Last Updated on April 10, 2023 by admin
गुग्गुल क्या है ? : Guggul in Hindi
गुग्गुल एक वृक्ष से निकलने वाला गोंद होता है। ‘गुजो व्याधेर्गडति रक्षति‘-के अनुसार व्याधि से रक्षा करने वाला होने से इसे गुग्गुलु कहा है। इसका एक नाम ‘पलंकष‘ है क्योंकि यह ‘पलं मांसं कषति हिनस्ति‘ के अनुसार स्थूलता को कम करने वाला होता है। भैंस की आंख जैसा कृष्ण वर्ण का होने से इसे ‘महिषाक्ष‘ भी कहते हैं।
इस गुग्गुल से ही महायोगराज गुग्गुलु, कैशोर गुग्गुलु, चन्द्र प्रभावटी आदि योग बनाये जाते हैं। त्रिफला गुग्गुल, गोक्षरादि गुग्गुल, सिंहनाद गुग्गुल और चन्द्रप्रभा गुग्गुल आदि योगों में भी यह प्रमुख द्रव्य प्रयुक्त होता है।
नया गुग्गुल पौष्टिक और यौनशक्तिवर्द्धक होता है। यह चिकना, सुवर्ण जैसा, पकी जामुन के रंग जैसा, सुगन्धित और पिच्छिल होता है।
पुराना गुग्गुल सूखा, दुर्गन्धयुक्त, स्वाभाविक रंग और गन्ध से रहित तथा गुणहीन होता है। इसमें कंकर-पत्थर या कचरा नहीं होना चाहिए। जो गुग्गुल भौरे या काजल की तरह काले रंग का होता है उसे महिषाक्ष, जो बहुत नीले रंग का होता है उसे महानील, जिसका रंग कुमुद की तरह कान्तिपूर्ण हो उसे कमद. जो माणिक्य की तरह चमकदार हो उसे पद्म और जो सोने के रंग जैसा हो उसे हिरण्य गुग्गुल कहते हैं। यह हिरण्य गुग्गुल ही मनुष्योपयोगी औषधियों में प्रयोग किया जाता है कुछ विद्वानों के मतानुसार महिषाक्ष गुग्गुल भी मनुष्योपयोगी माना गया है।
गुग्गुल के वृक्ष भारत, अरब, बलोचिस्तान और अफ्रीका देश में पैदा होते हैं। चार फ़िट से छः फ़िट तक की ऊंचाई वाला गुग्गुल का वृक्ष बारहों महिने जीवित रहता है। इसके वृक्ष का गोंद (गुग्गुल) ही प्रयोग में लिया जाता है।
गुग्गुल का विभिन्न भाषाओं में नाम :
- संस्कृत – गुग्गुलु।
- हिन्दी – गुग्गुल ।
- मराठी – गुग्गुल ।
- गुजराती – गुगल ।
- बंगला – गुगुल।
- कन्नड़ – काण्डगण, इवडोल।
- तेलगु – महिषाक्षी।
- तामिल – गुक्कल ।
- फारसी – बूएजहूदान ।
- इंगलिश – गम गुग्गुल (Gum Guggul)
- लैटिन – कॉमिफोरा मुकुल Commiphora Mukul)
आयुर्वेद में गुग्गुल के प्रकार : Types of Guggul in Ayurveda
गुग्गुल पांच प्रकार का होता है –
- महिषाक्ष: महिषाक्ष गुग्गुल कोयले के रंग का होता है। इस गुग्गुल को भैंसा गुग्गुल भी कहते हैं।
- महानील: महानील गुग्गुल बहुत ही गाढ़े और नीले रंग का होता है।
- कुमुद: कुमुद गुग्गुल कुमुद के फूल के रंग के समान होता है।
- पद्य: पद्य गुग्गुल माणिक्य के समान लाल रंग का होता है।
- हिरण्य: हिरण्य गुग्गुल सोने के समान रंग वाला महिपाक्ष और महानील गुग्गुल हाथियों के लिए लाभकारी होता है। यह गुग्गुल घोडों के रोग दूर करने वाला होता है और मनुष्यों के लिए हिरन नाम वाला ही गुग्गुल लाभदायक और हितकारी होता है लेकिन कुछ चिकित्सा आचार्या के अनुसार महिपाक्ष को भी मनुष्यों के लिए उपयोगी माना जाता है।
कैसा गुग्गुल लेना चाहिए : जो गुग्गुल चिकना हो, स्वर्ण के समान रंग वाला हो, पकी जामुन के समान स्वरूप वाला हो और पीला हो वही गुग्गुल अधिक लाभकारी होता है।
पुराना गुग्गुल: पुराना गुग्गुल दुर्गन्धयुक्त काला, स्वाभाविक और गुणों से हीन होता है।
नवीन गुग्गुल : नवीन गुग्गुल वीर्य को पैदा करने वाला होता है। यह बल को बढाने वाला होता है। पुराना गुगुल विष के समान होता है।
