Last Updated on July 22, 2019 by admin
होम्योपैथी चिकित्सा क्या है ? Homeopathy Treatment in Hindi
आज चिकित्सा विज्ञानमें जैसे एलोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी आदि चिकित्सा-पद्धतियाँ प्रचलित हैं, उसी प्रकार होमियोपैथी भी एक अद्भुत चिकित्सा-प्रणाली के रूपमें प्रचलित है। होमियोपैथी की दवा साबूदाने-जैसी मीठी-मीठी गोलियों के नामसे जानी जाती है।
होमियोपैथीके प्रणेता डॉ० हैनीमैन (१७५५- १८४३ ई०) थे, जो जर्मनीके निवासी थे। डॉ० हैनीमैन ऐलोपैथीमें एम्०डी० उपाधिप्राप्त चिकित्सक थे। उन्होंने दस वर्षों तक एलोपैथी की चिकित्सा के दौरान यह अनुभव किया कि इस पद्धति में रोग को तेज दवाओं से दबा दिया जाता है, जो आगे चलकर घातक दुष्परिणामों के रूप में उभरता ही रहता है। एक बीमारी हटती है तो दूसरी उठ खड़ी होती है, फिर तीसरी और अन्त में ऐसी जटिल बीमारी हो जाती है कि वह असाध्य रोग की श्रेणीमें आ जाती है। इन घटनाओं से डॉ० हैनीमैन के अन्तर्मन में नफ़रत पैदा होते ही उन्होंने ऐलोपैथी की चिकित्सा को हमेशा के लिये छोड़ दिया और सन् १७९० ई० से दिन-रात एक करके एक निर्दोष एवं सार्थक चिकित्सा-प्रणाली की खोज में अपना पूरा जीवन खपा दिया, अन्त में इन महापुरुष डॉ० हैनीमैनने पीडित मानवता की सेवा के लिये होमियोपैथी चिकित्सा विज्ञानजैसी संजीवनी विद्या खोज ही निकाली।
होमियोपैथी चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्त और फायदे : Homeopathy ke Fayde in Hindi
(१) मानव का जो स्थूल शरीर हमें दीखता है, वह अति सूक्ष्म तत्त्वों से बना है। रोग का प्रारम्भ स्थूल शरीर में नहीं होता, पहले रोग सूक्ष्म शरीर में आता है। यदि सूक्ष्म शरीर (जीवनी शक्ति–वाइटल फोर्स) स्वस्थ है, सबल है, रेजिस्टेन्स पावर (रोगप्रतिरोधक शक्ति) मजबूत है तो रोगका आक्रमण सूक्ष्म शरीर पर नहीं हो सकता और स्थूल शरीर स्वस्थ बना रहता है। किंतु यदि हमारी जीवनी शक्ति (सूक्ष्म शरीर आन्तरिक शक्ति) अस्वस्थ है, निर्बल है तो रोग पहले भीतरी शक्तिपर आक्रमण कर उसे और निर्बल कर देता है, फिर स्थूल शरीरपर विभिन्न अङ्गों में रोगों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। जैसे-सिर-दर्द, पेट-दर्द, सर्दी-जुकाम, खाँसी, कै-दस्त, बुखार इत्यादि।
यदि उपचार से इस सूक्ष्म शरीर (जीवनी शक्ति)को रोगमुक्त कर लिया जाता है तो स्थूल शरीर अपनेआप रोगमुक्त हो जाता है।
होमियोपैथीकी शक्तीकृत दवा सूक्ष्म रूपमें ही होती है। अत: सूक्ष्म तत्त्वपर सूक्ष्म तत्त्वका ही स्थायी प्रभाव पड़ता है और रोगी रोगमुक्त हो जाता है।
(२) स्वस्थ शरीरमें जो औषधि रोगके जिन लक्षणोंको उत्पन्न करती है, यदि रोगीमें वैसे ही लक्षण पाये जाते हैं तो वही औषधि होमियोपैथीके शक्तीकृत रूपमें (सूक्ष्म रूपमें) उन लक्षणों को ठीक कर देगी, बीमारी का नाम चाहे कुछ भी क्यों न हो। इस सिद्धान्त को एक उदाहरण द्वारा नीचे स्पष्ट किया जा रहा है
जैसे स्वस्थ शरीरमें संखिया (आर्सेनिक) बेचैनी पैदा करता है, शरीरमें जलन उत्पन्न करता है, बारबार प्यास लगती है, इस तरहके अनेक लक्षण पैदा करता है। होमियोपैथी के सिद्धान्त के अनुरूप यदि वैसे ही लक्षण किसी रोगी में पाये जाते हैं तो इन लक्षणों को होमियोपैथी की आर्सेनिक नामक शक्तीकृत दवा दूर कर देगी। उपर्युक्त लक्षण चाहे हैजे में हों, सर्दी जुकाम-बुखार में हों, पेटके अल्स रमें हों, सिरदर्द में हों या कैंसर में हों। बीमारी के नामसे कोई मतलब नहीं बीमारीका नाम चाहे जो हो-रोगी के ये लक्षण आर्सेनिक नामकी होमियोपैथीकी दवा से ठीक हो जायँगे और रोगी रोग मुक्त होगा।
