मधुमेह (डायबिटीज) और त्वचा की समस्याएं – Diabetes and Skin Problems in Hindi

Last Updated on January 26, 2021 by admin

मधुमेह ऐसी व्याधि है जो शरीर को भीतर ही भीतर नुकसान पहुंचाती है। शरीर के आंतरिक अवयव हृदय, किड़नी, आंखें इत्यादि के साथ-साथ त्वचा पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। इसलिए यदि किसी रोगी को त्वचा की समस्या हो तो सबसे पहले वह मधुमेह से ग्रस्त तो नहीं है यह जांच की जाती है।

मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों को होने वाले त्वचा रोग :

मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण को निम्न त्वचा के विकार आसानी से हो सकते है।

  • संक्रमण (Bacterial Infection)
  • फंगस (Fungal infection)
  • खुजली (Itching)

उपरोक्त त्वचा के विकार किसी को भी हो सकते हैं पर अन्य त्वचा के विकार अधिकांशतः मधुमेही को ही होते है जैसे –

  • डायबिटिक डर्मोपैथी (Diabetic Dermopathy)
  • नेक्रोबॉयोसिस लिपायोडिका डायबेटीकोरम (Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum)
  • डायबिटीक ब्लिस्टर्स (Diabetic Blisters)
  • इरप्टीव जैन्थोमेटोसिस (Eruptive Xanthomatosis)

सामान्य त्वचा के विकार जीवाणुगत संक्रमण (BacterialInfection) डायबिटीज़ से ग्रस्त रुग्ण को निम्न संक्रमण हो सकता है जैसे –

  • गुहेरी (Stye) – आंखों की पलकों पर होनेवाला संक्रमण
  • फोड़ा-फुंसी
  • Folliculitis (Hair Follicle का संक्रमण)
  • Carbuncle (त्वचा का Deep संक्रमण)
  • नाखून के चारों ओर संक्रमण

उपरोक्त प्रकार के संक्रमण में सूजन आती है और वहां की त्वचा गरम, सूजी हुई लाल व वेदना युक्त रहती है। यह संक्रमण सामान्यत: Staphylococus Bacteria के कारण होता है।

डायबिटीज ग्रस्त के लिए एक समय ऐसा भी था जब बैक्टेरियल संक्रमण घातक होता था पर आज एन्टीबॉयोटिक्स व शुगर कंट्रोल की उत्तम विधि के कारण संक्रमण आसानी से ठीक होता है। परंतु आज भी डायबिटीज ग्रस्त को अन्य रुग्णों की अपेक्षा अधिक बैक्टेरियल इन्फेक्शन होता है। मेडिकल शास्त्र के अनुसार त्वचा की उत्तम तरीके से देखभाल कर इन्फेक्शन की संभावना कम रहती है। अतः बैक्टेरियल इन्फेक्शन होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

( और पढ़े – मधुमेह रोगियों के लिए आहार चार्ट )

मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों को होने वाले प्रमुख त्वचा रोगों के लक्षण :

1). रूक्ष त्वचा (Dry Skin) –

मधुमेह ग्रस्त रोगी की त्वचा रूखी (रूक्षता) होती जाती है बहुमूत्रता के कारण शरीर में जलांश की कमी होती है। इसमें शरीर में रूक्षता व कठोरता उत्पन्न होती है। सामान्य चोट से भी यह जख्म का रूप ले लेता है। पकने के कारण शीघ्र ठीक नहीं होता।

2). फंगल इन्फेक्शन –

डायबिटीज ग्रस्त को कैन्डीडा अल्बीकन्स (Candida Albicans) फंगल इन्फेक्शन होता है। यह फन्गस यीस्ट (Yeast) के समान होता है जिसमें खुजली युक्त लाल चकते होते है यह इन्फेक्शन संधिगत स्थान (Fold वाली त्वचा) में अधिकतर होता है जैसे कांख या जांघ में। इसके अलावा स्तन के नीचे, नाखुन के चारों ओर, अंगुलियों व अंगूठों के बीच में, मुख के किनारों पर होता है।

