Last Updated on November 25, 2023 by admin
प्रश्न 1: डायबिटीज क्या है?
उत्तर : डायबिटीज एक ऐसा रोग है जो मानव-शरीर में इंसुलिन नामक हारमोन की कमी के कारण होता है। यह हारमोन पैंक्रियाज नामक ग्रंथि द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
प्रश्न 2 : पैंक्रियाज ग्रंथि शरीर में कहाँ स्थित होती है और यह किस प्रकार कार्य करती है?
उत्तर : हमारे शरीर में पैंक्रियाज ग्रंथि पेडू के ऊपरी भाग में, आमाशय के ठीक नीचे तथा ड्यूडोनम के ठीक ऊपर स्थित होती है। यह एक पाचक ग्रंथि है तथा लौबयुल नामक कोशिकाओं से बनी है। पैंक्रियाज में उपस्थित बीटा कोशिकाओं द्वारा इंसुलिन नामक हारमोन का उत्पादन होता है, जो शरीर में ग्लूकोज की मात्रा पर नियंत्रण रखता है।
हम जो भोजन करते हैं, वह शरीर में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद शुगर अर्थात् ग्लूकोज में बदल जाता है। यही ग्लूकोज शरीर में ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम करता है। ग्लूकोज के कारण रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है। यह बढ़ा हुआ स्तर ही पैंक्रियाज को इंसुलिन नामक हारमोन को पैदा करने का संदेश देता है। इसी संदेश के आधार पर पैंक्रियाज ग्रंथि इंसुलिन का उत्पादन करती है।
प्रश्न 3 : डायबिटीज कितने प्रकार का होता है?
उत्तर : डायबिटीज कई प्रकार का होता है। सामान्यत: इसे दो वर्गों में बाँटा जा सकता है
1. इंसुलिन आधारित डायबिटीज तथा 2. बिना इंसुलिन आधारित डायबिटीज।
1. इंसुलिन आधारित डायबिटीज :
इस प्रकार का डायबिटीज तीन वर्ष से पच्चीस वर्ष तक की उम्र के व्यक्तियों को अधिक होता है। कभी-कभी यह अधिक उम्र के व्यक्तियों में भी पाया जाता है। इसे ‘टाइप-1 डायबिटीज मेलिटस’ कहते हैं। इस प्रकार के डायबिटीज में इंसुलिन हारमोन का उत्पादन बिलकुल बंद हो जाता है। इस कारण शरीर में ग्लूकोज की बढ़ी हुई मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है। ऐसा न करने पर मरीज बेहोश हो जाता है। कभी-कभी वह कोमा में भी चला जाता है। इस स्थिति को ‘डायबिटिक कोमा’ कहते हैं।
2. बिना इंसुलिन आधारित डायबिटीज :
यह बीमारी इंसलिन आधारित डायबिटीज की तुलना में कम गंभीर होती हैं। अधिकांशत: यह वयस्क लोगों में ही पाई जाती है। कुल डायबिटीज रोगियों में से दो-तिहाई रोगी बिना इंसुलिन आधारित डायबिटीज के होते हैं। इस प्रकार के रोगियों के शरीर में इंसुलिन तो होता है, परंतु अल्प मात्रा में या यह ठीक प्रकार से कार्य नहीं करता। यह अल्प मात्रा ही रोगी को बेहोश होने से बचा लेती है तथा वह डायबिटिक कोमा में जाने से बच जाता है। इस प्रकार का डायबिटीज उपयुक्त व्यायाम, संतुलित आहार तथा दवाइयों से नियंत्रण में रखा जा सकता है।
प्रश्न 4 : डायबिटीज रोग के क्या-क्या लक्षण हैं?