गुग्गुल की परीक्षा : जो गुग्गुल आग में डालने से जल जाए, गर्मी में रखने से पिघल जाए, गर्म पानी में डालने से गल जाए ऐसा गुग्गुल सबसे अधिक लाभकारी होता है।
शुद्ध करने की क्रिया :-
- गुग्गुल के टुकड़े-टुकड़े करके मिलाएं और त्रिफला के काढ़े में विशेषकर दूध में डालकर पका लें इससे गुग्गुल शुद्ध हो जाता है।
- गिलोय के काढ़े में गुग्गुल को मिलाकर छानने और सुखा देने से गुग्गुल शुद्ध होता है।
असली और नकली गुग्गुल की पहचान : Asli aur Nakli Guggul ki Pahchan in Hind
गुग्गुल को ज्यों का त्यों प्रयोग में नहीं लिया जाता बल्कि विशेष शोधन विधि से शुद्ध करके ही प्रयोग में लिया जाता है गुग्गुल में मिलावटी (भ्रष्टाचारी) लोग कई प्रकार की मिलावटें करके बेचते हैं और अक्सर सालर वृक्ष के गोंद को भी गुग्गुल के नाम से बेचा करते हैं।
असली नया गुग्गुल सोने जैसे पीले रंग का और पुराना होने पर काले रंग का होता है जबकि सालर के गोंद वाला गुग्गुल, जिसे साली गुग्गुल भी बोला जाता है, लाल रंग का होता है।
असली गुग्गुल के टुकड़ों को तोड़ने से वे झट टूट जाते हैं और आग पर रखने से एक दम से नहीं जलते बल्कि फूलते हैं फिर बारीक-बारीक टुकड़े फूटते हैं जबकि सालर का गुग्गुल (गोंद) आग पर रखने से जल जाता है।
गुग्गुल के गुण : Guggul ke Gun in Hindi
- गुग्गुल स्वच्छ, कड़वा और उष्णवीर्य होता है ।
- यह पित्तकारक, दस्तावरं, कषैला, चरपरा और पाक में कटु होता है ।
- गुग्गुल रूखा, अत्यन्त हलका तथा टूटी हुई हड्डी को जोड़ने वाला होता है ।
- यह वीर्यकारक, सूक्ष्म, स्वर के लिए हितकारी, रसायन है ।
- गुग्गुल अग्नि प्रदीप्त करने वाला, चिकना और बलवर्द्धक होता है ।
- यह कफ, वात व व्रण (घाव) को ठीक करता है ।
- यह अपच, चर्बी, प्रमेह व पथरी को नष्ट करता है ।
- यह क्लेद, कुष्ठ, आमवात और पीड़िका (फुसियां) मिटाता है ।
- गुग्गुल गांठ, सूजन, बवासीर, गण्डमाला तथा कृमिरोग को नष्ट करने वाला है।
- गुग्गुल स्निग्ध होने से वात का, कसैला होने से पित्त का और कड़वा होने से कफ का शमन करता है इस तरह यह त्रिदोष शामक होता है।
सेवन की मात्रा :
2 से 4 ग्राम की मात्रा में गुग्गुल का सेवन कर सकते हैं।
गुग्गुल के फायदे और उपयोग : Guggul Benefits and Uses in Hindi
1. कीटाणुओं के नाश में लाभकारी है गुग्गुल का प्रयोग : ताज़ा गुग्गुल उत्तेजक, कीटाणुनाशक और कफ तथा वात का शमन करने वाला होता है अतः प्रौढ़ एवं वृद्ध आयु के दुर्बल, कफ के रोगी और दुबले लोगों के लिए इसका प्रयोग गुणकारी होता है।
2. त्वचा रोगों में गुग्गुल से फायदा : यह त्वचा के रोग दूर कर उसे कान्तिपूर्ण और सुन्दर बनाता है । ( और पढ़े – त्वचा की 6 प्रमुख समस्या और उनके उपाय )
3. वात रोगों में गुग्गुल के इस्तेमाल से फायदा : स्त्रियों के गर्भाशय को बल देने व मासिक धर्म के अवरोध को दूर करने, पाण्डु रोग (Anaemia) याने रक्ताल्पता दूर करने, घाव भरने, वातजन्य विकार एवं शूल नष्ट करने के लिए बनाये गये नुस्खों में प्रमुख द्रव्य का काम करता है।
4. गर्भाशय को बल देता है गुग्गुल का उपयोग : स्नायविक संस्थान और स्त्रियों के गर्भाशय को बल देने में गुग्गुल बहुत अच्छा काम करता है। ( और पढ़े – गर्भाशय की कमजोरी दूर करने के चमत्कारी उपाय )
