स्तनों(ब्रेस्ट) की देखभाल ,सुन्दरता और सुरक्षा के उपाय | Breast Care Tips

Last Updated on August 12, 2019 by admin

स्तनों की देखभाल और सुरक्षा :

जन्म लेते ही शिशु को मां के स्तनों से आहार मिलता है। इस दृष्टि से मां के स्तनों का बहुतमहत्व है। महिलाओं के शरीर में स्तनों का विशिष्ट स्थान है। इस दृष्टि से इनकी देखभाल और सुरक्षा करना बहुत ज़रूरी है। प्रस्तुत लेख में इस विषय में उपयोगी और प्रामाणिक विवरण दिया गया है।

स्तनों की उत्तमता को आयुर्वेद ने ‘स्तन सम्पत्‘ कहा है। स्तन सम्पत की परिभाषा इस प्रकार की गई है-स्तन अधिक ऊंचे न हों, अधिक लंबे न हों, अधिक कृश (मांस रहित) न हों, अधिक मोटे न हों। स्तनों के चुचुक (निपल) उचित रूप से ऊंचे उठे हुए हों ताकि बालक भली भांति मुंह में लेकर सुखपूर्वक दूध पी सके, ऐसे स्तन उत्तम (स्तनसम्पत्) माने गये हैं।

नारी शरीर में स्तनों का विकास किशोर अवस्था के शुरू होने पर, 12-13 वर्ष की आयु होते ही होने लगता है और 16 से 18 वर्ष की आयु तक इनका विकास होता रहता है। गर्भ स्थापना होने की स्थिति में इनका विकास तेजी से होता है, ताकि बालक का जन्म होते ही, उसे इनसे दूध मिल सके। स्तनों का यही प्रमुख एवं महत्वपूर्ण उपयोग है कि वे बच्चे को शुद्ध, स्वस्थ और विकार रहित दूध देकर उसके शरीर को स्वस्थ व बलवान बनाएं। बच्चे को कमसे कम 9 मास तक माता द्वारा अपना दूध पिलाया जाना चाहिए। आइये जाने स्तनों की देखभाल कैसे करें ?

स्तनों(ब्रेस्ट) की देखभाल के टिप्स :

• स्तनों की देखभाल जन्म से ही करना ज़रूरी है। कभी-कभी ऐसा होता है कि नवजात शिशु के स्तनों में हल्की सी सूजन होती है। ऐसी स्थिति में माता को चाहिए कि वह बच्चे के स्तनों की ठीक से मालिश कर, गर्म पानी से स्नान कराए व सेक करे और साफ कपड़े से पोंछ कर अच्छा टेलकम पाउडर लगाया करे । अपने स्तनों के चुचुकों को भली-भांति साफ रखें ताकि बच्चे को संक्रमण (इन्फेक्शन) की स्थिति से बचा कर रखा जा सके।

• किशोर आयु शुरू होने के साथ-साथ लड़कियों के स्तन बढ़ने लगते हैं। इसकी सूचना मासिक धर्म शुरू होने से मिलती है। कभी-कभी इस अवस्था में स्तनों में हल्की सी सूजन और कठोरता सी हो जाया करती है। ऐसी स्थिति में गर्म पानी से नेपकिन गीला करके स्तनों को सेकना चाहिए। मासिकधर्म के दिनों में प्राय: यह व्याधि हुआ करती है जो मासिक ऋतु स्रावबंद होतेही ठीक हो जाती है।

• गर्भ के समय-गर्भावस्था के दिनों में स्तनों की देखभाल करना ज़रूरी है। स्तनों को भली प्रकार धोना, अच्छे साबुन का प्रयोग करना, चुचुकों को साफ रखना, यानि चुचुक बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़ कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए ताकि नवजात शिशु के मुंह में भली-भांति दिये जा सकें। यदि हाथों के सहयोग से यह संभव न हो सके तो ‘ब्रेस्ट पंप’ के प्रयोग से चचकों को उन्नत और उठे हुए किया जा सकता है।

• कभी-कभी चुचुकों में कटाव, शोथ या अल्सर जैसी व्याधि हो जाती है। इसके लिए घरेलू तौर पर यह प्रयोग करना हितकारी होगा-

