Yogendra Ras ke Fayde | योगेन्द्र रस के फायदे ,उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on June 6, 2020 by admin

योगेन्द्र रस क्या है ? : What is Yogendra Ras in Hindi

योगेन्द्र रस एक पारंपरिक आयुर्वेदिक दवा है, जिसका उपयोग पैरालिसिस (पक्षाघात) , बेहोशी, गृध्रसी (सायटिका), उच्च रक्तचाप, उन्माद, टी.बी, वीर्य विकार, प्रमेह, हिस्टीरिया, इन्द्रियों की कमजोरी ,सभी प्रकार की मानसिक कमजोरियों के उपचार के लिए किया जाता है।

घटक और उनकी मात्रा :

  • षडगुणवलिजारित रस सिन्दूर – 10 ग्राम,
  • स्वर्णभस्म – 5 ग्राम,
  • कान्त लोह भस्म – 5 ग्राम,
  • शत पुटी अभ्रक भस्म – 5 ग्राम,
  • मौक्तिक भस्म – 5 ग्राम,
  • वङ्ग भस्म – 5 ग्राम

भावनार्थ : घृत कुमारी स्वरस आवश्यकतानुसार।

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. रस सिन्दूर : वात कफनाशक, जन्तुघ्न, बल्य, बृष्य, योगवाही, रसायन।
  2. स्वर्ण भस्म : ओजोबर्धक, बल्य, बृष्य, कान्तिबर्धक, रसायन।
  3. कान्तलोह भस्म : रक्त बर्धक, बल्य, बृष्य, रसायन।
  4. अभ्रक भस्म : मज्जाधातु पोषक, वातनाड़ी बल्य, रसायन।
  5. मुक्ताभस्म : हृदय, मस्तिष्क बलदायक, पित्तशामक, बल्य।
  6. वंग भस्म : शुक्रबर्धक, अण्ड कोष बीजकोष बल्य, बृष्य ।
  7. घृतकुमारी (एलोवेरा) : बल्य, बृहण, शोथहर, वेदनास्थापक, मूत्रल, सारक।

योगेन्द्र रस बनाने की विधि :

सभी भस्मों को घृत कुमारी के स्वरस में सात दिन मर्दन करके गोला बनाएं और एरण्ड पत्र में अच्छी प्रकार लपेट कर तीन दिन के लिए धान्य राशी में दबा दें। चौथे दिन निकाल कर 100 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवा कर छाया शुष्क होने पर सुरक्षित कर लें।

उपलब्धता : यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है।

योगेन्द्र रस की खुराक : Dosage of Yogendra Ras

एक वटिका प्रातः सायं भोजन से पूर्व ।

अनुपान :

त्रिफला क्वाथ, मिश्री, मधु, मधुसर्पि, दूध,

योगेन्द्र रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of ogendra Ras in Hindi

प्रमेह व बहुमूत्र रोग में फायदेमंद योगेन्द्र रस का प्रयोग

योगेन्द्र रस बल्य, बृष्य एवं रसायन गुणों के कारण प्रमेह में एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। इसके प्रयोग से वातज, पित्तज, कफज, तीनों प्रकार के प्रमेहों में लाभ होता है।
मात्रा – एक वटिका प्रात: सायं भोजन से पूर्व, वातज प्रमेहों में दूध, पित्तज प्रमेहों में मिश्री, और कफज प्रमेहों में मधु के अनुपान से दें ।
सभी प्रकार के प्रमेहों में निशा आमलकी के क्वाथ से देने से एक सप्ताह में लाभ होता है, पूर्ण लाभ के लिए एक मास तक सेवन करवाएं।

सहायक औषधियों में मेह मुदगर रस, चन्द्र प्रभावटी, शिलाजित्वादि वटी, वंगेश्वर रस में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग भी करवाएँ । बहूमूत्र प्रमेह का ही लक्षण है प्रमेह की परिभाषा ही ‘प्रभूताऽबिल मूत्रता‘ है। अत: बहू मूत्र में इस रसायन का प्रयोग प्रमेहवत् ही करना चाहिए।

