चिन्तामणि रस के फायदे ,उपयोग और दुष्प्रभाव | Chintamani Ras ke Fayde

Last Updated on August 1, 2020 by admin

चिन्तामणि रस क्या है ? : What is Chintamani Ras in Hindi

चिन्तामणि रस टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। यह आयुर्वेदिक औषधि वात, पित्त और कफ दोषों के संतुलन को बनाए रखती है। इस आयुर्वेदिक औषधि का विशेष उपयोग हृदय रोगों, श्वसन रोग, मधुमेह आदि के उपचार में किया जाता है।

चिन्तामणि रस के घटक द्रव्य और उनकी मात्रा :

  • स्वर्ण भस्म – एक ग्राम
  • रजत भस्म – दो ग्राम
  • शुद्ध पारद – चार ग्राम
  • शुद्ध गंधक – 4 ग्राम
  • अभ्रक भस्म शत पुटी – 4 ग्राम
  • लोह भस्म शत पुटी – 4 ग्राम
  • वङ्गभस्म – 4 ग्राम
  • शुद्ध शिलाजीत – 4 ग्राम
  • अर्जुन छाल क्वाथ – आवश्यकतानुसार
  • चित्रक क्वाथ – आवश्यकतानुसार
  • भृङ्गराज क्वाथ – आवश्यकतानुसार

चिन्तामणि रस के प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कजली : जन्तुघ्न , योगवाही, रसायन।
  2. स्वर्ण भस्म : बल्य, बृष्य (वीर्य और बल बढ़ाने वाला), कान्तिप्रद, ओजोवर्धक, हृद्य (हृदय के लिए लाभप्रद), रसायन।
  3. रजत भस्म : वातनाड़ीबल्य, शीतल, हृद्य, वातशामक, मेध्य, रसायन।
  4. अभ्रक भस्म : मज्जा प्रसादक, बल्य, रक्तपित्तहर, रसायन ।
  5. लोह भस्म : रक्तवर्धक, बल्य, बृष्य, रसायन।
  6. वङ्ग भस्म : वीर्यवर्धक, बल्य, बृष्य, रसायन।
  7. शिलाजीत : रक्तवर्धक, बल्य, योगवाही, रसायन।
  8. चित्रक : दीपक, पाचक, अग्निवर्धक, आमपाचक, रसायन।
  9. भृङ्गराज : त्वच्य, केश्य, अक्षिरोगहर, शिरोरोगहर, रसायन।
  10. अर्जुन : शीतल, हृद्य, विषघ्न, मेदहर, प्रमेहर।

बनाने की विधि :

औषधि निर्माण के आठ घण्टे पूर्व शिलाजितु को चित्रक क्वाथ में भिगो दें, छह घण्टे बाद हाथ से मसल कर स्वच्छ वस्त्र से छान लें और दो घण्टे पात्र में स्थिर रहने दे। अब पारद गंधक की निश्चन्द्र कजली में क्रमशः स्वर्ण, रजत, अभ्रक, लोह और वङ्ग की भस्में डालते हुये इतना खरल करवायें की सभी औषधि कज्जलवत् हो जायें। अब शिलाजीत मिश्रित चित्रक क्वाथ को धीरे से नितार कर खरल में डालें पात्र में नीचे बैठी मिट्टी फेंक दें और खरल कर पूरा क्वाथ सुखा दें, पुनः दोबारा क्वाथ डालें और खरल करके सुखा दे इस प्रकार क्रमशः सात भावना चित्रक क्वाथ या रस की, सात भावना भृङ्गराजस्वरस की और अन्त में सात भावनाएँ अर्जुन त्वक (छाल) क्वाथ की देकर 100 मि.ग्रा. की वटिकायें बनवा लें और छाया में सुखाकर सुरक्षित कर लें।

उपलब्धता : यह योग प्रसिद्ध औषधि निर्माताओं द्वारा बना -बनाया बाज़ार में मिलता है।

सेवन की मात्रा : Dosage of Chintamani Ras

chintamani ras ka istemal kaise karte hain

एक से दो गोली प्रातः सायं भोजन से पूर्व, आत्यायिक अवस्थाओं में एक वटिका चार चार घण्टे के अन्तराल से दी जा सकती है।

अनुपान (जिस पदार्थ के साथ दवा सेवन की जाए) :

गेहूँ का क्वाथ, अर्जुन क्षीर पाक, खमीरा ग़ावज़वान, अर्कगुलाव, दूध, शीतलजल

चिन्तामणि रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Chintamani Ras in Hindi

चिन्तामणि रस के लाभ निम्नलिखित है –

हृदय रोगों में लाभकारी चिन्तामणि रस का सेवन (Chintamani Ras Benefits in Heart Diseases in Hindi)

