गर्भावस्था में दातों के रोग और उपचार – Garbhavastha Mein Daton ke Rog aur Upchar in Hindi

Last Updated on March 5, 2023 by admin

गर्भावस्था के दौरान स्त्री में बहुत से शारीरिक व मानसिक बदलाव होते हैं। गर्भावस्था के दौरान स्त्री को हर बात के लिए सतर्क रहना होता है जैसे योग्य आहार-विहार, दवाइयों का सेवन इत्यादि। जब किसी गर्भवती को दाँतों में विकार उत्पन्न होता है और व असह्य दर्द से तड़पती है तब उस गर्भावस्था के कठिन दौर में स्त्री के दाँतों का उपचार एक कठिन इम्तहान होता है।

गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होनेवाले दाँतों के विकार :

1) मसूड़ों से खून आना :

इसे ‘प्रेग्नंसी जिन्जिव्हायटिस’ (Pregnancy Gingivitis) भी कहते हैं। गर्भवती महिला के शरीर में होनेवाले हार्मोन्स के उलझे हुए बदलाव की वजह से मसूड़ों में सूजन, मसूड़ों से खून आना इत्यादि मसूड़ों की तकलीफें हो सकती हैं। ऐसे वक्त में मसूड़ों को लगानेवाले ‘गम पेंट्स’ (Gum paints) की दवाइयाँ, गोलियाँ, जंतुनाशक दवाओं से कुल्ला करने से मसूड़ों से बहनेवाले खून पर इलाज किया जा सकता है।

लेकिन इसके अलावा बहुत बार मसूड़ों में जमा कीटक, कचरा (Tartar, Calculus & Plaque) आदि ज़्यादा जिम्मेदार होते हैं। ऐसे वक्त ‘स्केलिंग’ (Scaling) नामक इलाज होता है और उसे गर्भावस्था के दौरान भी किया जा सकता है। इस इलाज में हेवी एंटी बायटिक्स या इंजेक्शन इत्यादि देने की ज़रूरत नहीं होती और स्केलिंग करते वक्त कुछ भी तकलीफ नहीं होती है।

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2) मसूड़े का दुखना, गरम खाना खाते वक्त दाँतों में दर्द उठना :

दाँतों को जोर-जोर से रगड़ने के कारण और पाउडर-मिसी लगाने के कारण तथा कडे ब्रश से भारी पद्धति से दाँतों को घिसने की वजह से दाँतों का ‘इनॅमल’ कम होता है और दाँतों में दर्द उठता है। मसूड़े दर्द करने लगते हैं। ऐसे वक्त में मसूड़ों में अगर कचरा (calculus) जमा हो गया हो तो ‘स्केलिंग’ उपचार आवश्यक है। दाँतों का दर्द रोकने के लिए दाँतों के रंग जैसे दिखाई देनेवाले “Composite Resin, Glass ionomer इत्यादि द्रव्यों को भरने से दाँतों की संवेदनशीलता (Sensitivity) रुक सकती है। फिलिंग के साथ-साथ औषधिय टूथपेस्ट का इस्तेमाल प्रभावी एवं उपयुक्त होता है। गर्भावस्था में यह सुरक्षित उपचार होता है।

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3) सड़े दाँतों में दर्द :

अगर दाँतों में कीड़ा लगा हो या दाँत सड़ गया हो तो सिर्फ ‘इनॅमल’ व डेंटिन के सतह तक ही प्रभाव हुआ हो तो मशीन से उसकी सफाई करके उसमें सीमेंट, चाँदी या कम्पोझिट रेझीन (composite resin) की फिलिंग गर्भावस्था में भी कर सकते हैं।

लेकिन दाँत सिर्फ इनॅमल या डेंटिन तक ही सड़ा हुआ है और नस (Pulp) तक नहीं, यह पता करने के लिए एक्सरे नहीं निकाल सकते क्योंकि ‘क्ष’किरणों (X-rays) के उत्सर्जन के कारण गर्भ पर विपरीत परिणाम होने की संभावना रहती है इसलिए दाँतों की सड़न कहाँ तक है यह निश्चित नहीं बता सकते, थोड़े अनुभव और अंदाज से निर्णय लिया जा सकता है।

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4) दाढ़ की सड़न नसों तक पहुँचकर जड़ में पीब होने की वजह से दर्द होना :