उन्माद ,अपस्मार और मूर्छा में लाभकारी है योगेन्द्र रस का सेवन

यह तीनों रोग मनोशारीरिक व्याधियाँ है। उपरोक्त तीनों व्याधियों में मन भी प्रभावित होता है और शरीर भी योगेन्द्र रस वातनाशक मनः प्रसादक एवं संज्ञावाहिनि उत्तेजना शामक होने के कारण उपरोक्त तीनों रोगों के लिए अमोघ औषधि है। उन्माद में जब निद्रा कारक औषधियों से भी रोगी एक दो घण्टे से अधिक नहीं सो पाता। योगेन्द्र रस की एक वटिका मांस्यादि क्वाथ से देने से छ: घण्टे तक सोता रहता है और जागने पर खिन्न होने के स्थान पर प्रसन्न होता है।
यदि पंचकर्म के उपरान्त (पंचकर्म रोगी के असहयोग के कारण सम्भव न हो तो विरेचन के उपरान्त) इस महौषधि के सेवन से एक सप्ताह के भीतर ही रोगी शान्त हो जाता है। पूर्ण लाभ के लिए न्यूनातिन्यून चालीस दिन औषधि का सेवन करवाना चाहिए। पूर्णत: रोग रहित हो जाने पर भी उन्माद (विखण्डित मानसिकता) के रोगियों को वर्ष दो वर्ष में रोग का पुनरा क्रमण हो जाता है, उस समय भी उपरोक्त चिकित्सा करनी चाहिए।

(क) अपस्मार : के रोगियों के लिए योगेन्द्र रस अमृतवत्, कार्य करता है एक वटिका प्रात: सायं वचः क्वाथ से देने से आक्रमण रुक जाते हैं। परन्तु इसका सेवन लगातार छ: मास तक करवाना पड़ता है। अपस्मार के रोगियों की प्रथम पंचकर्म से शुद्धी हो जाए तो औषधि का तुरन्त और स्थाई प्रभाव होता है।

(ख) मूर्छा : रोग नहीं एक लक्षण है जो अपस्मार सहित कोई अन्य रोगों में मिलता है, जहाँ तक कि कई रोगी रक्त को देखकर अथवा अन्य भीवत्स दृष्य देखकर मूर्छित हो जाते हैं । मूर्छा की तत्कालिक चिकित्सा नस्य है, तीक्ष्णनस्य का प्रधमन करने से रोगी तुरन्त संज्ञा में आ जाते हैं। परन्तु कुछ रोगी बार-बार मूर्छित होते हैं। उनमें से अधिकतर हृदय या मानसिक विकृतियों से पीडित होते हैं। ऐसे रोगियों को योगेन्द्र रस एक वटिका प्रातः सायं त्रिफला क्वाथ से देने से मूर्छा का पुनरोद्भव नहीं होता। चिकित्सावधि एक मास।

उन्माद मिटाए योगेन्द्र रस का उपयोग

उन्माद में उन्माद गज केसरी, वात कुलान्तक, योगराज गुग्गुलु, चतुर्भुज रस इत्यादि औषधियों की और अपस्मार में ब्राह्मी वटी स्मृतिसागर, सारस्वत चूर्ण, चतुर्भुज रस और मूर्छा में जवाहर मोहरा, हिंगु कर्पूर वटि, योषापस्मार वटी, इत्यादि की सहायता भी लेनी चाहिए । मनो दैहिक रोगों में सत्वाजय चिकित्सा भी अवश्य करनी चाहिए।

राजयक्ष्मा (क्षय रोग / टी.बी) रोग में योगेन्द्र रस से फायदा

इस रोग में जब तक ज्वर की उपस्थिति हो योगेन्द्र रस का प्रयोग नहीं होता, ज्वर की मुक्ति के उपरान्त योगेन्द्र रस की एक वटिका प्रातः सायं त्रिफला हिम में मिश्री मिलाकर देने से रोगी में बल मांस एवं उत्साह की वृद्धि होती है। कास (खाँसी) में लाभ होता है। रक्त में वृद्धि होती है। तीन मास तक सेवन से पूर्ण लाभ होता है फिर भी आधुनिक विधियों (एक्स-रे, रक्तपरीक्षण) से रोग का निराकरण होने तक चिकित्सा आवश्यक होती है।

राजमृगांक रस, हेमगर्भ पोटली रस, जयमंगल रस, सहस्र पुटी अभ्रक भस्म, स्वर्णवसन्त मालती रस, सितोपलादि चूर्ण, च्यवनप्राश अवलेह, बलारिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, द्राक्षारिष्ट इत्यादि बलबर्धक रोग नाशक एवं रसायन औषधि में से एक या दो औषधियों को सहायक औषधि के रूप में अवश्य प्रयोग करवाना चाहिए।

( और पढ़े – टी.बी (क्षय रोग) के कारण लक्षण और उपचार )

