Last Updated on July 22, 2024 by admin
दारु हल्दी का सामान्य परिचय : Daru Haldi in Hindi
दारु हल्दी का वृक्ष कांटेदार और झाड़ीनुमा होता है। इसकी ऊँचाई 15 फीट तक होती है। हिमालय में नेपाल, धून ओर कुनुवार में यह वृक्ष बहुत पैदा होता है । हिमालय में पैदा होने वाली दारुहल्दी की छह जातियाँ होती हैं। जिनको लेटिन में क्रम से, बरबेरिस एरिस्टेटा, बरबेरिस एसियाटिका, बरबेरिस कोर्सिया, बरबेरिस लिसियम, बरबेरिस नेपलेसिन्स और बरबेरिस व्हलगेरियस कहते हैं। इन्हीं को क्रम से हिन्दी में दारु हल्दी, किलमोरा, कमल, चित्रा, चिरोर और झरके कहते हैं ।
विभिन्न भाषाओं में नाम :
हिंदी | दारूहल्दी |
संस्कृत | दारुहरिद्रा |
मराठी | दारुहलद |
गुजराती | दारुहल्दर |
बंगाली | दारूहरिद्रा |
लैटिन | बर्बेरिस अरिसटेटा |
दारु हल्दी के औषधीय गुण :
आयुर्वेदिक मत –
दारूहल्दी के गुण भी हल्दी के समान ही हैं। विशेष करके यह घावों, प्रमेह, खुजली, और रक्तविकार नाशक होता है, यह त्वचा के दोष, जहर और आंखों के रोगों को नष्ट करता है।
आयुर्वेदिक मतानुसार दारूहल्दी लघु, स्वाद में कडु़वा, कषैला, तीखा, तासीर में गर्म, पाचनशक्तिवर्द्धक, पौष्टिक, रक्तशोधक, यकृत उत्तेजक, कफनाशक, घाव शोधक एवं सूजन को दूर करने वाली होती है। यह बुखार, श्वेत व रक्तप्रदर, आंखों के रोग, त्वचा विकार, गर्भाशय के रोग, पीलिया, पेट के कीड़े, मुंह के रोग, दांतों-मसूढ़ों के रोग, गर्भावस्था का जी मिचलाना आदि रोगों में उपयोगी है।
यूनानी मत –
- यूनानी मत से यह पीलिया, आँखों के व्रण, दांत के दर्द और दमे पर लाभदायक है।
- अच्छे नहीं होने वाले व्रणों को भी यह सुखा देती है ।
- इसका लेप प्रदाह और सूजन को मिटाता है ।
- मलयागिरि चन्दन के साथ इसका उपयोग करने से धातु का जाना बन्द हो जाता है।
- टूटी हुई हड्डी पर अण्डे की सफेदी के साथ इसका उपयोग करने से हड्डी जुड़ जाती है ।
- चोट की जगह पर इसका लेप करने से खून नहीं जमता ।
- शक्कर के साथ इसको खाने से स्तम्भन होता है ।
- खराब नासूर भी इसके उपयोग से भर जाता है ।
- तर और सूखी खुजली, जहर बाद और पेट के कीड़े भी इसके उपयोग से नष्ट हो जाते हैं।
दारू हलदी का क्वाथ बनाने की विधि :
वर्षा के आखिर में दारू हल्दी के झाड़ को काट कर, उसके पंचांग को कूट कर । उसका घन क्वाथ बना लिया जाता है उसको रसोत कहते हैं। कहीं-कहीं इसकी जड़ों को ४ तोला लेकर उनके पतले २ टुकड़े करके उनको आधा सेर पानी में उबालते हैं और जब ८ तोला पानी रह जाता है, तब इसमें ८ तोला बकरी का दूध मिलाकर फिर उबालते हैं और गाढ़ा होने पर ठण्डा कर लेते हैं। यही रसोत कहलाता है। बाजारू रसोत में लकड़ी, पानी, लाल मिट्टी, वगैरह कचरा मिला हुआ रहता है । इस लिए इसको शुद्ध किये बिना काम में नहीं लेना चाहिये । इस रसोत को दसमुने गरम पानी में मिला कर कपड़े में छानना चाहिये और फिर उसको सुखकर काम में लेना चाहिये ।
