बला (खरैटी) के फायदे, गुण, उपयोग और नुकसान -Bala ke Fayde Hindi me

Last Updated on October 7, 2022 by admin

बला (खरैटी) क्या है ? : Bala in Hindi

बला चार प्रकार की होती है इसलिए इसे ‘बलाचतुष्टय’ कहते हैं। इस की और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला और महाबला- ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। बलाद्वय में बला और अतिबला तथा इनमें नागबला मिलाने पर बलात्रय होता है। भाव प्रकाश में महाबला मिला कर बलाचतुष्टय किया गया। इसमें राजबला मिला कर बलापंचक कहा जाता है। मुख्यतः इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है ।

यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फ़ीट ऊंचा क्षुप होता है जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के आयताकार, लट्वाकार, गोल दन्तुर, रोमश, अकेले, 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लम्बे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफ़ेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं उन्हें ‘बीजबन्द’ कहते हैं। आवश्यकता के अनुसार चिकित्सा में, इसके पत्ते, बीज, जड़, छाल और पंचांग का भी उपयोग किया जाता है लेकिन ज्यादातर जड़ और बीज का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।

यह देश के सभी प्रान्तों में वर्ष भर तक पाया जाता है पर वर्षां ऋतु में यह खेतों और खेतों की मेड़ों पर अधिकतर होता है। इसकी जड़ व डण्डी बहत मज़बूत होती है जो आसानी से नहीं टूटती। इसकी चारों जातियों में गुणों की दृष्टि से विशेष अन्तर नहीं होता इसलिए किसी भी जाति की बला का उपयोग किया जा सकता है।

आयुर्वेद ने इनके विभिन्न नाम बताये हैं जो इस प्रकार हैं- बला, को खरैटी, वाट्यालिका, वाट्या, महाबला को पीत पुष्पा और सहदेवी या सहदेना, अतिबला को कंघी, ऋष्य प्रोक्ता और कंकतिका, नाग बला को गांगेरुकी, गुलसकरी और गंगेरन आदि नाम दिये गये हैं। ये सभी किस्में, गुण और प्रभाव की दृष्टि से लगभग एक समान ही हैं।

बला का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Bala in Different Languages

Bala in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – बला
  • हिन्दी (Hindi) – खरैटी, वरियार, वरियारा, खरैटी
  • मराठी (Marathi) – चिकणा
  • गुजराती (Gujarati) – खरेटी, बलदाना
  • बंगला (Bengali) – बेडेला
  • तेलगु (Telugu) – चिरिबेण्डा, मुत्तबु, अन्तिस
  • कन्नड़ (Kannada) – किसंगी, हेटुतिगिडा
  • तामिल (Tamil) – पनियार तुट्टी
  • मलयालम (Malayalam)– वेल्लुरुम
  • इंगलिश (English) – कण्ट्री मेलो (Country Mallow)
  • लैटिन (Latin) – सिडा कार्डिफोलिया (Sida Cordifolia)

बला के औषधीय गुण : Medicinal Properties of Bala in Hindi

चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रस युक्त, बलकारक, कान्तिवर्द्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।

बला के उपयोग : Bala Churna Uses in Hindi

आयुर्वेदिक शास्त्रों ने बला के जिन गुणों का उल्लेख किया है उनके अनुसार बला का उपयोग विविध प्रकार के हेतुओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है।

  • बला शारीरिक दुर्बलता को दूर कर पौरुष शक्ति को बढाती है ।
  • यह प्रमेह, शुक्रमेह और रक्तपित्त की लाभदायक औषधि है ।
  • बला प्रदर रोग , व्रण, मूत्रातिसार, सोज़ाक व उपदंश की गुणकारी औषधि है ।
  • यह हृदय-दौर्बल्य व कृशता (दुबलापन) दूर करने में लाभप्रद है ।
  • यह वात प्रकोप के कारण गृध्रसी, सिर दर्द, अर्दित, अर्धांग आदि वात विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।
  • यह बलदायक, रसायन, वृष्य (पौष्टिक), प्रजास्थापन, संग्राही, स्निग्ध और वात पित्त शामक होने से शरीर को पुष्ट बलवान बनाने वाली वीर्य की वृद्धि और पुष्टि करने वाली तथा स्वास्थ्य की रक्षा करने वाली है अतः स्वस्थ व्यक्ति के लिए भी उपयोगी है।

मात्रा और सेवन विधि :

इसकी जड़ के चूर्ण को आधा चम्मच (3-4 ग्राम) और काढ़े के लिए पंचांग को 10 ग्राम मात्रा में लिया जाता है। यहां इसके घरेलू इलाज सम्बन्धी कुछ गुणकारी प्रयोग प्रस्तुत किये जा रहे हैं।