5. अनेक व्याधियों को नष्ट करने में गुग्गुल करता है मदद : प्रसिद्ध योग- ‘महायोगराज गुग्गुल’ गुग्गुल का सबसे अच्छा और अनेक व्याधियों को नष्ट करने वाला योग है। इस योग का प्रमुख घटक द्रव्य त्रिफला (हरड़ बहेड़ा आंवला) है जो गुग्गुल की उष्णता और उग्रता को कम करके हितकारी गुणों की वृद्धि करता है।
6. महायोगराज गुग्गुल का मुख्य घटक है गुग्गुल : गुग्गुल से बनाया हुआ ‘महायोगराज गुग्गुल’ बहुत प्रकार के रोगों को नष्ट करने वाला होता है बशर्ते इसमें प्रयोग किया गुग्गुल, त्रिफला, अन्य औषधियां तथा आठों प्रकार की भस्में आदि सभी असली और उच्च श्रेणी की हों।
आठों भस्मों (रस सिन्दूर, स्वर्ण, चांदी, बंग, नाग, लोह, अभ्रक और मण्डूर भस्म) के बिना बनाये गये योग को ‘लघु योगराज गुग्गुल’ या ‘योगराज गुग्गुल’ कहते हैं।
7. गृध्रसी (सियाटिका): 50 ग्राम गुग्गुल में 10 ग्राम लहसुन और 25 ग्राम घी मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां बना लें। 1-1 गोली जल के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से गृध्रसी सियाटिका में लाभ मिलता है।
8. बवासीर:
- गुग्गुल को जल में घिसकर लेप बना लें। इस लेप को बवासीर के मस्सों पर लगाने से लाभ मिलता है।
- शुद्ध गुग्गल 5 ग्राम, एलुआ 10 ग्राम तथा रसौत 10 ग्राम इन सब को थोड़े-से मुली के रस में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। प्रतिदिन इसमें से 1-1 गोली सुबह-शाम ताजे पानी के साथ 20 दिन तक खाने से कब्ज खत्म दूर होती है तथा इसके साथ ही बवासीर रोग भी ठीक हो जाता है।
- 40 ग्राम गुगल को 125 ग्राम दूध में हल्के आग पर पकाएं जब यह गाढ़ा हो जाए तो इसे ठण्डा करके मटर के बराबर गोलियां बना लें। इसकी 1 गोली रोज सुबह खाली पेट खने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
- 3 ग्राम शुद्ध गुग्गुल को गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने दस्त साफ आता है तथा कब्ज की शिकायत भी खत्म हो जाती है जिसके फलस्वरूप बवासीर नष्ट हो जाता है।
9. अम्लपित्त (खट्टी डकारें आना): 1 चम्मच गुग्गुल का चूर्ण 1 कप पानी में गलाकर 1 घंटे बाद छान लें। भोजन के बाद दोनों समय इस गुग्गुल का सेवन करने से अम्लपित्त से छुटकारा मिल जाता है।
10. ग्रंथियों की वृद्धि: चने का आटा और गुग्गुल बराबर मात्रा में लेकर पानी की सहायता से टिकिया बनाकर गर्म कर लें। यह टिकिया गर्म-गर्म ही ग्रंथि पर बांधने ग्रंथि शीघ्र ही बैठ जाती है।
11. कांख (कखवार): गुग्गुल और इमली के बीजों को पानी में पीसकर लेप बनाकर कखवार पर लगाएं इससे लाभ मिलता है।
12. दाढ़ में दर्द: गुग्गुल को पानी में घिसकर दाढ़ पर लगाने से दाढ़ का दर्द ठीक हो जाता है।
13. सर्दी से होने वाले दर्द: गुग्गुल और सोंठ को एक साथ घिसकर शरीर पर लेप करके सेंकाई करने से लाभ मिलता है।
14. कनखजूरे के काटने पर: कनखजूरे के काटने पर गुग्गुल को आग में जलाकर धूंनी देने से लाभ मिलता है।
15. गुल्म (पेट में गैस बनना): शुद्ध गुग्गुल को गौमूत्र के साथ सेवन करने से गुल्म और दर्द में लाभ मिलता है।
16. ब्रोंकाइटिस: गुग्गुल 240 से 960 मिलीग्राम की मात्रा को लेकर गुड़ के साथ 2-3 बार सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में लाभ मिलता है।
