Last Updated on March 29, 2023 by admin
सेंक (सिकाई) देना क्या है ? :
किसी भी गर्म तापमान के जल को- वस्त्र, स्पंज, गर्म पानी की बोतल या रबड़ की थैली आदि किसी भी वस्तु द्वारा शरीर के किसी भी हिस्से पर लगाने को सेंक (सिकाई) देना या “आसेक प्रयोग´´ कहते हैं। आमतौर पर इस कार्य के लिए 3-4 बार तह किया हुआ कोई नर्म कपड़ा काम में लाया जाता है। आवश्यकतानुसार सेंकने का कपड़ा काफी लम्बा और चौड़ा होना चाहिए। सेंकने की जगह जितनी अधिक बड़ी हो उससे 8 या 10 गुनी जगह पर सेंक करना चाहिए। शरीर के धड़ के किसी स्थान पर सेंक देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि रोगी के हाथ-पैर ठंडे तो नहीं हैं तथा उसके सिर में अधिक मात्रा में रक्त तो नहीं है। उपरोक्त में कोई भी समस्या रोगी को हो तो सबसे पहले रोगी के सिर को ठंडे पानी से अच्छी तरह से धोकर और उस पर ठंडे जल से भीगा तौलिया लपेटकर ही सेंक (सिकाई) देना आरम्भ कर देना चाहिए। जिस स्थान पर यह सेंक देना होता है।
कभी-कभी उस जगह पर नारियल का थोड़ा सा तेल या कोई अच्छी क्वालिटी की बैसलीन रगड़ देते हैं तथा उस स्थान की त्वचा पर पतला कपड़ा रखने के बाद सेंक देते हैं। इस प्रकार की सावधानी रखने से अधिक गर्म सेंक से त्वचा को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचने की संभावना बिल्कुल ही समाप्त हो जाती है। गर्म पानी से भीगे कपड़े को अच्छी प्रकार से निचोड़कर सेंक के स्थान पर फैलाना चाहिए अन्यथा त्वचा पर छाले पड़ जाने का भय रहता है। यह सेंक आवश्यकतानुसार 24 घंटे में 2-3 बार भी दिया जा सकता है। सेंक का प्रयोग बिना किसी प्रकार की रुकावट के लगातार करना चाहिए, वरना इससे वांक्षित लाभ की प्राप्ति नहीं होती है।
गर्म जल में भीगे और निचोड़े कपड़े से जो सेंक (सिकाई) दिया जाता है। उसे `गीला सेंक` कहते हैं। यह गीला सेंक बहुत अंशों में `वाष्पस्नान` का कार्य करता है। गर्म जल से भरी बोतल द्वारा किया जाने वाला सेंक या रबड़ के थैले आदि से जो सेंक दिया जाता है, वह `सूखा सेंक` कहलाता है। दोनों ही प्रकार के सेंकों का तात्पर्य त्वचा को गर्मी पहुंचाना होता है। ताप के अन्य प्रयोगों की तरह ही सेंक का सबसे पहला प्रभाव शरीर को उत्तेजना प्रदान करने वाला होता है। अधिक समय तक सेंक का प्रभाव दर्द निवारक, जलन निवारक और शांतिकारक होता है। जब देर तक सेंक देना पडे़ जैसे तेज दर्द होने पर यह आवश्यक होता है कि प्रत्येक आधे घंटे के सेंक के बाद 1-2 मिनट तक सेंक की जगह को ठंडे जल से पोंछकर अथवा उस स्थान पर ठंडी पट्टी देकर पुन: सेंक प्रारम्भ कर देना चाहिए क्योंकि सेंक के लगातार अधिक प्रयोग से त्वचा कमजोर हो जाती है जिन्हें ठंडक देकर पुन: सुदृढ़ बनाने की अधिक आवश्यकता होती है। सेंक की समाप्ति के बाद यदि रोगी को पसीना आ जाए तो ठंडे पानी से भीगे तौलिये से उसका पूरा शरीर तुरंत पोंछ देते हैं तथा शरीर में दुबारा गर्मी लाने के लिए कम्बल आदि को ओढ़ाकर रोगी को लिटा देना चाहिए। इससे उसके शरीर में पुन: गर्मी आ जाती है।
सिकाई के बाद सेंक की जगह को ठंडे पानी से गीले कपड़ों से पोंछकर और वही कपड़ा उस स्थान पर रखकर उसे सूखे फलालेन के कपडे़ के टुकडे़ से ढककर थोड़ी देर के लिए बांध देने से बहुत अधिक लाभ प्राप्त होता है। इससे विशेष रूप से निमोनिया और प्लूरिसी आदि रोगों में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