☛ थोड़ा सा शुद्ध घी (गाय का) लें। सुहागा तवे पर फुला कर पीस कर इसमें मिला दें। माचिस की सींक की नोक के बराबर गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह से मिला कर मल्हम जैसा कर लें और स्तनों के चुचुक पर दिन में 3-4 बार लगाएं।
☛ ताजे मख्खन में थोड़ा सा कपूर मिला कर लगाने से भी लाभ होता है।

• स्त्रियों के लिए उपयोगी टॉनिक एवं औषधियों में अशोक की छाल,घृतकुमारी, पुत्रजीवी,उलट कम्बल, धायपुष्पी, लोध्र, शतावर आदि द्रव्य होते है जो गर्भाशय, डिम्बाशय, हारमोन्स, मासिक ऋतुस्राव आदि के विकार दूर करते हैं।

• केमिस्ट की दुकान पर मिलने वाले ‘मेसी क्रीम’ या ‘बेटनोवेट ‘सी’ स्किन आइंटमेंट’ लगाने से भी लाभ होता है।

• किशोर अवस्था में जब स्तनों का आकार बढ़ रहा हो, तब तंग अंगिया या ब्रेसरी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उचित आकार की और तनिक ढीली अंगिया पहनना चाहिए।

• आजकल के फैशन के अनुसार बिना अंगिया पहने नहीं रहना चाहिए, वरना स्तन बेडौल और ढीले हो जाएंगे। ज्यादा तंग अंगिया पहनने से स्तनों के स्वाभाविक विकास में बाधापड़ती है और अविकसितस्तन वैसे ही अशोभनीय लगते हैं जैसे ज्यादा बड़े और बेडौल स्तन कुरूप दिखाई देते हैं। अविकसित स्तन बच्चे को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं पिला पाते ।

• इस अवस्था में भली-भांति शारीरिक परिश्रम और हाथों से काम करने वाली किशोर युवतियों के सारे शरीर के अंग-प्रत्यंगों का उचित विकास होता है और स्तन बहुत सुडौल और पुष्ट होजाते हैं। प्राय: घरेलू काम जैसे कपड़े धोना, छाछ बिलौना, कुएं से पानी खींचना, बर्तन मांजना, झाडू-पोंछा लगाना और चक्की पीसना ऐसे ही व्यायाम हैं जो स्त्री के शरीर के सब अवयवों को स्वस्थ और सुडौल रखते हैं। यदि ये घरेलू काम न किये जा सकें तो कुछ व्यायाम ज़रूर करना चाहिए। अब जानते है प्रसव के बाद स्तनों की देखभाल कैसे करें ?

प्रसव के बाद स्तनों की देखभाल के टिप्स :

• बच्चे को जन्म देते ही स्तनों का प्रयोग शुरू हो जाता है।स्तन के चुचुकों को भलीभांति अच्छे साबुन से साफ पानी से धोकर साफ करके ही शिशु के मुंह में देना चाहिए ।
• जब-जब दूध पिलाया जाए तब-तब छोटे नेपकिन को गर्म पानी में भिगो कर, इस नेपकिन से चुचुकों को साफ कर के ही दूध पिलाना चाहिए।
• बच्चों को 4 घंटे से दूध पिलाना चाहिए। एक स्तन से दूसरा स्तन बदलने से पहले बच्चे को कंधे से लगा कर उसकी पीठ पर हल्के-हल्के हाथ फेरना चाहिए। इससे दूध पीते समय बच्चे के पेट में जो वायु पहुंच जाती है सो बाहर निकल जाती है। इतना करके फिर दूसरा स्तन बच्चे के मुंह में देना चाहिए।
• कभी-कभी बच्चा दूध फेंकने लगता है, ऐसी स्थिति में बच्चे को थोड़ी देर के लिए अपने कंधे से लगा लेना चाहिए। इस वक्त यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कंधे से लगाते समय, अपने हाथ की पकड़ बच्चे की जांघों पर हो, पीठ पर नहीं, ताकि बच्चे के पेट पर ज़ोर न पड़े, वरना बच्चे के पेट का दूध बाहर निकल आएगा।
आइये जाने नवजात बच्चे को दूध कैसे पिलाएं ?