सेवन की मात्रा :
3 से 6 ग्राम।
दारू हलदी के फायदे और उपयोग : Daru Haldi ke Fayde aur Upyog
1. बुखार:- दारूहल्दी की जड़ से तैयार किये गये काढे़ को 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार पिलाने से बुखार उतर जाता है।
2. दस्त:- दारूहल्दी की जड़ की छाल और सोंठ को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लेते हैं। 1 चम्मच की मात्रा दिन में 3 बार सेवन करने से दस्त लगने बंद हो जाते हैं।
3. दांत और मसूढ़ों के रोग:- दारूहल्दी के काढे़ को बराबर की मात्रा में शहद में मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोगी को पिलाने से दांतों और मसूढ़ों के रोग में शीघ्र लाभ मिलता है।
4. श्वेतप्रदर:- दारूहल्दी, दालचीनी और शहद को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है।
5. सूजन:- दारूहल्दी का बनाया हुआ लेप 2-3 बार लगाने से सूजन की कठोरता दूर होकर दर्द में आराम मिलता है।
6. घाव:- दारूहल्दी का लेप चोट और घाव पर लगाने से खून जमता नहीं और घाव जल्द ही भर जाता है।
7. टूटी हड्डी का जुड़ना:- दारूहल्दी के चूर्ण को अण्डे की सफेदी में बराबर मात्रा में मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से टूटी हड्डी शीघ्र जुड़ जाती है।
8. खूनी बवासीर:- दारूहल्दी का तना, जड़ और फल को बराबर मात्रा में मिलाकर लेप तैयार करें। इसे गुदा और मस्सों पर लगाने से खूनी बवासीर के रोग में बहुत लाभ मिलता है।
9. नेत्र रोग:- दारूहल्दी का लेप आंखे बंद कर पलकों पर लगाकर सोने से आंखों का दर्द, लाली, किरकिराहट आदि रोगों में लाभ होता है।
10. मुंह के छाले:-
- 20 ग्राम दारूहल्दी को लेकर 300 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर दिन में 2 से 3 बार कुल्ला करने से मुंह के घाव, छाले और दाने खत्म हो जाते हैं।
- दारूहल्दी, हल्दी, दालचीनी, पाढ़ल, नागरमोथा तथा इन्द्रजौ का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से गले तथा जीभ के रोग दूर होते हैं।
- दारूहल्दी के गाढ़े रस में शहद मिलाकर पीने से मुंह के घाव और छाले दूर हो जाते हैं।
11. कान का बहना:- दारूहल्दी के बारीक चूर्ण को कान में रोजाना थोड़ा-थोड़ा डालने से कान में से मवाद बहने का रोग दूर हो जाता है।
12. भगन्दर:
- दारूहल्दी का चूर्ण बनाकर आक के दूध के साथ अच्छी तरह से मिलाकर हल्का गर्म कर उसका वर्तिका (बत्ती) बनाकर व्रणों (घाव) पर लगाना अधिक लाभकारी होता है।
- दारूहल्दी, घर का धुआंसा, हल्दी, लोध्र, बच, तिल, नीम के पत्ते और हरड़ को बराबर मात्रा में लें और उसे पानी के साथ बारीक पीसकर लेप करने से भगन्दर का घाव शुद्ध होकर भर जाता है।
13. प्रदर रोग:-
- 10-10 ग्राम दारूहल्दी, बबूल का गोंद और शुद्ध रसांजन, 5-5 ग्राम, पीपल की लकड़ी, नागरमोथा, सोनागेरू और 20 ग्राम मिश्री को पीसकर और छानकर, लगभग 2 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रदर रोग मिट जाते हैं।