17. फेफड़े संबन्धी रोग: गुग्गुल 0.24 से 0.96 ग्राम की मात्रा को गुड़ के साथ प्रतिदिन 3-4 बार सेवन करने से फुफ्फुस (फेफड़े) सम्बंधी अनेक रोगों में अधिक लाभ मिलता है।
18. अंडकोष की सूजन: 2-4 ग्राम शुद्ध गुग्गल को 7-14 मिलीलीटर गाय के मूत्र (पेशाब) के साथ सुबह-शाम सेवन करने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।
19. दमा: दमा रोग में गुग्गुल लगभग आधा से 1 ग्राम मात्रा को सुबह-शाम दोनों समय घी के साथ सेवन करना लाभकारी होगा।
20. फेफड़ों की सूजन: गुग्गुल 120 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम की मात्रा लेकर गुड़ के साथ प्रतिदिन 3-4 मात्राएं लेने से फेफड़ों की सूजन व दर्द में अधिक लाभ मिलता है।
21. खांसी: 24 से 96 मिलीग्राम गुग्गुल को छोटी पीपल, अड़ूसा, शहद और घी के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
22. दांतों में कीड़े लगना: 35 मिलीलीटर पानी में 3.50 मिलीग्रम गुग्गुल घोल लें फिर इस घोल में रुई भिंगोकर इसे दांत के गड्ढ़े रखें इससे कीड़े मरकर लार के साथ बाहर आ जाएंगे और दर्द से भी आराम मिलेगा।
23. पायरिया (मसूढ़ों से खून बहना):
- गुग्गुल को 35 मिलीलीटर पानी में घोलकर लेप बना लें। इस लेप को मसूढ़ों पर मलें। इस प्रकार से प्रतिदिन कुछ दिनों तक लेप करने से पायरिया ठीक हो जाता है।
- 90 प्रतिशत एलकोहाल में 20 प्रतिशत गुग्गुल मिल लें और इससे मसूढ़ों पर प्रतिदिन सुबह तथा शाम को मालिश करें इससे पायरिया रोग ठीक हो जाता है।
24. आमाशय का जख्म: 240 मिलीग्राम से लेकर 960 मिलीग्राम गुग्गुल की मात्रा सुबह और शाम सेवन करने से आमाशय के रोग में लाभ मिलता है।
25. फुफ्फुसावरण: गुग्गुल 240 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से फुफ्फुसावरण रोग में लाभ मिलता है।
26. बांझपन: गुग्गुल 0.96 ग्राम और रसौत को मक्खन के साथ मिलाकर इसमें से प्रतिदिन 3 खुराक सेवन करने से बांझपन दूर होता है।
27. मुंह के छाले: गुग्गुल को मुंह में रखने से या गर्म पानी में घोलकर दिन में 3 से 4 बार इससे कुल्ला व गरारे करने से मुंह के अन्दर के घाव, छाले व जलन ठीक हो जाते हैं।
28. दस्त: गुग्गुल 240 मिलीग्राम से लेकर 960 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से आंतों में जलन होने के कारण होने वाले दस्त ठीक हो जाता है।
29. मूत्ररोग: गुग्गुल 0.24 ग्राम से 0.96 ग्राम की मात्रा में गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के मूत्र रोग ठीक हो जाते हैं।
30. मुंह से बदबू आना: मुंह से बदबू आने तथा सांसों से बदबू आने पर सलाई गुग्गुल 600 से 1200 मिलीग्राम को बबूल की गोंद के साथ मिलाकर सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
31. कान का दर्द: गुग्गुल और जीरे को पीसकर आग पर रखकर पका लें। पकते समय जो इसमें से धुंआ निकलता है उस धुंए को कान में लेने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
32. कान के कीड़े: गुग्गुल का धुंआ कान में लेने से कान के सारे कीड़े मर जाते हैं।
33. दस्त के साथ आंव आना – 240 से 960 मिलीग्राम गुग्गुल को इन्द्रजौ और गुड़ के साथ रोजाना सेवन करने से दस्त के साथ आंव आने की अवस्था में आराम मिलता है।
