Last Updated on July 7, 2021 by admin
व्यास में एक मिलीमीटर के दस हजारवें हिस्से जितना पिद्दी-सा वायरस है एच.आई.वी., लेकिन इसका आतंक आज सारी दुनिया में फैला है। किसी के शरीर में एक बार पैठ कर ले तो जीना नरक हो जाता है। भीतर टाइम बम की तरह टिक-टिक करता यह वायरस अपना समय लेकर एड्स के रूप में विस्फोटित होता है और शरीर के चिथड़े-चिथड़े कर देता है। इससे खुद को बचाए रखना ही इसे शिकस्त देने का एक अकेला तरीका है।
एड्स क्या है ? (What is AIDS)
एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिशिएंसी सिंड्रोम) एक वायरस जन्य रोग है, जिसकी बाबत पहली जानकारी एटलांटा, अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के वैज्ञानिकों ने सन् 1981 में दी थी। इसमें आदमी की रोगों से लड़ने की सामान्य ताकत नष्ट हो जाती है। जरा-जरा से सूक्ष्मजीवी शरीर में जब चाहे तब पैठ कर लेते हैं और उनसे ग्रसित शरीर तेजी से गलता जाता है। वायरस की यह मार प्राण छूटने तक कायम रहती है और उसी के प्रकोप से रोगी को कुछ खास किस्म के असाधारण कैंसर हो जाते हैं।
खास बात यह है कि वैज्ञानिक समुदाय के निरंतर प्रयासों के बावजूद अब तक कोई ऐसी दवा नहीं खोजी जा सकी है जो इस रोग को दूर कर सके।
एड्स रोग किस वायरस से होता है ?
एड्स रोग “ह्यूमन इम्यूनो-डिफिशिएंसी वायरस (एच.आई.वी.)” से होता है। इस वायरस की एक बड़ी विशेषता यह है कि शरीर में पैठ करने के बाद भी यह सालोंसाल कुंभकर्ण की नींद सोया रह सकता है और किसी भी पल जागकर सक्रिय हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी धूर्तता यह है कि यह मानव टी-लिम्फोसाइटस की उन सैन्य कोशिकाओं (टी-4 हेल्पर सेल) को ही मार डालता है, जो हमें तरह-तरह के रोगों से बचाती हैं।
अब तक वायरस की दो किस्में पहचानी जा चुकी हैं : एच. आई. वी.-1 और एच.आई.वी.-2। एच.आई.वी.-1 सारी दुनिया में फैला हुआ है, जबकि एच.आई.वी.-2 का गढ़ पश्चिमी अफ्रीका है।
एच.आई.वी वायरस आदमी के शरीर में कैसे पहुँचता है ?
1). किसी एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध वायरस के फैलने का सबसे बड़ा कारण है। जो व्यक्ति कई लोगों के साथ यौन संबंध रखते हैं, उन्हें यह संक्रमण होने का सबसे अधिक खतरा रहता है। यौन संबंधों में स्वच्छंदता समाज के कुछ तबकों में फैशनेबुल चाहे समझी जाए, लेकिन एड्स की आवृत्ति होने के बाद अब आग से खेलने के समान है।
2). अध्ययनों में पाया गया है कि लैंगिक मैथुन के साथ-साथ मुख-मैथुन भी वायरस को फैला सकता है।
3). स्त्रियों को यह संक्रमण पुरुषों की तुलना में अधिक आसानी से हो जाता है क्योंकि एक तो वीर्य में वायरस बहुत बड़ी संख्या में होते हैं, दूसरा योनि का कुल क्षेत्रफल पुरुष-जननांग से कहीं अधिक होता है। मासिक स्राव के दिनों में स्त्री के लिए संक्रमण का डर सबसे अधिक होता है। इसी तरह किशोर अवस्था और प्रौढ़ अवस्था की उम्र भी अधिक नाजुक होती है, क्योंकि इनमें योनि की भीतरी सतह कम मजबूत होती है।
4). लैंगिक मैथुन की तुलना में गुदा-मैथुन अधिक खतरनाक है। इसमें संक्रमण की आशंका सबसे प्रबल होती है। यही कारण है कि समलैंगिक पुरुषों में एड्स के मामले अधिक हो रहे हैं।
5). मुंबई और देश के कुछ दूसरे शहरों की यौन-कर्मियों (वेश्याओं) पर हुए अध्ययनों में उनके बड़ी संख्या में एच.आई. वी.-संक्रमित होने की पुष्टि हुई है।
