Last Updated on July 15, 2019 by admin
बिजली की धारा दो प्रकार की हुआ करती है। (1) ए.सी. धारा (2) डी. सी. धारा। इनमें डी.सी. धारा अच्छी हुआ करती है। क्योंकि इसके झटके से आदमी दूर जाकर गिरता है। जबकि ए.सी. धारा से छू जाने पर वह व्यक्ति को अपनी ओर खींचती है। जिस अंग से बिजली की तारें स्पर्श करती हैं, वह अंग तो जल ही जाता है। शरीर के अन्य भागों में भी बिजली प्रवेश कर जाती है। फलस्वरूप बिजली का जबरदस्त झटका लगकर मनुष्य अक्सर बेहोश हो जाया करता है। बिजली का झटका लगते ही सर्वप्रथम बिजली का मैन स्विच बन्द कर देना चाहिए अथवा कनेक्शन (Connection) काट देना चाहिए।
नोट-धातु की वस्तुओं या गीली-चीजों (जैसे हरी लकड़ी या पानी से भीगी लाठी, डन्डे आदि से) बिजली में चिपके आदमी को बिजली की तारों में मारकर नहीं छुड़ाना चाहिए। आक्रान्त व्यक्ति को हाथ की सूखी हुई लकड़ी की छड़ी की सहायता से खींचना चाहिए अथवा बिजली के तारों में छड़ी मार कर आक्रान्त व्यक्ति को छुड़ाना चाहिए अथवा रबड़ के दस्ताने पहन कर तथा पैरों में भी रबर का जूता पहनकर आक्रान्त व्यक्ति को छुड़ाना चाहिए इसके अभाव में काठ की (सूखी) बनी वस्तुओं जैसे पटला, खडाऊ, लकड़ी की कुर्सी, तख्त, स्टूल, छोटी मेज इत्यादि पर खड़ा होकर रबड़ के दस्ताने पहिनकर आक्रान्त व्यक्ति को छुड़ाना चाहिए। ऐसी प्रक्रिया अपनाने से आक्रान्त व्यक्ति को छुड़ाने वाला व्यक्ति बिजली के धक्के से सुरक्षित रहेगा।
बिजली का धक्का लगते ही पीड़ित व्यक्ति को तुरन्त बिजली से दूर हटाने की कोशिश करनी चाहिए। अन्यथा उसके शरीर का सारा रक्त (खून) जल जायेगा जिसके फलस्वरूप उसकी तत्काल ही मृत्यु भी हो सकती है। जैसे ही आघात लगा हुआ व्यक्ति बिजली के तारों से अलग हो जाये वैसे ही तुरन्त उसके हृदय की क्रिया को उत्तेजित करने के लिए उसके सम्पूर्ण शरीर पर ठन्डे पानी के छींटे मारने चाहिए तथा यदि आवश्यकता हो तो “कृत्रिक श्वासोच्छवास” हेतु क्रिया करनी चाहिए। आक्रान्त व्यक्ति की घबराहट को दूर करने हेतु अत्यन्त विनम्रता पूर्वक दिलासा दिया जाना आवश्यक है। मूर्च्छा दूर करके सदमे’ की चिकित्सा करनी चाहिए। उसे गरम दूध या गरम चाय पिलायें तथा जले हुए अंगों का भी यथोचित उपचार करना चाहिए।
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