Last Updated on October 9, 2020 by admin
योग के सतत् अभ्यास से हमारा शरीर सदैव निरोग, स्वस्थ और संपूर्ण दोषों से मुक्त रहता है। आयुर्वेदिक ग्रंथ में महर्षि चरक ने योग के महत्व को स्पष्ट करते हुए लिखा है –
योगे मोक्षे च सर्वांसा वेदनानां अवर्तनम् ।
मोक्षो निवृत्तिर्निः शेषा योगो मोक्षाप्रवर्तकः ।।
सभी प्रकार के वेदनाओं को भवताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) कहते हैं। इस संसार के सभी मनुष्य भवताप से पीड़ित हैं। इससे बचने की परम औषधि ‘योग’ ही है। योग नामक औषधि मन और शरीर दोनों को प्रभावित करती है। शरीर तो निरोग हो ही जाता है, साथ ही सभी इंद्रियाँ भी नियंत्रित हो जाती हैं।
योग पहले तो शारीरिक विकारों को दूर करता है, फिर मानसिक दुर्वृत्तियों से छुटकारा दिलाता है। वास्तव में मन और शरीर की आरोग्यता एक-दूसरे पर आश्रित है। मन विकार ग्रसित होगा तो शरीर में भी रोग उत्पन्न होने लगते हैं और शरीर के रोगग्रस्त होने पर मन भी व्यथित हो जाता है। योग-साधना ही एक ऐसी औषधि है, जिससे दोनों ही निरोगी रहते हैं।
वात व्याधियों में योगिक क्रियाओं की भूमिका :
योग के यम-नियम के पालन से जहाँ मनोविकारों से मुक्ति मिलती है, वहीं आसन, प्राणायाम द्वारा शरीर के रोगों का शमन होता है। प्रायः सभी आसन शरीर के बाह्य अंगों द्वारा किए जाते हैं, जिनमें शरीर का छोटा से छोटा भाग सक्रिय होता है। ये आसन शरीर के आभ्यांतरिक अवयवों, विशेषकर पाचन संस्थान को प्रभावित करते हैं, जिससे पाचन क्रिया निर्बाध रूप से संपन्न होती है।
योग साधना (आसन) करनेवाले व्यक्ति अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देते हैं। इससे पाचन क्रिया दुरूस्त रहती है। यदि आहार-विहार के नियमों का पालन नहीं किया जाता है और घी, तेल आदि में तली-भुनी वस्तुएँ, चाट, पकौड़े, मिठाइयाँ, कच्चे, सड़े, गले फल आदि का निरंतर सेवन किया जाता है तो उसकी जठराग्नि मंद होकर अनेक वात रोगों को उत्पन्न कर देती है, जैसे – आम्लपित्त, मंदाग्नि, एसिडिटी, पेट में गैस बनना, आमरस का निर्माण आदि। फिर इन पाचन संबंधी विकारों के अत्यधिक बढ़ने से कष्टदायक वात रोगों जैसे- जोड़ों का दर्द, घुटने के विकार, कमर दर्द आदि का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इन रोगों से बचने के लिए ज़रूरी है शरीरगत अग्नि को सबल बनाना। इसके लिए योगासनों का विशेष महत्त्व है। वात व्याधियों के शमनार्थ और बचाव हेतु नियमित रूप से उपयोगी आसनों का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। वात व्याधियों से छुटकारा पाने में लाभदायक कुछ आसनों को यहाँ दिया जा रहा है।
( और पढ़े – प्राणायाम एवं योगासन शुरू करने से पहले जानने योग्य जरुरी नियम )
गठिया वात में लाभदायक योगासन (Yoga Asanas for Arthritis in Hindi)