नोट : सूखी रूई, सूखे कपड़े या तलहत्थी को आग पर गर्म करके उससे सेंक देना त्वचा के लिए हानिकारक होता है। अत: इस प्रकार के सेंकों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
गर्म जल की सिकाई से लाभ :
- सिकाई करने से सभी प्रकार के दर्द नष्ट हो जाते हैं तथा यह संसार में प्रचलित सभी प्रकार के लेप और मरहमों से से अधिक उपयोगी होता है।
- सिकाई करने से सूजन नष्ट होती है
- शरीर में पसीना आता है जिससे हमारे शरीर के विजातीय द्रव्य पसीने के साथ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
- सिकाई करने से मांसपेशियों में उत्तेजना आती है और शरीर के अवयव शक्तिशाली होकर क्रियाशील हो जाते हैं।
हमारे शरीर की आंतरिक चोटे, सर्दी के कारण सीने में दर्द, आंखों में दर्द, पेट का दर्द, यकृत (जिगर) की सूजन, स्त्री या पुरुष के गुप्तांग की सूजन, पुट्ठों की सूजनयुक्त विकार, आंत उतरना, दांतों का दर्द, मसूढ़ों की सूजन, टांसिल, तालू की सूजन, पथरी का दर्द, ग्रन्थिरोग, नसों का दर्द और सूजन, दमा, वायुनली की सूजन, गला बैठना, सायटिका, मोच, लम्बेगो, कान का दर्द, फोड़े-फुन्सी की प्रारंभिक स्थिति, जिगर की वृद्धि, पुरानी बलगम, सिर का दर्द, माइग्रेन (आधे सिर का दर्द), डिप्थीरिया, मन्थरज्वर, खूनी बवासीर, अंडकोषों की सूजन, अपच, मूत्रावरोध, स्त्रियों का मासिकस्राव कष्ट के साथ आना, दाद, खुजली, मुंहासे आदि असंख्य रोगों में गर्म जल से सेंक करने से लाभ मिलता है।
सिकाई (सेंक) के प्रकार :
हमारे शरीर के विभिन्न रोगों को दूर करने हेतु 3 प्रकार के सेंक (सिकाई) का उपयोग किया जाता है।
- गर्म सेंक (सिकाई)।
- गर्म-ठंडी सेंक (सिकाई)।
- प्रवाहिका सेंक।
उपरोक्त सेंकों के अतिरिक्त गर्म जल से भरी बोतलों, रबड़ के थैलों एवं छल्लों तथा काष्ठौषधि मिश्रित जल से भी सेंक दिये जाते हैं, जो गर्म सिकाई के अन्तर्गत ही आते हैं।
1. गर्म सेंक (सम्पूर्ण शरीर का) :
गर्म सेंक को गर्म या उष्ण लपेट के नाम से भी जाना जाता है। गर्म सिकाई के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है-
- मोमजामे का एक बड़ा टुकड़ा।
- आधा बाल्टी ठंडा पानी।
- 2 बडे़ चम्मच।
- कंबल जिसे शरीर पर 3-4 बार लपेटा जा सके।
- आधा बाल्टी खौलता हुआ पानी।
- एक बड़ा तौलिया।
- गर्म लोहे की चद्दर के 3-4 टुकडे़।
गर्म सिकाई के लिए सबसे पहले किसी कमरे में मोमजामे का बिस्तर बिछा लेना चाहिए। इसके बाद उसके ऊपर दो-तीन मोटे कम्बलों को बिछाकर रोगी को नग्न करके लिटा देना चाहिए। इसके बाद कम्बल को भिगोकर रोगी के शरीर पर लपेट देते हैं। इसके साथ ही जिस स्थान पर दर्द या सूजन हो- उस स्थान पर गर्म-गर्म लोहे के चद्दर के टुकड़े रख देते हैं और उसके ऊपर दूसरा-नीचे बिछा हुआ कम्बल भी लपेट देना चाहिए। ये सभी क्रियाएं इतनी शीघ्रता से करनी चाहिए कि रोगी के शरीर से लिपटा भीगा गर्म कम्बल ठंडा न हो पाए। इस प्रकार की लपेट में रोगी को कम से 15 से 30 मिनट तक रहना चाहिए। इसके बाद रोगी के शरीर पर से कम्बलों को हटाकर एक ठंडा सेंक देना चाहिए। इस क्रिया को करते समय शरीर को ठंडी हवा के झोंकों से बचाना चाहिए।
इस प्रकार के सेंक से शरीर के विकार नष्ट हो जाते हैं, हृदय की कमजोरी दूर हो जाती है और हृदय मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।
