Last Updated on March 5, 2020 by admin
गोक्षुरादि गुग्गुलु क्या है ? : What is Gokshuradi Guggulu in Hindi
गोक्षुरादि गुग्गुलु टैबलेट के रूप में एक आयुर्वेदिक औषधि है। इस औषधि का उपयोग रुक रुक कर पेशाब आना, मूत्राघात , वात रक्त, पथरी, प्रदर रोग, मूत्राशय संबंधी विकारों और शुक्र दोष जैसी बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। इस दवा का असर मूत्राशय और मूत्र नली तथा वीर्यवाहिनी शिराओं पर अधिक होता है।
गोक्षुरादि गुग्गुलु के घटक द्रव्य : Gokshuradi Guggulu Ingredients in Hindi
- शुद्ध गुग्गुलु – 280 ग्राम,
- गोक्षारु – 1120 ग्राम,
- हरड – 100 ग्राम,
- बहेड़ा – 100 ग्राम
- आँवला – 100 ग्राम,
- सोंठ – 100 ग्राम,
- पिप्पली – 100 ग्राम
- कालीमिर्च – 100 ग्राम
- नागर मोथा – 100 ग्राम।
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- गोक्षरु : बल्य, वृष्य ( वीर्य और बल बढ़ाने वाला) , मूत्रल, शोथन, रसायन ।
- गुग्गुलु : बल्य, वृष्य, दीपन, आयुष्य, रसायन।
- त्रिकुटा : दीपन, पाचन, अग्निबर्धक।
- त्रिफला : दीपन, त्रिदोषशामक, चक्षुष्य, रसायन
- नागर मोथा : दीपन, पाचन, लेखन, अग्निबर्धक।
गोक्षुरादि गुग्गुलु बनाने की विधि :
त्रिकुटा, त्रिफला और नागर मोथा का वस्त्रपूत चूर्ण बना लें। गोक्षरु को यव कुट करके छ: गुणा जल में डाल कर रात को ढक दें प्रात: मन्दाग्नि पर. उबालें जब आधा रह जाए तो आग से उतार कर वस्त्र से छान लें। और पुनः कड़ाही में डालकर मन्दाग्नि पर रख दें जब उबलने लगे तो शुद्ध गुग्गुलु छोटा-छोटा कर डाल दें और कड़छी से चलाते रहे अवलेह वत् हो जाने पर त्रिफला, त्रिकटु और नागर मोथे का चूर्ण मिलाकर आँच मन्द कर दें और पूर्ववत कछली से चलाते रहे।
पिण्डाकार होने पर औषधि को कड़ाही से निकाल कर इमाम दस्ते में डालकर अच्छी प्रकार जितना सम्भव हो सके कुटवायें, बीचबीच में दस्ते को घृत लगा लेने से एक तो औषधि स्निग्ध (मुलायम) हो जाती है। दूसरे उसके गुणों में वृद्धि होती है। अब 250 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवा कर सुखाकर सुरक्षित कर ले।
गोक्षुरादि गुग्गुलु की खुराक : Dosage of Gokshuradi Guggulu
एक से तीन गोली प्रात: सायं अथवा दो गोली दिन में तीन बार
अनुपान (औषधि के आगे या पीछे सेवन की जाने वाली वस्तु) :
वरुणादि क्वाथ, पुनर्नवाष्टक क्वाथ, पंचतृणमूल क्वाथ या अन्य रोग और उसकी अवस्था के अनुसार।
गोक्षुरादि गुग्गुलु के फायदे और उपयोग : Benefits & Uses of Gokshuradi Guggulu in Hindi
प्रमेह में गोक्षुरादि गुग्गुलु के प्रयोग से लाभ
प्रमेह हेतु कफ कृच्च सर्व’ के अनुसार सभी प्रमेह कफ विकृति का परिणाम होते हैं। अन्य रोगों की तरह प्रमेह में भी कफ के साथ वात अथवा पित्त का अनुबन्ध भी होता है, परन्तु सभी में मूल कारण कफ विकृति ही होती है। गोक्षुरादि गुग्गुलु, कफनाशक, शुक्रबर्धक, रसायन होने के कारण सभी प्रकार के प्रमेहों की प्रभावशाली औषधि है। हाँ वातानुबन्ध में वातनाशक औषधियों तथा अनुपान की व्यवस्था और पित्तानुबन्ध में पित्तनाशक औषधि और अनुपान की व्यवस्था आवश्यक होती है। चिकित्सावधि एक मण्डल।
( और पढ़े – प्रमेह रोग का घरेलू उपचार )
