठिया और मूत्रकृच्छ्र खत्म हो जाता है।
7). फोड़े-फुन्सियां – नीमपत्र के साथ अमृता का कषाय या क्वाथ बनाकर पीने से गर्मियों में होने वाले फोड़े-फुन्सियां ठीक हो जाते हैं।
8). पागलपन – ब्राह्मी के साथ अमृता का क्वाथ या कषाय बनाकर पीने से दिल की धड़कन और पागलपन मिटता है।
9). परिवर्तित ज्वर – अमृता कन्द का क्वाथ, सन्तत ज्वर, सततक ज्वर, परिवर्तित ज्वर को समूल खत्म कर देता है।
10). श्वेत प्रदर – शतावरी के साथ अमृता का क्वाथ बनाकर पीने से श्वेत प्रदर बन्द हो जाता है।
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11). बधिरता – गिलोय को घिसकर पानी में गुनगुना कर कान में टपकाने से कान का मैल निकल जाता है, जिससे बधिरता में लाभ होता है।
12). प्लीहावृद्धि – अमृता स्वरस में पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से प्लीहावृद्धि में लाभ होता है, भूख और रुचि बढ़ती है तथा श्वास कास में फायदा होता है।
13). हिचकी – अमृता और सौंठ के चूर्ण को मिलाकर सूंघने से हिचकी बन्द हो जाती है।
14). पैरों की जलन – गिलोय और एरण्ड बीजों को दही में मिलाकर पैर के तलवों पर लगाने से पैरों की जलन खत्म हो जाती है।
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15). वातरक्त – अमृता और एरण्ड बीजों को दही में मिलाकर नियमित रूप से सेवन करने पर वातरक्त खत्म हो जाता है। 3 या 5 छोटी हरड़ के चूर्ण को गुड़ में गोली बनाकर खाने और ऊपर से गिलोय क्वाथ पीने से बढ़ा हुआ वातरक्त भी शान्त हो जाता है तथा विबन्ध भी दूर हो जाता है।
अमृता के कुछ अन्य लाभ निम्नलिखित हैं –
- गुड़ के साथ गिलोय का सेवन करने से विबन्ध का नाश होता है।
- अमृता में व्याधि प्रतिकारक गुण प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- जीर्ण पूति केन्द्रजनित विकार, जीर्ण विषम ज्वर तथा यकृत की हीनकर्मता में कुछ काल तक अमृता का प्रयोग करते रहने से आशातीत लाभ मिलता है।
- जीर्ण ज्वर के लिए अमृता के स्वरस या क्वाथ में पिप्पली और मधु मिलाकर दें।
- प्रमेह के लिए अमृता, हरिद्रा एवं आंवला इनका क्वाथ विशेष रूप से उपयोगी है।
- अमृता, हरिद्रा, नीम, आंवला, खदिर और गुग्गुल का प्रयोग समस्त त्वक रोगों को दूर कर देता है।
- अमृता का क्वाथ उत्तम स्तन्यशोधक है।
- ज्वर एवं अन्य बीमारियों के बाद जो दुर्बलता आती है, उसमें गिलोय से बहुत लाभ होता है।
- अमृता का सेवन करने से पित्त अच्छी तरह से बहने लगता है, और यकृत की पित्तवाहिनियों और आमाशय के अन्दर की श्लेष्म त्वचा का अभिष्यन्द कम होता है, जिससे अपचन, आनाह, आध्मान और कामला में बहुत लाभ होता है।
- अमृता से पाचन नलिका की अम्लता भी कम होती है, जिससे अम्लपित्त, अन्नद्रवशूल, पाण्डु और रक्तपित्त में लाभ होता है।
- सर्वप्रमेह में अमृता के 5 ग्राम स्वरस में पाषाणभेद चूर्ण 1से 2 ग्राम मिलाकर देते हैं।
- अमृता त्वचा रोगों में प्रधान औषधि है। इससे त्वचा कण्डू (खुजली) और दाह (जलन) कम होता हैं।
गिलोय सत्व कैसे बनाएं ?
गिलोय सत्व बनाने की विधि –
गिलोय सत्व के लिए नीम पर चढ़ी हुई ताजी रसदार और चमकदार गिलोय को लेकर उसको 1-1 या 2-2 इंच के यवकूट टुकड़े कर किसी बर्तन में पानी के अन्दर गला देना चाहिए। जब अच्छी तरह से यह टुकड़े गल जाएं, तो उनको हाथों से अच्छी प्रकार से मसलकर उच्छिष्ट द्रव्य को बाहर फेंक दें। उसके बाद उस पानी को कपड़छान कर 3-4 घंटे तक पड़ा रहने दें, जिससे गिलोय का सत्व उस बर्तन की पैन्दी में जम जाएगा।
उसके बाद धीरे से उस पानी को दूसरे बर्तन में निकाल लेना चाहिए और नीचे सफेद रंग का जो सत्व जमा होता है, उसको निकालकर धूप में सुखा लें। यही गिलोय सत्व है। सत्व निकालते समय उसके ऊपर के पानी को आग पर चढ़ाकर तब तक क्वथित करें, जब तक वह रबड़ी सरीखा न हो जाए। फिर उतारकर या तो उसकी बटियां बना लें या अच्छी प्रकार से सुखाकर चूर्ण बना लें। यही गिलोय घनसत्व है। गिलोय घनसत्व भी अत्यन्त प्रभावशाली औषधि है और जहां गिलोय सत्व और गिलोय को लेने का विधान है, वहां उसके बदले गिलोय घनसत्व भी लिया जा सकता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
Best information पढ़ के अच्छा लगा