सामान्यतः होनेवाले फन्गल इंफेक्शन में Jockitch, Athletes Foot, Ringworm व योनि संक्रमण होता है जिसमें डॉक्टर से संपर्क करें। फंगल इंफेक्शन में खुजली डायबिटीज़ के कारण होती है। यह यीस्ट संक्रमण (Veast Infection), सूखी त्वचा (Dry Skin) या रक्तप्रवाह पर्याप्त न होने के कारण (Poor Circulation) होती है।

3). खुजली (Itching) –

मधुमेह से ग्रस्त रुग्ण में पर्याप्त रक्तप्रवाह न होने के कारण खुजली होती है। वह खुजली पैरों के निचले हिस्से पर होती है। स्त्रियों को जननांग में खुजली के साथ ही पुरूषों के शिश्न मुंड पर सूजन उत्पन्न होती है जो अति कष्टदायी होती है। ऐसी स्थिति में सौम्य प्रकार का साबुन प्रयोग करें व नहाने के बाद कोई सौम्य क्रीम या नारियल तेल नहाने के पूर्व प्रयोग करें। निम्ब के पत्ते पानी में उबालकर पानी से गुप्तांग धोने चाहिए। गुप्तांग के अंदर-बाहर निम्ब का तेल लगाना चाहिए।

4). गैंग्रीन (सड़न) –

मधुमेह रोगी को रक्त वाहिनियों की विकृति, नर्व डॅमेज के कारण अल्सर होकर गैंग्रीन उत्पन्न होता है। त्वचागत ज्ञानतंतु विकृत होकर त्वचा शून्यता होती है। यह वृद्धावस्था में विशेष रूप से होता है। हल्की चोट लगने से भी जख्म हो जाता है जो आसानी से भरता नहीं है। यह अत्यंत कष्टदायक और गंभीर होता है ।

मधुमेह रोगी की जब रक्तशर्करा बढ़ती है, रोगी के पैरों की अंगुलियों व अंगूठों में गैंग्रीन होता है। उसमें काफी तीव्र जलन होती है। धीरे-धीरे जलन (दाह) बढ़ती जाती है। काफी बढ़ जाने पर अंगुली या अंगूठे को काटना ही पड़ता है। कुछ समय बाद ऐसे लक्षण फिर प्रकट होते है। किसी-किसी रोगी के घुटने व जंघाओं तक का हिस्सा काटना पड़ता है। अंगों को काट देने से भी यह रोग मिटता नहीं।

यह टाइप 1 डायबिटीज विटिलिगो की वजह से होता है। इसमें मिलेनिन पिगमेंट की कमी के कारण छाती, चेहरे और हाथ में सफेद दाग नजर आते हैं। इसके लिए लाइट थिरेपी का प्रयोग किया जाता है व जब भी धूप में जाए सनस्क्रीन लगाकर जाएं।

वैसे तो गैंग्रीन अति गंभीर व असाध्य बीमारी है, फिर भी प्रथम अवस्था में उपचार करने से सफलता मिल भी सकती है। आवला, हल्दी, गुलवेल चूर्ण 5-5 ग्राम दिन में तीन बार चिकित्सक की देखरेख में ले सकते है।

( और पढ़े – शुगर लेवल कम करने के उपाय )

डायबिटीज से संबंधित कुछ अन्य त्वचा विकार एवं उनके लक्षण :

1). एकेन्योसिस निग्रीकन्स (Acanthosis Nigricans) –

इस प्रकार में कत्थई या गहरी रंग के उभार गर्दन, कांख व वंक्षण (जांघ के उपरी भाग) में होते हैं। कभी-कभी वे हाथ, घुटने व कुहनी में भी हो सकते हैं। यह उन लोगों में अधिक होता है जिनका शरीर स्थूल होता है। इसका सबसे उत्तम उपचार है बढ़े हुए वजन को कम करना।