स्पष्ट है, प्रकृति भी मनुष्य से हंसों के जोड़े की तरह की जीवन-अनुबंधता चाहती है। कई पुरुष और स्त्रियाँ विवाहित होने के बावजूद अपनी यौन जरूरतें पूरी करने के लिए विवाह के समय लिया – वचन तोड़ देते हैं। यह कर न सिर्फ वे अपने से नाइंसाफी करते हैं,बल्कि अपने जीवनसाथी को भी मौत के कुएँ में धकेल देते हैं।
6). नशा करनेवालों में भी एड्स के मामले बहुतायत में होते हैं। इसका कारण वह सुई होती है, जिसे वे बेझिझक एक-दूसरे से बाँट लेते हैं। समूह में किसी एक के भी एच.आई.वी.संक्रमित होने पर सभी को यह संक्रमण हो सकता है। उनका यौन व्यवहार भी उन्हें एच.आई.वी. से पीड़ित करा सकता है।
7). इस देश में खून की खरीद-फरोख्त भी एच. आई. वी. संक्रमण का एक बड़ा कारण है। लोग अपने प्रियजनों के लिए भी खून देने से बचते फिरते हैं और भाड़े के रक्तदाताओं से खून लेने की फिराक में रहते हैं। ये पेशेवर लोग, जो चंद पैसों के लिए अपना खून बेचते फिरते हैं, इस विश्वास के लायक नहीं होते। अपने चाल-चलन के कारण उनके एच.आई.वी. से पीड़ित होने की प्रबल आशंका होती है। इस बड़े खतरे के बावजूद लोग ऐसे समझौते कर लेते हैं । जबकि हर स्वस्थ वयस्क हर तीन महीने पर रक्तदान कर सकता है। भुगतता है बेचारा वह व्यक्ति जिसे खून की जरूरत पड़ती है।
8). जिन रोगियों को बार-बार खून चढ़ता है, उन्हें एच. आई. वी. संक्रमण होने की आशंका उसी अनुपात में बढ़ जाती है। हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, एप्लास्टिक अनीमिया और ब्लड कैंसर के मरीजों को एच. आई. वी. का खतरा सदा बना रहता है। इस जोखिम से बचने का एक ही उपाय है , जो रक्त लिया जाए वह स्वेच्छा से दिया गया हो और उसके एच.आई.वी. रहित होने की पुष्टि कर ली गई हो।
9). इंजेक्शन देने और खून का नमूना लेनेवाली सुइयाँ, एक्यूपंक्चर, गोदने और कान भेदने में प्रयोग की जानेवाली सुइयाँ तथा किसी भी और रूप में इस्तेमाल में आनेवाली सुइयाँ एच. आई. वी. से संक्रमित हो सकती हैं और वायरस को फैला सकती हैं।
10). चिकित्साकर्मी जो दिन-रात रोगियों के खून के संपर्क में आते रहते हैं, सदा इस जोखिम को झेलते हैं। यद्यपि उनके बचाव के लिए सर्जिकल दस्ताने और दूसरी डिस्पोजेबल चीजें बनी हुई हैं पर सच्चाई यह है कि अक्सर ही इन चीजों की उपलब्धता संदिग्ध बनी रहती है और दूसरे कभी-कभी दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं, जिससे उन पर संकट मंडराता रहता है।
11). एच.आई.वी. गर्भवती माँ से बच्चे में भी जा सकता है और स्तनपान करा रही कोई माँ अगर एच.आई.वी., पीड़ित हो, तो उसके दूध से बच्चे को यह संक्रमण हो सकता है।
क्या छूने या हवा में साँस लेने से फैलता है एच.आई.वी. ?
क्या किसी एच.आई.वी. पीड़ित व्यक्ति को छूने, उसके साथ भोजन करने, एक ही हवा में साँस लेने और साथ खेलने, उठने-बैठने से भी वायरस किसी के शरीर में पहुँच सकता है ?
नहीं, यह वायरस दूषित खून, वीर्य, योनि-द्रव्य, दूषित खून से सनी सुइयों और दूसरे शल्य औजारों और माँ से उसके गर्भस्थ या स्तनपान कर रहे शिशु में ही जाने का सामर्थ्य रखता है।
तब क्या नाई का उस्तरा-कैंची भी वायरस को फैला सकते हैं ?
यह संभावना साफ रद्द तो नहीं की जा सकती, लेकिन ऐसा होने का जोखिम बहुत कम है। यों भी अब अधिकतर हज्जाम उस्तरे में डिस्पोजेबल ब्लेड इस्तेमाल करने लगे हैं और अपने औजारों को डेटॉल में धोने लगे हैं, जिससे यह जोखिम न के बराबर रह गया है।
क्या एच.आई.वी. के शरीर में पहुंचने पर तुरंत एड्स हो जाता है ?
