Last Updated on July 9, 2021 by admin
क्या खाना चाहिए ?
1). स्थानीय रूप से पैदा किये गये खाद्य-पदार्थों का शरीर पर अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार मौसमी उपज को अपना आहार बनाइये। इससे आपको अधिक रस प्राप्त होगा।
2). गर्मियों में खूब कच्चे प्याज खाइये और छोटे कच्चे आमों को पानी में उबाल कर या आग पर भून कर उनका रस लीजिये। यह आपको लू और सिर दर्द से बचायेगा।
3). हल्दी में बहुत से रोग नाशक गुण हैं। इसे अपने भोजन में बहुलता से प्रयोग कीजिए। यह अन्दरूनी घावों और फटी हुई पेशियों को बहुत जल्द ठीक कर देती है। अगर पिसी हुई हल्दी गर्म दूध में मिला कर ली जाए, यह दुर्घटना के फलस्वरूप हुए सब आन्तरिक घावों को शीघ्र ठीक कर देती है। यह सर्दी-जुकाम में भी मदद करती है।
4). जड़ी बूटियां उन पौधों के ठंडल की पत्तियां हैं जो सुगन्धित हैं। मसाले उन सुगन्धित पौधों की जड़ें, पत्तियां, छाल, तना, कलियां या फल हैं। मसालों को हमेशा महत्व दिया गया है। पुराने समय में मसालों का आहार संबंधी मूल्य ज्ञात था और समुद्री डाकू पूर्व से आने वाले मसालों के जहाजों की लूटने के लिये प्रतीक्षा करते थे। मसालों के सुगंध लोगों को आकृष्ट करने की प्रवृति की युक्ति है। जड़ी बूटियों और मसालों के संबंध में और जानिए और उन्हें ठीक प्रकार चयन करके प्रयोग कीजिये।
5). शरीर में यूरिक एसिड की वृद्धि के साथ रक्तचाप बढ़ जाता है और गठिया के दर्द भी बढ़ जाते हैं। यूरिक एसिड की मात्रा फलों, सब्जियों, दूध और पनीर में नगण्य होती है। मांस, मछली, हरी सेम आदि में 25 से 100 मिलीग्राम और मांस, सूप, जिगर और सार्डीन मछलियों में 100 ग्राम खाने योग्य भाग में 200 से 1000 मिलीग्राम यूरिक एसिड होता है। अत: जो उच्च रक्तचाप और गठिया से पीड़ित हैं उन्हें हर प्रकार के मांस आदि से परहेज करना चाहिए।
भोजन कितना करना चाहिए ?
अब प्रश्न उठता है कि कितना खाना चाहिये। इस संबंध में यह पहले से ही स्पष्ट है कि यदि आपके द्वारा लिया हुआ भोजन एक निश्चित मात्रा से अधिक है तो आपका वजन बढ़ जायेगा, विषाक्त पदार्थ आपके अंदर इकट्ठा हो जायेंगे और आप कई बीमारियों के शिकार हो जायेंगे।
ऋषि ने कहा है, “अधिक भोजन लेने से स्वास्थ्य गिरता है, जीवन की अवधि कम होती है।” अत: अधिक खाने की आदत छोड़िये।
भागवत पुराण में लिखा है – “जिस व्यक्ति ने अपनी स्वाद-इन्द्रिय पर नियंत्रण नहीं किया है, अपनी दूसरी इन्द्रियों को नियंत्रित नहीं कर सकता। जिसने अपनी स्वाद-इन्द्रिय को नियंत्रित कर लिया है, अपनी अन्य सब इन्द्रियों पर भी पहले से ही अधिकार कर लिया है ऐसा उसके संबंध में मानना चाहिये।”
कम खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। यदि आप जितना जरूरी है उससे अधिक खाते हैं, यह आपके अंदर विषाक्त पदार्थ के समान इकट्ठा हो जाता है। बेंजामिन फ्रैंकलिन ने ठीक कहा है कि आपका पेट सब रोगों का मूल कारण है। क्या अंग्रेजी कहावत नहीं बताती कि “पेटू अपनी कब्र अपने दांतों से खोदता है।” अधिक लोग कम खाने की अपेक्षा ज्यादा भोजन करने से मरते हैं।
तैत्तरीय उपनिषद में कहा गया है – “केवल भोजन सब जीवित प्राणियों के लिए सबसे अच्छी औषधि है क्योंकि वे केवल भोजन के कारण अस्तित्व में आये हैं।”
हम भी भोजन को अपने शरीर के लिए सबसे अच्छी औषधि बनायें। यह विष न बन जाये।
भोजन कब करें ?