पक्षाघात (लकवा) में योगेन्द्र रस का उपयोग फायदेमंद

पक्षाघात की आत्यायिक अवस्था में जब रोगी मूर्च्छित होता है। योगेन्द्र रस का प्रयोग अतिलाभदायक होता है। ऐसी अवस्था में औषधि की द्विगुणित मात्रा बारीक पीस कर मधु में आलोडित करके रोगी की जिह्वा पर लेप कर दें। यदि लेप करना सम्भव न हो तो उक्त मधु युक्त औषधि में 10 मि.लि. दूध मिलाकर (नासा नलिका) फीडिंग पाइप में डाल दें, यदि वह भी सम्भव न हो तो प्रथम अस्थापन वस्ति देकर, दूसरी उपरोक्त मधु प्लुत औषधि और दूध मिलाकर मात्रा वस्ति दें अथवा ड्रिप मैथड़ से वृहदान्त्र में पहुँचा दें। इस चिकित्सा से 80% रोगियों में आत्याधिकता समाप्त होकर रोगी होश में आ जाता है।

अत: अब योगेन्द्र रस के साथ सहायक औषधियों के रूप में समीर पन्नग रस, वृहद्वात चिन्तामणि रस, रस राज रस ,अर्धाङ्ग वातारिरस, एकांग वीर रस, में से किसी उपयुक्त औषधि का प्रयोग भी अवश्य करवाए।

( और पढ़े – लकवा के कारण और उपचार )

वात व्याधियाँ में योगेन्द्र रस के इस्तेमाल से फायदा

सभी वात व्याधियों में योगेन्द्र रस का प्रयोग यशदायक होता है। इस रस का प्रभाव वैसे तो सभी प्रकार के वात रोगों में होता है, परन्तु संज्ञा वाहिनियों के प्रभावित होने पर योगेन्द्र रस की योजना अवश्य करनी चाहिए। इसके प्रयोग से संज्ञा वाहिनियों को बल मिलता है और उनमें स्थित वात का नियन्त्रण होता है।

(अ) कम्पवात मिटाए योगेन्द्र रस का उपयोग

व्यवासाय में ऐसे रोगी मिलते हैं जिनको एक हाथ, पाँव, जड़घा या शिर में कम्पन होता है। मन की भावुक स्थितियों में कम्पन में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार के कम्पन में योगेन्द्र रस एक महौषधि है । एक गोली प्रातः सायं दूध से देने में लाभ होने लगता है। यह चिरकारी प्रकार का रोग है जो लम्बी चिकित्सा की अपेक्षा रखता है।
राइटरस क्रैम्प इसी रोग का लक्षण है रोगी का हाथ सामान्य होता है परन्तु यूँ ही वह लिखने लगता है, उसका हाथ काँपने लगता है। लिखावट सीधी नहीं रहती अक्षर बैडौल टेढे, मेढ़े बनते हैं। रोगी कलम घसीट कर लिखता है ।

सहायक औषधियों में विषतिन्दुक वटी, अग्नितुण्डी वटी, बृहद्वातचिन्तामणि रस, कृष्ण चतुर्मुख रस, इत्यादि में से एक दो औषधियों का प्रयोग करवाए।

इस रोग में वस्ति चिकित्सा अत्यन्त प्रभावशाली होती है। अतः उपरोक्त चिकित्सा के साथ यदि कालवस्तियों का प्रयोग किया जाए तो चिकित्सा में अधिक सफलता मिलती है । कम्पवात में योगेन्द्र रस एक सफल औषधि है। पारकिन्सन डिसीज़ में इसका उपयोग नहीं होता।

( और पढ़े – कंपवात के 19 आयुर्वेदिक घरेलू उपचार )

(क) गद् गदत्व या मिनमिनत्व रोग में योगेन्द्र रस का उपयोग फायदेमंद

वात विकृति से अथवा अर्धाङ्गवातोपरान्त रोगी केबात करने पर जिह्वा का पूर्ण रूप से समर्थन न मिलने के कारण रोगियों में गदगदत्व या मिनमिनत्व हो जाता है। यदि उचित चिकित्सा मिले तो यह चालीस दिन में ठीक हो जाता है वरन् जीर्ण होने पर स्थाई हो जाता है।
वाक संग भी इसके समकक्ष स्थिति है बोलते-बोलते रोगी का कण्ठ अवरुद्ध हो जाता है। कुछ समयोपरान्त कण्ठ का अवरोध दूर होने पर रोगी पुनः बोलने लगता है। उपरोक्त स्थितियों में योगेन्द्र रस एक सफल औषधि प्रमाणित होती है। एक गोली प्रातः सायं मधु सर्पि से चटाकर अनुपान में उष्ण दूध का पान करवाएं।

