Last Updated on February 23, 2023 by admin
गंधक क्या है ? :
गंधक एक प्रकार का खनिज पदार्थ होता है। इसमें आग बहुत जल्दी पकड़ लेती है। आमतौर पर यह दो प्रकार की होती है। 1. नैनिया और 2. आंवलासार। दवाइयों में आंवलासार का ही उपयोग किया जाता है।
गंधक शोधन एवं सावधानियां :
शुद्ध गंधक का उपयोग आयुर्वेद की लगभग हर रसौषधी में होता है, जहां जहां पारद है वहां वहां गंधक भी मिलाया जाता है। पंसारी से जो आंवलासार गंधक मिलता है उसका शोधन करने के बाद ही उपयोग किया जाता है। शास्त्रों में गंधक शोधन के लिए अनेक विधियां बताई गई है उनमें से जो आसान, कम खर्च और चिकित्सीय दृष्टि से उपयुक्त हो ऐसी दो विधियों को हमने चुना है।
विधि –
- सबसे पहले आमलासार गंधक को खरल में लेकर यवकुट चूर्ण करे, ध्यान रखे कि बिलकुल बारीक नहीं पीसना है अन्यथा गंधक जल्दी पिघलकर कभी कभी जल भी जाता है।
- अब एक लोहे की कड़ाही में घी डाले। शास्त्रों में घी के प्रमाण के बारे में दो उल्लेख है,एक गंधक के समान मात्रा में घी डाले दूसरा थोड़ा सा घी ले जिससे कि गंधक को पिघलाने में सुविधा हो। समान मात्रा में गंधक लेने से ये फायदा है कि जब हम पिघले हुए गंधक को कपड़े से छान कर दूध में डालते है तो अधिकांश गंधक कपड़े से छन कर दूध में गिर जाता है और कम मात्रा में ही कपड़े पर चिपकता है जिससे गंधक का वेस्ट कम होता है साथ ही गंधक में स्थित उष्ण तीक्ष्ण गुण का भी शमन होता है। कम घी लेना आर्थिक रूप से सही है साथ ही इसमें ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं गंधक जल ना जाए इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है, अभ्यास से ऐसा नहीं होता है।
- फिर ऊपर पिघले हुए गंधक को एक पात्र जिसमें पूर्व में ही दूध डाला हुआ हो और ऊपर से एक कपड़ा बांधा हो जिससे कि गंधक में मिले हुए फिजिकल impurities इसमें छन जाए। ध्यान ये रखना है कि दूध को उबले और गरम होने पर ही उसमे गंधक डाले।
- कपड़ा खोलकर नीचे मिले हुए शुद्ध गंधक को फिर से पूर्ववत विधि से 3बार शोधन करे। ऐसा शास्त्र में करने का आदेश है।
- शुद्ध करने के बाद उसे गरम पानी से अच्छे से धोले जिससे कि उसमे मिला हुआ घी और दूध निकाल जाए। धोने के बाद उसे धूप में सुखाकर कांच पात्र सुरक्षित रखे।
गंधक के गुण :
- प्रकृति : गंधक की तासीर गर्म होती है।
- रंग : गंधक पीले रंग का होती है।
- स्वाद : गंधक का स्वाद फीका और बदबूदार होता है।
- तुलना : हड़ताल से गंधक की तुलना की जा सकती है।
- गंधक शरीर को शुद्ध करती है।
- यह सूजन को मिटाती है तथा खुश्की पैदा करती है।
- गंधक खून को साफ करती है शरीर में गर्मी लाती है तथा खुजली को दूर करती है।
- इसको नस्य (नाक में) देने से मिर्गी, सन्यास यानी तेज बेहोशी तथा आधाशीशी (आधे सिर का दर्द) का रोग ठीक हो जाता है।
विभिन्न रोगों के उपचार में गंधक के फायदे और उपयोग (Gandhak ke Fayde aur Upyog)
नोट – इस बात का ख्याल रहे, दवाइयों में आंवलासार गंधक को ही ऊपयोग में लिया जाता है तथा इसका शोधन करने के बाद ही उपयोग किया जाता है।
1. दमा: केवल गंधक का चूर्ण गाय के घी के साथ सेवन करने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
2. त्वचा के रोग: सुबह में पानी को हल्का सा गर्म करके उसमें थोड़ा सा गंधक डाल लें और फिर स्नान करें इससे त्वचा का रोग ठीक होने लगता है।
3. खांसी:
- 50 ग्राम आंवलासार गंधक और 50 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीसकर रख लें। 4 से 6 ग्राम तक घी के साथ सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
- 8-8 ग्राम आंवलासार गंधक, इन्द्रायण के फल का गूदा, कालीमिर्च, देवदारू, भांगरा और सोंठ को पीसकर 14 खुराक की मात्रा तैयार कर लें फिर इसकी एक-एक खुराक सुबह-शाम शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
4. संग्रहणी (पेचिश)- 2 ग्राम शुद्ध गंधक, 10 ग्राम सोंठ, 5 ग्राम पीपल, 5 ग्राम पांचों नमक, 2 ग्राम भुनी हुई भांग लेकर इन सबको बारीक पीस लें। फिर इसमें से 2 चुटकी चूर्ण ठण्डे पानी के साथ सेवन करने से पेचिश रोग ठीक होने लगता है।
5. खूनी अतिसार– 2-2 ग्राम गन्धक के तेल का सेवन करने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) में आराम मिलता है।
6. बवासीर (अर्श): गन्धक की गोलियां बनाकर इसे प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर ठीक होती है।