उत्तर : इस रोग के संबंध में एक विशेष बात यह है कि काफी लंबे समय तक रोगी को यह पता ही नहीं चल पाता है कि वह डायबिटीज से पीडित है; परंतु यदि रोग से संबद्ध प्रमुख लक्षणों का ध्यान रखा जाए तो जल्दी ही इस रोग का पता लगाया जा सकता है। और फिर इसे नियंत्रित करना सरल हो जाता है।
डायबिटीज के रोगी में निम्नलिखित लक्षण देखे जाते हैं –
- बार-बार पेशाब आना।
- बहुत प्यास लगना।
- अधिक भूख लगना।
- वजन कम होना।
- थकान व शिथिलता।
- मुँह सूखना।
- फोड़े-फुसियों का होना।
- घावों का जल्दी ठीक न होना।
- आँखों से धुंधला दिखाई देना तथा चश्मे का नंबर बढ़ना।
- गुप्तांगों के आस-पास खुजलाहट होना।
- हाथ-पैरों का सुन्न होना तथा कभी-कभी चींटियाँ जैसी लगना।
- त्वचा तथा मसूड़ों में विकार होना।
- पेशाब पर चींटी इकट्ठा हो जाना।
- यौन दुर्बलता व नपुंसकता।
- बेहोशी आना।
- पैरों में गैंगरिन होना।
प्रश्न 5 : डायबिटीज के परीक्षण या जाँच की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर : डायबिटीज के परीक्षण के लिए निम्नलिखित दो प्रमुख विधियाँ हैं
1. रक्त परीक्षण और 2, मूत्र परीक्षण।
प्रश्न 6 : रक्त परीक्षण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर : रक्त में ग्लूकोज के परीक्षण से यह पता लगाया जा सकता है कि इसमें शर्करा की। मात्रा मानक मान से अधिक है या नहीं तथा पेशाब में कीटोन उपस्थित हैं या नहीं। रक्त परीक्षण दो प्रकार से किया जाता है1. खाली पेट तथा 2. नाश्ता या ग्लूकोज लेने के दो घंटे बाद।
1. खाली पेट रक्त का परीक्षण :
इस परीक्षण से पहले कम-से-कम बारह घंटे तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए। इसमें परीक्षण के समय थोड़ा सा रक्त लेकर उसमें शर्करा की मात्रा का परीक्षण किया जाता है। सामान्य रूप में खाली पेट लिये गए रक्त में शर्करा की मात्रा 65 से 100 मिलीग्राम होनी चाहिए। दो-तीन बार खाली पेट लिये गए रक्त में यदि शर्करा की मात्रा 120 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे अधिक आती है तो व्यक्ति को डायबिटीज की शिकायत है।
2. नाश्ता या ग्लूकोज लेने के बाद रक्त का परीक्षण :
खाली पेट रक्त लेने के बाद व्यक्ति को पूरा नाश्ता, जिसमें ब्रेड, बटर, चीनी-युक्त दूध या चाय लेने के लिए कहा जाता है। इसके दो घंटे पश्चात् व्यक्ति के रक्त का नमूना लेकर उसमें शर्करा की मात्रा का परीक्षण किया जाता है। सामान्य व्यक्ति के रक्त में शर्करा की मात्रा 100 से 140 मिलीग्राम प्रति लीटर होनी चाहिए।
इस परीक्षण के लिए व्यक्ति को नाश्ते के स्थान पर लगभग 75 ग्राम ग्लूकोज एक गिलास पानी में मिलाकर भी दिया जा सकता है। इसके दो घंटे बाद रक्त लेकर शर्करा की मात्रा ज्ञात की जाती है। इसमें भी सामान्य व्यक्ति के रक्त में ग्लूकोज की मात्रा 100 से 140 मिलीग्राम प्रति लीटर तक होनी चाहिए। यदि रक्त में ग्लूकोज की मात्रा 180 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे अधिक है तो निश्चय ही व्यक्ति को डायबिटीज रोग है।
प्रश्न 7 : ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट (GTT) क्या है?