34. गर्भाशय के रोग: पुराने से पुराना गर्भाशय की सूजन होने पर गुग्गुल की लगभग 0.12 ग्राम से 0.96 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गुड़ के साथ सेवन करने से कई प्रकार के गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं। जब तक गर्भाशय से सम्बंधित रोग ठीक न हो जाए तब तक 4 से 6 घंटे के अन्तर पर इसका सेवन करते रहना चाहिए।
35. कमर के दर्द में:
- गुग्गुल, गिलोय, हरड़ के बक्कल, बहेड़े के छिलके और गुठली सहित सूखे आंवले इन सबको 50-50 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से आधा चम्मच चूर्ण 1 चम्मच अरण्डी के तेल के साथ रोजाना सेवन करें। इसे लगभग 20 दिन तक सेवन करने से कमर दर्द ठीक हो जाता है।
- गुग्गुल को पानी में उबालकर गाढ़ा लेप बनाए और इससे कमर पर मालिश करें इससे लाभ मिलेगा।
- 3 ग्राम शुद्ध गुग्गुल की गुठली निकालें और उसे 1 छुआरे में रख दें फिर इसके ऊपर गीले आटे का लेप कर दें। इसके बाद इसे गर्म राख में रख कर भून लें और इसे पीसकर चने के बराबर गोलियां बना लें और छाया में रखकर सुखा लें। इसमें से 1 गोली सुबह-शाम साफ साफ पानी के साथ लेने से कमर दर्द ठीक हो जाता है।
- गुगल को पानी में उबालकर लेप बना लें और इस लेप को कमर पर लगाए इससे कमर दर्द ठीक हो जाता है।
36. अधिक कमजोरी होना: 240-960 मिलीग्राम गुग्गुल सुबह-शाम शहद या घी के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर हो जाती है।
37. उरूस्तम्भ जांघों में सुन्नता: रोजाना दिन में 2 बार लगभग 360 मिलीग्राम से लगभग 960 मिलीग्राम कैशोर गुग्गुल लें और इसको रास्ना और घी के साथ मिलाकर खाने से उरुस्तम्भ ठीक हो जाता है।
38. लकवा (पक्षाघात-फालिस फेसियल, परालिसिस):
- लगभग 240 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम कैशोर गुग्गुल के साथ रास्ना एवं घी सुबह और शाम को सेवन करने से लकवे में फायदा मिलता है।
- एरण्ड के तेल में गुग्गुल को पीसकर लेप बनाएं और पीड़ित अंगों पर कुछ हफ्तों तक नियमित मालिश करें इससे आराम मिलेगा।
- लगभग 100 ग्राम माल कांगनी, 5 ग्राम सिंगिया, 5 ग्राम संखिया, 10 ग्राम धतूरे के बीज, 5 ग्राम जायफल, 5 ग्राम सफेद गोमती, 500 ग्राम नारियल का तेल, 500 ग्राम अण्डी का तेल और 250 मिलीलीटर अलसी का तेल इन सभी को मिलाकर आंच पर लाल होने तक उबालें। इसके बाद इसे छानकर बोतल में भर लें। इस तेल से प्रतिदिन लकवा ग्रस्त भाग पर 4 बार मालिश करें इससे लाभ मिलता है।
39. अन्ननली (आहार) में जलन: गुग्गुल की 240 मिलीग्राम से लेकर 960 मिलीग्राम तक गुड़ के साथ सेवन करने से आहार नली की जलन दूर हो जाती है।
40. भगन्दर:
- गुग्गुल और त्रिफला का चूर्ण 10-10 ग्राम को जल के साथ पीसकर हल्का गर्म करें, इस लेप को भगन्दर पर लगाने से लाभ मिलता है।
- शुद्ध गुगल 50 ग्राम, त्रिफला 30 ग्राम और पीपल 15 ग्राम लेकर इसे कूट छानकर इसमें थोड़ा सा पानी मिलाकर चने के बराबर गोलियां बना लें। इन गोलियों को छाया में सूखाकर लगातार 15-20 दिन तक 1-1 गोली सुबह-शाम सेवन करें। इससे भगन्दर ठीक होता है।
41. नष्टार्तव (मासिकधर्म रुक जाना): माहवारी यदि किसी गर्भाशय के दोष (विकार) के कारण रुक गई हो तो गुग्गुल 2 से 8 रत्ती (0.24 ग्राम से 0.96 ग्राम) मात्रा को एलुवा (मुसब्बर) और कसीस के साथ मिलाकर गोलियां बना लें और सुबह-शाम एक-एक गोली का सेवन करें इससे मासिकस्राव जारी हो जाता है।