2). डायबिटिक डर्मोपैथी (Diabetic Dermopathy) –

डायबिटीज के कारण छोटी रक्तवाहिनियों में परिवर्तन आता है। इससे त्वचा में परिवर्तन आता है जिसे डायबिटिक डर्मोपैथी कहते है। इसमें हल्के कत्थे रंग के पैच अंडाकार या गोलाकार होते है। कभी-कभी यह गलतफहमी हो जाती है कि यह पैच बढ़ती उम्र के कारण है। यह त्वचा विकार पैरों के अग्रभाग में होता है। इन पैचेस के कारण वेदना, खुजली या किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं होती। इस प्रकार डर्मोपैथी से शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती।

3). नेक्रोबायोसिस लिपायोडिका डायबेटीकोरम (Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum) –

रक्तवाहिनी की विकृति के कारण होनेवाला दूसरा विकार है Necrobiosis Lipoidica Diabeticorum (NLD)। इसमें भी डोपैथी की तरह त्वचा पर कुछ चिन्ह बनते है पर वे आकार में बड़े, गहरे व कुछ कम होते हैं।
शुरुवात में इसमें लालवर्ण के बढ़े हुए पैच दिखते है। इसके बाद वहां चमकीला चिन्ह (Scar) बैंगनी बार्डर के साथ बनता है। त्वचा के नीचे की रक्तवाहिनी आसानी से देखी जा सकती है। कभी-कभी इसमें खुजली व दर्द भी होता है। कभी-कभी त्वचा पर होनेवाले स्पॉट खुल भी जाते है।
यह स्थिति बहुत कम पाई जाती है। वयस्क स्त्रियों में यह अधिक होता है। जब इसमें होनेवाले पैच का हिस्सा खुल जाता है, तब डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

4). एलर्जिक रिएक्शन्स (Allergic Reactions) –

कभी-कभी किसी औषधि या अन्य बाह्य कारण से एलर्जिक स्किन रिएक्शन होते है जैसे इन्सुलिन या डायबिटीक पिल्स या पालेन ग्रेन इत्यादि के कारण। ऐसा होने पर तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

5). डायबिटीक ब्लिस्टर्स (Diabetic Blisters) –

डायबिटीज़ ग्रस्त रुग्ण को कभी फफोले (Diabetic Blisters) भी हो सकते हैं। ये अंगुलियों के पिछले भाग हाथ, अंगुठा पैर या हाथ में भी हो सकता है। यह जले हुए फफोले की तरह दिखता है। जिन रुग्णों को डायबिटिक न्यूरोपैथी होता है, उन्हें यह अधिकतर होता है। कभी-कभी ये आकार में बड़े लालिमा रहित, वेदनारहित खुद ही ठीक होने वाले (Heal by Themselves), बिना स्कार के, तीन सप्ताह में ठीक होते है। इसमें केवल रोगी का ब्लड शुगर नियत्रण में करना होता है।

6). इरप्टीव जैन्योमेटोसिस (Eruptive Xanthomatosis) –

डायबिटीज़ के कारण होनेवाले इस त्वचा विकार में पीले वर्ण का मटर (pea) के समान वृद्धि दिखाई देती है। हर वृद्धि में लाल रंग की रचना होती है, खुजली भी हो सकती है। हाथ के पिछले हिस्से, बाह, पैर व नितंब (Buttocks) पर होती है।

युवावस्था में होनेवाला विकार है जिन्हे टाइप-1 डायबिटीज व कोलेस्ट्राल बढ़ा हो उन्हें ही यह त्वचा विकार होता है। शुगर कन्ट्रोल होने पर यह स्वयं ही गायब हो जाता है, डायबिटिक ब्लिस्टर्स की तरह।