गठिया वात के रोगियों के लिए निम्नलिखित योगासन फायदेमंद है –
1). सर्वांगासन –
सर्वांगासन एक ऐसा आसन है, जो नर-नारी, वृद्ध, युवा, प्रौढ़ तथा धनी-निर्धन सभी के लिए हितकारी है। इस आसन के करने से सभी अंग-प्रत्यंग प्रभावित होते हैं, इसीलिए इसे ‘सर्वांगासन’ कहते हैं। इसके अभ्यास से जहाँ आमवात (गठिया), पेट गैस, उदरमेद जैसे वात रोगों से मुक्ति मिलती है, वहीं यह उदर विकार, यौन रोग एवं स्त्री रोगों में भी अत्यंत प्रभावकारी असर दिखता है।
सर्वांगासन की विधि (sarvangasana steps in hindi)
- किसी आसन पर पीठ के बल लेटकर कमर, कंधा, गरदन को ज़मीन पर सटा लें।
- हाथ बगल में तथा दोनों पैर सामने सीध में रखें ।
- दोनों हथेलियाँ ज़मीन पर टिकाएँ।
- एड़ी, घुटने तथा जंघाओं को परस्पर मिलाकर रेचक करते हुए (श्वास को बाहर निकालते हुए) शरीर को शिथिल रखें। फिर धीरे-धीरे पूरक करें अर्थात श्वास अंदर लें।
- पूरक करने के बाद दोनों पैरों को बिना घुटने के मोड़े सीधा रखते हुए धीरे-धीरे ऊपर उठाएँ और 30 डिग्री के कोण पर 5-7 सेकण्ड रुकें।
- फिर 60 डिग्री कोण तक पैरों को धीरे-धीरे उठाएँ और कुछ सेकण्ड रुककर पैरों को 90 डिग्री तक उठाएँ एवं 5-7 सेकण्ड रुकें।
- अब दोनों पैरों को सिर की ओर झुकाएँ ताकि नितंब उठ जाएँ और 120 डिग्री का कोण बन जाए।
- नितंब उठने के बाद उन्हें दोनों हथेलियों का आधार दें और कोहनियों को थोड़ा फैलाकर ज़मीन पर लगाएँ।
- तत्पश्चात पैर व कटि प्रदेश को दोनों हथेलियों का सहारा देते हुए इतना ऊपर उठाएँ कि उदर एवं वक्षस्थल से लेकर पैर तक सरल रेखा में आ जाए। समस्त गरदन व कंधा ऊपर रहे तथा शरीर को स्थिर रखें। दृष्टि दोनों पैरों के अँगूठे पर हो ।
- अब श्वास को छोड़कर स्वाभाविक ढंग से श्वास प्रश्वास लें।
- इसके बाद इन्हीं क्रियाओं को विपरीत स्थिति में क्रमशः करते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएँ। पैरों को झटके से न लाएँ। झटकने से कमरदर्द हो सकता है।
- सर्वांगासन की सामान्य अवस्था पूरी होने पर सर्वांगासन की पूर्ण स्थिति में हाथों को जंघाओं से हटाकर पूर्ववत ज़मीन पर फैला सकते हैं।
- शुरू में इसका अभ्यास एक मिनट से शुरू करके दस मिनट तक बढ़ा सकते हैं।
निषेध :
कान विकार, सर्दी-जुकाम, कब्ज़, सिफलिस, कमरदर्द, हर्निया, गर्भवती स्त्रियाँ, स्पाँडिलाइटिस, हृदय, उच्च रक्तचाप आदि के रोगी इस आसन को न करें।
सर्वांगासन करने के स्वास्थ्य लाभ (health benefits of sarvangasana in hindi)
- गठिया या जोड़ों के दर्द का प्रमुख कारण जठराग्नि की मंदता है। सर्वांगासन के अभ्यास से पाचक अग्नि तेज़ होती है, जिससे आहार का पूर्ण पाचन होता है और आमरस का निर्माण नहीं होता अर्थात आमवात (गठिया) रोग से बचाव होता है।
