Last Updated on July 18, 2021 by admin
ड्राप्सी नामक बीमारी न तो विषाणुजन्य है और न ही जीवाणुजन्य। अर्थात् इस रोग के कोई कीटाणु नहीं होते बल्कि इस रोग का कारण है, सत्यानाशी (अर्जिमोन मेक्सीकाना) के बीजों का तेल । मिलावट द्वारा या किसी भी तरह से मानव शरीर में पहुँच जाना।
सत्यानाशी के बीज सरसों के बीजों से मिलते-जुलते हैं, इसे पीला धतूरा या भरमडांडी या दरूदी अथवा सियालकाँटा भी कहीं-कहीं कहा जाता है और अक्सर सरसों की फसल के साथ ही सत्यानाशी के पौधे भी उगते हैं।
इस कारण कई बार तो सरसों के बीजों के साथ ही इसके बीजों का भी तेल अनजाने में मिल जाता है और ऐसे तेल का प्रयोग करने वालों में खतरनाक एपिडेमिक ड्राप्सी रोग हो जाता है।
एपिडेमिक का अभिप्राय होता है सामूहिक रूप से रोग फैलना। वैसे आजकल मुनाफा कमाने के लिए भी कुछ दुष्ट प्रकृति के व्यापारी सरसों के तेल में सत्यानाशी का तेल मिश्रित सरसों का तेल बेचते हैं। इस तरह की दुखद घटनाएँ दिल्ली एवं देश के अन्य हिस्सों में घटती रहती हैं।
ड्राप्सी रोग क्या है ? (What is Epidemic Dropsy in Hindi)
जैसा कि शुरू में बतलाया गया है कि यह रोग रोगाणुओं द्वारा नहीं, बल्कि सरसों के तेल में जानबूझकर या धोखे से हुई मिलावट के कारण ही होता है। लेकिन सन् 1926 तक इस रोग का कारण अज्ञात था। सन् 1939 में चिकित्सा वैज्ञानिकों ने प्रायोगिक तौर पर यह सिद्ध किया कि सरसों के तेल में सत्यानाशी के बीजों के तेल से ही यह रोग उत्पन्न होता है। सन 1941 में सत्यानाशी के विष की पहचान की गई। इस विष को सैंगुनेरिन कहते हैं। यह विष ही मृत्यु का कारण बनता है। कई बार इलाज के बावजूद रोगी की मृत्यु हो जाती है।
ड्राप्सी रोग के कारण (Causes of Epidemic Dropsy in Hindi)
ड्राप्सी कैसे होती है ?
विषैला पदार्थ सैंगनेरिन जो कि सरसों के मिलावटी तेल में मौजूद होता है, जब शरीर में पहुँचता है तो यह पिरूविक अम्ल के ऑक्सीकरण में बाधा उत्पन्न करता है। यह पिरूविक अम्ल रक्त में इकट्ठा हो जाता है। इस कारण शरीर की छोटी-छोटी रक्तवाहिकाएँ फैल जाती हैं। विशेषकर त्वचा, हृदय एवं आँखों की छोटी रक्तवाहिकाएँ जिन्हें केपिलरीज भी कहते हैं – अत्यधिक मात्रा में फैल जाती हैं। कुछ वाहिकाएँ श्लेष्मा तथा त्वचा में छोटी-छोटी गाँठे सरीखी बना लेती हैं जिनसे खून भी रिसता है।
ड्राप्सी रोग के लक्षण (Epidemic Dropsy Symptoms in Hindi)
ड्राप्सी के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
ड्राप्सी के लक्षण विषाक्त तेल खानेवाले सभी व्यक्तियों में एक साथ मिलते हैं इसलिए इसे एपिडेमिक ड्राप्सी कहते हैं। रोग के प्रमुख लक्षण निम्न हैं –
- उल्टी होना।
- दस्त लगना।
- एकदम से दोनों पैरों में सूजन आना।
- हृदय का ठीक तरीके से कार्य न करना (हार्ट फेलअर) इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।
- आँखों में मोतियाबिन्द या कांचियाबिन्द (ग्लूकोमा) नामक रोग हो जाना।
- बुखार आना।
- त्वचा पर खूनी चकत्ते दिखते हैं, इनसे खून भी रिसता है।
ड्राप्सी रोग की जटिलताएँ (Epidemic Dropsy Complications in Hindi)
ड्राप्सी के लगभग दस प्रतिशत मरीज आँखों के रोग ग्लूकोमा से ग्रस्त हो जाते हैं, जो अन्धापन को जन्म देता है। दूसरी जटिलता है हार्ट फेलअर अर्थात् हृदय का ठीक तरह से कार्य न करना। जैसा कि पूर्व में बतलाया जा चुका है कि ड्राप्सी रोग से ग्रस्त मरीजों में हार्ट फेलअर ही उनकी मृत्यु का कारण बनता है।
ड्राप्सी रोग का इलाज (Epidemic Dropsy Treatment in Hindi)
ड्राप्सी का उपचार कैसे किया जाता हैं ?
वास्तविकता यह है कि रोग का पूर्ण सन्तोषजनक इलाज उपलब्ध नहीं है। फिर भी यदि रोगी को तुरन्त चिकित्सा उपलब्ध हो जाए तो वह बच सकता है।
चिकित्सक हार्ट फेलअर का इलाज डिजॉक्सिन जैसी दवा देकर करते हैं। रोग में कार्टिकोस्टेराइड दवाएँ भी दी जाती हैं। इसके अलावा रोगी को ऊँचे दर्जे की प्रोटीनयुक्त खुराक दी जाती है तथा विषाक्त तेलयुक्त भोजन बिलकुल बन्द कर दिया जाता है। इस रोग से रोगी को मुक्ति धीरे-धीरे कई दिनों में मिल पाती है।