7). डिजिटल स्क्लेरोसिस (Digital Sclerosis) –

मधुमेह ग्रस्त रोगी के हाथों के पिछले भाग पर कभी-कभी मोटी, कसी हुई वैक्सयुक्त त्वचा (Tight Thick and Waxy Skin) होती है। पैर के अंगुठे व मस्तक की त्वचा मोटी हो जाती है। अंगुलियों की संधियां जकड़ जाती है, हलचल करने में तकलीफ होती है। बहुत कम घुटने कुहनी व टखना (Ankle) जकड़ते है। टाइप-1 डायबिटीज से ग्रस्त एक तिहाई लोगों को यह तकलीफ होती है। इसमें शुगर कन्ट्रोल करना आवश्यक है।

8). डिसाएमीनेटेड ग्रैन्यूलोमा एन्यूलेर (Disseminated granuloma Annulare)-

इसमें रोगी की त्वचा पर अंगुठी के आकार की वृद्धि दिखाई देती है। शरीर के जो अवयव छाती (Trunk) से दूर हैं जैसे अंगुलियां या कान उनमें होती है। कभी-कभी ये उभार छाती या पेट (Trunk) पर भी लाल, कत्थई या त्वचा के रंग के दिखाई देते है। ऐसा होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

( और पढ़े – मधुमेह का देसी इलाज और नुस्खे )

मधुमेह (डायबिटीज) रोगियों में होने वाली त्वचा की समस्याओं का उपचार :

सर्वप्रथम इसमें मधुमेह को नियंत्रण में रखना चाहिये।

  1. अपक्व शराविका (वह फुंसी जो ऊपर से ऊँची और बीच में गहरी हो) आदि पिडकाओं की चिकित्सा शोफ (सूजन) की भांति करनी चाहिए। पकने पर व्रण की भांति चिकित्सा करें।
  2. इन पिडकाओं (फुंसी) से पूर्वरुप में ही निजात पाने के लिए बरगद आदि क्षीरी (दूध वाले) वृक्षों का क्वाथ तथा तीक्ष्ण विरेचन उत्तम है। प्रमेह रोगी को कठिनाई से विरेचन होता है।
  3. पाठा, चित्रक, मंजीठ, सारिवा, कटेरी, सप्तपर्ण, कुटज मूल, श्वेत खैर, अमलतास इनका चूर्ण करके मधु से चाटें। इसी प्रकार नवायस चूर्ण को मधु से चाटें।
  4. त्रिफला चूर्ण का काढ़ा :- 4 कप पानी में दो चम्मच चूर्ण डालकर उबालें व दो कप शेष रह जाने पर उतार कर ठंडा कर लें। जख्म को बार-बार धोकर उस पर त्रिफला चूर्ण या नीम छाल चूर्ण लगाएं।
  5. त्रिफला गुग्गुल, कैशोर गुग्गुल, आरोग्यवद्धिर्नी वटी, गंधक रसायन, कांचनार गुग्गुल, इन सभी की 2-2 गोली दिन में तीन बार सेवन करें।
  6. महामंजिष्ठादि काढ़ा दो-दो चम्मच दिन में दो बार वैद्य की सलाह लेकर दिया जा सकता है।
  7. त्वचा पर मरीच्यादि तेल से अभ्यंग (मालिश) करावें।
  8. पंचकर्म के द्वारा शुद्धि करनी चाहिए।
  9. विरेचन, रक्तमोक्षण (जलोकावचरण) से त्वचा रोग पर प्रभावी परिणाम मिलते है।

इस प्रकार मधुमेह ग्रस्त को शुगर कंट्रोल न होने पर उपरोक्त त्वचा विकार होने की संभावना रहती है। अतः मधुमेह ग्रस्त रुग्ण ने आहार-विहार का पथ्य पालन कर शुगर नियंत्रण पर ध्यान देना आवश्यक है। त्वचा विकार होने पर शीघ्र ही अपने चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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