Gandmala Kandan Ras in Hindi | गण्डमाला कण्डन रस के फायदे ,उपयोग और दुष्प्रभाव

Last Updated on March 2, 2020 by admin

गण्डमाला कण्डन रस क्या है ? : What is Gandmala Kandan Ras in Hindi

गण्डमाला कण्डन रस टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। इस औषधि का उपयोग गाँठ, गिल्टी, कंठमाला जैसी बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है।

गण्डमाला कण्डन रस के घटक द्रव्य : Gandmala Kandan Ras Ingredients in Hindi

  • शुद्ध पारद – 20 ग्राम,
  • शुद्ध गंधक – 10 ग्राम,
  • ताम्र भस्म – 30 ग्राम,
  • मण्डूर भस्म – 60 ग्राम,
  • त्रिकटु – 120 ग्राम,
  • श्वेत सैन्धानमक – 10 ग्राम,
  • कांचनार की अन्तरत्वक का वस्त्रपूत चूर्ण – 240 ग्राम,
  • शुद्ध गुग्गुलु – 240 ग्राम,
  • त्रिफला (क्वाथ के लिये) – 125 ग्राम,
  • कांचनार अन्तरत्वक (क्वाथ के लिये) – 125 ग्राम

प्रमुख घटकों के विशेष गुण :

  1. कजली (पारद गंधक) : कृमिघ्न, योगवाही रसायन, अन्य खनिज, प्राणीज
    एवं वनौषधियों को स्थयित्व प्रदान करने वाली, उनके गुणों में वृद्धि करने
    वाली, त्रिदोष शामक।
  2. ताम्र भस्म : पित्तशामक, याकृत पित्त रेचक, लेखन, जन्तुघ्न, विषघ्न, अग्निबर्धक,
    बल्य, रसायन।
  3. मण्डूर भस्म : रक्तबर्धक, पित्तशामक, बल्य, बर्ण्य, रसायन।
  4. त्रिकटु (सोंठ मिर्च पिप्पली) : दीपन, पाचन, आमनाशक, मेद नाशक, वात
    कफनाशक।
  5. कांचनार अन्तर्वक चूर्ण : ग्रंथिनाशक, रूक्ष, लघु, मधुर ।
  6. सैन्धव लवण : दीपक, पाचक, रुचिकर, स्रोतोविशोधक।
  7. गुग्गुलु : मेदोहर, शोथ हर, योगवाही, कृमिघ्न, बल्य, रसायन।
  8. त्रिफला (हरड़, बहेड़ा, आमला) : चाक्षुष्य, सारक, मेदनाशक, व्रण रोपक रसायन।

गण्डमाला कण्डन रस बनाने की विधि :

  1. सर्व प्रथम कांचनार अन्तरत्वक को दो लीटर जल में डालकर औटवायें । 250 मि.लि. शेष रहने पर वस्त्र से छान कर सुरक्षित रख लें।
  2. त्रिफला चूर्ण को दो लिटर जल में डालकर उबालें पात्र के मुख पर श्वेत मलमल का कपड़ा बाँध कर उसके ऊपर गुग्गुलु बिछा दें। ऊपर से किसी दूसरे पात्र से ढक दें। आग धीमी रहे, गुग्गुलु को अच्छी प्रकार स्विन्न हो जाने पर उसे खरल में डालकर खरल करवायें, बीच-बीच में कांचनार क्वाथ के छीटें देते जायें। जब गुग्गुलु लेपवत् तरल हो जाय तो सैंधानमक डालकर आधा घण्टा खरल करवायें। सेंधा नमक के साथ खरल करने से गुग्गुलु और भी मृदु बन जाता है। अब इसमें कज्जली, ताम्र भस्म और मण्डूर भस्म मिला कर एक घण्टा सतत् खरल करवायें, यदि, द्रव्य गाढ़ा हो जाय तो उसमें समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा गोघृत मिलाते जाएँ अन्त में त्रिकटु और कांचनार अन्तरत्वक का वस्त्र पूत चूर्ण मिला दें कांचनार त्वक (छाल) क्वाथ जितना भी बचा हो डालकर खरल करवायें, गोली बनने योग्य होने पर 250 मि.ग्रा. की गोलियाँ बना कर सुखा लें।

