Last Updated on April 12, 2023 by admin
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान हजारों जड़ी-बूटियों का खजाना है। हम जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल भोजन में या पेय रसों के रूप में करते हैं। कुछ औषधियाँ यकृत कोशिकाओं को उत्तेजित करती हैं। कुछ नेत्र ज्योति में वृद्धि करती हैं।
तीखी औषधियाँ कफनाशक होती हैं तथा कफ व बलगम का नाश करती हैं। महासुदर्शन चूर्ण कड़वा होता है, अतः यह पित्त पर प्रभावी होकर पित्त तथा उसके लक्षण, जैसे ‘बुखार ‘को कम करता है।
आयुर्वेद सक्रिय अवयवों के बजाय पूरे पौधे के इस्तेमाल पर बल देता है। आधुनिक दवाओं में औषधि के सक्रिय अवयवों का उपयोग किया जाता है, जो जटिलताएँ उत्पन्न करते हैं। इससे प्रतिकूल प्रभावों की अधिक संभावना होती है। पूरे पौधे का उपयोग करने पर कोई जटिलता उत्पन्न नहीं होगी, क्योंकि उसमें कुछ विरोधी औषधियाँ भी होंगी।
रसायन औषधियाँ :
जीवन का विज्ञान (आयुर्वेद) इस बात पर जोर देता है कि इस विश्व में सबकुछ, चाहे वे पौधे हों या धातु या खनिज, यदि उनके गुणों के अनुसार उन्हें सावधानी से इस्तेमाल किया जाए तो वे खाद्य पदार्थ औषधि के रूप में काम करते हैं।
कुछ औषधियाँ उत्तेजक होती हैं तथा कुछ वात, पित्त और कफ दोषों को शांत करने का काम करती हैं। कुछ औषधियाँ यकृत को सक्रिय करती हैं, कुछ पसीना उत्पन्न करनेवाली तथा कुछ प्रशांतक (ट्रैक्युलाइजर) होती हैं, जैसे – ब्राह्मी। कुछ मस्तिष्क, यकृत या तिल्ली के लिए टॉनिक का काम करती हैं। कुछ को मूत्र संबंधी बीमारियों में इस्तेमाल किया जाता है, जैसे – गोक्षुर (गोखरू)।
प्राचीन आयुर्वेदाचार्यों ने औषधियों (जड़ी-बूटियों) के स्वाद के गुणों को मीठा, तीखा, सख्त, नमकीन, कड़वा तथा खट्टा और ठंडी व गरम प्रकृति का है। उनका इस्तेमाल टॉनिक (शक्तिवर्धक) के रूप में या दोषों को शमित करने के लिए किया जा सकता है। कुछ औषधियाँ कमजोरी तथा कुछ मोटापा दूर करने के लिए होती हैं। वात दोष के लिए मधुयष्टी, पित्त दोष के लिए अंजीर, केसर तथा कफ दोष के लिए शहद का सेवन उपयुक्त होता है। ये औषधियाँ आध्यात्मिक तथा चमत्कारिक होती हैं।
पौधों की प्रकृति :
विशिष्ट उद्देश्यों के लिए विशिष्ट जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है और उन्हें एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही लेना चाहिए। खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त रत्नों, रंगों, स्वादों, सुगंधों का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। प्रत्येक जड़ी-बूटी का कार्य अलग-अलग है। प्रत्येक जड़ी-बूटी कोशिकाओं पर अपना असर करती है। उनमें कोशिकाओं में मिलने की प्रवृत्ति होती है। कोशिकाएँ भी पंचमहाभूत से बनी होती हैं। इसी प्रकार जड़ी-बूटियाँ भी पंचमहाभूत से बनी होती हैं।
कुछ औषधियाँ अपनी क्रिया में भी विशिष्ट होती हैं। उदाहरण के लिए, गोक्षुर गुरदे पर काम करता है; कड़वी औषधियाँ यकृत पर, अश्वगंधा तंत्रिकाओं पर और ब्राह्मी मस्तिष्क पर। रसायन जड़ी-बूटियाँ आयुर्वेद की विशिष्टता हैं। कुछ औषधियाँ इंसुलिन के उत्पादन, थाइरॉक्सिन ग्रोथ हार्मोन तथा एंटी-ड्युरेटिक (कम मूत्र उत्पादन) हार्मोन में वृद्धि करती हैं। भारत में इन्हें दवाओं के रूप में इस्तेमाल किया जाता है; परंतु विदेशों में उन्हें दवा नहीं, बल्कि भोजन अनुपूरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