गर्भावस्था में जब किसी स्त्री पर ऐसा प्रसंग आता है तब डॉक्टर, परिवारवाले और रोगी सभी चिंतित हो जाते हैं क्योंकि सड़न जड़ तक जाने के कारण रोगी को जंतुसंसर्ग होने की वजह से असह्य दर्द होता है। ऐसे में रोगी को एंटी बायटिक्स और दर्द निवारक दवाई देना ही पड़ता है, ऐसे समय में प्रसूतितज्ञ डॉक्टर की सलाह और मार्गदर्शन से रोगी को दवाई देना बेहतर होता है।

इसके अलावा गर्भावस्था की शुरूआत के तीन माह तक बहुत ध्यान से इलाज करना होता है क्योंकि पहले तीन माह में गर्भ के अवयव तैयार होते हैं। ऐसे समय में रोगी के डॉक्टर (प्रसूतितज्ञ) और दाँतों के डॉक्टर दोनों मिलकर उपचार की योजना बनाते हैं।

गर्भावस्था के दौरान एक्स-रे न निकाल सकने के कारण सिर्फ डॉक्टर के अनुभव और अंदाज पर इलाज हो सकता है इसलिए डॉक्टर के अनुभव एवं कुशलता पर विश्वास रख दाढ़ व दाँतों की ‘रुट कॅनाल ट्रीटमेंट’ कर लेने से दर्द से छुटकारा पाना संभव होता है।

क्या गर्भावस्था में दाढ़/दाँत निकाल सकते हैं ? :

इस प्रश्न का उत्तर है, जहाँ तक संभव हो सके गर्भावस्था में दाढ़/दाँत न निकालें । गर्भावस्था के प्रथम तीन माह में जब गर्भ के अवयव तैयार होते हैं तब तो कदापि दाढ़/दाँत न निकालें। क्योंकि कितनी भी सावधानी बरती जाए, एंटी बायटिक्स दिए जाने पर भी, दाँत निकालने पर बहुत बार रक्तप्रवाह इन्फेक्शन हो सकता है। इसलिए पहले तीन माह में दाँत न निकलना उत्तम है।

गर्भावस्था में दाँतों में असह्य दर्द हो तो दाँत निकाल तो सकते हैं परंतु बेहतर है कि उसे डॉक्टर से भरवा लें या ‘रुट कॅनाल’ कर बचाएँ या प्रसूति होने तक टालें। पहले तीन माह में तो टालना बेहतर होगा। ऐसे वक्त Amoxycillin, Ampicillin ऐसी सौम्य एंटी बायटिक्स, Paracetamol, Nimesulide इत्यादि दर्दनाशक दवाइयाँ उपयुक्त होती हैं।

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गर्भावस्था स्त्री के लिए कठिन एवं नाजुक दौर होता है । यह नौ माह का दीर्घ समय होता है। शरीर में अनेक बदलाहटें, कभी- कभी उलटियाँ, बढ़ा हुआ रक्तदाब, जिसके कारण बेड रेस्ट, अलग-अलग जाँच, तरह-तरह की दवाइयाँ इत्यादि महत्वपूर्ण बातों की वजह से दाँतों की तरफ ध्यान नहीं जाता है। दाँतों की योग्य देखभाल नहीं होती, जिससे दाँत सड़ना व मसूड़ों में गंदगी जमा होने के कारण दाँतों के विकारों की शुरुआत होती है।

बहुत सी महिलाएँ प्रसूति के बाद दाँतों के कमज़ोर होने की शिकायत करती हैं। दाँत कमज़ोर हो जाते हैं क्योंकि गर्भावस्था के समय उनकी व्यवस्थित देखभाल नहीं की जाती। अतः इस बात पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि दाँतों का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है।

इसके लिए आवश्यक है –

  • कितनी भी जाँच करनी हो, बेड रेस्ट हो। अपने दाँतों को दिन में दो बार ज़रूर ब्रश करें।
  • सही पेस्ट इस्तेमाल करें। ब्रश करते वक्त आड़ी दिशा में ब्रश न करें।
  • दाँतों की रक्षा के लिए मुँह की सफाई ज़रूरी है इसलिए ठीक से कुल्ला करें।
  • शादी के बाद गर्भावस्था से पहले ही अपने दातों की जाँच करवाएँ। अगर कुछ खराबी हो तो योग्य इलाज करवाएँ। यही सबसे उच्चतम इलाज है, यह बात ध्यान में रखें।

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