बच्चे को दूध पिलाने के नियम और सावधानियाँ :

बच्चे को दूध पिलाते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
• सबसे जरूरी बात जो ध्यान में रखने जैसी है वह यह है कि दूध पिलाते समय माता की मानसिक स्थिति शांत, प्रसन्न और सरल बनी रहे ।
• दूध पिलाते समय मन में चिन्ता, क्रोध और ईर्ष्या आदि के विचार रखने से बच्चे के मन व स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
• किसी भी कारण से शरीर गर्म हो, पसीना आ रहा हो तो शरीर ठंडा होने व पसीना सूखने पर ही दूध पिलाना चाहिए।
• माता भूखी हो, बीमार हो, छूत की बीमारी से ग्रस्त हो, बहुत कमजोर हो या किसी भारी दु:ख से दु:खी हो तो बच्चे को दूध न पिलाएं।
• बच्चे को गोद में लिटा कर स्वयं पाल्थी लगा कर बैठकर, अपने हाथों से स्तन पकड़ कर, बच्चे के मुंह में ठीक से चुचुक लगा कर, दूध पिलाना सबसे अच्छा तरीका है।
• दूध पिलाते समय बच्चे के सिर पर या पैरों पर हाथ फेरने से बच्चा प्रसन्नता व ममता का अनुभव करता है जो उसके शरीर के विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।
• कुछ महिलाएं लेट कर भी बच्चे को दूध पिलाती हैं, यह स्थिति भी बुरी नहीं, पर मां और बच्चे के शरीर की स्थिति सरल और सीधी रहना ज़रूरी है।
• बच्चे बोलते भले ही नहीं पर स्पर्श की भाषा ज़रूर समझते हैं। लड़ाई-झगड़े की स्थिति में बच्चे भयभीत होकर रोने लगते हैं और दूध नहीं पीते।
• यदि बच्चे को दूध पिलाने के बाद भी स्तनों में दूध भरा रहे तो इस स्थिति में, हाथ से या ‘ब्रेस्ट पम्प’ से, दूध निकाल देना चाहिए।
• स्तनों को गर्म पानी में नेपकीन गीला करके सेक देना चाहिए। स्तनों में दूध भरा रहने से पीड़ा और व्याधि हो जाने का भय रहता है। यदि सब कुछ प्रयत्न करने पर भी स्तन में कोई व्याधि, सूजन या पीड़ा हो तो शीघ्र ही किसी कुशल स्त्री-चिकित्सक को दिखा देना चाहिए।

स्तनों(ब्रेस्ट) की सुरक्षा के उपाय / टिप्स :

• किसी भी स्थिति में स्तनों पर आघात नहीं लगने देना चाहिए। प्राय: बच्चों के ही सिर या पैर का आघात लग जाने से पीड़ा होजाती है।
• स्तन में कभी कोई छोटी सी गांठ हो जाए जो कठोर हो और स्तन से दूध की जगह खून आने लगे तो यह स्तन के केंसर हो सकने की चेतावनी हो सकती है। ऐसी स्थिति में तत्काल चिकित्सक से संपर्क करना ज़रूरी है। प्राय: 40 वर्ष की आयु के बाद ऐसी स्थिति आने की संभावना बढ़ जाती है। इस विषय में अधिक विवरण देना लेख का विषय नहीं, इसलिए पृथकलेख लिखा जा सकता है। यहां सिर्फ इतना संकेत देना ही पर्याप्त है कि अस्वाभाविक ढंग से सूजन या कोई गांठ हो तो फौरन चिकित्सक से मिलना चाहिए।

स्तनों(ब्रेस्ट) को सुन्दर और सुडौल बनाने के उपाय / टिप्स :

स्त्री के शरीर में पुष्ट, उन्नत और सुडौल स्तन जहां उसके अच्छे स्वास्थ्य के सूचक होते हैं वहीं नारीत्व की गरिमा और सौंदर्य वृद्धि करने वाले प्रमुख अंग भी होते हैं । अविकसित, सूखे हुए और छोटे स्तन भद्दे लगते हैं और बच्चे को दूध पिलाने में पर्याप्त रूप से समर्थ नहीं होते। वही ज्यादा बड़े, ढीले और बेडौल स्तन भी स्त्री के व्यक्तित्व और सौंदर्य को नष्ट करके उसमें हीनता की भावना पैदा कर देते हैं।

