Last Updated on March 5, 2023 by admin
बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) को एलोपैथी में फाइब्रॉइड कहते हैं। यह घातक नहीं होती है। हर चौथी-पाँचवीं महिला के बच्चेदानी में यह रसौली पाई जाती है यह आकार में छोटी भी हो सकती है और बड़ी भी और अनेक भी हो सकती हैं।
बच्चेदानी की रसौली 20 वर्ष की आयु के बाद कभी भी हो सकती है लेकिन अधिकतर 25 से 45 वर्ष की आयु में ही यह देखने को मिलती है। प्रायः इनसे महिलाओं को किसी भी प्रकार का कोई भी कष्ट नहीं होता इसलिए इस बारे में वे अनभिज्ञ होती हैं। प्रायः जब किसी दूसरे रोग से पीड़ित होने पर स्त्री, स्त्रीरोग विशेषज्ञ के पास जाँच करवाने जाती है तो इसका पता चलता है।
रसौली कैसे बनती है ? (Bacchedani me Ganth Banne ke Karan in Hindi)
बच्चेदानी की रसौली (गाँठ) का संबंध एस्ट्रोजन हार्मोन से होता है, क्योंकि ये रसौलियाँ इसी हार्मोन से अंकुरित होकर बढ़ती हैं। प्रजनन काल के दौरान शरीर से अतिरिक्त एस्ट्रोजन निकलता है इसलिए इसका आकार बढ़ता जाता है। चूँकि रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन की मात्रा घटने लगती है इसलिए रजोनिवृति के बाद रसौली सिकुड़कर छोटी हो जाती है।
यूँ तो 20 वर्ष से अधिक आयु की किसी भी महिला में यह रसौली हो सकती है लेकिन उन महिलाओं में यह अधिक पाई जाती है जो निःसंतान होती हैं या जिनके एक या दो बच्चे होते हैं।
बच्चेदानी की रसौली की पहचान (Bacchedani me Ganth ke Lakshan in Hindi)
बच्चेदानी की गाँठ के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ? –
- रसौली ग्रस्त महिलाओं को माहवारी के समय अधिक रक्तस्राव होता है। अधिक दिनों तक रक्तस्राव होता है और लंबे समय तक रक्तस्राव होने के कारण उसमें रक्त की कमी हो जाती है।
- पेट व कमर में दर्द रहता है।
- रसौली का आकार बड़ा हो तो पेट में भारीपन व दर्द होता है।
- कभी-कभी रसौली का दबाव मूत्राशय, बड़ी आँत और मलाशय पर पड़ता है। दबाव के कारण कब्ज़ की शिकायत हो सकती है। कभी-कभी मूत्र रुक जाता है।
- रसौली होने के बाद भी गर्भ ठहर सकता है एवं प्रसव भी सामान्य हो सकता है लेकिन कभी-कभी रसौली के कारण गर्भ धारणा कठिन होती है । गर्भपात की आशंका भी रहती है। यदि गर्भपात न हो तब भी समस्या होती है। ऐसी स्थिति में अधिकतर सामान्य प्रसव नहीं हो पाता।
( और पढ़े – गर्भाशय की गांठ (रसौली) का आयुर्वेदिक इलाज )
रसौली से छुटकारा पाने के उपाय (Bacchedani me Ganth ka Ilaj in Hindi)
बच्चेदानी की रसौली का इलाज बताएं ? –
चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यदि रसौली होने के बावजूद महिला को कोई समस्या न हो तो उससे छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। यदि इससे तकलीफ हो तो अवश्य चिकित्सक से परामर्श कर जाँच करवा लेनी चाहिए और यदि चिकित्सक सलाह दें तो शल्यक्रिया करवानी चाहिए। शल्यक्रिया दो प्रकार से होती है- मायोमेक्ट्रमी और हिस्ट्रेक्टमी।
मायोमेक्ट्रमी में केवल रसौली निकाली जाती है और हिस्ट्रेक्टमी में पूरा बच्चेदानी निकाल दिया जाता है।
शल्यक्रिया किस प्रकार की होगी इसका निर्णय शल्य चिकित्सक परिस्थिति देखकर करता है। यदि रसौली की संख्या एक या दो है तो मायोमेक्ट्रमी द्वारा निकाली जा सकती है लेकिन यदि रसौली अधिक संख्या में हो तो मायोमेक्ट्रमी का उपयोग नहीं होता।
इसके अलावा मायोमेक्ट्रमी द्वारा रसौली के निकाल देने पर पुनः रसौली बनने का भय होता है।
वे महिलाएँ जो संतान प्राप्त कर चुकी हों, रजोनिवृति के दौर से गुजर रही हों और रसौली से परेशान हों, उनका बच्चेदानी हिस्ट्रेक्टमी द्वारा निकाल दिया जाता है।
आज-कल शल्यक्रिया के लिए लेप्रोस्कोप विधि अधिक सुरक्षित व प्रचलन में है। इसमें न तो अधिक रक्तस्राव का डर होता है, न ही अधिक चीरफाड़ होती है। इस विधि को लेप्रोस्कोपिक हिस्ट्रेक्टमी कहा जाता है। इस विधि द्वारा बच्चेदानी को सफलतापूर्वक आसानी से निकाला जाता है परंतु इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सेवा ही लेनी चाहिए क्योंकि थोड़ी-सी लापरवाही भी जटिलताएँ पैदा करती है जो जीवन के लिए खतरा बन सकती है।
बच्चेदानी निकालने के बाद जीवन पर प्रभाव :
बच्चेदानी निकालने से क्या परेशानी होती है ? –
बच्चेदानी निकाल देने के बाद केवल संतान प्राप्ति नहीं होती, बाकी जीवन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं होता है । न तो शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है और न ही वैवाहिक जीवन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव पड़ता है। आप सामान्य रूप से जी सकते हैं। कुछ भ्रामक बातें फैल चुकी हैं कि इससे हड्डियाँ वगैरह कमजोर हो जाती हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हड्डियाँ तो उम्र के बढ़ने पर थोड़ी कमज़ोर होने लगती हैं इसके लिए आप डॉक्टर से सलाह लेकर गोलियाँ ले सकती हैं। नियमित व्यायाम द्वारा वज़न बढ़ने पर रोक लगाना आवश्यक है।