उत्तर : यह डायबिटीज का पूर्ण परीक्षण हैं। इस परीक्षण के लिए व्यक्ति को खाली पेट होना चाहिए। पहले खाली पेट की स्थिति में उसका रक्त लिया जाता है और उसमें शर्करा की मात्रा ज्ञात की जाती है। फिर उस व्यक्ति को 75 से 100 ग्राम ग्लूकोज पानी में मिलाकर पिलाया जाता है। अब हर आधे-आधे घंटे बाद पाँच-छह बार खुन लिया जाता है; परंतु अब इतनी बार खून लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती, मात्र दो बार लिये खून से जाँच की जा सकती है। खाली पेट फिर दो घंटे बाद।
इस टेस्ट के लिए कुछ सावधानियाँ –
- ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट से तीन-चार दिन पहले से व्यक्ति को कार्बोहाइड्रेट-युक्त पदार्थों से भरपूर भोजन करना चाहिए। इस दौरान निकोटिनिक एसिड, विटामिन सी, एस्पिरिन, मूत्र लानेवाली औषधियाँ, गर्भ-निरोधक औषधियों इत्यादि का बिलकुल प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- जिस व्यक्ति को 75 ग्राम ग्लूकोज का सेवन करने के दो घंटे बाद खून देना है, उसे कहीं नहीं जाना चाहिए, बल्कि वहीं ठहरना चाहिए। एक-डेढ़ घंटे घूम आएँ, ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे टेस्ट के परिणाम पर असर पड़ता है।
टेस्ट के परिणाम –
- खाली पेट ग्लूकोज की मात्रा (प्रति लीटर) = 70-100 मिलीग्राम (सामान्य)।
- ग्लूकोज लेने के दो घंटे बाद = 100-140 मिलीग्राम (सामान्य)।
- रक्त में शर्करा की मात्रा इससे अधिक होने पर व्यक्ति को डायबिटीज रोग हैं।
प्रश्न 8 : क्या मूत्र परीक्षण के द्वारा भी डायबिटीज की जाँच की जा सकती है?
उत्तर : पहले मूत्र का परीक्षण वेनिडिक्ट रिएजेंट द्वारा किया जाता था और मरीज की जाँच कर मूत्र में शर्करा की मात्रा को +, ++, +++ ,++++ चिह्नों द्वारा दरशाया जाता था; परंतु अब अधिकतर जगहों पर साधारण स्टिक, ग्लूकोज स्ट्रिप्स या डायस्टिक ग्लूकोज स्ट्रिप्स द्वारा बहुत ही सरल तरीके से मूत्र में शर्करा की जाँच की जा सकती है।
जब मूत्र-विसर्जन के लिए जाएँ तो ग्लूकोज स्ट्रिप्स को पेशाब में भिगो लें और उसके रंग में जो परिवर्तन हो उसे देखें तथा डिब्बी पर बने रंगों से मिलाएँ। इस प्रकार यह पता चल जाएगा कि आपके मूत्र में शर्करा है या नहीं और अगर है तो कितनी। यहाँ यह भी ध्यान रखें कि यह आवश्यक नहीं कि हर डायबिटीज रोगी के मूत्र में शर्करा की। उपस्थिति स्पष्ट हो। रक्त में शर्करा की मात्रा 175 मिलीग्राम से अधिक होने पर ही मूत्र में । शर्करा की उपस्थिति स्पष्ट हो पाती है। कभी-कभी कुछ दवाएँ भी गलत संकेत दे देती हैं, जैसे-अधिक मात्रा में विटामिन सी की गोलियों, सिर दर्द की गोलियों या एलडोमट की गोलियों से गलत परिणाम आ सकते हैं। अतः इन दवाइयों को बंद करके ही पेशाब का परीक्षण करना चाहिए। पेशाब में एसिटोन या कीटोन का पता भी कीटोस्टिक्स के द्वारा लगाया जा सकता है।
प्रश्न 9; रक्त में शर्करा के विभिन्न स्तर कौन-कौन से होते हैं?
उत्तर : निम्नलिखित सारणी द्वारा यह आसानी से समझा जा सकता है कि रक्त में शर्करा किस स्तर तक सामान्य, संतोषजनक या फिर खराब है
स्थिति : सामान्य
खाली पेट : 115 मि.ग्रा. % भोजन के दो घंटे बाद 140 मि.ग्रा. %
स्थिति : संतोषजनक
खाली पेट : 140 मि.ग्रा. % भोजन के दो घंटे बाद : 180 मि.ग्रा. %
स्थिति : खराब
खाली पेट : 140 मि.ग्रा. % से अधिक भोजन के दो घंटे बाद : 180 मि.ग्रा. % से अधिक
प्रश्न 10 : रक्त में शर्करा की जाँच कितने समय के अंतराल पर करानी चाहिए?
