Last Updated on February 22, 2024 by admin
1). ब्राह्मी : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
- ब्राह्मी – मलशोधक, बुद्धिवर्धक, पित्तनाशक, विस्मृतिहर, तिक्त, रूक्ष तथा गुणयुक्त होती है।
- यह त्रिदोषनाशक, आवाज को मधुर बनानेवाली, स्मरणवर्धक,बलप्रदायक और आयुवर्धक है।
- ब्राह्मी का प्रभाव मस्तिष्क पर कार्यकारी और निद्राजनक है। यह उन्माद, मिर्गी, तुतलाहट, स्मरणशक्ति में विशेष लाभ करती है।
- ब्राह्मी आयु-वृद्धि करने की शक्ति रखती है। इसके सेवन से जीवनीशक्ति बढ़ती है।
- 3 ग्राम ब्राह्मी, 3 ग्राम शंखपुष्पी, 6 ग्राम बादामगिरी, 6 ग्राम छोटी इलायची के बीज, सभी को साथ में पीसकर छान लें। फिर उसमें मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाएँ। यह उन्माद में फायदेमंद है, इससे भूलने की आदत भी दूर हो जाती है तथा आवाज मधुर होती है।
- 2 चम्मच ब्राह्मी चूर्ण + शहद + मिश्री को एक साथ मिलाकर, सुबह-शाम लेने से मिर्गी में लाभ होता है।
- 50 ग्राम सूखी ब्राह्मी + 25 ग्राम शंखपुष्पी + 25 ग्राम आँवला, 10 ग्राम काली मिर्च, इन सबको मिलाकर महीन चूर्ण बना लें और उसमें 75 ग्राम शक्कर मिलाकर रख दें। इसे 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से, स्मरणशक्ति बढ़ती है तथा दिमाग तेज होता है।
- 3 ग्राम ब्राह्मी + 3 ग्राम शंखपुष्पी + 20 ग्राम मिश्री को लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से अकारण लगने वाले डर से छुटकारा मिलता है।
( और पढ़े – ब्राह्मी के चमत्कारिक औषधीय प्रयोग )
2). पिप्पली : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
- पिप्पली, गुणों से भरपूर औषधि है। यह एक रसायन भी है। सूखी पिप्पली अग्निदीपक होती है।
- पिप्पली के सेवन से वात विकार, कफ विकार, खाँस विकार तथा पेट के रोगों का नाश होता है।
- पिप्पली पुराने ज्वर को नष्ट करती है।
- पिप्पली कुष्ठ, प्रमेह, गुल्स, बवासीर, प्लीहा विकार, दर्द तथा आमवात को नष्ट करती है।
- यह सूजन को दूर करनेवाली, रक्तशोधक, बल को बढ़ानेवाली और मूत्रल है।
- यह पाचन संस्थान और श्वसन संस्थान पर अच्छा कार्य करती है।
- यह यकृत को उत्तेजित करके उसकी क्रिया को ठीक करती है।
- पिप्पली कफ और वायु की वृद्धि को कम करती है इसलिए दमा के रोग में फायदेमंद है। पुरानी खाँसी एवं ब्रोंकाइटिस में पिप्पली बहुत फायदेमंद है।
- गुड़ के साथ पिप्पली का प्रयोग करने से पुराना बुखार, मंदाग्नि, खाँसी, अजीर्ण,
- अरुचि, दमा, हृदय विकार, पांडुरोग तथा कृमि रोग दूर होते हैं।
- पिप्पली + शहद के योग से बुद्धि का विकास होता है, पौरुषशक्ति बढ़ती है तथा पाचक अग्नि बढ़ती है।
- छोटी पिप्पली को थोड़े घी में डालकर हल्का सा भून लें, फिर इसमें एक चौथाई सेंधा नमक मिला लें। इसे एक चौथाई ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से हर प्रकार की खाँसी और दमा रोग में लाभ होता है।
- पिप्पली मूल का चूर्ण बना लें। इसे 1 से 3 ग्राम की मात्रा में | गर्म पानी या गर्म दूध के साथ पीने से, शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो तो भी अच्छी नींद आती है।