नहीं, इसमें कुछ महीनों से लेकर दस साल तक का समय भी लग जाता है। संक्रमण के सात साल के भीतर लगभग पचहत्तर प्रतिशत एच.आई.वी. पॉजीटिव व्यक्ति एड्स के लक्षण दर्शाने लगते हैं। लेकिन इससे पहले उन्हें खुद भी पता नहीं होता कि उन्हें एड्स होने वाली है। हाँ, एच. आई. वी. के लिए कहीं रक्त-परीक्षण हो जाए तो बात और है। अक्सर जब तक किसी के एच.आई.वी. संक्रमित या पीड़ित होने का पता चलता है, वह व्यक्ति दूसरे बहुत से लोगों को भी अपना वायरस दे चुका होता है।
यह कैसे पता चलता है कि कोई व्यक्ति एच.आई.वी. से संक्रमित हो चुका है ?
इसकी जाँच रक्त-परीक्षण से ही हो सकती है। पहले ‘इलाइजा’ टेस्ट किया जाता है और यह यदि पॉजीटिव हो, तो वेस्टर्न ब्लड टेस्ट से उसकी पुष्टि की जाती है।
एच.आई.वी. टेस्ट कहाँ कराए जा सकते हैं ?
हर बड़े शहर के कुछ चुनिंदा अस्पतालों में यह सुविधा उपलब्ध है। कोई भी व्यक्ति यहाँ जाकर अपनी जाँच करा सकता है। इन केंद्रों में पूरी जानकारी गोपनीय रखी जाती है ताकि व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर इसकी कोई आंच न आए।
क्या हर एच.आई.वी. पॉजीटिव व्यक्ति को एड्स होना निश्चित है ?
तकरीबन 75 प्रतिशत को संक्रमण के 10 साल के भीतर यह घातक रोग भुगतना पड़ता है। लेकिन बाकियों पर भी तलवार तो टॅगी रहती ही है।
एड्स के लक्षण (Symptoms of AIDS in Hindi)
एड्स हो जाने पर क्या-क्या लक्षण दिखाई देते हैं ?
- शरीर सूखता जाता है,
- दस्त और बुखार बराबर ही बने रह सकते हैं,
- खाँसी हो सकती है,
- शरीर पर जगह-जगह गाँठे हो सकती हैं,
- त्वचा पर हरपिज के पीड़ादायक छाले उठ सकते हैं,
- मुँह और गले में फफूंद उग सकती है,
- बार-बार निमोनिया हो सकता है,
- मेननजाइटिस हो सकती है,
- दिमाग पर असर हो सकता है,
- टी.बी. हो सकती है और कई प्रकार के संक्रामक रोग तथा कैंसर हो सकती है।
शंका होने पर एच.आई.वी. की जाँच की जाती है और अगर उसकी पुष्टि हो जाए, तो स्पष्ट हो जाता है कि एड्स हो गई है। यों अपने में कोई भी लक्षण एड्स का विशेष नहीं होता, उसके दूसरे भी कई कारण हो सकते हैं।
क्या एड्स का कोई इलाज नहीं है ?
फिलहाल कोई ऐसी दवा नहीं है जो एड्स को जीत सके। कोशिशें जारी हैं; कुछ विशेष वायरसरोधी दवाएँ भी निर्मित की गई हैं। लेकिन ये दवाएँ जिनमें ए. जेड. टी. प्रमुख है, सिर्फ चंद साँसें बढ़ा सकती – हैं, रोग दूर नहीं कर सकतीं।
हाँ, लक्षणों से लड़ने के लिए और बची हुई जिंदगी को कष्टरहित बनाने के लिए डॉक्टर हर संभव कोशिश करते हैं।
क्या एड्स के रोगी की देखभाल करना खतरनाक होता है ?
नहीं, सिर्फ यह सतर्कता जरूरी है कि रोगी का खून या कोई दूसरा शारीरिक द्रव्य तीमारदार के सीधे संपर्क में न आने पाए।
परिवारजनों का फर्ज़ है कि इन कठिन घड़ियों में रोगी की दिल से सेवा-सुश्रूषा करें, उसकी भावनाओं का आदर करें और उसके साथ किसी तरह की छुआछूत न करें। मात्र शारीरिक स्पर्श से एच.आई.वी. का संक्रमण कभी नहीं होता।
क्या एड्स की रोकथाम के लिए कोई टीका बन सका है ?
नहीं, यद्यपि दुनिया की कई प्रयोगशालाओं में इस पर कोशिश – जारी है।