7. पेट में कीड़े होना: 10 ग्राम गन्धक, 10 ग्राम पारा, 20 ग्राम कज्जली, 30 ग्राम अजमोद, वायविण्डग 40 ग्राम, शुद्ध कुचिला 50 ग्राम, पित्तपापड़ा 60 ग्राम तथा पलास के बीजों को अच्छी तरह पीसकर बारीक चूर्ण बना लें फिर इसमें से एक ग्राम से तीन ग्राम की मात्रा में नागरमोथा के काढ़े के साथ पीने से पेट में होने वाले कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
8. सफेद दाग: 20 ग्राम गंधक, 10 ग्राम मैनोसल, 10 ग्राम नीला थोथा, 10 ग्राम मुर्दा शंख, 10 ग्राम सुहागा, 10 ग्राम हरताल, 10 ग्राम सिन्दूर और 10 ग्राम पाराभस्म को एक साथ पीसकर फिर इसे आधे कप नींबू के रस में मिलाकर लगातार दो महीने तक सफेद दागों पर लगाने से लाभ मिलता है।
9. पेट में दर्द: गन्धक के तेजाब की 5 से 6 बूंदों को 30 ग्राम पानी में मिलाकर पीने से पेट की पीड़ा दूर होती है।
10. एक्जिमा: शुद्ध गंधक और मिश्री मिलाकर रख लें। मिश्रण में से 3 ग्राम से 6 ग्राम रोजाना दो बार सुबह और शाम सेवन करने से हर तरह की खाज-खुजली या एक्जिमा समाप्त हो जाती है।
11. अपरस: असली गंधक को सरसों के तेल मे मिलाकर धूप मे रख दें। तेल के गर्म हो जाने के बाद उस तेल से जहां पर अपरस (चमड़ी का फट जाना) हो वहां पर लगाने से लाभ मिलता है।
12. उपदंश: गंधक को बारीक पीसकर घी में मिलाकर घाव पर लगाने से भी उपदंश ठीक हो जाता है।
13. गठिया रोग: सिरके में गन्धक मिलाकर लेप करने से गठिया की सूजन ठीक हो जाती है।
14. फोड़ा (सिर का फोड़ा): फोड़े और उसकी गांठ पर गन्धक का लेप लगाने से फोड़े के जख्म जल्दी ठीक हो जाते हैं।
15. नंपुसकता: गंधक पीसकर और शहद में मिलाकर इससे शिश्न (लिंग) के अगले भाग को छोड़कर बाकी के भाग पर लेप करें फिर इसके बाद मैथुन (संभोग क्रिया) करने से वीर्य स्खलित नहीं होता है।
16. खुजली: रात में 10 ग्राम शुद्ध आमलासार गंधक को पानी में भिगों दें और सुबह मोटे कपड़े में छानकर पी लें। इससे खुजली जल्दी ही ठीक हो जाती है। गंधक के पानी को छानने के बाद जो गंधक कपड़े में रह जायें उसे नारियल के तेल में पीसकर मिला लें। इसको धूप में बैठकर शरीर पर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
17. फीलपांव (गजचर्म)- सर्वप्रथम पारा-गन्धक की कज्जली फीलपांव पर लगाए तथा इसके बाद गन्धक, मेहन्दी, खुरासानी, अजवायन, मोम, पारा, नीलाथोथ, कत्था तथा मालकांगनी को बराबर मात्रा में लेकर इनको को पीस लें फिर इसे छानकर इसे गाय के पेशाब मिलाकर एक दिन छोड़ दें। इस लेप से फीलपांव पर मालिश करने से लाभ मिलता है तथा रक्तविकार भी नष्ट हो जाता है। इस लेप से पामा और छाजन पर मालिश करने से भी लाभ मिलता है।
18. स्त्री को द्रवित (संतुष्ट करना): गन्धक को अच्छी तरह पीसकर रख लें फिर इसी चूर्ण को शहद में मिलाकर पुरुश अपने शिश्न (लिंग) के अगले भाग को छोड़कर बाकी के भाग पर लेप करके थोड़ी देर बाद सहवास (संभोग) करने से शरीर की ताकत में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप स्त्रीं सहवास के प्रति संतुष्ट भी हो जाती है।
19. दाद-खाज:
- एक बोतल मिट्टी के तेल में 3.20 ग्राम आंवलासार-गंधक डालकर बोतल को एक महीने तक धूप में रखे रहने दें। फिर रूई से यह तेल दाद पर लगाने से दाद बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
- लगभग 58 ग्राम गंधक लेकर मदार (आक) के दूध में मिला लें फिर उसमें गाय का दूध डालकर घोटते रहे हैं। पूरे दिन भर गंधक की घोटाई करके टिकिया बनाकर सुखा लें। एक कढ़ाही में लगभग 2 किलो पानी लेकर इसमें टिकियां डाल दें फिर इसे आग पर रखकर पका लें। जब गंधक का तेल पानी के ऊपर कढ़ाही में तैरने लगे, तब इसे निकालकर ठण्डा कर लें। फिर इस तेल को हाथों की हथेली में लगा-लगाकर थाली की अन्दर की किनारियों में लगाते जाएं। जब सारा तेल निकल जाए और पानी बच जाए तो पानी को फेंक दें तथा बाकी बचे हुऐ तेल को शीशी में भर दें। अब इस तेल को दाद-खाज, अपरस, कुष्ठ आदि रोगों से ग्रस्त अंग पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा।
गंधक के नुकसान :
गंधक का अधिक मात्रा में उपयोग करना दिमाग के लिए हानिकारक हो सकता है।
दोषों को दूर करने वाला : कतीरा गंधक के दोषों को दूर करता है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)