- दारूहल्दी को पीसकर लुगदी बना लें। फिर इसमें शहद मिलाकर पीने से ‘श्वेत प्रदर मिट जाता है।
- दारूहल्दी, रसौत, चिरायता, अड़ूसा, नागरमोथा, बेलगिरी, लाल चन्दन, आक के फूल और शहद को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ में शहद मिलाकर पीने से वेदनायुक्त लाल और सफेद प्रदर मिट जाता है।
- दारूहल्दी के काढ़े को रोजाना सुबह-शाम शहद में मिलाकर सेवन करने से श्वेत प्रदर और रक्त प्रदर दोनों मिट जाते हैं।
14. रक्तप्रदर:- गर्भाशय की शिथिलता के चलते उत्पन्न रक्तप्रदर में दारूहल्दी के काढ़े को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। यह श्वेत प्रदर में भी लाभकारी होता है।
15. नाक के रोग:– दारूहल्दी की जड़ के काढ़े से फुंसियों को साफ करने से नाक की फुंसियां ठीक हो जाती हैं।
16. उपदंश:-
- दारूहल्दी, रास्ना, पुण्डरिया, मुलहठी, देवदार, अगर, कूठ, इलायची को एकसाथ मिलाकर बने काढ़े से उपदंश के घाव पर लेप करने से पूरा लाभ मिलता है।
- दारूहल्दी की छाल, शाखनाभि, रसौत, लाख, गाय का गोबर, तेल, घी, दूध बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीसकर लेप करने से उपदंश के घाव, सूजन, दर्द और जलन में लाभ मिलता है।
17. नासूर:- थूहर और आक (मदार) के दूध को दारूहल्दी के चूर्ण के साथ बत्ती बनाकर गुदा के नासूर (जख्म बढ़ना) में रखने से जल्दी आराम आता है।
18. कामला (पीलिया का रोग):- दारूहल्दी के फांट में शहद मिलाकर पीने से कामला रोग (पीलिया रोग) शान्त हो जाता है।
19. नाड़ी का घाव:- दारूहल्दी, थूहर का दूध और आक के दूध को मिलाकर एक बत्ती बना लें। उसके बाद उस बत्ती को नाड़ी के घाव पर लगाने से नाड़ी के रोग में जल्द आराम मिलता है।
20. टांसिल का बढ़ना:- दारूहल्दी, नीम की छाल, रसौत तथा इन्द्रजौ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें तथा इस बात का ध्यान रखें कि काढ़ा 4 चम्मच से ज्यादा न हो, क्योंकि ज्यादा काढ़ा गले में खुश्की (गला सूख जाना) पैदा करता है।
21. विनसेण्ट एनजाइना के रोग में:- दारूहल्दी के काढ़े से रोजाना 2-3 बार गरारे करने से विनसेण्ट एनजाइना के रोग में आराम आता है।
22. गले के रोग में:- दारुहल्दी, नीम की छाल रसौत और इन्द्र-जौ का काढ़ा बनाकर पीने से गले के रोग समाप्त हो जाते हैं।
23. ज्वर:
दारू हल्दी की जड़ १५ तोला, १ सेर पानी में डाल कर उबालें। जब आधा सेर पानी रह जाय तब इसको छानकर १ औंस से २ औंस की मात्रा में देने से ज्वर में लाभ होता है ।
24. बवासीर: रसोत ५ ग्रेन, नीम की फलों की गिरी २ ग्रेन, मुनक्का १० ग्रेन । इन तीनों की तीन गोलियां बना लें । इन गोलियों को सोते वक्त लेने से बवासीर में लाभ होता है ।
25. गठिया: इसकी डालियों को औटाकर उनका काढ़ा पिलाने से पसीना और दस्त होकर गठिया में लाभ होता है ।वायु का दर्द-इसकी जड़ की छाल का गुड़ के साथ काढ़ा बनाकर पिलाने से पेट में होनेवाली वायु का का दर्द मिट जाता है।