गर्म सेंक (स्थानीय) –
इस सेंक को हॉट फॉमेन्शन फॉर लोकल पेन कहते हैं। इस सिकाई को करने की विधि इस प्रकार है।
गर्म सेंक के लिए सबसे पहले किसी चौड़े मुंह के बर्तन में 2-3 लीटर उबलता हुआ जल रखना चाहिए। जल को देर तक उबलते रहने के लिए जलती हुई कोयले की अंगीठी आदि पर रखना चाहिए। मोटे फलालेन या ऊनी कपड़े का टुकड़ा अथवा कोई नरम तौलिया लेकर और उसके दोनों सिरों को पकड़कर गर्म जल में डुबों देते हैं। जब यह गर्म जल में पूरी तरह से भीग जाए तो उसे किसी दूसरे पानी के टब में रखकर तथा उसे उमेठकर भीगे तौलिये का जल निचोड़ देना चाहिए। उसके बाद उसे खोलकर शरीर के उस भाग पर फैला दें, जिस भाग पर सिकाई देना अभीष्ट होता है। इस क्रिया को बार-बार करना चाहिए तथा सिकाई करने के बाद सिकाई वाले स्थान को ठंडे जल से भीगी तौलिया से रगड़कर पोंछ देना चाहिए।
इस प्रकार के सिकाई से लगभग शरीर के सभी प्रकार के दर्द में लाभ मिलता है तथा इससे सभी प्रकार की सूजन मिट जाती है तथा इससे नस-नाड़ियों में तेजी आने लगती है तथा शरीर के रक्त संचार की गति बढ़ जाती है। इसके प्रयोग से शरीर के बंद रोमकूप फैल जाते हैं और शरीर के किसी भी स्थान पर जमा हुआ रक्त पिघल जाता है तथा उस अंग का दर्द नष्ट हो जाता है।
बोतलों में गर्म जल भरकर सेंक करना –
सर्वप्रथम 3 बोतलों में सहन करने योग्य जल भरकर उनका ढक्कन लगाकर बोतलों के मुंह को अच्छी प्रकार से बंद कर देते हैं। 2 बोतलों को सीने या पेट और तीसरी बोतल को टांगों के बीच में रखकर ऊपर से कम्बल आदि ओढ़ा देना चाहिए। ऐसा करने से शरीर से पसीना आने लगता है। इस प्रकार का सेंक करने से मलेरिया बुखार और पेट के दर्द में अधिक लाभ होता है। बोतलों के अधिक गर्म होने पर उन्हें फलालेन अथवा ऊनी कपड़े में लपेटकर बाद में शरीर से सटाकर रखना चाहिए।
गर्म जल भरे रबर के थैले से सेंक –
इस सिकाई को गर्म जल से भरी बोतलों की सिकाई के समान ही किया जाता है।
2. गर्म-ठंडा सेंक :
किसी रोगी के अंग विशेष को एक समान अवधि तक बारी-बारी से गर्म और ठण्डा सेंक देना गर्म-ठंडा सेंक कहलाता है। इस सेंक को गर्म सेंक से प्रारम्भ करके ठंडे सेंक पर समाप्त करना चाहिए। सिकाई करने से रोग से पीड़ित की रक्त की नलिकाएं बार-बार फैलती और सिकुड़ती रहती हैं, जिसके कारण से उनके द्वारा शरीर के रोगग्रस्त अंग के दूषित पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
गर्म-सेंक से शरीर के दर्द और सूजन में विशेष लाभ होता है। पके हुए फोड़े, पक्षाघात, अंगों का सुन्न होना, छाती और पेड़ू की सूजन, पुरानी प्लूरिसी, शराब के सेवन से हुई बेहोशी, विषैली गैसों के कारण उत्पन्न बेहोशी, पानी में डूबने से बेहोशी, पेट का फोड़ा, स्नायु का दर्द तथा प्लीहा आदि रोगों में गर्म-ठंडे सेंक से विशेष लाभ मिलता है।
3. प्रवाहिका सेंक :
वास्तव में यह भी गर्म-ठंडे सेंक का ही एक रूप होता है। इसमें केवल इतना अन्तर होता है कि इसमें ठंडा सेंक बहुत कम समय (लगभग 1 मिनट) तक दिया जाता है तथा गर्म सेंक अधिक समय तक (लगभग 4 से 5 मिनट) तक दिया जाता है। इस प्रकार एक साथ कम से कम 3 बार सेंक देना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
प्रवाहिका सेंक से हमें वहीं लाभ प्राप्त होते हैं जोकि गर्म और ठंडी सेंक से प्राप्त होते हैं।