भोजन के समय के संबंध में आयुर्वेद निर्देश देता है- “जब मल-मूत्र विसर्जित हो चुके हों, जब मन शांत है, तत्त्व संतुलित हैं, पेट हवा से मुक्त है, शरीर हल्का है, ज्ञानेन्द्रियां कार्यकुशल है और भूख है, केवल तभी आप भोजन लें।”
भोजन की पर्याप्त मात्रा दिन में केवल एक बार ली जानी चाहिये। अन्य भोजन छोटे होने चाहिये। यह अधिक उपयुक्त है कि पर्याप्त मात्रा वाला भोजन दिन के समय में लिया जाये।
एक प्रसिद्ध उक्ति है – “एक बार योगी, दो बार भोगी, तीन बार रोगी। जो केवल एक बार खाते हैं वे योगी हैं, जो दो बार खाते हैं, सदा प्रसन्न रहते हैं और जो तीन बार खाते हैं, अतिपाती रोगी रहते हैं।’ यद्यपि यह उक्ति अतिशयोक्ति हो सकती है पर यह सही दिशा की ओर इंगित करती है।
भोजनों के बीच खाना बन्द कीजिये। एक मुख्य भोजन और एक या दो छोटे जलपान शरीर के लिए पर्याप्त हैं। यदि आप भोजनों के बीच कई बार खाते हैं तो पाचन तंत्र को हर बार नये सिरे से अपनी प्रक्रियायें प्रारम्भ करनी पड़ती है। पूर्व भोजन की प्रक्रियायें सम्भव है कि तब तक पूरी न हुई हों। इस प्रकार पाचन-तंत्र तंग होगा और शीघ्र थक जायेगा।
नियत समय पर भोजन करने में बहुत लाभ है। सामान्य या कठोर व्यायाम के एक घंटे बाद तक भोजन मत लीजिये। जीवन-शक्ति को एक समय पर एक चीज पर पूरी तरह काम करने दीजिये। भोजन और मैथुन के बीच कम से कम दो घंटे का अंतर होना चाहिए।
प्रात: चार और मध्याह्न बारह के बीच का समय अवांछित कचरा निकालने के लिए उपयुक्त समझा जाता है। इन घंटों के बीच अपने शरीर के पोषण के लिये कम से कम खाना लीजिये। केवल तभी निष्कासन-तंत्र विविध इन्द्रियों और शरीर के अन्य अंगों से सबसे अधिक सहयोग प्राप्त कर सकेगा। इसका अर्थ है कि प्रात: काल का जलपान, जिसे कलेवा (ब्रेक फास्ट) कहते हैं, हल्का होना चाहिये।
आप व्रत तभी तोड़ सकते हैं जब आपने व्रत रखा हो। क्या 12-14 घंटे से कम के लिए भोजन न करने को आप सचमुच उपवास कह सकते हैं? अतः 12-14 घंटे का समय रात्रि भोजन और अगली सुबह के जलपान के बीच रखने का प्रयत्न कीजिये।
जब तक आपकी भूख खूब बढ़े नहीं, मुख्य भोजन मत लीजिए। भूख उत्पन्न करने के उपायों पर आपको विशेष ध्यान देना ही चाहिये। फ्रांसीसी कहावत “एक अच्छे भोजन को भूख से प्रारम्भ होना चाहिये’ इसे मत भूलिये।
भोजन कैसे करें ?
यदि अच्छा भोजन ठीक प्रकार नहीं खाया जाता, शरीर इससे पूरा लाभ नहीं ले सकता। खाना खाने की सही आदतें डालना आवश्यक है। निम्नलिखित सुझावों पर ध्यान दीजिये और अपने शरीर पर पोषण को प्रभावी बनाइये :
1). भोजन लेने के पहले मल-मूत्र विसर्जन कीजिये। इस प्रकार जीवन शक्ति को उन पदार्थों से संघर्ष जारी रखने की आवश्यकता नहीं रहेगी। जिन्हें हर सूरत में निकालना ही है।
2). यदि सम्भव हो, भोजन के पहले थोड़ा घूम लीजिये। मित्रों और संबंधियों के साथ बैठिये और उनके साथ थोड़ी गप शप कीजिये जिससे आप ताजे, प्रसन्न ओर शांत हो जायेंगे। केवल तभी आपका पाचन-तंत्र एकाग्रता के साथ काम कर सकेगा और सबसे अच्छे परिणाम आपको देगा। यदि खाते समय आप चिंतित, भय या क्रोध में हैं तो आपका मन कहीं और है और पाचन-तंत्र को स्पष्ट आदेश नहीं मिलता तब बहुत से पोषक तत्व पोषण प्रदान करने के स्थान पर विषाक्त हो जाते हैं।
3). भोजन के पूर्व अपने हाथ-मुंह धोइये। आंखों पर पानी डालिये। जब पानी आपके गाल छूता है, आपके मुंह के अंदर अधिक लार बनती है। चेहरे के कई स्नायु भी पाचन-तंत्र को सहायता देना प्रारम्भ कर देते हैं। इन्हीं कारणों से कई धार्मिक सम्प्रदाय भोजन प्रारम्भ करने के पूर्व हाथ-मुंह धोने का आदेश देते हैं।
