चक्रमर्द (चकवड़) के करिश्माई फायदे – Chakramarda ke Fayde in Hindi

Last Updated on January 12, 2023 by admin

प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार चक्रमर्द (चकवड़) शिम्बीकुल (लेग्युमिनोसी) एवं पूतिकरंज उपकुल (सिजल पिनिआयड़ी) की औषधि है। चक्र अर्थात दाद का मर्दन करने के कारण ही इसका नाम चक्रमर्द है ।

दाद (दद्रु) नामक रोग को दूर करने के लिए चक्रमर्द अती लाभकारी औषधि है। यह केवल दद्रुघ्न ही नहीं कुष्ठघ्न (कुष्ठ नाशक), विषघ्न (विष नाशक), कृमिघ्न (कृमि नाशक) एवं रक्तप्रसादन होने से विशेष उपयोगी है।
महर्षि सुश्रुत ने कफ के शोधन के लिए वमन प्रमुख उपक्रम में चक्रमर्द को उपयोगी कहा है।

चक्रमर्द का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Chakramarda in Different Languages)

Chakramarda in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – चक्रमर्द, दद्रुघ्न (दाद नाशक), एडगज (आकार में छोटा होने से), मेषलोचन (मेष की आकृति के पत्र वाला), प्रपुन्नाट (लेखन होने से पुरुष को दुर्बल करने वाला), पद्माट, पुन्नाट, चक्री
  • हिन्दी (Hindi) – पवाड़, चकवड़।
  • गुजराती (Gujarati) – कुवाडियो।
  • मराठी (Marathi) – टाकला, तरोटा, कुंवाडया।
  • बंगाली (Bangali) – चाकुदा, पनेवार, चावुका।
  • पंजाबी (Punjabi) – पंवार, चकुन्दा।
  • राजस्थानी (Rajasthani) – चकबड़, पंचाडिया, चकुडा, पमार, पंवार।
  • तेलगु (Telugu) – तगिरिसे, वंटेमु।
  • तामिल (Tamil) – तधरै, तकरै।
  • मलयालम (Malayalam) – पौन्पातकरा, तधर।
  • कन्नड़ (kannada) – तगचे।
  • फ़ारसी (Farsi) – संगे सबूबा।
  • अरबी (Arbi) – कुल्व।
  • अंग्रेजी (English) – रिंगवर्म प्लाण्ट, फिटिड केसिया।
  • लैटिन (Latin) – कैसिआ टोरा (Cassia tora) ।

चक्रमर्द (चकवड़) का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

चक्रमर्द समस्त भारत में विशेषतः समशीतोष्ण या उष्ण प्रदेशों में पाया जाता है। यह वर्षाकाल में जंगल, खेत, मैदान, कूड़ा डालने के स्थान एवं सड़क के किनारे पर उगा हुआ पाया जाता है।

चक्रमर्द (चकवड़) का पौधा कैसा होता है :

  • चक्रमर्द का पौधा – इसका वर्षायु क्षुप 1 से 5 फीट ऊँचा होता है।
  • चक्रमर्द के पत्ते – इसके पत्र दुर्गन्धयुक्त (मसलने पर) और पत्रक चिकने, चमकीले तथा स्पष्ट सिराताल युक्त होते हैं। इसके पत्रदण्ड पर दो ग्रन्थियां होती हैं। इसके पत्र मेंथी के पत्तों के समान हाते हैं। पत्र की लम्बाई एक से देड इंच होती है। इनकी सींक पर तीन पत्तियों की जोड़ी होती है।
  • चक्रमर्द के फूल – पुष्प छोटे, पीतवर्ण, अक्षकोणीय, एकाकी या युग्म होते हैं। प्रायः दो पुष्प पुष्पदंड पर निकलते हैं, जिनमें एक नष्ट हो जाता है।
  • चक्रमर्द के फल – इसकी शिम्बी (फली) पतली, 6-12 इंच लम्बी, कुछ मुड़ी हुई चतुष्कोणीय होती है।
  • चक्रमर्द के बीज – बीज आयताकार मेंथी के बीजों के समान हाते हैं। ये एक फली में 20-20 पाये जाते हैं तथा इनका रङ्ग कपिश (भूरा) होता है। इस पर वर्षाकाल में पुष्प एवं शीतकाल में फल लगते हैं।

चक्रमर्द (चकवड़) के प्रकार :