स्तनों का सुडौल, पुष्ट और उन्नत रहना स्त्री के अच्छे स्वास्थ्य और स्वस्थ शरीर पर ही निर्भर है। यदि इन्हें स्वस्थ और सुडौल रखना है तो अपने शरीर व स्वास्थ्य की रक्षा करनी होगी। साथ ही घरेलू कामकाज और खास कर हाथों से परिश्रम करने के काम अवश्य करने होंगे। कुछ व्यायाम भी हैं जो वक्ष के सौंदर्य और आकार को बनाए रखते हैं।

विशेष रूप से लाभकारी कुछ व्यायाम यहां बताए जा रहे हैं जिनका नियमित अभ्यास करके स्तनों को सुडौल और पुष्ट रखा जा सकता है।

स्तनों(ब्रेस्ट) के लिए व्यायाम :

स्तनों को पुष्ट व सुडौल रखने के लिए मालिश भी हितकारी है।
यदि 17-18 वर्ष की आयु तक भी स्तन अविकसित रहें तो श्रीपर्णी तेल या किसी भी अच्छे तेल को दोनों हाथों में लगा कर अपने दोनों हाथों से स्तनों के चारों तरफ से चुचुक की ओर गति करते हुए हल्के-हल्के मालिश करते हुए स्तनों को अंगुलियों में भरकर हल्का सा खिंचाव देना चाहिए। मालिश के लिए जैतून का तेल अच्छा है। मालिश स्नान से आधाघंटापूर्व करें।
दूसरी सावधानी ब्रेसरी पहनने में यह रखनी चाहिए कि अधिक कसी हुई या ढीली ढाली ब्रेसरी न पहन कर उचित नाप की ब्रेसरी पहनना चाहिए।ब्रेसरी हल्के नरम कपड़े की होना चाहिए, जो स्तनों को ऊपर की ओर उठाए रख सके, लटकने न दे ।

निम्नलिखित व्यायाम नियमित रूप से प्रतिदिन करें-

(1) अपने दोनों हाथ सिर के पीछे ले जाकर अंगलियां आपस में मिलाकर अपनी दोनों कोहनियों को धीरे-धीरे जोर देते हुए आगे लाइए और पीछले जाइए। ऐसा 20-25 बार कीजिए।

(2) दोनों हाथ बगल से पीछे ले जाइए और पीछे नमस्ते की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़कर हाथों को पीछे ही यथा शक्ति ऊपर उठाने की कोशिश कीजिए । इस वक्त दोनों हथेलियों को जोर से जोड़ें रखें। यह अभ्यास 20-25 बार कीजिए।

(3) दोनों हाथों को आगे नमस्ते की मुद्रा में जोडिए और दोनों कुहनियां बगल में सीधी उठाकर रखिए। दोनों हथेलियों को बार-बार जोर लगा कर परस्पर दबाइए। ऐसा 20-25बार कीजिए।

(4) दोनों हाथ सीधे ऊपर ऊठा कर कुहनियां सीधी रखते हुए अपने हाथों को नमस्ते की मुद्रा में जोड़कर दबाइए। ऐसा पांच बार कीजिए।

यदि आप 5-5 मिनट भी नियमित रूप से चारों क्रिया करें तो कुल 20 मिनट का काम है। इनसे आपके स्तनपुष्ट, सुडौल और उन्नत होंगे।

स्तन ज़रूरत से ज्यादा भारी, ढले हुए और ढीले हो जाने में एक विशेष कारण भी होता है जिसकी ओर इशारा करना ज़रूरी है। यह बात उन माताओं के लिए बहुत काम की है जिनकी लड़कियां किशोर अवस्था में प्रवेश कर रही हैं या कर चुकी हैं । अल्हड़ उम्र में भोलेपन, जिज्ञासु भाव और मानसिक आनंद से वशीभूत होकर कुसंगति में पड़कर किशोरियां स्तनों से छेड़छाड़ व खिलवाड़ करने लगती हैं। हारमोन्स अधिक सक्रिय होकर इस प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं जो स्तनों को भारी करने में प्रमुख कारण हो जाता है। एक बार स्तन ज्यादा बढ़ जाएया लटक जाएं तो फिर उन्हें सुडौल और छोटे करना बहुत कठिन या नामुककिन हो जाता है । इसलिए माताओं को चाहिए कि वे अपनी लड़कियों को इस मामले में आवश्यक जानकारी देकर सावधान कर दें और स्वयं भी उनपर निगरानी रखें।

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