गण्डमाला कण्डन रस की खुराक : Dosage of Gandmala Kandan Ras

एक से दो बटिकायें प्रात: सायं भोजनोपरान्त । बाल, वृद्ध, स्त्रीयों, रोगी और रोग की स्थिति देखकर स्वयं मात्रा निर्धारित करें।

अनुपान :

दूध, मध्वोदक, उष्णोदक, वृहन्मजिष्ठादि क्वाथ, वरुणादिक्वाथ।

गण्डमाला कण्डन रस के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Gandmala Kandan Ras in Hindi

गण्ड माला में लाभकारी है गण्डमाला कण्डन रस का सेवन

गले के नीचे वादाम से अखरोट के आकार की गाँठ बन जाना ग्रन्थि कहलाता है। जब यह छ: मास से भी अधिक समय की हो जाय तो अपची कहते हैं। यदि ग्रन्थियां अधिक हो और वह गले के नीचे माला का आकार धारण करले तो उसे कण्ठमाला कहा जाता है। व्यवहार में देखा गया है कि प्रायशः इन ग्रन्थिओं में एक उभर रही होती है दूसरी पकने उपरान्त फूट गई होती है और उसमें से पूय (पस) निकल रहा होता है और तीसरी पक कर रक्तवर्ण की हो रही होती है।

सार्वदैहिक लक्षणों में मन्द ज्वर, थकावट, चिड़चिड़ा स्वभाव इत्यादि लक्षण मिलते हैं, आधुनिक चिकित्सा शास्त्री इसे Tuberculosis का ही एक प्रकार मानते हैं। और चिकित्सा भी यक्ष्मा की ही करते हैं। ग्रन्थि, अपची और गण्डमाला एक ही रोग की तीन अवस्थायें हैं। अतः इन तीनों अवस्थाओं में गण्डमाला कण्डण रस एक सफल औषधि है। दो गोली प्रातः सायं खिलाने से दो सप्ताह में लाभ दृष्टि गोचर होने लगता है।

सहायक औषधियों में कांचनार गुग्गुलु, वृद्धिवाधिकावटी, स्वर्ण वसन्त मालती रस, सितोपलादि चूर्ण, च्यवन प्राशावलेह, मकर ध्वज वटी का प्रयोग करवाया जा सकता हैं । चिकित्सावधि एक-एक मण्डल की तीन आवृत्तियां (कोर्स) ।

स्थानीय प्रयोग के लिए जात्यादि तेल, पञ्चगुण तैल, अपामार्ग तैल में गाज भिगो कर रखने से अतिशीघ्र लाभ होता है। रोगी के शरीर भार पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। चिकित्सावधि छ: मास रोगी के शरीर का भार बढ़ना रोग की निवृत्ति का लक्षण होता है।

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थायरायड ग्लैंड के स्रावाधिक्य में गण्डमाला कण्डन रस का उपयोग फायदेमंद

शरीर की चयाचयचय प्रक्रिया में चुल्लिका ग्रंथी (थायरायड ग्लैंड / Thyroid Gland) का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । यदि ग्रन्थि के स्राव का ह्रास (कम) हो तो बच्चों में वामनत्व ,किशोरियों में रजाल्पता अथवा रजोलोप मेदस्विता,विशेष प्रकार का स्थाई कफज ,शोथ ,क्षुधाल्पता इत्यादि लक्षण होते हैं।