इसका एक दूसरा भेद भी होता है, जिसे केसिया आबटूसीफोलिया (Cassia obtusifolia) कहते हैं। इसे भाषा में चकून्दा कहा जाता है। इसका क्षुप भी चक्रमर्द के क्षुप के समान ही होता है। दोनों की पहचान करना कठिन-सा है। चकून्दा का क्षुप चक्रवड़ के क्षुप से बड़ा होता है, इसके पुष्प भी बड़े होते हैं। इसे पत्तों में मसलने पर दुर्गन्ध नहीं आती और इसके आधारीय पत्रक द्वय के मध्य एक ही ग्रन्थि होती है जबकि चक्रमर्द में प्रायः दो ग्रन्थियां होती हैं।

चक्रमर्द का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Chakramarda Plant in Hindi)

प्रयोज्य अङ्ग – बीज (विशेषतः), पत्र, पुष्प, मूल, पंचांग।

चक्रमर्द के औषधीय गुण (Chakramarda ke Gun in Hindi)

  • रस – कटु।
  • गुण – लघु, रूक्ष।
  • वीर्य – उष्ण।
  • विपाक – कटु।
  • दोषकर्म – यह उष्ण होने से कफवात शामक है।

सेवन की मात्रा :

  • बीज चूर्ण – 1 से 3 ग्राम।
  • पत्र स्वरस – 5 से 10 मि.लि.।
  • क्वाथ – 50 से 100 मि.लि.।

विशेष: – इसके बीजों का कॉफी के प्रतिनिधि के रूप में भी प्रयोग होता है।

रासायनिक संगठन :

  • बीजों में रेसिन, एल्वो इमोडिन, फाइसोफेनिक एसिड एवं 7.65 प्रतिशत गोंद होता हे।
  • पत्र में कैथार्टीन के समान एक रेचक तत्व, लाल रंजक द्रव्य ओर खनिज द्रव्य होते हैं।
  • इनके पंचांग की भस्म में सलफैट, फास्फेट, कैल्शियम, लौह, मैगनिशियम, सोडियम और पोटाशियम पाये जाते हैं।

चक्रमर्द का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Chakramarda in Hindi)

आयुर्वेदिक मतानुसार चक्रमर्द (चकवड़) के गुण और उपयोग –

  • चक्रमर्द कुष्ठघ्न (कुष्ठ नाशक), रक्तप्रसादन, विषघ्न एवं लेखन (मेदोहर) होने से विविध कुष्ठ, विविध रक्तविकार, विषरोग एवं बृंहणजन्य रोगों को नष्ट करने में यह श्रेष्ठ है।
  • चक्रमर्द का रक्तवह स्रोतस् पर विशेष प्रभाव होता है।
  • चक्रमर्द (चकवड़) के पत्र हृद्य कहे गये हैं अर्थात हृदय रोगों में उपयोगी हैं।
  • स्वरस पान के अतिरिक्त इनका शााक बनाकर भी सेवन किया जा सकता है।
  • बला एवं पिप्पली के साथ चक्रमर्द पत्र क्वाथ हृदय रोग निवारणार्थ उपयोगी है।
  • नाड़ियों के लिये बलप्रद होने से पक्षाघात, अर्दित (एक वात रोग) आदि विकारों को दूर करने में यह सहायक होता है।
  • चक्रमर्द (चकवड़) अनुलोमन, कृमिघ्न और यकृदत्तेजक होने से विबन्ध, गुल्म, कृमि और बवासीर रोग आदि में हितावह कहा गया है। बीजों का लेप वातार्श में उपयोगी है।
  • कफनिःसारक होने से श्वास-कास हर प्रयोगों में भी चक्रमर्द की योजना की जा सकती है। बीजचूर्ण को अदरक स्वरस या मधु के साथ सेवन करना चाहिए।
  • योगरत्नाकरकार एवं गद निग्रहकार के कथनानुसार चक्रमर्द मूल को चावल के पानी (मांड) में पीसकर कल्क रूप में सोमरोग (एक खतरनाक स्त्री रोग) को नष्ट करने के लिये सेवन करना हितावह है। सोम (जल) के क्षय होने से इस रोग को सोमरोग कहा जाता है ।
  • सैन्धव, धनियां, शुण्ठ, काली मिर्च, पिप्पली चूर्ण से चक्रमर्द का शाक बनाकर सेवन किया जाना वातपैत्तिक रोगों में उपयोगी है।