- पिप्पली, जीरा और सेंधा नमक मिलाकर मसूड़ों पर मलने से सूजन और दर्द कम होता है।
( और पढ़े – पिप्पली के 8 बेशकीमती फायदे )
3). गिलोय (गुडूची) : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
गिलोय में रोग प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। गिलोय कटु, कषाय रसयुक्त, उष्णवीर्य, बलदायक, जठराग्नि तेज करनेवाली, त्रिदोष का शमन करनेवाली, प्यास, जलन, प्रमेह, खाँसी, एनीमिया, कामला, वातरक्त (गाउट), कुष्ठ, ज्वर आदि व्याधियों को नष्ट करनेवाली औषधि है।
- गिलोय चूर्ण, आधा चम्मच पानी के साथ, काढ़ा या ताजा रस आधा कप सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इससे त्रिदोष का संतुलन होता है।
- कब्ज होना, ऐसिडिटी व गैस का प्रकोप, शरीर में कमजोरी आना, थोड़े से परिश्रम से थकावट होना, साँस फूलना इत्यादि में गिलोय के सेवन से राहत प्राप्त होती है। आहार का सेवन ठीक से होने लगता है, कमजोरी व निस्तेजता दूर होती है तथा रक्त शुद्ध होता है।
- इसके नियमित सेवन से पित्त स्राव नियमित होने लगता है तथा यकृत की पित्त वाहक नलिका में उत्पन्न भारीपन भी दूर होता है।
- इसका सेवन पाचन संस्था के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। इससे पाचन संस्था सदा स्वस्थ बनी रहती है।
- गिलोय यह औषधि त्वचा रोगों के लिए मुख्य मानी जाती है। इसके सेवन से जलन, खुजली, दाद, त्वचा पर फोड़े-फुन्सी और वातरक्त रोग के कारण रक्तस्राव आदि रोग दूर होते हैं।
- जीर्ण आमवात में ताजी गिलोय का कल्क 100 ग्राम तथा अनंत मूल का चूर्ण 100 ग्राम, आधा गिलास उबले पानी में डालकर 2 घंटे बंद करके रखे दें। दो घंटे बाद उसे छानकर पीएँ। इससे विषम व जीर्ण ज्वर में लाभ होता है।
- हायपर ऐसिडिटी और साँस के रोगों में गिलोय सत्व 1 ग्राम + कर्पादिक भस्म 1 ग्राम + पीसी काली मिर्च 1/2 चम्मच + घी 2 चम्मच, इन सबको मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को सुबह-दोपहर-शाम चाट कर सेवन करें। इससे उपरोक्त रोगों में बहुत फायदा होता है।
- किसी भी प्रकार के ज्वर में, एक ग्राम गिलोय सत्व या चूर्ण, आधा चम्मच शहद के साथ, सुबह-शाम सेवन करने से लाभ होता है।
- गिलोय का ताजा रस 4 चम्मच + पाषाणभेद चूर्ण आधा चम्मच, फीके दूध के साथ सुबह-शाम लेने से मधुमेह में लाभ होता है।
- स्त्रियों के रक्त प्रदर रोग में गिलोय का रस 4 चम्मच और शहद, दोनों को मिलाकर सुबह-शाम लेने से लाभ होता है।
- वात प्रकोप के कारण गैस बढ़ना, पेट फूलना, सिरदर्द, जोड़ों में दर्द होना आदि व्याधियाँ होती हैं। ऐसे में गिलोय + एरंड की जड़ + सोंठ + देवदारू + रास्ना + हरड़, इनका चूर्ण 1-1 चम्मच, दो कप पानी में डालकर काढ़ा बना लें । काढ़े को इतना उबालें कि पानी आधा रह जाए। इसे सुबह-शाम पीने से वात प्रकोपित रोग में लाभ होता है।