यदि चुल्लिका ग्रंथी का स्राव आवश्यकता से अधिक हो तो, अत्यन्त क्षुधा, रज: स्रावाधिक्य, शरीर भार में कमी, हाथों में कम्पन, हाथ स्वेद से गीले परन्तु फिर भी उष्णता युक्त, हृदद्रव, जो स्वप्नावस्था में भी यथावत् रहता है, चिड़चिड़ापन, शरीर में उष्णता का अनुभव होना, इत्यादि लक्षणों में गण्डमाला कण्डन रस अत्यन्त उपयोगी औषधि है।
प्रातः सायं भोजन के एक घण्टे उपरान्त दो गोलियां शीतल जल, दूध, अथवा कांचनार अन्तरत्वक क्वाथ के साथ दें।

सहायक औषधियों में ‘स्वर्ण सूत शेखर रस’ अथवा ‘कामदुधा रस’ का प्रयोग लाभ को द्विगुणित कर देता है।

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स्तन की गाँठ में गण्डमाला कण्डन रस का उपयोग लाभदायक

स्तन ग्रन्थि दो प्रकार की होती है, एक तो शिशु को दूध पिलाने वाली माताओं में बच्चे के सिर से चोट लगने के कारण अथवा अन्य उपसर्गों से दुग्ध ग्रथियों में शोथ(सूजन) हो जाता है, दुग्ध वह स्रोतस के अवरुद्ध हो जाने से स्तन में दुग्ध स्राव नहीं होता, स्तन में शोथ हो जाती है, तथा वर्ण रक्ताभ हो जाता है, स्पर्श में उष्णत्व होता है । रुग्णा को ज्वर हो जाता है।

ऐसी रुग्णाओं में दुग्धयंत्र से दूध निकालना दशाङ्ग लेप का लेप एवं ‘स्मृति सागर रस’ के सेवन से तुरन्त लाभ मिलता है।

दूसरे प्रकार की ग्रन्थि अधिकांशतः प्रोड़ा (40 वर्ष के आसपास की आयु वाली) महिलाओं में मिलती है, स्तन के अन्दर वादाम से अखरोट के आकार की ग्रन्थि होती है, स्तन के आकार में विशेष अन्तर नहीं आता है। अतिवृद्धावस्था में स्तन चूचक, अन्दर की ओर झुक जाता है एवं शोथ एवं क्वचिद् व्रण भी होता है। ग्रन्थि में पीड़ा होती है, ग्रन्थि प्राय: एक ही स्तन में होती है,परन्तु कभी-कभी दोनों स्तनों में भी पाई जाती है। इस प्रकार की ग्रंथियों में ‘गण्डमाला कण्डन रस’ का सफलता पूर्वक उपयोग होता है। प्रातः सायं दो दो गोलियाँ मधुशित्वक क्वाथ या बृहन्मजिष्ठादि क्वाथ से दें, एक मास के भीतर लाभ दृष्टि गोचर होने लगता है।

सहायक औषधियों के रूप में कांचनार गुग्गुलु, किशोर गुग्गुलु, मूत्र कृच्छ्रान्तक रस, का प्रयोग लाभदायक सिद्ध होता है। छ: मास में ग्रंथियाँ विलीन हो जाती है साथ में किसी रसायन औषधि का प्रयोग भी करना चाहिये।

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गर्भाशय की गाँठ मिटाए गण्डमाला कण्डन रस का उपयोग

प्रायशः बहु प्रसवा स्त्रियों को प्रौड़ावस्था में गर्भाशय में तन्तुमयता होकर ग्रन्थि बन जाती है। फलस्वरूप रजःस्रावाधिक्य, रजोकाल में गर्भाशय में वेदना, क्वचित नहीं भी, मासिक स्राव का सात दिन की अवधी का उल्लंघन, एक मास में दो बार स्राव, असृग्दर प्रभृति (मासिकधर्म का अनियमित या अधिक होना) लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं ।

अल्ट्रासोनोग्राफी से ग्रंथियों के स्थान एवं आकार तथा संख्या की पुष्टी होती है। इस प्रकार की रुग्णाओं के लिये ‘गण्डमाला कण्डन रस’ एक अत्यन्त सफल औषधि है। इसके सेवन से रक्तस्राव एवं वेदना का निवारण होता है और धीरे-धीरे ग्रंथियाँ सिकुड़ने लगती हैं और अन्त में समाप्त हो जाती हैं। ग्रंथियों को पूर्ण रूपेण विलीन होने में तीन से नौ मास का समय लगता है।