रोगोपचार में चक्रमर्द के फायदे (Benefits of Chakramarda in Hindi)

1). दद्रु (दाद) –

  • चक्रमर्द बीज चूर्ण, करंज तैल में मिलाकर लगावें।
  • चक्रमर्द (चकवड़) बीजों को नीबू के स्वरस में पीसकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीज, दूर्वा, हरड, वनतुलसी को छाछ में पीसकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीज, तिल, सरसों, कूठ, वाकुची, हल्दी, दारुहल्दी पीसकर छाछ में मिलाकर लेप करें। यह विचर्चिका, मण्डल कुष्ठ में भी लाप्रद है। ।
  • चक्रमर्द (चकवड़) बीज, आंवला, राल, हरिड को सरसों के तैल में पीसकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीजों को आक के दूध में पीसकर इसमें एरण्ड तैल मिलाकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीजों के चूर्ण को जम्बीरस्वरस से सेवन करें।
  • चक्रमर्द के बीज को मूली के पत्तों के साथ या नींबू के रस के साथ पीसकर दाद पर लगाने से लाभ होता है। जिन रोगों में त्वचा सूज जाती है वहां पर भी इसका उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है।

( और पढ़े – खाज-खुजली के अचूक घरेलू उपचार )

2). खुजली (कण्डू) –

  • चक्रमर्द बीज, तिल, सरसों, हरड को छाछ में पीसकर उबटन कर उष्ण जल से स्नान करें।
  • चक्रमर्द के भुने हुये बीजों का क्वाथ बनाकर सेवन करें।

3). एलर्जी से होने वाला एक्ज़ीमा (पामा) – चक्रमर्द बीज, गन्धक को घृत एवं दही में मिलाकर लेप करें।

4). कच्छू (अंङकोष के आसपास फुन्सियां) – चक्रमर्द बीज, हरड़, सैन्धव, कासमर्द, वाकुची इनको छाछ में पीसकर लेप करें।

5). एक्जिमा (विचर्चिका) – चक्रमर्द बीज चूर्ण को नीबू स्वरस में पीसकर नारियल तैल में मिलाकर लेप करें। ( और पढ़े – एक्जिमा के 22 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )

6). गंजापन (इन्द्रलुप्त) –

  • चक्रमर्द बीजों को छाछ में पीसकर सिर पर लेप करें।
  • चक्रमर्दबीज, सुहागा, गन्धक और श्वेत कत्था को पीसकर तैल में मिलाकर लेप करें।

7). वृश्चिक विष (बिच्‍छू का जहर)– चक्रमर्द पत्र 60 ग्राम पीसकर दंश स्थान पर लेप कर दें।

8). शीतपित्त (उदर्द) –

  • चक्रमर्द बीज,श्वेत सरसों के बीज, हरड़ और तिलों को सरसों के तैल में पीसकर उबटन करें।
  • चक्रमर्द मूल का सूक्ष्म चूर्ण कर घृत में मिलाकर सेवन करें

9). सफेद दाग (श्वित्र) –

  • चक्रमर्द बीज, मकोय, कुष्ठ, पिप्पली को बकरे के मूत्र में पीसकर गोली बना लें। इसे पुनः बकरे के मूत्र में घिसकर सफेद दाग पर लगावें।
  • चक्रमर्द बीज और वाकुची बीजों को भृङ्गराज स्वरस में पीसकर सफेद दाग पर लगावें।
  • चक्रमर्द बीज, त्रिफला और खदिर की छाल के चूर्ण को तुलसी स्वरस में सेवन करें।

( और पढ़े – सफेद दाग 40 अनुभूत घरेलू उपचार )

10). अर्धावभेदक (माइग्रेन) – चक्रमर्द (चकवड़) बीजों को छाछ में पीसकर ललाट पर लेप करें।

11). प्लेग –

  • चक्रमर्द बीज को त्रिधारे थूहर के दूध में पीसकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीजों को खट्टे नीबू के रस में पीसकर लेप करें।

12). वात रोग – चक्रमर्द पत्र का लेप करें।

13). गांठ (ग्रन्थि) – चक्रमर्द पुष्प का लेप करें।

14) . व्यंग (मुँह पर काली फुन्सियाँ) – चक्रमर्द बीज चूर्ण को दही में तीन दिन भिगो दें। इसके पश्चात् मुख पर लगाकर थोड़ी देर बाद गरम जल से मुख धो लें।