उत्तर : जो लोग इंसुलिन का प्रयोग करते हैं, उन्हें रोज या सप्ताह में कम-से-कम तीन बार खून की जाँच करवानी चाहिए। जो लोग डायबिटीज को नियंत्रण में रखने के लिए गोलियों का सेवन करते हैं, उन्हें सप्ताह में एक बार खून की जाँच अवश्य करानी चाहिए।
प्रश्न 11: क्या डायबिटीज ढलती उम्र के लोगों का रोग है?
उत्तर : आजकल के प्रदूषित पर्यावरण और असंयमित जीवन-शैली के कारण यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है। लेकिन सामान्यत: यह रोग चालीस वर्ष की उम्र के बाद ही होता है। यह देखा गया है कि लगभग 75 प्रतिशत डायबिटीज के रोगियों की उम्र पैंतालीस वर्ष से अधिक होती है। पैंतालीस से साठ वर्ष की उम्र में भी बहुत से लोगों को यह रोग हो जाता है। दस वर्ष से कम आयु के बच्चों में यह रोग 5 प्रतिशत तक पाया जाता है। डायबिटीज के सौ रोगियों में से साठ को यह रोग चालीस से साठ वर्ष तक की उम्र में होता है।
संयमित जीवन-शैली तथा आहार में उचित परिवर्तन करके तथा नई चिकित्सा-प्रणालियों से किसी भी उम्र में होनेवाले डायबिटीज को नियंत्रण में रखा जा सकता है।
प्रश्न 12 : सामान्य स्थिति में ब्लड शुगर का स्तर क्या होना चाहिए?
उत्तर : एक सामान्य व्यक्ति में खाली पेट ब्लड शुगर का स्तर 70 मि.ग्रा. से 110 मि.ग्रा. तक होता है। भोजन के दो घंटे बाद यह स्तर 100 मि.ग्रा. से 140 मि.ग्रा. तक होता है।
प्रश्न 13 : क्या घावों का जल्दी ठीक न होना डायबिटीज का लक्षण है?
उत्तर : जी हाँ, डायबिटीज के रोगी के घाव ठीक होने में काफी अधिक समय लेते हैं। डायबिटीज के रोगी की छोटी सी चोट भी घाव बन जाती है और ठीक होने में काफी अधिक समय लगता है। अधिक ग्लूकोज-युक्त रक्त होने पर जीवाणु तेजी से संक्रमण करते हैं। इसी कारण डायबिटीज के रोगी के घाव को ठीक होने में अधिक समय लगता है।
प्रश्न 14 : ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (Glycosylated Haemoglobin) टेस्ट क्या है?
उत्तर : इस टेस्ट के द्वारा रक्त की जाँच से पिछले तीन महीनों की रक्त में शर्करा की मात्रा के बारे में पता लगाया जाता है। डायबिटीज के सभी रोगियों के लिए टेस्ट का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इससे यह भी पता चलता है कि पिछले तीन महीने से जो दवाइयाँ रोगी ले रहा है वे किस सीमा तक असर कर रही हैं। इसके अतिरिक्त यह टेस्ट उन महिलाओं के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। जो गर्भधारण करना चाहती हैं; क्योंकि यदि गर्भधारण के समय रक्त में शक्कर की मात्रा सामान्य से अधिक हैं तो बच्चे के सामान्य रूप से पैदा होने की संभावनाएँ बहुत कम हो जाती है
प्रश्न 15 : माइक्रोएल्ब्युमिन (Microalbumin) टेस्ट क्या है?