मात्रा – दो गोलियाँ प्रातः सायं भोजन के उपरान्त
अनुपान – अशोकारिष्ट 20 मि.लि. 40 मि.लि. शुद्ध जल मिलाकर, अशोकारिष्ट के स्थान पर पत्रांगासव अथवा लोघ्रारिष्ट भी ले सकते हैं, दो या तीन आसवों को मिलाकर कर भी दिया जा सकता है। सहायक औषधियों में मूत्र कृच्छ्रान्तक रस एक सफल औषधि है।

अत्यातर्व (मासिक धर्म बहुत अधिक आना) की स्थिति में बोलवद्धरस, रक्तपित्त कुलकण्डण रस, चन्द्रकला रस, बावलीघास धनसत्व एवं सिद्धामृत योग का सेवन करवाया जा सकता है, परन्तु गण्डमाला कण्डन रस और मूत्रकृच्छ्रान्तक रस का सतत् प्रयोग अवश्य करवाते रहना चाहिये।

‘लोध्रामलकी’ (आमलकी का वस्त्र पूत चूर्ण और लोघ्र का वस्त्र पूत चूर्ण समभाग) एक चम्मच 3-5 ग्राम प्रातः सायं शीतल जल से देने से विशेष लाभ मिलता है यह साधारण सा दिखने वाला योग रोग नाशक भी है और रसायन भी।

मूत्र ग्रन्थि के रोग में गण्डमाला कण्डन रस के प्रयोग से लाभ

पुरुषों को बृद्धावस्था में होने वाला रोग पौरुष ग्रंथि एक अत्यन्त कष्टदायक रोग है साठ वर्ष की आयु क्वचिद् न्यूनाधिक आयु में भी रोगी की मूत्र धारा पतली पड़ जाती है, उसे मूत्र त्याग में अधिक समय लगता है, मूत्र त्याग करने के उपरान्त थोड़ी देर में कुछ और मूत्र निसृत होता है। धैर्य पूर्वक मूत्र त्याग न करने से मूत्र त्यागोपरान्त स्वत: 5-10 मि.लि. मूत्र निकल जाता है, जिससे वस्त्र मलीन हो जाते हैं। रोगी रात्री को 4 से 6 बार तक मूत्र त्याग करता है। क्वचिद् ऐसी अवस्था भी आ जाती है कि रोगी अपना अधोवस्त्र भी खोल नहीं पाता और मूत्र से उसका अधोवस्त्र भीग जाता है। ऐसी अवस्था में यदि गण्डमाला कण्डन रस और मूत्र कृच्छ्रान्तक रस का सम्मिलित प्रयोग करवाया जाय तो छ: मास के भीतर मूत्र ग्रंथि संकुचित होकर सामान्य हो जाती है।

अनुपान – वरुणादिक क्वाथ, अथवा पुनर्नवाष्टक क्वाथ, गोमूत्र, नारियल जल,

सहायक औषधियों में चन्द्र प्रभावटी, गोक्षुरादि गुग्गुलु, मण्डूरवज्र वटक, पुप्यधन्वारस, एवं वसन्त कुसुमाकर रस का प्रयोग सिद्धिप्रद होता है।

टॉन्सिल में सूजन से आराम दिलाए गण्डमाला कण्डन रस का सेवन

बच्चों का गिलायु शोथ (टॉन्सिल में सूजन) अधिक काल तक रहने से अथवा बार-बार प्रतिश्याय (सर्दी-जूकाम) होने से उनमें गिलायु (Tonsils) में स्थाई रूप से वृद्धि हो जाती है। गले में वेदना, कास, नासिका से श्वास न ले पाना विशेषतः रात्री में सोते समय ज्वर इत्यादि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। गिलायु की शल्यक्रिया ही एक मात्र चिकित्सा लगने लगती है। ऐसी अवस्था में गण्डमाला कण्डन रस का बच्चे की आयु के अनुसार मात्रा में प्रयोग शल्यक्रिया की आवश्यकता नहीं रहने देता, बच्चों को गण्डमाला कण्डन रस का प्रयोग मधु में आलोड़ित करके करवायें, एवं कफबर्धक पदार्थों का त्याग करवा दें ।