26. दस्त: दारुहल्दी की जड़ की छाल और सोंठ समान भाग लेकर पीसकर दिन में २ से ३ बार लेने से दस्त बन्द हो जाते हैं।
27. दांतों का दर्द: इसके फल का काढ़ा बनाकर उससे कुल्ले करने से दांतों और मसूड़ों का दर्द जाता रहता है और मसूड़े मजबूत होते हैं।
28. ज्वर: ज्वर को रोकने और उतारने में यह कुनेन के बराबर है। इसकी जड़ की लकड़ी के उपयोग से सूजन वाला बुखार उतर जाता है। इसका ढाई तोला काढ़ा दो – तीन घण्टे के फासले से बुखार की बारी के दिन देने से बहुत पसीना होकर बुखार छुट जाता है । खराब हवा या जंगली हवा से होने वाले बुखार में अगर कुनेन और असेनिक के प्रयोग से भी लाभ नहीं हुआ हो तो इसका प्रयोग करके देखना चाहिये । तिल्ली और यकृत के बढ़ जाने में भी इसका काढ़ा फायदा पहुँचाता है। इसको बनाने की विधि प्रयोग नम्बर १ में लिखी गई है।
29. पीलिया: इसके काढ़े में शहद मिलाकर पिलाने से पीलिया में लाभ होता है।
30. अण्ड वृद्धि: इसके काढ़े में गौमूत्र मिलाकर पिलाने से अण्डवृद्धि मिट जाती है।
दारु हल्दी के अन्य औषधीय उपयोग और लाभ :
1. रसोत(दारू हलदी का क्वाथ) यह एक मूल्यवान औषधि है । ज्वर के अन्दर इस औषधि को देने का बहुत रिवाज है । विषम ज्वर को उतारने के लिए रसोत को १५ रत्ती की मात्रा में ठण्डे पानी में मिलाकर दिन में तीन बार देना चाहिये । इससे पेट में कुछ गरमी उत्पन्न होती हुई मालूम होती है, भूख लगती है, अन्न पचता है और दस्त साफ होता है। विषम ज्वर में सब प्रकार से यह लाभ पहुँचाती है और प्लीहा को दुरुस्त करती है । कुनेन से जिस प्रकार सिर दर्द, बहिरापन और कब्ज हो जाती है वैसी इससे नहीं होती ।
मगर इसमें एक दोष भी है, वह यह कि अगर रोगी को रोग के पूर्व कभी रक्त आंव की शिकायत हुई हो तो वह फिर से पैदा हो जाती है । विषम ज्वर की चिकित्सा में रसोत को देने के पूर्व रोगी को जुलाब देना चाहिये और खाली पेट इसकी पूरी मात्रा देना चाहिये। उसके पश्चात् रोगी को अच्छी तरह से ओढ़ाकर सुला देना चाहिये । कभी-कभी रोगी को बहुत प्यास लगती है और उसका जी घबराने लगता है मगर उसको पानी नहीं देना चाहिये । १ घण्टे के बाद रोगी को पसीना छूटने लगता है और उसको कमजोरी आने लगती है । उस समय रोगी को थोड़ा दूध पीने को देना चाहिये । इसके बाद रोगी अक्सर सो जाता है। और सोकर उठने के बाद उसकी तबियत अच्छी हो जाती है।
2. चालू ज्वर के अन्दर अगर पित्त की प्रधानता हो और रोगी को जंभाइयाँ, दस्त, उल्टी, सिर दर्द और थकावट मालूम होती हो तो ऐसे समय में दारुहल्दी का क्वाथ बनाकर देना चाहिये । ज्वर के साथ यदि कब्जियत हो तो दारुहल्दी को चिरायते के साथ देना चाहिये ।