सहायक औषधियों में कृष्ण चतुर्मुख रस, रस राज रस, बृहद्वात चिन्तामणि रस इत्यादि में से किसी एक औषधि का सेवन भी करवाएं। इस रोग में ‘नस्य’ एक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा है। अतः रोगी को क्षीरवला तैल, अणुतैल, नारायण तैल, अथवा निर्गुण्डी तेल की नस्य अवश्य दें।

(ख) गृध्रसी (सायटिका) में योगेन्द्र रस के सेवन से लाभ

योगेन्द्र रस सायटिका की एक मान्य औषधि है। इसकी एक गोली प्रातः सायं निर्गुण्डी पत्र क्वाथ के साथ देने, से सायटिका (गृध्रसी) में निश्चित रूप से लाभ होता है। इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए की रोगी की मेरुदण्ड चक्रिका (DISC) का स्थानान्तर हआ हो परन्तु भग्न नहीं हो। यदि चक्रिका का भग्न हो गया हो तो औषधियों से लाभ नहीं होता मात्र शल्य चिकित्सा ही लाभप्रद हो सकती है।

सहायक औषधियों में त्र्योदशाङ्ग गुग्गुलु, खञ्जनकारी वटी, एकांग वीर रस, सिंहनाद गुग्गुलु, रास्नादि गुग्गुलु में से किसी एक या दो का प्रयोग करवाएँ। चिकित्सावधि चालीस दिन ।

(ग) विश्वाची (अवबाहुक) रोग में लाभकारी है योगेन्द्र रस का सेवन

(वायु कुपित होकर बाहु से अंगुलियों के पीछे के भाग की मांसपेशियों तथा कंड़राओं को पीड़ित करती है जिससे बाहु (भुजा) तथा अंगुलियों की क्रिया का नाश हो जाता है। इस को विश्वाची कहते हैं।)
गृध्रसी और विश्वाची दोनों व्याधियाँ एक जैसी है गृध्रसी जड़धा (जांघ) में असह्य वेदना उत्पन्न करती है तो विश्वाची बाहु (भुजा) में चिकित्सा भी दोनों की समान होती है। दोनों में मेरुदण्ड की स्थिति का ध्यान रखना आवश्यक है। मेरुदण्ड की बैंच (Trauction) दोनों में लाभदायक होती है। परन्तु तीव्र वेदना में बैंच नहीं लगानी चाहिए। वेदना कम होने पर धीरे-धीरे बैंच और उसका समय बढ़ाना चाहिए।
स्थानीय स्वेद भी दोनों में लाभदायक होता है। परन्तु स्थानीय का अर्थ वेदना का स्थान नहीं मेरु दण्ड का वह भाग जिसकी विकृति वेदना का मूल कारण होता है लेना चाहिए।
विश्वाची में नस्य भी एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। अत: वातनाशक स्नेहों की नस्य का भी उपयोग अवश्य करना चाहिए। तथा योगेन्द्ररस की एक गोली दिन में दो बार देते रहना चाहिये।

(घ) अर्दित (चेहरे का लकवा) में योगेन्द्र रस का उपयोग लाभदायक

पक्षाघात का लघुरूप अर्दित, इसके कारण पक्षाघात के कारणों जैसे ही होते हैं। परन्तु पक्षाघात में दोष अधिक विकृत होते हैं और अर्दित में अपेक्षा कृत कम, अत: इसका प्रकोप भी शरीर के सीमित भाग मुख मण्डल पर ही होता है। योगेन्द्र रस की योजना से इस रोग का शीघ्रता पूर्वक नियन्त्रित किया जा सकता है।
योगेन्द्र रस की एक गोली प्रातः सायं आत्मगुप्तादि क्वाथ के साथ सेवन करवाने से तीन दिन में ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए दो सप्ताह तक औषधि सेवन आवश्यक है।

सहायक औषधियों में अर्धाङ्ग वातारिरस, एकाङ्ग वीर रस, खञ्जनकारी वटी, योग राज गुग्गुल, में से किसी एक या दो का प्रयोग एवं खाने के लिए मक्खन के साथ माषवटक का प्रयोग करवाएं। नारायण तैल, माषतैल, निर्गुण्डी तैल, क्षीरवला तैल की नस्य और स्थानीय स्नेहन भी करवाना चाहिए। श्री वेष्ठ पिण्ड स्वेद से शीघ्र और स्थाई लाभ होता है। एक वर्ष से अधिक पुराने केस (Case) प्राय: असाध्य होते हैं।