सहायक औषधियों के रूप में कल्पतरु रस, (भा.प्र.) एवं त्रिभुवन कीर्ती रस, गुड़ आर्दरक प्रयोग, (यदि बच्चा सहन कर सके) करवायें। परन्तु ‘गण्डमाला कण्डन रस’ के अतिरिक्त किसी औषधि का प्रयोग सतत् न करवायें आवश्यक हो तो बीच में अंतराल देकर पुनः प्रयोग करवायें। व्यसकों की चिकित्सा पूर्ण मात्रा देकर करें ।

सहायक औषधियों में कैशोर गुग्गुलु अधिक लाभप्रद है। दायें हाथ की तर्जनी को पानी से गीला करके उस पर ‘सिद्धामृत योग’ लगा कर दर्पण के सामने खड़े होकर उसे उंगली से गिलायु के ऊपर थोड़ा सा दबाव देकर घर्षण करें यह क्रिया, प्रातः सायं दो बार करवाएँ यह स्थानीय उपक्रम शीघ्र फलदायक है, शिशुओं में यह क्रिया नहीं करनी चाहिये परन्तु बालक यदि सहन कर सके तो अवश्य करवायें।

कैंसर की गाँठ में गण्डमाला कण्डन रस का उपयोग लाभदायक

कर्कटावुर्द (कैंसर की गाँठ ) की जिन अवस्थाओं में ग्रंथियां प्रभावित होती है, उन सभी कर्कटावुर्दों की प्रथम अवस्था में ‘गण्डमाला कण्डन रस’ का प्रयोग सफलता पूर्वक होता है रोगी और रोग की अवस्था के अनुसार चार से आठ गोलियाँ ‘विभाजित मात्रा’ में मधुशिग्रु अन्तरत्वक क्वाथ, वृहन्मजिष्ठादि क्वाथ या गोमूत्र से प्रयोग करवानी चाहिये।

सहायक औषधियों में कांचनार गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, मूत्र कृच्छान्तकरस, अभ्रक भस्म, सहस्रपुटी, तालकेश्वर रस, आरोग्य वर्धिनी वटी, मण्डूर वज्र वटक, अर्केश्वर रस इत्यादि का प्रयोग करवायें कर्कटावुर्दकी तृतिय और चतुर्थ अवस्था में इसके प्रयोग से सफलता नहीं मिलती।

गण्डमाला कण्डन रस के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Gandmala Kandan Ras Side Effects in Hindi

  • गण्डमाला कण्डन रस लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • गण्डमाला कण्डन रस के प्रमुख घटकों में दो घटक यदि पारद एवं ताम्र भस्म अशुद्ध एवं अर्ध मारित हों तो विषवत् कार्य करते हैं। शुद्ध पारद एवं निरुत्थ ताम्र भस्म साक्षात् अमृत हैं, अत: इन दोनों घटकों की गुणवता सुनिश्चित करना आवश्यक है। फिर भी रोगी की सुरक्षा और निजि बचाव के लिए प्रतिपक्ष मूत्र अल्लूमिन और कास्ट के लिए और रक्त की पलेटलेट काउण्ट के लिये जाँच करवाते रहना चाहिये।
  • दो सप्ताह के सेवन के उपरान्त एक सप्ताह का अन्तराल भी देना चाहिये।
  • बच्चों की पहुच से दूर रखें

गण्डमाला कण्डन रस का मूल्य : Gandmala Kandan Ras Price

  • Gandmala Kandan Ras 10g (Pack of 3) 10gx3 = 30g – Rs 228
  • DAV Gandmala Kandan Rasa (50 gm) – Rs 376

कहां से खरीदें :

अमेज़न (Amazon)

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