Last Updated on June 14, 2024 by admin
परिचय :
बेर का पेड़ हर जगह आसानी से पाया जाता है। बेर के पेड़ में कांटें होते हैं। बेर सुपारी के बराबर होती है।बेर (जूजूबे – Jujube) पोषक तत्वों का संग्रह है। बेर के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं जबकि पकने पर थोड़ा लाल या लाल-हरे रंग के हो जाते हैं। बेर दक्षिणी और मध्य चीन सहित दक्षिणी एशिया में बहुत अधिक उगाया जाता है। बेर का वैज्ञानिक नाम ज़िज़िफस जुजुबा (Ziziphus jujuba) है।
बेर के औषधीय गुण : Ber ke Gun in Hindi
- पके बेर मधुर खट्टे, गर्म, कफकर, पाचक, लघु और रुचिकारक होते हैं
- यह अतिसार, रक्तदोष, दस्त और सूखे के रोग को खत्म करता है।
- बेर के पत्तों का लेप करने से बुखार और जलन शांत हो जाती है।
- इसकी छाल का लेप करने से विस्फोटक (चेचक के दाने) खत्म हो जाते हैं।
- बेर के गुदे को आंखों में लगाने से आंखों के रोग खत्म हो जाते हैं।
बेर खाने के फायदे और उपयोग : Ber khane ke Fayde in Hindi
1. श्वास या दमे का रोग :
- 10-15 बेर के पत्ते और 8-10 जायफल के पत्ते लेकर आधा कप पानी में उबालकर तथा छानकर पीने से दमे का रोग ठीक हो जाता है।
- 5-5 ग्राम बेर के पत्ते और जायफल के पत्तों को लेकर कप भर पानी में उबालकर छानकर दिन में दो बार पीने से दमे के रोगी को बहुत लाभ मिलता है।
2. आंखों का दर्द : बेर की गुठली को अच्छी तरह से पीसकर और छानकर साफ करके आंखों में डालने से आंखों का लाल होना और आंखों के दर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं।
3. अंजनहारी, गुहेरी : बेर के ताजे पत्तों को तोड़कर उसके डंठल का रस गुहेरी पर लगाने से लाभ होता है।
4. बुखार :
- बेर की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से बुखार में लाभ मिलता है।
- मध्यम आकार के बेर के पत्तों के रस का लेप करने से बुखार की जलन शांत हो जाती है।
5. बिलनी : आंख के जिस भाग पर अज्जननमिका का प्रभाव हो वहां पर बदर पत्र (बेर की पत्तियां) को घिसकर लगाने से लाभ होता है।
6. खांसी :
- शुद्ध मैनसिल को पानी के साथ पीसकर बेरी के पत्तों पर लेपकर सुखाकर सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
- 250 ग्राम बेरी का गोंद 7 दिनों तक गुड़ के हलुए में मिलाकर खाने से खांसी दूर हो जाती है।
7. कनीनिका प्रदाह (आंख की पुतली की सूजन और जलन) : बेर की गुठली को घिसकर आंखों में काजल की तरह लगाने से कनीनिका प्रदाह ठीक हो जाता है। आंखों से बहने वाला पानी भी बंद हो जाता है।
8. पेशाब का रुकना : बेर के पेड़ के मुलायम पत्ते व जीरा मिलाकर पानी में पीसकर उनका भांग जैसा शर्बत बनाकर कपड़े से छानकर खाने से गर्मी के कारण रुका हुआ पेशाब साफ आता है।
9. चेचक :
- चेचक में बेर के पत्तों का रस भैंस के दूध के साथ रोगी को देने से रोग का वेग कम होता है। बेर के 6 ग्राम पत्तों के चूर्ण को 2 ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर रोगी को खिलाने से भी 2-3 दिन में चेचक खत्म होने लगता है।
- बेर के पेड़ की छाल और उसके पत्तों का काढ़ा बनाकर छाछ में मिलाकर पशुओं को पिलाने से उनका चेचक का रोग दूर होता है।
10. मुंह के रोग में : बेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर दिन में 2-3 बार कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं। कपूरयुक्त किसी औषधि का सेवन करने से मुंह के छाले, दांत के मसूढ़े ढीले पड़ गये हों और मुंह से लार टपकती हो तो बेर के पेड़ की छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ले करना लाभकारी होता है।