रोग उपचार में बला के फायदे : Bala Churna Benefits in Hindi

1. शारीरिक दुर्बलता में बला का उपयोग फायदेमंद : शारीरिक, स्नायविक और यौनदुर्बलता दूर करने में बला रसायन का काम करती है अतः व्याधियों और वृद्धावस्था के लक्षणों को दूर रखने में सक्षम है। आधा चम्मच मात्रा में इसकी जड़ का महीन पिसा हुआ चूर्ण सुबह शाम मीठे कुन कुने दूध के साथ लेने और भोजन में दूध चावल की खीर शामिल कर खाने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, शरीर सुडौल बनता है, सातों धातुएं पुष्ट व बलवान होती हैं तथा बल, वीर्य तथा ओज की खूब वृद्धि होती है। ( और पढ़े – शरीर की कमजोरी दूर करने के चमत्कारी नुस्खे )

2. खूनी बवासीर में बला के प्रयोग से लाभ : बवासीर के रोगी को मल के साथ रक्त भी गिरे, इसे रक्तार्श यानी खूनी बवासीर कहते हैं। बवासीर रोग का मुख्य कारण खान-पान की बदपरहेज़ी के कारण क़ब्ज़ बना रहना होता है। बला के पंचांग को मोटा-मोटा कूट कर डिब्बे में भर कर रख लें। प्रतिदिन सुबह एक गिलास पानी में 2 चम्मच (लगभग 10 ग्राम) भर यह जौ कुट चूर्ण डाल कर उबालें। जब चौथाई भाग पानी बचे तब उतार कर छान लें। ठण्डा करके एक कप दूध मिला कर पी जाएं। इस उपाय से खून गिरना बन्द हो जाता है। ( और पढ़े – बवासीर के 52 घरेलू उपचार )

3. रक्त पित्त में मदद करता है बला का सेवन : ऊपर बताये गये ढंग से काढ़ा तैयार कर पीने से उर्ध्व रक्त पित्त और अधो रक्त पित्त में लाभ होने से मुंह से या नाक से खून गिरना (नकसीर फूटना), रक्तार्श, ज़रा सी चोट लगने पर अधिक रक्त बहना आदि व्याधियां दूर होती हैं । रक्त पित्त के रोगी के शरीर में कहीं से भी रक्त स्त्राव हो सकता है। शरीर के ऊपरी भाग में यानी नाक, मुंह कान आदि से रक्तस्त्राव होने को उर्ध्व रक्त पित्त और निचले भाग में रक्तस्राव होता हो तो उसे अधो रक्त पित्त रोग कहा जाता है।

4. स्वर भेद मिटाए बला का उपयोग : ठण्ड, गर्मी या वात प्रकोप के असर से, ज्यादा देर तक चिल्लाने या ज़ोर लगा कर गाने आदि कारणों से आवाज़ खराब हो जाती है, गला बैठ जाता है और कभी कभी लम्बे समय तक आवाज़ ठीक नहीं होती। बला की जड़ का महीन पिसा छना चूर्ण आधा चम्मच, थोड़े से शहद में मिला कर सुबह-शाम चाटने से कुछ दिनों में आवाज़ ठीक हो जाती है।

5. मदात्यय तृषा में बला का उपयोग लाभदायक : शराब का सेवन करने वालों को, खास कर अत्यधिक पीने वालों को तृषा (प्यास) और दाह (जलन) होने की शिकायत हो जाती है। बला की जड़ का काढ़ा पीने से तृषा और दाह का शमन हो जाता है।

6. मूत्रातिसार रोग में बला चूर्ण से फायदा : बार-बार पेशाब होने को मूत्रातिसार या बहुमूत्र रोग कहते हैं। खरेंटी के बीज और छाल समान मात्रा में ले कर कट पीस छान कर महीन चूर्ण कर लें। एक चम्मच चूर्ण घी शक्कर के साथ सुबह शाम लेने से वस्ति और मूत्रनलिका की उग्रता दूर होती है और मूत्रातिसार होना बन्द हो जाता है। ( और पढ़े – बार बार पेशाब आने के घरेलू इलाज  )

7. शुक्रमेह बंद करने में बला करता है मदद : मूत्र मार्ग से धातु स्त्राव होने को शुक्रमेह या जरयान रोग कहते हैं। खरेंटी (बला) की ताज़ी जड़ का छोटा टुकड़ा (लगभग 5-6 ग्राम) एक कप पानी के साथ कूटपीस और घोंट छान कर सुबह खाली पेट पीने से कुछ दिनों में शुक्रधातु गाढ़ी हो जाती है और शुक्रमेह होना बन्द हो जाता है।

8. श्वेत प्रदर में बला चूर्ण के प्रयोग से लाभ : शारीरिक निर्बलता के कारण महिला को प्रदर रोग हो तो बला के बीजों का बारीक पिसा छना चूर्ण 1-1 चम्मच सुबह शाम, शहद में मिला कर लें और ऊपर से मीठा कुनकुना दूध पी लें। इस प्रयोग से दुर्बलताजन्य प्रदर रोग दूर हो जाता है। ( और पढ़े – श्वेत प्रदर (लिकोरिया) के कारण और इलाज )