भारतीय आँवला में पाँच स्वाद होते हैं। स्वाद के अतिरिक्त उसमें काफी मात्रा में विटामिन सी होती है। परंतु आयुर्वेद के अनुसार वह शरीर की कोशिकाओं को नया रूप देनेवाला शक्तिशाली तत्त्व है। यह सुस्त तथा निष्क्रिय कोशिकाओं को सक्रिय और उत्तेजित करके शरीर प्रणाली को दुरुस्त करता है। यह प्रजनन अंगों तथा एंडोक्राइन (अंतःस्रावी ग्रंथियों सहित फेफड़ों, हृदय, यकृत तथा को जीवंतता प्रदान करता है।
रसायन जड़ी-बूटियाँ टॉनिक या औषधि :
भोजन के साथ प्रतिदिन ली जानेवाली जड़ी-बूटियाँ न केवल शरीर की कोशिकाओं को स्वस्थ बनाती हैं बल्कि एक जड़ी-बूटी केवल एक प्रकार की कोशिकाओं पर काम करती हैं। ब्राह्मी केवल मस्तिष्क कोशिकाओं तथा तंत्रिका कोशिकाओं पर काम करती है। । अश्वगंधा तंत्रिका कोशिकाओं पर असरदार है। इसलिए वह एक तंत्रिका टॉनिक है और पुरुष की जनन कोशिका पर काम करती है। यह एक यौन टॉनिक भी है।
हमारे दैनिक भोजन में इस्तेमाल होनेवाला लहसुन एक सशक्त कोलेस्टरोल विरोधी औषधि है। यह खून के थक्के बनने से भी बचाव करता है। इसलिए हृदयाघात रोकने के लिए यह एक कारगर औषधि है। गुगुलु को मोटापा घटाने की औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह गुजरात राज्य में उगाए जानेवाले एक पौधे का गोंद है। ये सब रसायन जीवन बढ़ानेवाले और जीवनरक्षक हैं। सूक्ष्म स्तर पर ये शरीर तथा मस्तिष्क के ऊतकों को पुनर्जीवन देते हैं। इनसे व्यक्ति का स्वास्थ्य सामान्य हो जाता है तथा जीवन दीर्घायु बनता है। इसलिए इन रसायनों का प्रयोग करके लंबी आयु प्राप्त की जा सकती है। इनमें जो हानिरहित बूटियाँ भी होती हैं तो उनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता ।
च्यवनप्राश, ब्रह्मी रसायन तथा अश्वगंधा कुछ महत्त्वपूर्ण बलवर्धक औषधियाँ हैं, जिनका इस्तेमाल हमारे देश में सामान्य रूप से किया जाता है। ये रसायन शरीर की कोशिकाओं का क्षय रोकने में मदद करते हैं तथा कोशिकाओं का पुनरुपात्दन करते हैं। लंबा जीवन तथा उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करना आयुर्वेद का एकमात्र लक्ष्य है।
ब्राह्मी हकलानेवाले बच्चों की आवाज सुधारने में मदद करती है। इसका सेवन विद्यार्थियों की एकाग्रता तथा उनकी बौद्धिक क्षम बढ़ाता है। यह गृहिणियों तथा अधिकारियों में त्वरित निर्णय क्षमता को सुदृढ़ करती है। मस्तिष्क की कोशिकाओं को उत्तेजित करके तंत्रिका कोशिकाओं तथा मस्तिष्क कोशिकाओं को नया जीवन देती है। समझ को विस्तृत करने तथा बौद्धिक क्षमता बढ़ाने में मदद करती है। एकाग्रता तथा स्मरणशक्ति और मानसिक तथा शारीरिक प्रतिक्रियाओं की तीक्ष्णता को बढ़ाती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि यह किसी प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव दिखाए बिना मस्तिष्क के लिए एक टॉनिक है।
रसायन औषधि सेवन के लाभ :
- रसायन शरीर के लिए बलवर्धक या किसी रोग के पूर्णनाशक के रूप में काम करते हैं।
- रसायन जीवनवर्धक, जीवनरक्षक जड़ी-बूटियाँ हैं, जो कोशिकाओं तथा ऊतकों को नया रूप देते हैं।
- इनसे व्यक्ति पुनः अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त कर सकता है तथा उसका जीवनकाल बढ़ जाता है।
- इन रसायनों के सेवन से व्यक्ति लंबी आयु प्राप्त कर सकता है। ये हानिरहित और सुरक्षित होते हैं, इनका शरीर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है।
- च्यवनप्राश, ब्राह्मी रसायन, अश्वगंधा रसायन आदि कुछ महत्त्वपूर्ण शक्तिवर्धक हैं जो सामान्य रूप से प्रचलित हैं।
- आयुर्वेद की सभी जड़ी-बूटियाँ शरीर के लिए टॉनिक के रूप में काम करती हैं। ये शरीर प्रणाली को नया रूप देती हैं तथा शरीर की कोशिकाओं में क्षय को रोकने में भी मदद करती हैं।
- आयुर्वेद का मुख्य लक्ष्य अच्छा स्वास्थ्य तथा दीर्घ आयु प्राप्त करना है।