11. फोड़े : बेर के पत्तों को पीसकर गर्म करके उसकी पट्टी बांधने से और बार-बार उसको बदलते रहने से फोड़े जल्दी पक कर फूट जाते हैं।
12. पुरानी खांसी : लगभग 12 से 24 ग्राम बेर की छाल को पीसकर घी के साथ भूने तथा उसमें सेंधानमक मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करें। इससे लाभ होता है।
13. आंख आना : बेर की गुठली की फांट को अच्छी तरह से छानकर आंखों मे डालने से नेत्राभिष्यन्द, आंखों का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं।
14. शीतला (मसूरिका) ज्वर : बेर का चूर्ण गुड़ के साथ रोगी को खिलाने से वात, पित्त तथा हर प्रकार की माता तुरंत पककर ठीक हो जाती हैं।
15. जलने पर :
- बेर की कोमल कोंपलों (मुलायम पत्तियां) को दही के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जले हुए का दाग (निशान) मिट जाता है।
- तिलों को पीसकर शरीर के गर्म पानी से या आग से जल गये भागों पर लेप करने से आराम आता है।
16. शरीर को शक्तिशाली बनाना : लगभग 15-15 ग्राम की मात्रा में बेर के छिलकों को छाया में सुखाकर इसके साथ पीपल, कालीमिर्च, सौंठ और त्रिफला को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें लगभग 75 ग्राम की मात्रा में गुग्गुल को पीसकर मिला लें। अब इस मिश्रण को 10 ग्राम की मात्रा में सुबह के समय पानी के साथ लेने से शरीर को ताकत मिलती है और शरीर के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
17. बालरोगों की औषधि (बच्चों के रोग) : बेर के पत्ते, चौंगरे के पत्ते, मकोय के पत्ते और कैथ के पत्तों को एक साथ पीसकर इनके चूर्ण का का लेप बच्चों के सिर पर करें। इससे बच्चे की वमन (उल्टी) और अतिसार (दस्त लगना) के रोग में आराम आ जाता है।
18. गले के रोग में :
- बेर के पत्तों को पानी में उबाल लें। फिर उस पानी को छानकर थोड़ा-सा सेंधानमक डालकर पीने से गले के रोग में आराम आ जाता है।
- बेर की पत्ती को भूनकर उसमें सेंधानमक मिलाकर खाने से स्वर-भंग (आवाज बैठना) का रोग दूर हो जाता है।
19. अतिक्षुधा भस्मक रोग (भूख अधिक लगना) :
- बेर की गुठली को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम ताजे पानी के साथ नियमित रूप से सेवन करें, इससे भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) मिट जाता है, और ज्यादा भूख नहीं लगती है।
- 20 ग्राम बेर की गुठली मींगी को पानी में घिसकर पीने से भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) दूर हो जाता है।
- बेर की गुठली का चूर्ण 0.3 ग्राम सुबह शाम सेवन करने से भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) मिट जाता है।
- बेर की गुठली के अंदर का भाग या बेर के पेड़ की छाल को पानी में पीसकर पिलाने से भूख का अधिक लगने का रोग ठीक हो जाता है।
20. मुंह के छाले : 50 ग्राम बेर के पत्तों को 300 मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कुल्ले करने से मुंह के छाले और दाने ठीक हो जाते हैं।
21. खून की उल्टी : बेर की मींगी (बीज) को नाशपाती के शर्बत में डालकर पीने से खून की उल्टी बंद हो जाती है।
22. हिचकी का रोग :
- बेर के बीज की मींगी, धान की खील और सुरमे की भस्म (राख) का चूर्ण बराबर मात्रा में लेने से हिचकी से आराम होता है।
- लगभग 120 से 360 मिलीग्राम बेर की गुठली का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से हिचकी के बीमारी में लाभ मिलता है।