9. सगर्भा के शूल में आराम दिलाए बला का सेवन : बलाद्य घृत या सोम कल्याण घृत 1-1 चम्मच, दूध में डाल कर, सुबह शाम पीने से गर्भाशय का शूल दूर होता है तथा गर्भवती और गर्भस्थ शिशु, दोनों बलवान होते हैं।

10. गांठ में बला के इस्तेमाल से फायदा : बद, गांठ या अनपके फोड़े को फोड़ने के लिए खरैटी के कोमल पत्तों को पीस कर इसकी पुल्टिस बांध दें और ऊपर से थोड़ी थोड़ी देर से पानी के छींटे मारते रहें। इससे बद या गांठ पक कर फूट जाती है और चीरा लगाने की नौबत नहीं आती। ( और पढ़े – गाँठ कैसी भी हों यह रहे 28 रामबाण घरेलू उपाय )

11. दाह मिटाने में मदद करता है बला का सेवन : खरैटी की छाल का रस निकाल कर शरीर पर लेप करने से जलन का शीघ्र शमन हो जाता है।

12. वृषण वृद्धि दूर करने में बला करता है मदद : अण्डकोष के बढ़ जाने को वृषण वृद्धि कहते हैं। इस व्याधि को दूर करने के लिए खरैटी की जड़ का ऊपर बताई गई विधि से क्वाथ (काढ़ा) बना लें। चार चम्मच क्वाथ में 2 चम्मच एरण्ड तैल (Castor Oil) पीने से वृषण वृद्धि दूर हो जाती है।

13. बिच्छु दंश में फायदेमंद बला के औषधीय गुण : बिच्छू काट लें तो खरैटी (बला) के पत्तों को पीस कर रस निकाल लें और इसे बिच्छू द्वारा काटे गये स्थान पर लगा कर मसलें। इससे डंक का दर्द दूर होता है।

बला से निर्मित अन्य आयुर्वेदिक योग (दवा) :

बलाद्य घृत – निर्माण विधि और लाभ

खरैटी की जड़ गंगेरन की छाल और अर्जुन की छाल-तीनों 500-500 ग्राम ले कर मोटा मोटा (जौ कुट) कूट लें और 8 लिटर पानी में डाल कर इतना उबालें कि पानी 2 लिटर बचे। इसमें 750 ग्राम गोघृत डाल कर मन्दी आंच पर पकाएं। जब सब पानी जल जाए सिर्फ़ गोघृत बचे तब उतार कर ठण्डा कर लें। यह बलाद्य घृत है।

इस घृत को 1-1 चम्मच, सुबह शाम, मिश्री मिला कर, खा कर ऊपर से दूध पिएं। यह बलाद्य – घृत हद्रोग, हृदयशूल उरःक्षस, रक्त पित्त, वातज सूखी खांसी, वातरक्त, पित्त प्रकोप जन्य रोगों को दूर करता है। यह घृत बाज़ार में नहीं मिलता अतः किसी स्थानीय वैद्य से बनवा लें।

गोक्षरादि चूर्ण – निर्माण विधि और लाभ

नाग बला, अति बला, कौंच के शुद्ध (छिलकारहित) बीज, शतावर, तालमखाना और गोखरू-सब द्रव्य बराबर बज़न में ले कर कूट पीस छान कर महीन चूर्ण करके मिला लें और छन्नी से तीन बार छान लें ताकि सब द्रव्य अच्छी तरह मिल कर एक जान हो जाएं।

यह चूर्ण एक एक चम्मच, सुबह शाम या रात को सोते समय मिश्री मिले कुनकुने गर्म दूध के साथ पीने से बलवीर्य और पौरुष शक्ति की वृद्धि होती है। शीघ्र पतन के रोगी पुरुषों के लिए यह योग आयुर्वेद के वरदान के समान है। सहवास से एक घण्टे पहले एक खुराक का सेवन करना बहुत वाजीकारक होता है। इसमें कोई मादक द्रव्य नहीं है फिर भी यह योग श्रेष्ठ वाजीकरण करने वाला उत्तम योग है।

इसे नियमित रूप से 3-4 माह तक सुबह शाम सेवन करें, खटाई का सेवन न करें और इसका चमत्कार स्वयं देख लें। इसके नियमित सेवन से वीर्य पुष्ट व गाढ़ा होता है जिससे स्वप्नदोष और शीघ्रपतन रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। यह एक कामोत्तेजक और अत्यन्त वाजीकारक योग है इसलिए इस योग का सेवन अविवाहित युवकों को नहीं करना चाहिए। यह योग बना बनाया बाज़ार में आयुर्वेदिक दवा विक्रेता के यहां मिलता हैं।

बला के नुकसान : Bala Churna Side Effects in Hindi

  • बला के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • बला को डॉक्टर की सलाह अनुसार सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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