- गिलोय का उपयोग किसी भी इंसान के द्वारा किया जा सकता है। इसका उपयोग किसी भी रोग की चिकित्सा के लिए किया जा सकता है । इसका उपयोग किसी भी आयुवाला इंसान कर सकता है, इसे किसी भी ऋतु में इस्तेमाल किया जा सकता है। केवल गिलोय का उपयोग बहुत कम किया जाता है, अधिकतर इसका उपयोग चूर्ण, रस सत्व, काढ़ा आदि के रूप में अन्य औषधियों के साथ, सहायक औषधि के रूप में ही किया जाता है।
( और पढ़े – स्वास्थ्य के लिए वरदान है गिलोय )
4). सनाय (सोनामुखी) : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
सनाय एक ऐसी वनस्पति है, जिसका उपयोग आयुर्वेदिक युनानी तथा एलोपैथिक दवाइयों के निर्माण में किया जाता है। यह विरेचक तथा कब्जनाशक गुणों की होती है। इसका सबसे अधिक उपयोग कब्ज को दूर करने के लिए किया जाता है। चर्मरोग, ज्वर, पेट के रोग, आमवात, वातरक्त आदि व्याधियों में इसका उपयोग पेट साफ करने हेतु, जुलाब के तौर पर दिया जाता है। औषधि निर्माण के लिए सनाय का उपयोग अति प्राचीन काल से चला आ रहा है।
इसे यूनानी हकीमों ने ज्यादा प्रचलित किया है। इसका उपयोग औषधि निर्माण के लिए किया जाता है। केवल मानवों की औषधियों के लिए ही नहीं बल्कि इसका उपयोग पशुओं की औषधियाँ बनाने के लिए भी किया जाता है।
- पित्त ज्वर में एवं कफ-वात ज्वर में इसका सेवन लाभप्रद होता है।
- यह यकृत को उत्तेजित करती है।
- यह कृमियों को मारकर बाहर निकालती है।
- सायटिका, पक्षाघात, वात व्याधि, वातरक्त तथा आमवात में इसकी पत्तियों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
- सनाय का उपयोग यदि दूसरी औषधियों के साथ किया जाए तो इससे मंदाग्नि, यकृत की अक्षमता, अजीर्ण, कामला, पांडुरोग में फायदा होता है।
- सनाय की पत्तियाँ 8 ग्राम तथा द्राक्ष 8 ग्राम, दोनों का काढ़ा बनाकर पीने से मलावरोध शीघ्र दूर होता है।
- चर्म रोगों में सनाय की पत्तियों को सिरके में पीसकर लेप करने से त्वचा रोग दूर होता है।
- भूना हुआ कृष्ण बीज 8 भाग, सनाय की पत्तियाँ 4 भाग, सोंठ 2 भाग, सौंफ 1 भाग, इन सभी का महीन चूर्ण बना लें। इससे पेट साफ होता है और पाचन क्रिया में सुधार होता है।
- सनाय, सौंफ, द्राक्षा सभी 5-5 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीएँ । यह काढ़ा मलावरोध को दूर करता है और साथ में अर्श रोग (बवासीर) का विनाश भी करता है।
- युनानी चिकित्सा में इसका उपयोग आर्थराइटिस, सायटिका, ब्रोंकाइटिस, स्केबीज, खुजली, गठिया आदि रोगों में किया जाता है।
5). शंखपुष्पी : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
मस्तिष्क के लिए गुणकारी शंखपुष्पी एक बहुत गुणकारी व हितकारी वनस्पति है। यह विशेषतः मनुष्य के मस्तिष्क में ताकत और याददाश्त बढ़ाने के लिए उपयोगी है। यह मेधाशक्ति के लिए विशेष रूप से गुणकारी है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में शंखपुष्पी की बहुत प्रशंसा की गई है। यह वनस्पति स्मरणशक्ति बढ़ानेवाली, कांतिदायक, तेज बढ़ानेवाली और मस्तिष्क को बल देनेवाली होती है। यह मस्तिष्क को शांति व शक्ति प्रदान करती है। विद्यार्थियों के लिए यह एक ऐसा टॉनिक है, जो सीधे स्नायविक संस्थान को प्रभावित करता है। यह एक बलबुद्धिवर्धक औषधि है।