23. आंवयुक्त दस्त : सूखे हुए बेर, पुराना गुड़ और कालीमिर्च को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, फिर इसी बने चूर्ण में से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से आंव के दस्त में लाभ होता है।
24. पक्वातिसार : बेल के फल के अंदर के 3 से 6 ग्राम गूदे को 100 से लेकर 250 मिलीग्राम तक छाछ (लस्सी) में मिलाकर दिन में 3 से 4 बार लेने से पक्वातिसार का रोगी ठीक हो जाता है।
25. आंव रक्त (आंवयुक्तपेचिश) :
- 1 ग्राम बेर, डंठल वाले गोभी और मिश्री को पीसकर रोज एक बार खाली पेट खाने से पेचिश के रोगी को लाभ मिलता है।
- बेर के पत्ते, धाय के फूल, कैथ का रस, लोध्र और शहद को मिलाकर दही के साथ खाने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है।
26. घाव में : पुराने घाव में बेर की छाल का चूर्ण लगाने से घाव सूख जाता है।
27. मोटापा : बेर के पत्तों को पानी में काफी समय तक उबालकर काढ़ा बनाकर छानकर पीने से शरीर की चर्बी समाप्त हो जाती है।
28. वीर्य रोग में : बेर की मींगी की गुठली को गुड़ के साथ खाने से वीर्य गाढ़ा होता है और वीर्य का रोग दूर हो जाता है।
29. नाक से खून आना : बेर के पत्तों को पीसकर (बिना पानी के) सिर पर लेप करने से नकसीर (नाक से खून बहना) आना रूक जाती है।
30. हैजा : बेलगिरी, सोंठ तथा जायफल का काढ़ा बनाकर पीने से हैजा का रोग दूर हो जाता हैं।
31. फोड़ा (सिर का फोड़ा) : बेर की छाल का चूर्ण फोड़ों और उसके घावों पर लगाने से ये जल्दी ठीक हो जाते हैं।
32. हाथ-पैरों की ऐंठन : हाथ-पैरों की जलन व पसीना अधिक आने पर बेर के पत्तों को पीसकर हाथ-पैरों पर लगाने से रोगी को लाभ मिलता है।
33. हाथ-पैरों में पसीना आना – हाथ-पैरों में पसीना आने पर रोगी को बेर के पत्ते पीसकर लगाने से पसीना आना बंद हो जाता है।
34. दाद : बेर की कोंपलें (मुलायम पत्तियां) और लहसुन की कली को जलाकर घी में मिलाकर लगाने से दाद मिट जाता है।
35. विसर्प (फुंसियों का दल बनना) : अगर नाक के अंदर या बाहर फुंसियां हो तो उन पर बेर का गूदा लगाने से या बेर को सूंघने से लाभ होता है।
36. बालतोड़ : बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से बालतोड़ का दर्द कम होता है।
37. स्वर भंग (गले का बैठ जाना) :
- बेर की जड़ को मुंह में रखना चाहिए, अथवा बेर के पत्तों को सेंककर सेंधानमक के साथ खाना चाहिए इससे लाभ मिलता है।
- बेर के पेड़ की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर उसका रस चूसने से दबी हुई आवाज 2-3 दिन में ही खुल जाती है।
38. बुखार में जलन :
- छोटे-छोटे लाल बेर को धोकर उसमें से बगैर सुराख वाले अच्छे बेर को निकालकर पीस लें। 20 ग्राम पीसे हुए बेर में आधा किलो पानी डालकर काढ़ा बनायें। इसे छानकर, ठंड़ा हो जाने के बाद
- मिश्री डालकर पीना चाहिए। इससे ज्वर का दाह (बुखार की जलन) शांत होकर बुखार भी उतर जाता है।
- 20 ग्राम सूखे अथवा ताजा चनाबेर, लेकर 16 गुना पानी में उबालें। उसका एक चौथाई काढ़ा बनाकर कपड़े से छान लें। उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर पीने से बुखार की जलन, प्यास और व्याकुलता दूर होती है और पित्त ज्वर उतर जाता है। विशम ज्वर में भी यह काढ़ा फायदेमंद होता है।
- बेर के पत्तों को कांजी में पीसकर मथे तथा फेन का लेप करें, इससे बुखार में आराम मिलता है।
39. आंखों से पानी का बहना : बेर के बीज को पानी में घिसकर दिन में 2 बार 1-2 महीने तक लगाने से आंखो से पानी बहना बंद हो जाता है।