- सर्वांगासन के अभ्यास से मेरूदंड (रीढ़ की हड्डी) की नसनाड़ियों में प्रचुर मात्रा में रक्त संचार होता है।
- यह आसन मेरूदंड की लचक को स्थायित्व प्रदान करता है, जिससे पीठदर्द व कमरदर्द से बचाव होता है। इस प्रकार यह पीठ के जोड़ों के विकारों को दूर करने में अहम भूमिका निभाता है।
- सर्वांगासन महिलाओं के लिए भी हितकारी है। इसके अभ्यास से महिलाएँ कमरदर्द की शिकार नहीं होतीं। साथ ही अनियमित मासिक धर्म, कष्टप्रदरज तथा गर्भाशय संबंधी विकारों में भी लाभकारी है।
- इस आसन के करने से मनुष्य जहाँ आमवात, पक्षाघात, संधिवात जैसे रोगों से मुक्ति पाता है, वहीं वह सदैव स्वस्थ बना रहता है।
- इसके अभ्यास से वात, पित्त, कफ तीनों दोष सम अवस्था में रहते हैं अर्थात कुपित दोषों का शमन होता है।
2). मकरासन :
पानी में तैरता हुआ मकर जैसे पानी से अपना मुँह उठा लेता है वैसे ही इस आसन में शरीर की आकृति होती है। इसीलिए इसे मकरासन कहते हैं। वैसे शरीर की लगभग ऐसी ही आकृति सर्पासन, भुजंगासन में भी बनती है। इनके लाभों से में भी समानता है।
मकरासन की विधि (steps of makarasana in hindi)
- समतल ज़मीन या तख्त पर कंबल बिछाकर पेट के बल लेट जाएँ।
- दोनों हाथों को कोहनियों से मोड़कर, हथेलियों से ठुड्डी को सहारा देते हुए अंगुलियों से गालों को ढंक लीजिए।
- अब कोहनियों पर शरीर का भार संतुलित करते हुए छाती को पृथ्वी से ऊपर उठाइएँ। गरदन को यथासंभव पीछे पीठ की ओर मोड़ते हुए मुँह को सामने रखिए। साँस भरते हुए ऊपर उठे और साँस रोके रखने का प्रयास करें।
- विश्राम के लिए सामान्य श्वास-प्रश्वास चलता रहना चाहिए । शव आसन की स्थिति में सभी मांसपेशियों को शिथिल छोड़ दें। आधे से एक मिनट तक विश्राम करें। पुनः करें।
- इसे एक मिनट से तीन मिनट तक किया जा सकता है।
मकरासन करने के स्वास्थ्य लाभ (health benefits of makarasana in hindi)
- पढ़ने-लिखने तथा बैठे-बैठे झुककर लगातार काम करनेवालों के लिए यह उत्तम आसन है क्योंकि एक ही दशा में लंबे समय तक झुकाव बने रहने के कारण छाती, गरदन व पीठ की मांसपेशियों में आई हुई थकान
- और शरीर में आए भारीपन को दूर करता है।
- अनेक कारणों से रीढ़ की गदरनवाली गुरियों में जो विसंगति पैदा हो जाती है, उसे ठीक करने में यह आसन उपयोगी सिद्ध होता है।
- गरदन, जबड़ों और कमर के दर्द को मिटाने में यह आसन लाभप्रद है।
- थाइरॉइड और पैराथाइरॉइड ग्रंथियों पर इस आसन का प्रभाव पड़ने से शरीर स्वस्थ, सुडौल तथा संतुलित रहता है।
- बढ़े हुए टॉन्सिल को स्वस्थ करने तथा उच्चारण में शुद्धता लाने के लिए भी यह एक सर्वोत्तम आसन है।
3). धनुरासन :