(ङ) शंखक रोग में लाभकारी है योगेन्द्र रस का प्रयोग

एक कनपटी में शूल जो प्रायः आँख में भी अनुभव होता है को शंखक कहते हैं। इसका प्रधान कारण चक्षु के अन्दर खिंचाव (टेनशन) बढ़ जाना होता है। योगेन्द्र रस की एक गोली प्रता: दोपहर सायं मांस्यादि क्वाथ अथवा पुनर्नवाष्टक क्वाथ से देने एक दिन में ही लाभ मिलता है।

सहायक औषधियों में श्वेत पर्पटी, पुनर्नवादि मण्डूर, मूत्रदाहान्तक चूर्ण, आरोग्य वर्धिनी वटी मिहिरोदय रस, शिरशूलादिवज्र रस में किसी एक का प्रयोग करवाना चाहिए नस्य कर्म भी एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम है। अत: नस्य का प्रयोग भी अवश्य ही करना चाहिए।

मनोव्याधियाँ मिटाए योगेन्द्र रस का उपयोग

(A) अतत्वाभिनिवेश में लाभकारी है योगेन्द्र रस का सेवन

अस्तित्व विहीन को अस्तित्व युक्त मानना अतत्वा भिनिवेश है। रोगी अपनी मानसिक कल्पना के आधार पर देवता, ग्रह, शत्रु, मित्र, किसी हिंसक प्राणी, इत्यादि की कल्पना करके वैसा ही आचरण करने लगता है। उसे मालूम होता है कि उसकी कल्पना निराधार है, अस्तित्व विहीन है, अनुचित है, परन्तु वह अपने मन से उसका भय घृणा, प्रेम मिटा नहीं सकता, अपने विचारों को बदल नहीं सकता ऐसी परिस्थिति में योगेन्द्र रस के सेवन से पर्याप्त लाभ मिलता है। एक गोली प्रात: सायं मधु ,मधु सर्पि, मांस्यादि क्वाथ से देने से रोगी की मनः स्थिति सुधरने लगती है। पूर्णता जागरूक होने तक बिना मात्रा परिवर्तन के चिकित्सा करते रहना चाहिए। उसके पश्चात मात्रा क्रमशः कम करते जाना चाहिए ।

सहायक औषधियों में वात कुलान्तक रस, बृहद्वात चिन्तामणि रस, चैतन्योदय रस, मनः प्रसादक (स्वानुभूत) का प्रयोग भी करवाना चाहिए।

(B) योषापस्मार रोग में योगेन्द्र रस के इस्तेमाल से लाभ

यह रोग न तो अपस्मार है न हीं केवल महिलाओं का रोग, हाँ महिलाएँ भावुक और कोमल होने के कारण इस रोग से अधिक प्रभावित होती है। आधुनिक हिस्टेरिया से इसका अधिक साम्य है। रोगी परिजनों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने और उनसे सहानुभूती प्राप्त करने के लिए सामान्यतः मूर्छित हो जाता है। परन्तु मूर्छित होने पर भी इतना जागरूक रहता है कि उसे अपस्मार के रोगी की तरह चोटें नहीं आती। इसके अतिरिक्त उसे जिस रोग का ज्ञान हो उसी के लक्षण उसमें प्रकट होने लगते हैं।
ऐसे रोगियों के लिए योगेन्द्र रस एक अति महत्त्वपूर्ण औषधि है। एक गोली प्रातः सायं देने से तीन दिन में ही लाभ दिखाई देने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए चालीस दिनों तक औषधि सेवन की आवश्यकता होती है।

सहायक औषधियों में योषापस्मार वटी, चैतन्योदय रस, चतुर्भुज रस, हिङ्ग कर्पूर वटी, इत्यादि में से एक या दो औषधियों का प्रयोग भी अवश्य करना चाहिए। स्त्वाजय चिकित्सा भी लाभकारी सिद्ध होती है।

(C) अवसाद में योगेन्द्र रस का उपयोग लाभदायक

योगेन्द्र रस अवसाद की चिकित्सा में एक महत्त्वपूर्ण औषधि है। अवसाद के रोगी जो सदैव चिन्तित रहते हैं, इस औषधि के सेवन से उनकी चिन्ता दूर हो जाती है। एक गोली प्रातः सायं मधु से चटाकर अनुपान के रूप में मांस्यादि क्वाथ (सद्यापाचित) पिलाएँ । दो दिन में रोगी में उत्साह दृष्टिगोचर होने लगता है।

