Last Updated on December 10, 2022 by admin
भटकटैया क्या है ? (Yellow Berried Nightshade in Hindi)
भटकटैया, कटैया, वेगुना भटकटैया के ही नाम हैं। यह कटेरी (चोक) का ही एक प्रकार है। यह जमीन से 60 से 90 सेमी ऊंचा होता है। इसमें छोटे बैंगन जैसा फल लगता है और बैंगन जैसे ही कंटीले पत्ते होते हैं। इसमें पीले, चित्तीदार फल लगते हैं। ये कटेरी के पेड़ के समान ही होते हैं।
भटकटैया के गुण (Bhatkataiya ke Gun in Hindi)
भटकटैया तीखी, पाचनशक्तिवर्द्धक और सूजन-नाशक है तथा यह उदर रोगों (पेट के रोगों) को भी दूर करता है।
विभिन्न रोगों में भटकटैया के फायदे और उपयोग (Bhatkataiya ke Fayde aur Upyog in Hindi)
1. पथरी : भटकटैया के 14-28 मिलीग्राम पंचांग का रस सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से पथरी और मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) मिट जाता है।
2. बच्चों की खांसी : भटकटैया के 20 मिलीग्राम से 50 मिलीग्राम फूल शहद के साथ दिन में दो बार देने से बच्चों की खांसी 2 दिन में ठीक हो जाती है।
3. वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) : भटकटैया की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम रोगी को देने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में बहुत लाभ मिलता है।
4. फेफड़ों के रोग : भटकटैया का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा अथवा इसके पत्तों का रस 3 से 12 मिलीलीटर तक की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से फुफ्फुस (फेफड़े) सम्बंधी अनेक रोगों में बहुत लाभ होता है।
5. श्वास या दमा का रोग :
- भटकटैया की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर तक की मात्रा में या इसके पत्तों का रस 2 से 5 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह शाम श्वास के रोगी को देने से श्वास रोग ठीक हो जाता है।
- भटकटैया के पंचांग को छाया में सुखाकर पीसकर छान लेते हैं। इस चूर्ण को 4 से 6 ग्राम की मात्रा में लेकर इसमें 120 ग्राम `रस सिन्दूर` मिलाएं तथा 6 ग्राम शहद में मिलाकर चांटे। इस प्रकार दोनों समय सेवन करते रहने से दमा और दमे की खांसी में बहुत लाभ होता है।
6. काली खांसी : भटकटैया के रेशों को छाया में सुखाकर इसमें 18 से 24 मिलीग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर दिन में 5-7 बार चाटने से काली खांसी ठीक हो जाती है।
7. खांसी :
- भटकटैया (रेंगनी कांट) की जड़ के साथ गुडूचू का काढ़ा खांसी में लाभकारी सिद्ध होता है। इसकी 2 मात्राएं रोज रोगी को देने से कफ ढीला होकर निकलने लगता है। यदि काढे़ में कालानमक और शहद का योग दे दिया जाए तो कार्यक्षमता और अधिक बढ़ जाती है।
- भटकटैया के 14-28 मिलीलीटर काढ़े को 3 बार कालीमिर्च के चूर्ण के साथ सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
- लगभग 10 ग्राम कटेली के जीरा को पीसकर 60 मिलीग्राम शहद में मिलाकर चांटने से खांसी में लाभ मिलता है।
- यदि बलगम कुछ पुराना पड़ गया हो तो 2 से 5 मिलीलीटर भटकटैया (रेंगनी कांट) के पत्तों के काढ़े में छोटी पीपल और शहद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से खांसी मे आराम आता है।
- यदि रोगी को खांसते-खांसते उल्टी हो जाए या दमा की खांसी हो तो भटकटैया (रेंगनी कांट) मूल जड़ के काढ़े में सैंधानमक और हींग मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
8. जीभ की जलन और सूजन : जीभ की सूजन व जलन में भटकटैया की जड़ का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर बनाकर रोजाना सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
9. गर्भधारण करना : सफेद कटेली की जड़ रविवार को पुष्य नक्षत्र में लाकर छाया में सुखाकर जड़ का बक्कल (छिलका) उतारकर पीस लें, इसे 10 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 मिलीलीटर कच्चे दूध से सुबह माहवारी शुरू होने के दिन से 3 दिनों तक लगातार प्रयोग करने से गर्भधारण आसानी से हो जाता है।
10. मुंह के छाले : मुंह में छाले व पीड़ा होने पर कंटकारी (भटकटैया, रेंगनी कांट) के पंचांग का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मुंह के सभी रोग ठीक हो जाते हैं।
11. दर्द व सूजन पर : 20 से 40 मिलीलीटर भटकटैया की जड़ का काढ़ा या पत्ते का रस चौथाई से 5 मिलीलीटर सुबह शाम सेवन करने से शरीर का दर्द कम होता है। भटकटैया दर्दनाशक गुण से युक्त औषधि है।
12. पेट में पानी का भरना (जलोदर) : भंटकटैया (कंटकारी, रेंगनीकांट) की मूल (जड़) को बारीक पीसकर काढ़ा बनाकर शहद में मिलाकर 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से जलोदर (पेट में पानी का भरना) में लाभ होता है।
13. पित्त पथरी में : भटकटैया की जड़ का चूर्ण बनाकर 2 ग्राम सुबह-शाम मीठे दही के साथ सिर्फ 7 दिन तक पीने से लाभ होता है।
14. गठिया रोग : 25 से 50 मिलीलीटर भटकटैया (रेंगनीकांट) के पत्तों के रस में कालीमिर्च मिलाकर रोजाना सुबह-शाम पिलाने से गठिया के रोगी में उत्पन्न दर्द में लाभकारी होता है।
15. हृदय दर्द : 10-10 ग्राम गिलोय और भटकटैया की जड़ को लेकर 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। 100 मिलीलीटर शेष रह जाने पर इस काढ़े को छानकर सुबह-शाम पीने से दिल के दर्द की समस्या में बहुत लाभ होता है।
16. सिर का दर्द : सिर में दर्द होने पर भटकटैया के फलों का रस माथे पर लेप करने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है।
17. स्वर यंत्र में जलन होने पर : 20 से 40 मिलीलीटर भटकटैया (रैंगनीकांट) की जड़ का काढ़ा या ढाई ग्राम से 5 मिलीलीटर इसके पत्तों का रस सुबह और शाम सेवन करने से स्वरयंत्र शोथ (गले में सूजन) में आराम आता है।
18. गले की सूजन : 3 से 5 मिलीलीटर भटकटैया (रैंगनी कांट) की जड़ का काढ़ा या पत्तों का रस सुबह और शाम सेवन करने से गले की सूजन और दर्द ठीक हो जाता है।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)