3. ज्वर के अनन्तर होने वाली कमजोरी में दारुहल्दी से बड़ा लाभ होता है । मलेरिया के विष से अथवा आमाशय की शिथिलता से होने वाले अग्निमांद्य में अथवा आंतों के रोम में दारूहल्दी का क्वाथ देने से आमाशय की वृद्धि होकर आंतों की शक्ति बढ़ती है । इन रोगों में दारूहल्दी को छोटी मात्रा में सुगन्धित द्रव्यों के साथ देना चाहिए ।
डॉक्टर ओशगनेसी ने बुखार के करीब ३६ रोगियों पर रसोत को अजमाया । इनमें से कई के तिल्ली की तकलीफ भी थी । रसोत शुरू करने के बाद तीन दिन में बुखार मिट गया । चौथैया ज्वर से पीड़ित ८ बीमारों पर इसे अजमाया गया, जिसमें से ६ बीमार अच्छे हो गये । उन्हें सिर दर्द और कब्जियत भी नहीं हुई ।
4. इसको कपूर और मक्खन के साथ में मिला कर एक मलहम तैयार की जाती है । इस मलहम को फोड़े-फुन्सियों पर लगाने से बड़ा लाभ होता है।
5. बोस और कीर्तिकर के मतानुसार रसोत आधे ड्राम की मात्रा में पानी के साथ ज्वर, दूर करने के काम मे दी जाती है । इसको दिन में तीन बार देते हैं। इससे कुछ गरमी भी मालूम पड़ती है, भूख बढ़ती है पाचन क्रिया दुरुस्त होती है और दस्त साफ हो जाता है।
6. सन्याल और घोष के मतानुसार रसोत को अफीम, फिटकरी और जल के साथ पीसकर आँखों पर लेप करने से आँखों का दुखना बन्द हो जाता है। इसको दूध के साथ मिलाकर आँखों में टपकाने से भी आँखें अच्छी हो जाती हैं । प्रदाहिक सूजन पर भी रसोत को अफीम, सेन्धा नमक और पानी के साथ पीसकर लेप करने से शांति मिलती है ।अतः प्रयोग में इसकी लकड़ी और इसकी जड़ का छिलका, एक उत्तम कटु पौष्टिक और ज्वर निवारक वस्तु है। इसे दूसरे कड़वे और सुगन्धित पदार्थों के साथ में ज्वर उतारने के लिये देते हैं। इसके परिणाम हमेशा ही लाभदायक सिद्ध हुए हैं। पित्त की विशेषता होने पर यह विशेष लाभदायक होता है ।
इसकी जड़ का छिलका पौष्टिक, पसीना लाने वाला और ज्वर निवारक है। ज्वर दूर करने के लिए कुनेन और सिनकोना से इसमें कुछ अच्छाइयां भी हैं। कुनेने के अधिक सेवन से रोगी की श्रवण-शक्ति कमजोर हो जाती है, वह इससे नहीं होती । कुनेन चढ़े हुए ज्वर में नहीं दी जाती, मगर यह ‘चढ़े हुए ज्वर में भी दिया जा सकती है। यह अत्यधिक रजःस्राव में भी काम में लिया जाता है और इसके परिणाम सन्तोषजनक होते हैं।
7. हब्स बूलर के मतानुसार इसके पत्ते बलूचिस्तान में पीलिया की बीमारी में काम में लिये जाते हैं।
खूनी बवासीर के ऊपर भी रसोत बाह्य और अन्तःप्रयोग, दोनों कामों में ली जाती है और उससे अच्छा फायदा होता है । बवासोर को दूर करने के लिए रसोत, निम्बोली की सगज और मुनक्का के साथ गोली बनाकर दी जाती है और उससे अच्छा लाभ होता है । इसके साथ ही रसोत को मक्खन के साथ मिलाकर बवासीर पर सगाई भी जाती है ।
8. तीव्र नैत्राभिष्यंद रोग में इसको फिटकरी और मक्खन के साथ मिलकर आंखों के ऊपर लेप करते हैं।
