Last Updated on February 20, 2023 by admin
गंभारी क्या है ? (Gambhari in Hindi)
गंभारी के पेड़ अधिकतर हिमालय के पर्वतीय प्रदेशों, नीलगिरी तथा पूर्वी और पश्चिमी घाटों मे विशेषकर पाये जाते हैं।
गंभारी के पेड़ 12 से 18 मीटर तक ऊंचे होते है। इसके तने का बारीक चूर्ण धूल के रंग का और पुरानी होने पर हल्के रंगीन होते हैं। इसकी छाल ऊपर से हरी परन्तु उसके बाद हल्की पीली तथा केन्द्र में सफेद रंग की होते हैं। इसके पत्ते लगभग 5-10 सेमी लंबे, 2.5 से 8 इंच चौड़े दिल के आकार या पीपल की तरह होते हैं। इसके फूल हल्के लालीपन लिये हुए पीले रंग का होते हैं। इसके अन्दर एक-दो बीज होते हैं। पतझड़ के मौसम में इसका पेड़ बिना पत्तों का हो जाता है। इसके बाद बसन्त में इसके पेड़ पर फूल और गर्मी में फल लगते हैं।
गंभारी का विभिन्न भाषाओं में नाम :
वैज्ञानिक नाम | गमेलीना अरबोरिया रोकसब |
कुल नाम | वैरबैनेस |
संस्कृत | गंभारी, श्रीपर्णी, मधुपिर्णका, काश्मीरी, पीतरोहिणी |
हिन्दी | गंभारी, गंभार |
गुजराती | शीबसा, शिवण |
बंगाली | गाभार |
तमिल | गुमादि |
तेलगू | पद्यगोमरू |
गंभारी के गुण :
- गंभारी वात, पित्त कफ तीनों दोषों को दूर करता है।
- यह उत्तेजना, मेद्य, भेदक, पाचन शक्ति से सम्बंधित रोग, भ्रम तथा सूजन के रोगों को दूर करने वाली होती है।
- गंभारी का फल शक्ति को बड़ाने, वात-पित्त को नष्ट करने, प्यास को दूर करने तथा खून को साफ करने वाली होती है।
- गंभारी का फल एक प्रकार का रसायन है।
- गंभारी की पत्तियां स्नेहन और ठण्डी होती है।
- गंभारी की पत्तियां शरीर की जलन तथा दर्द को दूर करने वाली होती है। पेशाब की मात्रा को बढ़ाने वाला होती है।
- गंभारी की छाल सूजन को कम करती है तथा पौष्टिक होती है।
- गंभारी के बीजों का तेल मीठा तथा कषैला होता है।
- गंभारी का फल मुलेठी, लाल चन्दन यह सभी पित्त ज्वर को दूर करते हैं।
- गंभारी का फल शरीर की जलन को भी दूर करता हैं।
- गंभारी का फल तथा नागकेसर आदि औषधियां टूटी हुई हडि्डयों को जोड़ने वाली और जख्म को भरने वाली होती है।
रासायनिक संघटन :
गंभारी की जड़ में पीले रंग का गाढ़ा तेल और कुछ बेन्जोइक एसिड होता है। इसके फल में ब्युट्रिक व टार्टरिक अम्ल, एक क्षाराभ, शर्करा, राल और कुछ कषैले द्रव्य होते हैं।
विभिन्न रोगों में गंभारी के फायदे व उपयोग (Gambhari ke Fayde aur Upyog)
1. सिर में दर्द: बुखार की अवस्था में जब सिर मे दर्द हो तो गंभारी की पत्तियों को पीसकर सिर पर लेप करने से दर्द और जलन समाप्त हो जाते हैं।
2. रक्तातिसार (खूनी दस्त): खूनी दस्त में गंभारी के ताजे फलों को पीसकर उसका रस निकालकर 1-1 चम्मच रस रोजाना 3-4 बार रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
3. अग्निमान्द्य (अपच): अग्निमान्द्य में 3 ग्राम गंभारी की मूल (जड़) का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करना लाभकारी होता है। गंभारी की जड़ का 40 मिलीमीटर काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से बुखार, मन्दाग्नि (भूख कम लगना) और जलोदर आदि कई दूसरों रोगों में आराम आता है।
4. पेट के दर्द: गंभारी की जड़ का 3 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से पेट का दर्द हो जाता है तथा यह मल को ढीला भी करता है।
5. आंतों के कीड़े: गंभारी की जड़ का 50 से 100 मिलीलीटर काढ़ा रोगी को पिलाने से उसके आंतों के कीडे़ मर बाहर हो जाएंगे।
6. सूतिका रोग: सूतिका रोग में गंभारी की 20-30 ग्राम छाल को 240 मिलीलीटर पानी में उबालें और जब इस काढ़े का चौथाई भाग बच जाए तब इसे रोजाना सुबह-शाम सेवन करें, इससे गर्भाशय की सूजन कम हो जाएगी तथा सूतिका बुखार भी ठीक हो जाएगा। इसके सेवन से महिलाओं के स्तनों में दूध की बढ़ोतरी भी होती है।
7. गर्भरक्षार्थ (गर्भ में बच्चे की रक्षा) के लिए: गंभारी फल और मुलेठी के चूर्ण को बराबार मात्रा में लेकर फिर इसमें दोनों के बराबर मिश्री मिलाकर इसे 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गर्भ में पल रहे बच्चे का स्वस्थ ठीक रहता है।
8. कफज रोग: गंभारी और अड़ूसे के कोमल पत्तों के 10-20 मिलीमीटर रस को सुबह-शाम पीने से कफज रोग दूर हो जाता है।