उत्तर : यह टेस्ट मूत्र का होता है। एक सामान्य व्यक्ति के मूत्र में माइक्रोएल्ब्युमिन नहीं पाया जाता। इस टेस्ट के बाद यदि मूत्र में माइक्रोएल्ब्युमिन की थोड़ी भी मात्रा पाई जाती है तो इसका अर्थ है कि गुरदों पर डायबिटीज का असर होना प्रारंभ हो गया है। ऐसी स्थिति में यदि रक्त में शक्कर की मात्रा के साथ-साथ रक्तचाप पर भी नियंत्रण रखा जाए तो बीमारी के अधिक बढ़ने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसी समय यदि भोजन में प्रोटीन, जैसे-दालें, पनीर, अंडे इत्यादि की मात्रा कम कर दें तो बीमारी यहीं पर रुक जाती है। और सुधार होना शुरू हो जाता है।
इस प्रकार इस टेस्ट के द्वारा आप गुरदों के ऊपर पड़नेवाले डायबिटीज के प्रभाव का पता लगा सकते हैं। डायबिटीज के हर रोगी को वर्ष में एक बार यह टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।
प्रश्न 16 : क्या डायबिटीज की बीमारी पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती?
उत्तर : यद्यपि चिकित्सा के क्षेत्र में नित्य नए अनुसंधान हो रहे हैं, तथापि अभी तक डायबिटीज का कोई स्थायी कारगर इलाज नहीं हूँढ़ा जा सका है। पैंक्रियाज ग्रंथि का प्रत्यारोपण ही एकमात्र स्थायी इलाज है, परंतु इसकी सफलता का प्रतिशत भी बहुत अधिक उत्साहवर्धक नहीं है। उपयुक्त इलाज, खान-पान पर नियंत्रण तथा व्यायाम द्वारा हम बीमारी को नियंत्रित कर सकते हैं।
( और पढ़े –मधुमेह के घरेलु उपचार )
प्रश्न 17 : डायबिटीज के रोगी को रक्त में शर्करा व मूत्र की जाँच कितने अंतराल के बाद करवा लेनी चाहिए?
उत्तर : डायबिटीज के रोगी को सप्ताह में कम-से-कम एक बार रक्त व मूत्र की जाँच करवा लेनी चाहिए। ऐसे रोगी को जो इंसुलिन लेते हैं, यदि संभव हो सके तो प्रत्येक तीसरे दिन रक्त में शर्करा की मात्रा की जाँच करा लेनी चाहिए। रोगी स्वयं भी मूत्र की जाँच करके शर्करा की मात्रा का पता कर सकता है।
प्रश्न 18 : यदि मूत्र की जाँच में शर्करा नहीं आती है तो क्या रोगी को पूर्णतः स्वस्थ समझना चाहिए?
उत्तर : कभी-कभी ऐसा होता है कि रोगी के गुरदों में खराबी के कारण या रक्तचाप अधिक होने की वजह से रक्त में बढ़ी हुई शर्करा के होने के बावजूद पेशाब की जाँच में शर्करा की मात्रा शून्य होती है। बिना खून की जाँच के यह नहीं समझना चाहिए कि वह स्वस्थ है, क्योंकि पेशाब में शुगर तभी आती है जब ब्लड शुगर 180 या 200 मि.ग्रा. से अधिक होती है।
प्रश्न 19: मुख्यतः रोगी को कितनी उम्र में इस बीमारी का पता चलता है?
उत्तर : डायबिटीज के लक्षणों को प्रकट होने में दस से पंद्रह वर्ष का समय लग जाता है। सामान्य रूप से व्यक्ति को इसका पता तीस-पैंतीस वर्ष की उम्र के बाद ही चलता है। इसलिए जरूरी है कि व्यक्ति को बीस से पच्चीस वर्ष तक की उम्र में एक-दो बार अपने रक्त में शर्करा की जाँच अवश्य करवा लेनी चाहिए। यदि व्यक्ति बीस-पच्चीस वर्ष की उम्र से ही निरंतर व्यायाम एवं खान-पान पर नियंत्रण रखता है तो वह इस बीमारी को नियंत्रण में रख सकता है। साथ ही इन उपायों से डायबिटीज के प्रकट होने को भी रोका जा सकता है।
प्रश्न 20 : क्या रोगी स्वयं ग्लूकोमीटर की सहायता से रक्त में शर्करा की मात्रा का पता लगा सकता है?