42. प्रदर रोग: 1 ग्राम गुग्गुल रोजाना रसौत के साथ 3 बार सेवन करने से प्रदर में लाभ मिलता है।
43. दूध की उल्टी करना: गुग्गुल को गाय के पेशाब में पकायें, फिर दूध और फिरघी में पकायें जब यह काढ़ा तथा शुद्व हो जाये तब बच्चे को इसे पिलाये इससे बच्चा दूध की उल्टी करना बंद कर देता है।
44. पेट में पानी भरना (जलोदर): गुग्गुल को गुड़ के साथ रोजाना दिन में 3 से 4 खुराक के रूप में सेवन करने से पेट में सूजन और जलोदर ठीक हो जाता है।
45. गिल्टी (ट्यूमर): सलई गुग्गुल गर्म पानी में घिसकर सुबह-शाम गिल्टी पर बांधने से फायदा मिलता है। 600 से 1200 मिलीग्राम गुग्गुल रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से रोग में इस रोग में लाभ होता है।
46. पेट का बड़ा होना (आमाशय का फैल जाना): गुग्गुल की 240 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से इस रोग में लाभ मिलता है तथा आमाशय का फैलाव भी दूर हो जाता है।
47. मोटापा:
- शुद्ध गुग्गुलु की 1 से 2 ग्राम को गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है और मोटापन दूर होता है।
- गुग्गुल, त्रिकुट, त्रिफला और काली मिर्च को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें, फिर इस बने चूर्ण को अच्छी तरह एरण्ड के तेल घोटकर रख लें, इस चूर्ण को रोजाना 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से मोटापापन दूर होता है।
48. प्लेग रोग- धूप और गुग्गुल को हवन सामग्री के जले हुए उपले पर जलाकर धूआं करने से दूषित वातावरण शुद्ध हो जाता है और प्लेग (चूहों से होने वाली बीमारी) जैसी बीमारी का प्रकोप दूर हो जाता है।
49. अंगुलबेल (डिठौन) – घी में गुग्गुल को मिलाकर मलहम बनाकर अंगुली की सूजन पर लेप करने से इस रोग में जल्द आराम मिलता है।
50. उपदंश (फिरंग):
- गुग्गल का 5 ग्राम चूर्ण अनन्तमूल के काढ़े के साथ सेवन करने से उपदंश में लाभ होता है।
- उपदंश चाहे कितना भी पुराना हो सलई गुग्गुल 0.60 से 1.20 ग्राम की मात्रा सुबह-शाम घी या मक्खन के साथ खाने से यह रोग ठीक हो जाता है।
51. फोड़ा: गुग्गल को घोलकर फोड़े पर लेप की तरह लगाने से फोड़ा ठीक हो जाता है।
52. पाण्डुरोग (पीलिया): योगराज गुग्गुल को गोमूत्र के साथ सेवन करने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।
53. खून में पीव आना (प्याएमिया): 120 से 960 मिलीग्राम गुग्गुल प्रतिदिन सुबह-शाम गुड़ के साथ खाने से खून में पीव का बनना बंद हो जाता है और खून साफ हो जाता है।
54. सौन्दर्यप्रसाधन: 240 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम गुग्गुल को घी के साथ लगातार सुबह और शाम सेवन करने से चेहरे पर के फोड़े-फुंसियां ठीक हो जाते हैं तथा चेहरा साफ और सुन्दर हो जाता है और चेहरे पर चमक आ जाती है।
55. शरीर में सूजन:
- लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में गुग्गल और त्रिफला के चूर्ण को मिलाकर रात में हल्का गर्म पानी के साथ सेवन करने से लम्बे समय से बनी हुई कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है तथा शरीर में होने वाले सूजन भी दूर हो जाते हैं।
- लगभग 5-5 ग्राम की मात्रा में गुग्गल, रेवन्दचीनी, लाइफबोय साबुन और मैनफल को पानी में पीस लें, इसे गर्म करके कपड़े पर फैलाकर सूजन पर रखकर पट्टी कर लें इससे लाभ मिलता है।
56. गंडमाला (स्कोफुला):