जिस आसन में शरीर की आकृति धनुष के समान होती है, उसे धनुरासन कहते हैं। इस आसन के पाँच प्रकार हैं – ज़मीन पर रखा हुआ धनुष (पार्श्व धनुरासन), ज़मीन से उठाया हुआ धनुष (उर्ध्व धनुरासन), तना हुआ धनुष (पादांगुष्ठ धनुरासन), प्रत्यंचा लगाकर तना हुआ तीर छोड़ने के लिए तत्पर बैठी स्थिति का धनुरासन है आकर्ण धनुरासन । यहाँ पर पेट के बल लेटकर किए जानेवाले धनुरासन के बारे में जानकारी दी जा रही है।
धनुरासन की विधि (steps of dhanurasana in hindi)
- ज़मीन पर चटाई डालकर पैर लंबे फैलाकर मुंह नीचे करके पेट के बल लेट जाइए।
- दोनों हाथों को बगल में सटाकर रखते हुए स्नायुओं को ढीला छोड़ दीजिए। हथेलियाँ ऊपर की दिशा में रखें।
- तत्पश्चात श्वास छोड़ते हुए घुटनों को मोड़िए।
- श्वास लेते हुए सीना और सिर को ऊपर उठाइए।
- दोनों हाथ ऊपर उठाकर हथेलियों से टखनों को पकड़िए।
- अब हाथ एवं पैरों को कड़ा रखते हुए सिर व सीने को ऊपर उठाइए। फिर सिर पीछे ले जाइए। शरीर को ऊँचा उठाए जाने पर जंघा, घुटने और कदम जोड़िए।
- इस स्थिति में 15 से 20 सेकण्ड तक रुकिए । पेट पर पड़नेवाले भार के कारण साँस की गति बढ़ जाएगी लेकिन इससे डरने की ज़रूरत नहीं है।
- इसके बाद श्वास को छोड़िए, पैरों के बीच का अंतर बढ़ाइए, जंघाएँ ज़मीन की ओर लाइए, टखनों की पकड़ को ढीला कीजिए, पैर लंबे कीजिए और माथा ज़मीन पर टिकाइए अर्थात पूर्व स्थिति में आ जाइए।
- इस आसन को खाली पेट करना चाहिए क्योंकि शरीर का सारा भार पेट पर ही होता है।
- इस आसन को जितनी बार कर सकें, उतना ही करें अर्थात 5-6 बार कर सकते हैं।
निषेध :
जिन पुरुषों का प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ा हुआ हो, जिन्हें उच्च रक्तचाप व हृदयरोग हो, जो आँतों के अल्सर या हर्निया से पीड़ित हों वे इस आसन को न करें।
धनुरासन करने के स्वास्थ्य लाभ (health benefits of dhanurasana in hindi)
- रीढ़ की हड्डी तथा हाथ-पैरों की मांसपेशियों व नाड़ियों को स्वस्थ तथा पुष्ट रखता है।
- कड़े से कड़े और पुराने कब्ज़ को आँतों से बाहर निकालने में सहयोग करता है।
- पाचक रसों में वृद्धि कर अपच, पतले दस्त, भूख न लगना आदि रोगों को दूर करता है, जिससे वात रोगों से बचाव होता है।
- बढ़े हुए पेट तथा कमर की चरबी को घटाकर शरीर को सुंदर एवं फुर्तीला बनाता है।
- साथ ही पेट के अंदर के सभी अवयवों व श्वास संस्थान का सर्वोत्तम मालिश करता है।
पीठ में पीड़ा होना, स्नायुओं की सिकुड़न, पैरों में नस चढ़ना आदि अनुभव होने पर तत्काल पेट के बल लेट जाइए और धनुरासन की स्थिति में आ जाइए, तुरंत आराम महसूस करेंगे । वास्तव में धनुरासन का उद्देश्य है कि पेट व पीठ अथवा शरीर की अगली या पिछली स्नायुओं को समानांतर स्थिति में रखकर उनकी क्रिया में सुसंगति लाई जाए। स्नायुओं को उनके अपने स्थान पर रखने से रीढ़ के विकारों पर वे लाभकर होती हैं। उदरांगों पर पड़नेवाले दबाव के कारण वे अधिक कार्यक्षम बन जाते हैं।