9. मूत्रकृच्छ (पेशाब में कष्ट या जलन): गंभारी के कोमल पत्तों के लगभग 5 ग्राम के रस को पीने से पेशाब की जलन तथा कष्ट दूर होती है।
10. पूयमेह: पूयमेह, पेशाब करने में कष्ट व नाभि के नीचे के भाग की सूजन को ठीक करने के लिए गंभारी के फल और पत्तियों का 10-20 मिलीमीटर रस में गाय का दूध और मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
11. वातरक्त: मुलेठी और गंभारी फल का 50-100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार पीने से वातरक्त में लाभ होता है।
12. कमजोरी: शरीर की कमजोरी तथा शुक्राणु की कमजोरी उत्पन्न होने पर गंभारी के फल का चूर्ण और मिश्री को एक साथ मिलाकर सुबह-शाम 1-1 चम्मच गाय के दूध के साथ सेवन करें इससे लाभ मिलेगा। बुखार होने के बाद शरीर में कमजोरी उत्पन्न होने पर इसकी छाल का 50-100 मिलीलीटर काढ़ पिलाना लाभकारी होता है।
13. शीतपित्त: गंभारी और गूलर के सूखे या ताजे फलों का 50-100 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से शीतपित्त के रोग में लाभ होता है।
14. बुखार:
- शरीर की जलन और प्यास युक्त विषम बुखार में गंभारी के 40-50 मिलीलीटर काढ़े में चीनी या मिश्री मिलाकर गर्म करें फिर इसे ठण्डा करके सुबह-शाम सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
- पित्त ज्वर की अवस्था में गंभारी के फलों का 1 चम्मच रस लगातार 3 बार सेवन करने से लाभ होता है।
- गंभारी के ठण्डे काढ़े में चीनी मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पित्त ज्वर ठीक होता है।
- गंभारी की जड़ का काढ़ा 40 ग्राम रोजाना 2 से 3 बार देने से बुखार ठीक होता है।
15. बांझपन: यदि किसी स्त्री का गर्भाशय छोटा होने के कारण या सूख जाने के कारण से बांझपन हो तो गंभारी के फल की गूदा और मुलहठी को 250 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से गर्भाशय पूर्ण रूप से पुष्ट हो जाता है जिसके फलस्वरूप बांझपन दूर हो जाता है।
16. बेरी-बेरी: गंभारी के मूल को पीसकर काढ़ा बना लें। 20 से 40 ग्राम काढ़ा प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से पैरों की सूजन खत्म होती है।
17. गर्भाशय की सूजन: गर्भाशय की सूजन में गंभारी फल की गूदा और मुलेठी को गर्म दूध के साथ 250 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम रोगी स्त्री को देने से उसका गर्भाशय पुष्ट हो जाता है। इसका कुछ दिनों तक लगातार सेवन करना चाहिए।
18. कर्णमूल प्रदाह (कान की जड़ में जलन): लगभग 20 से 40 ग्राम गंभारी की जड़ का काढ़ा रोजाना 2-3 बार पिलाने से कान की सूजन ठीक हो जाती है।
19. गर्मी अधिक लगना: गर्मी के दिनों में शरीर की गर्मी व जलन दूर करने के लिये गंभारी के फल की गूदा का ठण्डा शर्बत बनाकर उसका सेवन करने से लाभ मिलता है।
20. स्तनों का ढीलापन दूर करना: गंभारी की 2 किलोग्राम छाल को पीसकर 16 किलोग्राम पानी में मिलाकर काढा बना लें, गंभारी की 250 ग्राम छाल को पानी के साथ पीसकर चटनी बना लें या फिर गंभारी के चटनी या काढ़े में 1 किलोग्राम तिल का तेल मिलाकर लें और इसके बाद इस तेल को रुई में भिगोंकर स्तनों पर लगाने से ढीले और लटके हुए स्तन टाईट और सुन्दर हो जाते हैं।
21. रक्तपित्त (खूनी पित्त): गंभारी फल की गूदा 1 से 3 ग्राम को शहद के साथ सुबह शाम खाने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
22. स्तनों के आकार में वृद्धि:
- गंभारी के रस में तिल के तेल मिलाकर इससे स्तनों पर धीरे-धीरे मालिश करें और इसी तेल से रुई से भिगोकर जनेन्द्रिय में रखने से स्तन के आकार में वृद्धि होती है।
- गंभारी का रस और कर्कट के पेड़ को तिल के तेल के साथ पकाकर छान लें, फिर तेल से एक दिन में सुबह और शाम स्तनों की मालिश इससे स्तनों के आकार की वृद्धि होती है और ढीले स्तन सक्त हो जाते हैं।
23. स्त्री के स्तनों में दूध की वृद्धि: गंभारी की जड़ को अच्छी तरह पकाकर काढ़ा बनाकर रख दें फिर इस काढ़े में 40 ग्राम शहद मिलाकर इसका सेवन सुबह और शाम करने से स्तनों में दूध की बढ़ोत्तरी होती हैं।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)