15). भल्लातक विष – चक्रमर्द पत्र स्वरस आक्रान्त स्थान पर मलें।

16). कंठमाला –

  • चक्रमर्द की पत्तियों को थोड़ी कच्ची फिटकरी, थोड़ा सेंधा नमक मिला थोड़े जल के साथ पीसें। इसकी टिकिया बनाकर कुछ गरम कर कंठमाला की गांठों पर नित्य बांधने से लाभ होता है। यह उपचार प्रारम्भ में ही करना उपयुक्त है।
  • चक्रमर्द मूल को नींबू स्वरस में पीसकर लेप करें।

17). विद्रधि (पेट के अंदर का एक प्रकार का फोड़ा) – चक्रमर्द पुष्पों को पीसकर गरम कर उपनाह बनाकर बांधते रहने से पक्यमान विद्रधि की असह्य वेदना शान्त हो जाती है। इससे पाक भी शीघ्र हो जाता है।

18). घाव (व्रण) – चक्रमर्द पत्र को एरण्ड तेल में लेप बनाकर बन्धन करने से व्रण ठीक होता है।

19). बवासीर (अर्श) – बवासीर में चक्रमर्द के बीजों को पीसकर लेप करना चाहिए। ( और पढ़े – बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )

20). सेहुआ (एक प्रकार का त्वचा रोग ) –

  • चक्रमर्द बीजों को छाछ के साथ पीसकर लेप करें।
  • चक्रमर्द बीज एवं मूली के बीजों को छाछ में पीसकर लेप करने से सिध्म (सेहुआ) नामक कुष्ठ विशेष शान्त होता है।

21). सर्वाङ्गशोथ (पूरे शरीर में सूजन) – चक्रमर्द पत्र को पानी में उबालकर, निचोड़कर 60 मि.लि. तक्र पीवें। इसका सेवन एक सप्ताह तक निरन्तर करें।

22). कमर दर्द (कटिशूल) – चक्रमर्द बीजों को सेक कर चूर्ण बनाकर घृत व गुड़ मिलाकर सेवन करें। ग्रामीण स्त्रियां अपने कटिशूल को मिटाने के लिये इसके उक्त मोदक बनाकर सेवन करती हैं। ( और पढ़े – कमर में दर्द के सबसे असरकारक घरेलू उपचार )

23). खांसी – चक्रमर्द (चकवड़) बीजों के चूर्ण को उष्ण जल से सेवन करें। यह प्रयोग 21 दिनों तक निरन्तर सेवन करें।

24). दन्तोद्भद विकार – बच्चों के दांत निकलते समय होने वाले विकारों को दूर करने के लिये चक्रमर्द पत्र क्वाथ पिलावें उदरशुद्धि होकर रोग शान्त हो जाते हैं।

25).रक्तविकार – चक्रमर्द के भुने बीजों के चूर्ण से तिगुनी मिश्री ओर मिश्री से दुगुना गोघृत मिलाकर सेवन करने से रक्तविकार दूर होते हैं।

26). सोमरोग – चक्रमर्द मूल को चावलों के पानी (मांड) के साथ पीसकर छानकर पीने से स्त्रियों का सोमरोग एवं श्वेतप्रदर दूर होता है।

27). प्रमेह –

  • चक्रमर्द मूल क्वाथ के पान से प्रमेह विशेषतः वसामेह मिटता है।
  • चक्रमर्द पुष्प चूर्ण 10 ग्राम में बराबर शक्कर मिलाकर प्रातः नित्य सेवन करने से पाचनक्रिया में सुधार होकर मूत्र का गंदलापन एवं क्षार जाना बन्द हो जाता है। इससे मूत्रवर्ण सुधर जाता है।

28). कब्ज – चक्रमर्द पत्र चूर्ण को उष्ण जल से सेवन करें। इससे गुल्म, बवासीर, कृमि आदि रोगों में भी रेचन होकर आराम होता है।

29). चर्म रोग (त्वचा के रोग): चकबड़ के बीजों को मूली के रस में मिलाकर लेप बनाकर लेप करने से चर्म रोग खत्म हो जाते हैं।