शंखपुष्पी दस्तावर, वीर्यवर्धक, मानसिक दुर्बलता को नष्ट करनेवाली, रसायन, स्मरणशक्ति, कांति, बल और । अग्नि बढ़ानेवाली एवं दोष, अपस्मार, कुष्ठ, कृमि तथा विष को नष्ट करनेवाली औषधि है।
- विद्यार्थी इसका नित्य सेवन करें। इसका महीन पीसा हुआ चूर्ण 1-1 चम्मच दूध में सुबह-शाम सेवन करने से स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है।
- शंखपुष्पी का चूर्ण 1 चम्मच और पीसी काली मिर्च आधा चम्मच सुबह-शाम लेने से शुक्रमेह रोग ठीक होता है।
- उच्च रक्तचाप के रोगी को इसका काढ़ा लेने से रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
- इसके तेल की मालिश से बच्चों के शरीर व स्वास्थ्य में विशेष लाभ मिलता है। यह तेल रक्तवर्धक, मांस को पुष्ट करनेवाला होता है । यह तेल ज्वर और दुर्बलता नष्ट करता है।
( और पढ़े – शंखपुष्पी के आयुर्वेदिक नुस्खे )
6) अडुसा : स्वास्थ्य लाभ और उपयोग
- अडुसा एक ग्रामीण वनौषधि है । गाँव के लोग इसका उपयोग खाँसी, अतिसार, वमन, ज्वर आदि रोगों में करते हैं। आयुर्वेद के चिकित्सक इसे अद्भुत गुणकारी औषधि मानते हैं।
- भारत में इसका उपयोग अत्यंत प्राचीन काल से होता चला आ रहा है। आयुर्वेद में इसे खाँसी, श्वास, क्षय, रक्तपित्त आदि रोगों के लिए अत्यंत गुणकारी माना गया है।
- अडुसा प्रभाव में वातवर्धक, स्वर के लिए लाभप्रद और कफ, पित्त, रक्तविकार, श्वास, कास, ज्वर, प्रमेह, कुष्ठ, क्षय और कफनाशक होता है।
- 100 ग्राम अडुसा के पत्ते और 250 ग्राम मिश्री का चूर्ण-चीनी मिट्टी के बर्तन में भरकर धूप में रखें। धूप में रखने से कुछ ही दिनों में गुलकंद बनकर तैयार हो जाता है जो कि खाँसी और श्वास रोग में लाभकारी होता है।
- अडुसा की छाल और पत्ते आमनाशक, दीपक और रेचक होते हैं । यह खाँसी, अजीर्ण, प्रसूति रोग, कब्ज तथा ज्वर के बाद आई हुई शारीरिक दुर्बलता में परम उपयोगी है।
- अडुलसा के जड़ की छाल ज्वरनाशक, कफनाशक तथा जीर्ण कफ विकृति से होनेवाली हृदय दुर्बलता में उपयोगी होती है।
- इसके पत्तों में एढाटोड़िक ऐसिड (एक प्रकार का तेल) राल, शर्करा तथा पीतरंजक तत्त्व पाए जाते हैं। यह श्वासनली शोथ ब्राँकाइटिस, खाँसी तथा श्वास रोगियों के लिए लाभदायक होता है।
- अडुसा के पत्तों का रस निकालकर, उसमें शहद मिलाकर पीने से पित्त और कफजनक खाँसी दूर होती है।
- अडुसा के पत्तों का रस निकालकर उसमें 2 रत्ती पिप्पली चूर्ण तथा मधु मिलाकर प्रतिदिन पीने से असाध्य खाँसी से भी मुक्ति मिल जाती है।
- अडुसा के पत्तों तथा फूलों के रस में मिश्री व शहद मिलाकर पीने से अम्लपित्त रोग दूर होता है।
- अडुसा के रस को शहद के साथ पीने से रक्तप्रदर से मुक्ति मिलती है।
- बच्चों की कुक्कुर खाँसी में अडुसा के पत्तों को जलाकर राख कर लें। इसे शहद में मिलाकर बच्चे को चटाएँ, इसे चटाने से कुक्कुर खाँसी में शीघ्र लाभ मिलता है। बड़ों को सूखी खाँसी आती हो तो अडुसा के पत्ते और काली मिर्च का क्वाथ बनाकर मधु के साथ पीने से सूखी खाँसी जड़ से चली जाती है।
- अडुसा एवं गुरुचि के क्वाथ से सिद्ध घृत में दूध मिलाकर पीने से जीर्ण ज्वर का शमन होता है।
( और पढ़े – अडुसा के इन 50 फायदों से अनजान होंगे आप )