4). खाना खाते समय पलथी मार कर बैठना सबसे अच्छा आसन है।
5). खाने में शीघ्रता न कीजिये। अच्छी तरह चबाइये। भोजन को इतनी अच्छी तरह चबाइये कि आपके मुंह में ठोस खाद्य पदार्थ लार के साथ तरल बन जायें और तरल पदार्थ जैसे दही आदि गाढ़े बन जायें। आपकी लार में बहुत से पाचक एन्जाइम हैं। उनका पूरा प्रयोग कीजिये। खाते समय कम से कम बात कीजिये। पवित्र वेद निर्देश करते हैं कि खाना खाते समय पूरा मौन रखना चाहिये। यदि आप भोजन करते समय कुछ सामाजिक, व्यापारिक या घरेलू मामलों पर बात कर रहे हैं तो आपका मन उन मामलों में उलझा रहेगा और पाचन-संस्थान को स्पष्ट आदेश नहीं भेज सकेगा।
7). कच्ची सब्जियां और कच्चे फल एक ही समय मत खाइये। उनके पाचन के लिए भिन्न प्रकार के एन्जाइम आवश्यक होते हैं और क्रियात्मक ग्रंथियां चकरा जाती हैं कि पाचन के लिये किन एन्जाइमों को भेजें। इसी कारण से एक भोजन में बहुत से भिन्न प्रकार के खाद्य-पदार्थ मत लीजिये। यदि कभी-कभी आपको बहुत चीजें एक साथ एक समय पर खानी हों तो पहले दो-तीन कौर में उन चीजों का मिश्रण होना चाहिये। जिससे जहां तक सम्भव हो क्रियात्मक ग्रंथियां और उनके कम्प्यूटर आवश्यक एन्जाइम और पाचन रस, जिनकी इस प्रकार की समस्त भोजन को पचाने के लिए आवश्यकता है, भेज सकें।
8). मुख्य भोजन के पहले आधे घण्टे और बाद में दो घण्टे तक पानी नहीं लेना चाहिये। आपके पेट के भोजन पचाने का कार्य पूरा होने के पहले यदि आप पानी पीते हैं तो आप पेट के रसों को हल्का कर देते हैं और पाचन में बाधा डालते हैं। आमतौर से एक भोजन के पश्चात् पेट को खाली होने में लगभग 3 घंटे लगते हैं। इतने समय तक आपको तरल पेय लेने के लिये प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि तरल पदार्थ पाचन-प्रक्रिया के दौरान लिया जाता है, शरीर प्राय: तरल पदार्थ इकट्ठा कर लेता है और इसे अतिरिक्त वजन की तरह ढोया जाता है। पोषण-विज्ञानियों का एक वर्ग यहां तक कहता है कि यदि आप अपने मुख्य भोजन के एक घंटे पहले और तीन घंटे बाद तक कोई तरल पदार्थ न लें तो केवल इस नियंत्रण के द्वारा आप वजन में एक किलोग्राम प्रति मास कम कर सकते हैं। यदि आप भोजन के साथ पानी लेते हैं, मुंह में लार का बनना कम हो जाता है।
9). भोजन के बाद पेशाब के लिये जाइये। तत्पश्चात् वज्रासन में 5 से 15 मिनट के लिये बैठिये। यह पाचन तंत्र को मजबूत करेगा और पेट में गैस बनना बहुत अंश में कम हो जायेगा। भोजन के बाद वज्रासन के अतिरिक्त अन्य कोई योगासन करना उपयुक्त नहीं है।
10). भोजन के बाद कठिन श्रम वाला काम मत कीजिये। यह पाचन प्रक्रिया को कमजोर करता है। दिन के भोजन के बाद कुछ देर आराम कीजिये। यदि कुछ समय के लिये लेट सकें, बायीं करवट लेटिये जिससे दायां नासारन्ध्र सक्रिय हो जाये और वह पाचन-तंत्र को सशक्त करे। रात्रि-जलपान या भोजन के पश्चात् खुली हवा में बाहर निकल जाइये और लगभग 15 या 20 मिनट चलिये या टहलिये। गहरी सांसें लीजिये। आप अच्छा अनुभव करेंगे।
खाना और सोना :
खाने और सोने के बीच में कितना अंतराल होना चाहिये ?
भोजन करने के बाद शीघ्र ही सो जाने से नींद अच्छी नहीं आती तो नींद में आंतों को जो विश्राम मिलता है, वह पूरा नहीं मिलता। इसलिए खाना, सोने से तीन घंटे पूर्व खाना चाहिए।
नित्य तीन बार भोजन करें। इनके बीच में कुछ नहीं खायें। बिना तेज भूख लगे कभी नहीं खायें। चबा-चबाकर खाये। जब चिन्ता, क्रोध हो तो खाना नहीं खाये। केवल गर्म पानी पीकर ही रहें। प्रसन्न मुद्रा में भोजन करें। प्रात: के भोजन में स्टार्च अधिक हो, दोपहर के भोजन में प्रोटीन अधिक हो। संध्या का भोजन में कच्चे फल, कच्ची सब्जियां, सलाद खा कर ही रहें।