40. शरीर के किसी भी भाग में जलन होने पर : बेर के पत्तों को पीसकर लगाने से शरीर की किसी भी भाग की जलन शांत हो जाती है।
41. पेशाब करने में परेशानी: बेर की कोंपल (मुलायम पत्तियां) और जीरे को पीसकर रोगी को देना चाहिए। इससे पेशाब खुलकर आता है।
42. कंठ सर्प पर (गले के चारों और फुंसियों का घेरा) : जंगली बेर की छाल को घिसकर दो बार पिलाना चाहिए।
43. खूनी दस्त :
- बेर की छाल को दूध में पीसकर शहद के साथ पीना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) का रोग ठीक हो जाता है।
- बेर की जड़ और तेल को बराबर मात्रा में लेकर गाय या बकरी के दूध के साथ पिलाना चाहिए, इससे रक्तातिसार (खूनी दस्त) में आराम आता है।
- बेर को खाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) रोग और आंतों के घाव ठीक हो जाते हैं।
44. छाती के दर्द या टी.बी में : 20 ग्राम बेर या पीपल की छाल को पानी में पीसकर उसमें चौगुने कद्दू के रस को मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए इससे छाती और टी.बी के रोग में लाभ होता है।
45. बिच्छू के जहर पर :
- बेर के पत्ते और उदुम्बर के पत्तों को बारीक पीसकर दंश पर बांधने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
- बेर के बीज का गर्भ और ढाक के बीज को बराबर मात्रा में मिलाकर आक के दूध में 6 घण्टे तक खरलकर लेप बना लें। इस लेप को घिसकर बिच्छू के कटे स्थान पर लेप करने से बिच्छू का जहर उतरता है।
46. उल्टी :
- बेर की गुठलियों के अंदर का भाग, बड़ के अंकुर तथा मधुयिष्ट का काढ़ा, शहद और शक्कर को मिलाकर पीना चाहिए, इससे उल्टी तुरंत ही बंद हो जाती है।
- 1 ग्राम बेर की जड़ की छाल के चूर्ण को चावल के पानी के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से उल्टी के रोग में आराम मिलता है।
47. दस्त :
- बेर के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने हुए काढ़े को 20 से लेकर 40 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से दस्तों में लाभ मिलता है।
- कच्चे बेर को खाने से भी दस्त में आराम मिलता है।
- बेर के पत्तों को पीसकर आधा चम्मच और आम की गुठली की गिरी थोड़ी-सी गिरी को मिलाकर सेवन करने से दस्तों में लाभ मिलता है।
- बेर के पेड़ के पत्तों का चूर्ण मट्ठे के साथ रोगी को देने से दस्त खत्म हो जाते हैं।
48. श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर :
- बेर के पेड़ की छाल का चूर्ण 5 ग्राम सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर मिटता है। चनाबेर की छाल का चूर्ण गुड़ या शहद के साथ खाने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ होता है।
- 1-3 ग्राम छाल का चूर्ण गुड़ के साथ दिन में दो बार लेने से श्वेतप्रदर और रक्तप्रदर में लाभ मिलता है।
49. रक्त प्रदर :
- बेर का चूर्ण गुड़ में मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर में आराम मिलता है।
- 10 ग्राम बेर के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च और 20 ग्राम मिश्री को पीसकर 100 मिलीलीटर पानी में मिलाकर पीने से रक्तप्रदर में लाभ होता है।
बेर खाने के दुष्प्रभाव : Ber khane ke Nuksan in Hindi
बेर एक सामान्य फल है। इसको ज्यादा खाने से खांसी होती है। कच्चे बेर कभी नहीं खाने चाहिए।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।
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