9. शारीरिक स्राव और मल की अधिकता होने पर दारूहल्दी को देने का बहुत रिवाज है। इससे श्लेष्मा और पीब की कमी होती है। त्वचा के अन्दर की रस ग्रन्थि की विनिमय क्रिया दारुहल्दी को देने से सुधरती है। इस कारण उपदंश, गण्डमाला, नासूर, भगन्दर, व्रण और विसर्प रोगों में इसको खिलाने से और इसका लेप करने से अच्छा लाभ होता है। प्रदर और गर्भाशय की शिथिलता से होने वाले आत्यार्तव में इसको उपयुक्त अनुपान के साथ देने से लाभ होता है ।
10. दारू हल्दी से पेशाब की शुद्धि भी होती है। इसलिये वस्थिशोथ में दारू हल्दी को आंवले के साथ देना चाहिये ।
11. सूजन पर रसोत का लेप करने से सूजन मिट जाती है। कण्ठमाला पर रसोत और कपूर को मक्खन के साथ मिलाकर लगाने से फायदा होता है। जख्म के ऊपर रसोत का लेप करने से जखम जल्दी भर जाता है। नेत्रभिष्यन्द में इसका लेप आंखों पर करने से आंखों की सूजन उतर आती है। मुख रोगों में दारू हल्दी के क्वाथ के कुल्ले करने से लाभ होता है । खुनी बवासीर में पांच रत्ती रसौत को ५ रत्ती नीम के बीजों के साथ मिलाकर मक्खन में मिलाकर देने से और १ ड्राम रस्रोत को ३ औंस पानी में मिलाकर उससे बबासीर को धोने से अच्छा। लाभ होता है।
12. साँप और बिच्छू के विष को दूर करने के लिये भी इस औषधि की अच्छी तारीफ है । मगर केस और महस्कर के मतानुसार इस वनस्पति की जड़, गोंद, शाखाएं इत्यादि सभी अंग सांप और बिच्छू के विष पर बिल्कुल निरुपयोगी हैं। ।
13. डॉक्टर देसाई के मतानुसार दारूहल्दी कड़वी, उष्ण, कटुपौष्टिक, पार्यायिक ज्वर को दूर करने वाली, पसीना लाने वाली, कफनाशक और चर्म रोगों को दूर करने वाली है। इससे बनाया जाने वाला रसोत, सूजन को दूर करने वाला, कफनाशक, पार्यायिक ज्वर को दूर करने वाला ज्वरनाशक होता है।
14. इसका फल जरेशक, शीतल, खट्टे और रोचक होता है। छोटी मात्रा में दारू हल्दी कटुपौष्टिक, दीपक और सौम्यग्राही होती है। इसका कटुपौष्टिक धर्म, कलम्ब की जड़ और कन्डू के समान होता है। बड़ी मात्रा में यह एक जोरदार पसीना लाने वाली और उत्तम ज्वरनाशक औषधि हो जाती है। मात्रा और अधिक होने से इससे पेट में मरोड़ी चलकर दस्त होने लगते हैं। इसका ज्वरनाशक धर्म सिनकोना के धर्म समान है। मगर सिनकोना से होने वाली प्रतिक्रियाएं इससे नहीं होतीं । मलेरिया ज्वर को दूर करने के लिये यह औषधि कुनेन की अपेक्षा हलके दर्जे की है । जीर्ण ज्वर में बढ़ी हुई तिल्ली को यह कुनेन के समान ही संकुचित करती है । इसमें पाया जाने वाला बरबेराइन नामक पीला तत्त्व पेशाब की त्वचा के रास्ते से बाहर निकलता है। पेशाब के मार्ग से बाहर निकलते समय यह पेशाब का रंग पीला कर देता है और मूत्र पिंड की सूजन या दूसरी बीमारियों को मिटा देता है । त्वचा के रास्ते बाहर निकलते समय त्वचा की विनिमय क्रिया को सुधार देता है ।
15. चक्रदत्त के मतानुसार इसकी छाल का ताजा रस शहद के साथ प्रातःकाल लेने से पीलिया की बीमारी में लाभ होता है ।
दारु हल्दी के दुष्प्रभाव:
इसका अधिक मात्रा में सेवन गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक होता है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।