30). नेत्रपोथकी: चकबड़ के बीजों को पत्थर पर घिसकर काजल की तरह आंखों में लगाने से नेत्रपोथिकी रोग में लाभ मिलता है।

31). कान के बाहर की फुंसियां: चकबड़ (पमार) के बीजों को नींबू के रस के साथ पीसकर कान की फुंसियों पर लगाने से फुंसिया ठीक हो जाती हैं।

32). जनेऊ (हर्पिस) रोग: चकबड़ (पमार के बीज) को नींबू के रस में मिलाकर या छाछ (लस्सी) में पीसकर लेप करने से जलन और दर्द कम होता है।

33). कुष्ठ (कोढ़): चकबड़ के बीजों को थूहर के दूध में उबालकर गाय के पेशाब के साथ मिलाकर कुछ देर के लिए धूप में सुखा लें, फिर उसका लेप जहां पर जख्म हो वहां पर करने से `किटिभ´ नाम का कुष्ठ रोग समाप्त हो जाता है।

34). चेहरे के कील-मुंहासें: चकबड़ (पमार) के बीज को मूली के पत्तों के साथ या नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से चेहरे के कील-मुंहासें, झांइयां व खाज-खुजली आदि बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।35). गजचर्म रोग (त्वचा का सूजकर मोटा और सख्त हो जाना): चकबड़ (पमार के बीज) को नींबू के रस में मिलाकर या मट्ठे में पीसकर त्वचा की सूजन पर लगाने से पूरा लाभ होता है। त्वचा जहां पर जितनी ज्यादा मोटी होगी वहां पर इसको लगाने से उतना ही लाभ होगा। इसको त्वचा में बाहर लगाने के साथ-साथ 1 से 2 ग्राम चकबड़ के बीज का चूर्ण सुबह और शाम खिलाने से भी लाभ होता है। यह चूर्ण गजचर्म रोग (त्वचा का सूज कर बहुत मोटा और सख्त हो जाना) में भी बहुत लाभकारी है।

चक्रमर्द (चकवड़) से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

वटी –

शुद्ध आंवलासार, गंधक, कत्था (खैर), चौकिया सुहागे का लावा, राल, चक्रमर्द का बीज 20-20 ग्राम, बड़ी इलायची का दाना 10 ग्राम, कपूर देशी 6 ग्राम, इन सबका चूर्ण कर लेवें, पुनः इसे
जल में घोटकर बेर के बराबर वटी बना लेवें। इस वटी को जल में घिसकर दाद पर लगाने से दाद दूर हो जाता है।

चक्रमर्दादि लेप –

चक्रमर्द (पंवाड़) के बीज, बाकुची, सरसों, तिल, कूठ, दारुहरिद्रा, हरिद्रा और नागरमोथा-इन 8 द्रव्यों को समान मात्रा में लेकर छाछ (तक्र) में पीसकर लेप करने से कण्डू (खुजली-खारिश), दद्रु (दाद) और विचर्चिका (क्षुद्र कुष्ठ का एक भेद जिसमें हाथ-पैरों में अत्यन्त खुजली चलती है और दरार वाली रेसामय आकृतियां बन जाती हैं।) रोग नष्ट होते हैं।

मलहम –

चक्रमर्द बीज 70 ग्राम, पारा, गन्धक, मनसिल, श्वेतकत्था, पाषाणभेद, मुर्दासंग 10-10 ग्राम। प्रथम पारा-गन्धक की कज्जली कर अन्य द्रव्यों का कपड़छन चूण मिला दें। फिर सब को चौगुने गोघृत के साथ ताम्रपात्र में तांबे के बस्ते से 6 घण्टे खरलकर मलहम बना लें।
इस मलहम से सूखा या गीला छाजन, पामा, दाद, खाज आदि दूर होते हैं।

रोग स्थान को तमाकू के पानी से (12 ग्राम तमाकू को 500 मि.लि. पानी में भिगोकर छान लें) नित्य प्रातः- सायं धोया करें। शाम को भिगोया पानी प्रात: काम में लेवें। शीतकाल में पानी को गरम कर लेवें।

चक्रमर्द के दुष्प्रभाव (Chakramarda ke Nuksan in Hindi)

  • चक्रमर्द के उपयोग व सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • अत्यधिक मात्रा में चक्रमर्द का सेवन आंतों को नुकसान पहुचाता है।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए – दही, दूध, गुलाब का उपयोग लाभप्रद है ।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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