- गुग्गुल को पानी में घोलकर लेप बना लें और इस लेप को दिन में 3 से 4 बार गांठों पर लगाएं इससे तुरन्त लाभ मिलेगा।
- लगभग 120 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम गुग्गुल को गुड़ के साथ प्रतिदिन 3 से 4 बार सेवन करें इससे लाभ मिलेगा। अधिक लाभ पाने के लिए गुग्गुल को सोमल, पारद और वायविडंग के साथ सेवन करें।
57. सिर दर्द:
- गुग्गुल को पान के साथ पीसकर मस्तक (माथे) पर दिन में 2-3 बार लेप करने से सिर दर्द खत्म होता है।
- पानी में गुग्गल को पीसकर माथे पर लगाने से सिर का दर्द खत्म हो जाता है।
58. व्रण (घाव):
- गुग्गुल के चूर्ण को नारियल के तेल में घिसकर लेप बना लें और इसे घाव पर दिन में 3 बार लगाएं इससे घाव ठीक हो जाते हैं।
- घी में गुग्गुल मिलाकर मलहम बना लें और इस लेप को घाव पर लगाएं इससे घाव ठीक हो जाते हैं।
- सोहागा, कत्था, गंधक और सलाई गुग्गुल इन सब को मिलाकर मलहम बना लें और इस मलहम को घाव पर लगाएं इससे घाव ठीक हो जाता है।
- घाव दुर्गन्धित हो तो सलई गुग्गुल को नींबू के रस और नारियल तेल में मिलाकर उस पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा।
59. हिचकी:
- गुग्गुल को जल में घिसकर लेप बना लें। इस लेप को नाभि पर लगाने से हिचकी दूर हो जाती है।
- गुग्गुल को घी में मिलाकर मलहम की तरह लेप बना लें, इससे अमाशय के ऊपरी भाग पर लेप करें जिसके फलस्वरूप हिचकी दूर हो जाती है।
60. जोड़ों का दर्द:
- गुग्गुल और सोंठ का चूर्ण समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसे घी में मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को जोड़ों पर लगानें से आराम मिलता है।
- 3 ग्राम शुद्ध की हुई गुग्गुल को 10 ग्राम घी और 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से जोड़ा के दर्द से आराम मिलता है।
- 240 से 960 मिलीग्राम की मात्रा में गुग्गुल को शिलाजीत के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 सेवन करें इससे गठिया के दर्द में आराम मिलता है।
- सलई गुग्गुल को गर्म जल में घिसकर गठिया के दर्द व सूजन पर लगाएं इससे गठिया रोग ठीक हो जाता है।
- 10 ग्राम गुग्गुल लेकर इसे 20 ग्राम गुड़ में मिलाकर पीसकर इसकी छोटी-छोटी गोलिया बना लें। सुबह-शाम कुछ दिनों तक 1-1 गोली घी के साथ लेने से घुटने का दर्द दूर हो जाता है।
61. गंजापन: गुग्गुल को सिरके में घोटकर सुबह-शाम नियमित रूप से सिर पर गंजेपन वाले स्थान पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा।
62. सूजन: किसी भी अंगों पर आई सूजन को दूर करने के लिए गुग्गुल को गर्म पानी में घिसकर लेप बना लें इसको दिन में 2-3 बार कुछ दिनों तक नियमित रूप से सूजन वाले स्थान पर लगाएं इससे लाभ मिलेगा।
गुग्गुल से निर्मित आयुर्वेदिक दवा(योग) और उनके फायदे :
आयुर्वेद में गुग्गुलु (गुग्गुल) के १६-१७ योग दिये गये हैं जिनमें महायोगराज, योगराज, किशोर, गोक्षरादि, सिंहनाद और चंद्रप्रभा वटी के नाम उल्लेखनीय हैं। ये योग आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनियों द्वारा बनाये हुए बाज़ार में मिलते हैं। यहां कुछ चुने हुए योगों के प्रयोग का उपयोगी विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है –