मूत्र कृच्छ्र रोग मिटाए गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग
मूत्र का कष्ट (दाह, वेदना, तोद) से उतरना मूत्र कृच्छ्र है। इसमें मूत्र बून्द-बून्द टपकता है और मूत्र त्याग में घोर वेदना होती है। सामान्यता पित्त विकृति, अश्मरी, पूत्र मार्ग के संक्रमण अथवा पौरुष ग्रंथी वृद्धि इस रोग के मूल कारण होते हैं । इस प्रकार के रोगों में पंचतृणमूल क्वाथ, पुनर्नवाष्टक क्वाथ अथवा नारीकेल जल के अनुपान से गोक्षुरादि गुग्गुलु के सेवन से मूत्र स्वच्छ हो जाता है और वेदना समाप्त हो जाती है।
सहायक औषधियों में मूत्रकृच्छ्रान्तक रस, मूत्रदाहान्तक चूर्ण, चोपचिन्यादि चूर्ण, इत्यादि औषधियों का प्रयोग भी करवाना चाहिए।
( और पढ़े – पेशाब में दर्द और जलन का इलाज )
मूत्राघात में गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग फायदेमंद
मूत्राघात वह स्थिति होती है जब मूत्र की उत्पत्ती ही नहीं होती ।
रोग के कारण – वृक्क (किडनी) कार्य अक्रर्मन्यता, अति शीत लग जाना अथवा आग से झुलस जाना या अत्यन्त उष्ण वातावरण में रहना होता है। ऐसी परिस्थितियों में गोक्षुरादि गुग्गुलु को पंचतृण मूल क्वाथ में घोल कर पिलाना चाहिए।
सहायक औषधियों में क्षारवटी का प्रयोग सर्वेश्वर रस, सर्वतोभद्रा वटी, मूत्रदाहान्तक चूर्ण का प्रयोग करवाना चाहिए।
विशेष:- यह एक अत्याधिक अवस्था है अतः यदि उपचार से लाभ नहीं मिल रहा हो तो रोगी को तुरन्त रुग्णालय(हॉस्पिटल) में भेज देना चाहिए।
( और पढ़े – किडनी रोग के कारण और उपचार )
वात रोग से आराम दिलाए गोक्षुरादि गुग्गुलु का सेवन
गोक्षुरादि गुग्गुलु का प्रयोग वात वृद्धि जन्य वेदनाओं में भी सफलता पूर्वक होता है। इसकी दो-दो वटिकाएँ प्रत्येक भोजन के उपरान्त उष्णोदक से देने से शोथ और वेदना दोनों में लाभ होता है।
सहायक औषधियों में योगराज गुग्गुलु, कृष्ण चतुर्मुख रस, वृहद्वात चिन्तामणि रस, व्योषाद्य वटक, अजमोदादि चूर्ण, नारसिंह चूर्ण, महानारायण तैल, महामाष तैल, विषगर्भ तैल इत्यादि का प्रयोग भी करवाना चाहिए । चिकित्सावधि तीन से छः सप्ताहi ।
पथरी (अश्मरी) में गोक्षुरादि गुग्गुलु फायदेमंद
किडनी (गुर्दे) की पथरी में गोक्षुरादि गुग्गुलु एक सफल औषधि है। वरुणादि क्वाथ के साथ सेवन करवाने से पथरी (अश्मरी) टूट कर निकल जाती है।
सहायक औषधियों में बेर पत्थर भस्म तथा क्षारों का प्रयोग भी करना चाहिए इन औषधियों के साथ चन्द्र प्रभावटी का सेवन रोगी को कृश (कमजोर) नहीं होने देता, अतः अवश्य प्रयोग करवाना चाहिए। चिकित्सावधि एक से तीन मास।
गोक्षुरादि गुग्गुलु के इस्तेमाल से पौरुष ग्रंथि वृद्धि रोग में लाभ
गोक्षुरादि गुग्गुलु पौरुष ग्रंथि वृद्धि में एक प्रभावशाली औषधि है। दो वटिकाएं प्रातः सायं पुनर्नवाष्टक क्वाथ के साथ देने से एक सप्ताह में मूत्र त्याग में अत्यायिकता, अवरोध, ग्रन्थि में दाह, इत्यादि लक्षण सामान्य होने लगते हैं। इसके साथ यदि एक गोली चन्द्र प्रभावटी और एक गोली आरोग्य वर्धिनी वटी का मिश्रण कर दिया जाए तो शीघ्र और स्थाई लाभ होता है। अमृत वटी (स्वकल्पित) का प्रयोग पौरुष ग्रंथि वृद्धि में शत प्रतिशत सफलता दिलवाता है। चिकित्सावधि तीन से छ: मास।
मूत्र मार्ग का संक्रमण मिटाता है गोक्षुरादि गुग्गुलु