सहायक औषधियों में चैतन्योदय रस, एक सफल औषधि है । वृहद्वात चिन्तामणि रस, वातकुलान्तक रस, रस राज रस में से किसी एक औषधि की सहायता भी अवश्य लेनी चाहिए।

(D) भीति रोग मिटाता है योगेन्द्र रस

रोगी अकारण मनुष्य, पशु, स्थान, पोलीस, सेना इत्यादि से भयभीत रहता है, उसे ज्ञान होता है कि उसका भय मिथ्या है, अथवा जिस वस्तु से वह भयाक्रान्त है उसका अस्तित्व ही नहीं है, परन्तु वह अपने मन को समझा नहीं पाता । योगेन्द्र रस की दो या तीन मात्राऐं (रोग की तीव्रता के अनुरूप) देने से एक सप्ताह में लाभ होने लगता है। रोगी की सत्वाजय चिकित्सा भी करनी चाहिए। अति तीर्व प्रकार के रोगियों को विद्युत चिकित्सा की आवश्यकता होती है अत: उन्हें रुग्णालय (हॉस्पिटल) में भेज देना चाहिए।

(E) वाध्यता रोग में योगेन्द्र रस से फायदा

वाध्यता का रोगी सुशील बुद्धिमान, मर्यादित एवं नियमित होता है। अपना प्रत्येक कार्य ठीक समय पर करने वाला एवं सफाई पसंद होता है, परन्तु उसे कोई एक क्रिया को बार-बार करने की आदत होती है। यह क्रिया वह जान बूझ कर नहीं करता, परन्तु यदि वह इसे रोकना चाहे तो अल्प समय तक ही रोक सकता है, थोड़े समयोपरान्त वह क्रिया स्वयं संचालित होने लगती है यह क्रियाएँ हाथ हिलाना, आँखें चलाना, हाथ धोना, ऐनक का शीशा बार-बार साफ करना, सिर को झटकना आदि कोई भी हो सकती है। योगेन्द्र रस के सेवन से इस रोग में भी लाभ होता है । सम्पूर्ण लाभ के लिए सुझाव प्रणाली का उपयोग आवश्यक है। इस रोग का कारण मानिसक ग्रंथी ही है। अतः सम्पूर्ण मनोचिकित्सा से ही लाभ सम्भव होता है मात्र औषधियों से नहीं।

(F) चिन्ता दूर करने में योगेन्द्र रस फायदेमंद

वास्तव में चिन्ता नहीं अपितु दुश्चिन्ता होती है, रोगी अकारण, असामान्य, असम्भव, अस्तित्व विहीन एवं अज्ञात वस्तुओं और परिस्थितियों की चिन्ता करता है। वह समझता भी है कि उसकी चिन्ता से कुछ भी होने वाला नहीं, परन्तु फिर भी वह चिन्तित रहता है। चिन्ता से उसे घबराहट भी होती है और नींद भी नहीं आती। ऐसे रोगियों के लिए योगेन्द्र रस अत्योत्तम औषधि है एक गोली प्रातः सायं मांस्यादि क्वाथ, खमीरा गावजवान अम्वरी अथवा खमीरा मरवारीद से देने से दो दिन में रोगी को लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है। पूर्ण लाभ होने तक चिकित्सा करते रहना चाहिए।

सहायक औषधियों में चैतन्योदय रस, वृहद्वात चन्तिामणि रस, वात कुलान्तक रस, में से किसी एक या दो औषधियों का प्रयोग भी अवश्य करवाना चाहिए।

योगेन्द्र रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Yogendra Ras Side Effects in Hindi

  • योगेन्द्र रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • योगेन्द्र रस को डॉक्टर की सलाह अनुसार ,सटीक खुराक के रूप में समय की सीमित अवधि के लिए लें।
  • योगेन्द्र रस एक रसौषधि है। और इसके घटक भी प्रधानतः खनिज धातुओं की भस्में हैं । अतः रसौषधियों और भस्मों के सेवन काल में अपनाए जाने वाले पूर्वोपाय योगेन्द्र रस के लिए भी अपनाए जाने चाहिए।

योगेन्द्र रस का मूल्य : Yogendra Ras Price

  • Baidyanath Jhansi Yogendra Ras, 10 Tablets – Rs 1090
  • Dhootapapeshwar Yogendra Rasa – 10 Tab – Rs 1180

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)

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