हृदय के सभी रोगों में चिन्तामणि रस का विशेष स्थान है । हृद द्रव, हृदय गति रुकना, हृदय की कमजोरी , हत्कपाट शोथ, हृदय गति अनिमितता में यह औषधि अत्यन्त लाभप्रद है। दो तीन मात्रा लेने पर ही रोगी शान्ति का अनुभव करता है। पूर्णलाभ के लिए तीन सप्ताह तक सेवन करवाना चाहिये।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में प्रभाकरवटी, कुकुभादि चूर्ण, सक्ष्मैलादि चूर्ण, खमीरा गावजवान अम्बरी, जवाहर मोहरा इत्यादि कल्पों का सहयोग लेना चाहिये।
रक्तवाहिनियों के रोगों, जिन में रक्त वाहिनियों का अवरोध हो या धमनि काठिन्य में इस रसायन का उपयोग नहीं होता वहाँ हृदयाणर्व रस, हिंगु कर्पूरवटी, कल्याण सुन्दर रस, पुष्कर मूल चूर्ण इत्यादि के प्रयोग से लाभ होता है।

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फेफड़े के रोग ठीक करे चिन्तामणि रस का प्रयोग (Chintamani Ras Benefits to Cure Lungs Diseases in Hindi)

फेफड़े की नवीन व्याधियों यथा निमोनिया, उरुस्तोय इत्यादि में इस रस का प्रयोग नहीं होता, परन्तु पुराने फेफड़ों के रोगों, पुरानी खांसी (जीर्ण कास), श्वास, राजयक्ष्मा इत्यादि जीर्ण प्रकृति के रोगों में इसका सफलता पूर्वक प्रयोग होता है।
एक गोली दिन में तीन बार मधु, मधुपिप्पली से देने से एक सप्ताह के भीतर वांछित लाभ मिलने लगता है। पूर्णलाभ के लिए चालीस दिनों तक प्रयोग अभिष्ठ होता है।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में शृङ्गभस्म, प्रवाल भस्म, सितोपलादि चूर्ण, स्वर्ण वसन्तमालती रस, वसन्त तिलक रस इत्यादि का प्रयोग भी करवायें।

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प्रमेह में लाभकारी है चिन्तामणि रस का सेवन

प्रमेह में इस रसायन का उपयोग ताकत बढ़ाने के लिए (बलवर्धनार्थ) होता है ।

सहायक औषधियां – सहायक औषधि के रूप में, इसके साथ प्रमेह गज केशरी, इन्द्रवटी, ओजो मेहान्तक रस, वसन्त कुसुमाकर रस, चन्द्र प्रभावटी, गोक्षुरादि चूर्ण प्रभृति औषधियों का सेवन करवाने से लाभ होता है। चिकित्सावधि रोगानुसार सामान्यतः तीन सप्ताह।

ताकत बढ़ाने में चिन्तामणि रस के इस्तेमाल से फायदा (Benefit of Chintamani Ras to Boost Strength in Hindi)

चिन्तामणि रस का कमजोर रोगियों पर अद्भुत लाभ होता है। एक गोली प्रातः सायं आमले के मुरब्बे के साथ देकर दूध का अनुपान देना चाहिये मुरब्बे के अतिरिक्त शहद (मधु) अथवा दूध के साथ भी सेवन करवा सकते हैं। अति सहवास, अति मार्ग गमन, भोजन के हीन योग एवं रोगों के कारण आई दुर्बलता में इस रस का प्रयोग अवश्य करवाना चाहिये। प्रयोग काल में सुपाच्य पौष्टिक भोजन एवं योग्य परिश्रम का ध्यान रखना आवश्यक है।

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मनोरोग में लाभकारी चिन्तामणि रस

चिन्ता, भय, शोक इत्यादि मनो भावों के कारण होने वाले हृदय की घबराहट में चितामणि रस के प्रयोग से अद्भुत लाभ मिलता है। इसके सेवन से मन शान्त हो जाता है, अत: चिन्ता इत्यादि मनोविकृतियों में लाभ होता है। रोगी को निद्रा आने लगती है। भूख सामान्य हो जाती है, आलस्य और बेचैनी दूर होते हैं।
एक एक गोली मांस्यादिक्वाथ, खमीरा अवरेशम, खमीरा मरवारीद अथवा शीतल जल से दें। एक दिन में ही लाभ परिलक्षित होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिये चालीस दिनों तक सेवन करवायें ।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में चेतन्योदय रस, रजत भस्म, अकीक भस्म, मुक्ताभस्म, मनः प्रसादक (स्वानुभूत) का प्रयोग भी करवायें।