उत्तर : ग्लूकोमीटर का उपयोग बहुत ही सरल है। रोगी अपने घर में ही इसकी सहायता से । रक्त में शर्करा की मात्रा का आकलन कर सकता है। कुछ लोग रक्त में शुगर की जाँच लेबोरेटरी में कराते हैं, लेकिन इन दोनों में कोई विशेष अंतर नहीं होता है। रोगी खुद ग्लूकोमीटर की सहायता से रक्त में शर्करा की मात्रा की जाँच कर रोग को नियंत्रण में रख सकता है।
प्रश्न 21 : ब्रिटल डायबिटीज क्या है एवं रोगी में इसके होने के मुख्य कारण कौनकौन से हैं?
उत्तर : कुछ रोगी ऐसे होते हैं जिनके रक्त में शर्करा की मात्रा समय-समय पर कम या ज्यादा होती रहती है। डायबिटीज की इस अवस्था को ब्रिटल डायबिटीज कहा जाता है। रोगियों में मानसिक तनाव, गोलियों व इंसुलिन का सही समय पर न लेना, भोजन पर नियंत्रण नहीं रख पाना या उपचार में किसी अन्य तरह की लापरवाही बरतना इसके मुख्य कारण हैं। ब्रिटल डायबिटीज की यह स्थिति टाइप-एक डायबिटीज रोगियों में अधिक होती है।
प्रश्न 22 : डायबिटीज के रोगियों को कौन-कौन सी जाँच करानी आवश्यक होती हैं?
उत्तर : डायबिटीज रोगियों को समय-समय पर निम्नलिखित जाँच करवाते रहना चाहिएसर्वप्रथम खून व पेशाब की जाँच। रक्त में कोलेस्टेरॉल व चरबी की मात्रा की जाँच। ई.सी.जी. व टी.एम.टी. टेस्ट।आँखों की जाँच।वजन का रिकॉर्ड। पैरों की जाँच। रक्तचाप की जाँच आदि।
प्रश्न 23 : क्या मूत्र में कीटोन आने से डायबिटीज के लक्षण प्रकट होते हैं?
उत्तर : मूत्र में कीटोन किसी भी व्यक्ति के आ सकते हैं। उसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति
डायबिटीज रोग से ग्रस्त है। सामान्यतः गर्भवती महिलाओं के पेशाब में, बच्चों के सुबह के पेशाब में या कम आहार लेनेवाले व्यक्तियों के पेशाब में कीटोन आ सकते हैं, भले ही इन सभी को यह रोग नहीं है।
प्रश्न 24 ; क्या डायबिटीज के रोगी को पेशाब में कीटोन की जाँच जरूरी है?
उत्तर : अकसर रोगियों को उलटी, पेट दर्द, सुस्ती या थकान जैसी शिकायत हो सकती है। डायबिटीज से पीडित बच्चों को बुखार या जुकाम जल्दी-जल्दी होता है। इसके अलावा बच्चों को पेट दर्द, उलटी या दस्त की शिकायत बार-बार होती रहती है। विशेषकर बच्चों में इस अवस्था में पेशाब में कीटोन की जाँच कराना जरूरी है। गर्भवती महिलाओं को भी, जो डायबिटीज से ग्रस्त हैं, यह जाँच करवा लेनी चाहिए।
प्रश्न 25 : क्या प्रत्येक व्यक्ति को जी.टी.टी. (ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट) करवाना जरूरी है?
उत्तर : यदि किसी व्यक्ति को डायबिटीज होने का संदेह होता है तो उसके लिए यह टेस्ट बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है; क्योंकि इस टेस्ट से व्यक्ति में डायबिटीज होने की संभावनाओं का पता चल जाता है। इस टेस्ट में व्यक्ति की पहले खाली पेट रक्त में शर्करा की जाँच की जाती है, फिर ग्लूकोज खाने के आधे घंटे, एक घंटे एवं दो घंटे के बाद दुबारा रक्त में शर्करा की जाँच की जाती है। टेस्ट करानेवाले व्यक्ति को इस दौरान धूमपान नहीं करना चाहिए।