1. महायोगराज गुग्गुलु के लाभ : सब प्रकार के वात रोगों जैसे आमवात सन्धिवात, जोड़ों की सूजन और पीडा, जोड़ों के दर्द की चिकित्सा में शहद के साथ दो गोली मिलाकर खाने और महा रास्नादि क्वाथ बना कर पीने से लाभ होता है। महारास्नादि क्वाथ अनुपान द्रव्य होने के साथ ही सर्वांगवात, कम्पवात, अर्धांगवात, साइटिका आमवात, पक्षाघात और कमर व जांघों के दर्द आदि व्याधियों को नष्ट करने वाला आयुर्वेदिक योग है ।
इसके अनुपान के साथ योगराज गुग्गुलु का प्रयोग करना मानो सोने पर सोहागा होना है। महारास्नादि क्वाथ २० ग्राम लेकर २ कप पानी में डाल कर इतना उबालें कि आधा कप बचे। इसे छान लें। योगराज या महायोगराज गुग्गुल की २ गोली शहद में मिलाकर चाट लें और ऊपर से यह क्वाथ आधा सुबह, आधा शाम को पी लें। लगातार कुछ दिनों तक इस योग का सेवन करने से सभी वात व्याधियां नष्ट हो जाती हैं। महायोगराज गुग्गुलु एक दिव्य औषधि है। स्त्रियों के गर्भाशय दोष और दौर्बल्य को दूर करती है। ( और पढ़े – योगराज गुग्गुलु के बेमिसाल फायदे )
2. किशोर गुग्गुल के लाभ : रक्तविकार, वातरक्त, आमवात, शोथ और उदर रोग आदि के लिए २-२ गोली सुबह शाम जल या दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
3. गोक्षरादिगुग्गुल के लाभ : मूत्रदाह, मूत्रावरोध (पेशाब में रुकावट) और सुज़ाक रोग में २-२ गोली सुबह शाम जल या दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
4. सिंहनाद गुग्गुल के लाभ : जीर्ण आमवात, तिल्ली बढ़ जाने, श्वास खांसी, वातरक्त, शूल, सूजन, बवासीर, संग्रहणी, पाण्डु रोग आदि दूर करने के लिए 2-2 गोली सुबह शाम जल के साथ लेना चाहिए।
5. चन्द्रप्रभा वटी के लाभ : गुग्गुल के संयोग से बनी यह वटी सब प्रकार के मूत्र रोगों के लिए श्रेष्ठ लाभदायक औषधि है । यह मूत्रदाह, मूत्र में रुकावट, प्रमेह, भगन्दर, सूज़ाक, गर्भस्राव, गर्भपात, वृक्क शोथ (गुर्दे में सूजन) मूत्र में रेती और पस सेल्स जाना आदि व्याधियों के लिए इस वटी को, 2-2 गोली सुबह शाम शहद के साथ लगातार सेवन करने से लाभ होता है।
यह वीर्यविकार, यौनदौर्बल्य, यौन विकार, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, उत्तेजना व कठोरता में कमी आदि व्याधियों को दूर कर पौरुषशक्ति बढ़ाती है। स्त्रियों के शरीर को कान्तिमय और बलवान बनाती है, मासिक धर्म की अनियमितता, कष्टार्तव और शरीर में दर्द होना व कमज़ोरी आदि को दूर करती है। ( और पढ़े – चन्द्रप्रभा वटी के हैरान करदेने वाले लाजवाब फायदे )
गुग्गुल के सेवन में सावधानियाँ :
गुग्गुल युक्त औषधि का सेवन करते हुए खटाई, तेज़ मिर्च मसाले, शराब, तीखे पदार्थ, भारी गरिष्ट भोजन, अतिश्रम या व्यायाम, स्त्री सहवास, क्रोध और गर्मी का सेवन क़तई न करें।
गुग्गुल के नुकसान : Guggul Side Effects in Hindi
- गुग्गुल केवल चिकित्सक की देखरेख में लिया जाना चाहिए।
- पुराना गुग्गुल गुणहीन होता है अतः ताज़ा ही लेना चाहिए।
- पुराना गुग्गुल शरीर को दुर्बल करने वाला और हानिकारक होता है।
- गुग्गुल के अनुचित प्रयोग से यकृत और फेफडे को हानि होती है ।
- अति सेवन से आंखों के सामने अंधेरा आना, मुंह सूखना, दुबलापन, मूर्छा, शिथिलता और रूखापन पैदा होता है अतः इसका अधिक मात्रा में सेवन न करके यथोचित मात्रा में लम्बे समय तक सेवन करना चाहिए।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)