वातनाड़ी शूल में चिन्तामणि रस का उपयोग लाभदायक

त्रिधारा नाड़ी शूल, शंखक (शंखवात), सायटिका (गृध्रसी), विश्वाची इत्यादि वात नाड़ी शूलों में चिन्ता मणि रस का प्रयोग दशमूल क्वाथ के साथ करवाने से अतीव लाभ मिलता है ।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों के रूप में अश्वगन्धादि चूर्ण ,अग्नितुण्डी वटी, खंजनकारी वटी में से किसी एक या दो का प्रयोग करवाना और भोजनोपरान्त वलारिष्ट, अश्वगन्धा रिष्ट में से किसी एक या दोनों का प्रयोग करवाना सिद्धिप्रद होता है चिकित्सावधि चालीस दिन।

उच्च रक्त चाप मिटाए चिन्तामणि रस का उपयोग (Chintamani Ras Cures High Blood Pressure in Hindi)

उच्च रक्त चाप के अनेक कारण होते हैं। उनमें से एक प्रधान कारण है। हृदय रोग, हृदय रोगों के कारण बढ़े हुये रक्त चाप में चिन्तामणि एक सक्षम औषधि है। इसकी एक वटिका प्रातः सायं अर्जुन क्षीरपाक से देने से तीन दिन के भीतर रक्त चाप घटने लगता है। पूर्ण लाभ के लिये चालीस दिनों तक प्रयोग करवाना चाहिये ।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में प्रवाल पिष्टि, प्रभाकर वटी, कामदुधा रस, चन्द्र प्रभावटी, अकीक भस्म या पिष्टि का प्रयोग भी करवायें।

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अम्लपित्त में लाभकारी है चिन्तामणि रस का सेवन (Chintamani Ras Uses in Controlling Acidity in Hindi)

चिन्तामणि रस का प्रयोग अम्लपित्त में भी सफलता पूर्वक होता है। विशेष रूप से दुबले पतले, चिन्तन शील, अनिद्रा युक्त अम्ल पित्त के रोगियों को चिन्तामणि रस की एक गोली प्रातः सायं भोजन के पूर्व, आमले के मुरब्बे से देने से अतीव लाभ होता है।
इसका प्रयोग चालीस दिन तक करवाने से अम्लपित्त के साथ कमजोरी भी दूर हो जाती है।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में कामदुधा रस, स्वर्ण सूत शेखर रस, प्रवाल पंचामृत, अम्ल पित्तान्तक लोह, अविपत्तिकर चूर्ण इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिये।

चिन्तामणि रस के इस्तेमाल से श्वते प्रदर में लाभ (Chintamani Ras Cures Leucorrhoea in Hindi)

श्वेत प्रदर की रुग्णा को चिन्तामणि रस का प्रयोग आमले के मुरब्बे से करवाने से एक सप्ताह में ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिनों तक प्रयोग करवाना चाहिये इससे रोग के साथ रोग द्वारा उत्पन्न कमजोरी भी ठीक हो जाता है।
औषधि सेवन काल में मैथुन आग्रह पूर्वक वर्जित करवा दें।

सहायक औषधियां – सहायक औषधियों में लोघ्रामलकी (स्वानुभूत) काम धेनु, पुष्यानुग चूर्ण, अशोकारिष्ट, लोघ्रासव, लोहासव का प्रयोग भी करवायें।

चिन्तामणि रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Chintamani Ras Side Effects in Hindi

आयुर्वेद मतानुसार, चिन्तामणि रस के ये नुकसान भी हो सकते है –

  • चिन्तामणि रस केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
  • चिन्तामणि रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
  • अधिक खुराक के गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं ।
  • बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इस दवा से परहेज करना है।
  • चिन्तामणी रस पारद एवं खनिज धातुओं की भस्मों के मिश्रण का कल्प है । इसकी क्रिया और प्रतिक्रिया पारद के शोधन तथा भस्मों के निरुत्थीकरण पर आधारित होती है। पारद संस्कारित हो और भस्में निरुत्थ हों तो यह कल्प अत्यन्त प्रभावशाली रसायन है और फेफड़े (फुफ्फुस) तथा हृदय के रोगों में तत्काल लाभप्रद होता है और दुष्प्रभाव भी नहीं होता है । इसके विपरीत, पारद भली प्रकार से शद्ध न हो भस्में कच्ची हो तो लिवर (यकृत) और किडनी को हानी पहुंचा सकता हैं । अतः भस्मों और रसौषधियों में पालनीय पूर्वोपायों का चिन्तामणि रस के सेवन काल में भी पालन आवश्यक है।

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