मूत्र मार्ग में संक्रमण होना एक सहज सी बात है। और प्रायः मूत्रल औषधियों के सेवन से संक्रमण ठीक भी हो जाते हैं । परन्तु कई रोगियों को मूत्र पथ में बार-बार संक्रमण होते हैं । औषधि सेवन से अस्थाई लाभ होता है, और कुछ समय के उपरान्त पुनः संक्रमण हो जाता है। ऐसे रोगियों को गोक्षुरादि गुग्गुल दो वटिकाएं प्रातः सायं वरुणादि क्वाथ से खिलाने से स्थाई लाभ मिलता है । गोक्षुरादि गुग्गुलु के साथ चन्द्र प्रभावटी का प्रयोग सोने पे सुहागे का काम करता है । मूत्र पथ संक्रमण के लिए मूत्रकृच्छ्रान्तक रस को भी सदैव स्मर्ण रखना चाहिए इस कल्प के सेवन सभी प्रकार के संक्रमणों पर अंकुश लग जाता है।
उच्च रक्त चाप में गोक्षुरादि गुग्गुलु फायदेमंद
उच्च रक्त चाप का कारण चाहे लिपिड़ की वृद्धि हो हृदय रोग हो अथवा वृक्क रोग, गोक्षुरादि गुग्गुलु, संक्रमण नाशक, लेखन, उष्ण, वात कफ नाशक, मूत्रल, बृक्क (किडनी) बल कारक और हृद्य (हृदय के लिए हितकारी) होने से सभी में लाभदायक है।
दो वटिकाएं प्रात: सायं पुनर्नवाष्टक या महामंजिष्ठादि क्वाथ से देने से तीन दिन में लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए कम-से-कम चालीस दिन तक सेवन करवाएं।
सहायक औषधियों में चन्द्र प्रभावटी, सर्पगन्धा वटी, समीर पन्नग रस, बृहद्वात चिन्तामणि रस योगेन्द्र रस इत्यादि की अवस्थानुकूल योजना अवश्य करनी चाहिए।
आम दोष मिटाए गोक्षुरादि गुग्गुलु का उपयोग
शरीर में आम दोष (लिपिड) की वृद्धि में गोक्षुरादि गुग्गुलु एक आदर्श औषधि है। इसकी दो वटिकाएँ प्रातः सायं वृहन्मांजिष्ठादि क्वाथ से देने से एक मास में लाभ हो जाता है, पूर्ण लाभ के लिए 100 दिन तक सेवन करवाएँ। सहायक औषधियों में व्योषाद्य वटी, अग्नि कुमार रस, आरोग्य वर्धिनी वटी इत्यादि औषधियों का प्रयोग भी करवाना चाहिए । रोगी को उसका दैनिक वृत्त (लायफ स्टायल) बदलने को कहना चाहिए, अन्यथा श्रम के अभाव में आम की पुन: वृद्धि हो जाती है। कफ कारक वस्तुओं का निषेध भी आवश्यक है।
गोक्षुरादि गुग्गुलु के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ : Gokshuradi Guggulu Side Effects in Hindi
- गोक्षुरादि गुग्गुलु एक सौम्य औषधि है। इसके प्रयोग काल में किसी प्रकार की प्रतिक्रिया की कोई सम्भावना नहीं है फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।
- गुग्गुलु के प्रयोग से पित्त प्रकृति के रोगियों या अम्लपित्त के रोगियों की अम्लता में वृद्धि हो सकती है। अत: गुग्गुलु, सदैव भोजन के बाद देने चाहिए।
- अनुपान भी दूध ही ठीक रहता है। परन्तु यह सामान्य नियम है, आवश्यकता के अनुसार इसमें परिवर्तन किया जा सकता है।
गोक्षुरादि गुग्गुलु का मूल्य : Gokshuradi Guggulu Price
- Baidyanath Gokshuradi Guggulu -80 Tab – Rs 120
- Patanjali Gokshuradi Guggul – 80 Tab – Rs 55
- Unjha Gokshuradi Guggulu-200 Tablets – Rs 185
- Sri Sri Tattva Gokshuradi Guggulu 500Mg Tablet – 30 Count -Rs 48
- Jain Gokshuradi Guggulu – 80 Count (Pack of 2) -Rs 205
- Jain Gokshuradi Guggulu – 1000 Count – Rs 872
- Dhanvantari Gokshuradi Guggulu – 60 Tablets – Rs 86
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