(३) होमियोपैथी में रोग का नहीं, रोगी का इलाज होता है। रोगी के लक्षणों को प्रधानता दी जाती है, बीमारी के नाम को नहीं।
(४) होमियोपैथी के उपचार का आधार खासतौर से पुराने-जीर्ण (क्रानिक) तथा असाध्य कहे जानेवाले रोगों के लिये रोगी की केस हिस्ट्री लेते समय उनके लक्षणोंकी प्राथमिकताका क्रम इस प्रकार रहता है
(अ) मानसिक लक्षण। (ब) सर्वाङ्गीण लक्षण यानी व्यापक लक्षण, जो पूरे शरीरको पीडाका बोध कराता हो।
(स) अङ्ग-विशेषके लक्षण। (द) कोई असाधारण या विलक्षण लक्षण। (इ) रोगीकी प्रकृति।
नये रोगियों में अथवा अबोध बच्चों तथा आकस्मिक असामान्य स्थिति में मौजूदा रोगी की स्थिति एवं मौसम के अनुरूप रोगीको तात्कालिक लाभ देने हेतु सामयिक चिकित्सा-व्यवस्था की जाती है, ताकि रोगी को शीघ्र लाभ हो सके।
होमियोपैथी दवा का शक्तिकरण (Potentialisation) :
सभी पैथियोंमें औषधियाँ मूलत: सब वही होती हैं, भेद केवल इनके निर्माण एवं प्रयोगमें होता है।
होमियोपैथिक दवा बनानेकी विधि बड़ी ही विचित्र है। इस विधिमें औषधि के स्थूल रूपको इतने सूक्ष्मतम रूपमें परिवर्तित कर दिया जाता है कि दवाकी तीसरी शक्तीकृत दवामें दवाका स्थूल अंश तो क्या, दवाके सूक्ष्म अंश का भी पता नहीं चलता।
होमियोपैथी की किसी भी शक्तीकृत दवामें ६ शक्ति के बाद दवाके अणु-परमाणु भी नहीं देखे जा सकते, दवाकी आन्तरिक अदृश्य शक्ति जाग्रत् हो जाती है और इस तरह दवाकी आन्तरिक जीवनी शक्ति रोगी को ठीक करती है।
होमियोपैथी की शक्तीकृत दवा ६ शक्तिके बाद ३०, २००, १०००, १०,०००, ५०,००० तथा १ लाख पावर (पोटेन्सी)-वाली होती है। इन उच्चतर शक्तीकृत दवाओं में दवाका नामोनिशान ही नहीं रहता, जबकि ये सूक्ष्मतम अदृश्य शक्तिरूपा होमियोपैथिक दवाइयाँ पुराने, जटिल तथा असाध्य कहे जानेवाले रोगोंको जड़मूल से स्थायी रूपसे नष्ट कर देने का सामर्थ्य रखती हैं तथा उस रोग जन्य अन्तरङ्गको Regenerate करनेकी क्षमता भी रखती हैं।
होम्योपैथी दवाओं का परीक्षण (Proving of Drugs) :
कौन-सी औषधि स्वस्थ व्यक्तिमें क्या लक्षण पैदा करती है, डॉ० हैनीमैन ने ही इसका आविष्कार किया।
होमियोपैथी की अधिकांश दवाका डॉ० हैनीमैन ने स्वयं तथा अपने कई स्वस्थ सहयोगियों पर परीक्षण किया-उनमें जो-जो शारीरिक तथा मानसिक लक्षण उत्पन्न हुए, उनका सम्पूर्ण रेकार्ड किया गया। इस प्रकार परीक्षित होमियोपैथिक शक्तीकृत दवाओंका जो सजीव चित्रण संकलित किया गया, उस ग्रन्थका नाम होमियोपैथिक मैटेरिया-मेडिका रखा गया। चूंकि होमियोपैथिक दवाओंके परीक्षण का आधार स्वस्थ मानव-शरीर रहा है। अतः जबतक मानव पृथ्वीपर है, होमियोपैथीकी वे ही दवाइयाँ सदियोंतक चलती रहेंगी। ऐलोपैथी दवा बार-बार इसलिये नयी-नयी बदलती रहती है कि उसके परीक्षणका आधार चूहे, बंदर, गिनीपीग-जैसे जानवर तथा रोगी होते हैं।
होमियोपैथिक दवा के चयन का सिद्धान्त :
सिद्धान्त रूपसे होमियोपैथ का काम ऐसी औषधिका निर्वाचन करना है, जिसके लक्षण हूबहू रोगीके
लक्षणों से मिलते हों। जब रोगी के लक्षणों और औषधि के लक्षणों में अधिक-से-अधिक साम्यता, समानता, एकरूपता पायी जाती है तो वही औषधि रोग को दूर करेगी।
औषधि और रोगीका वैयक्तिकीकरण (Individualisation) करना होमियोपैथीका सिद्धान्त है। इसी सिद्धान्त के आधार पर होमियो पैथ रोगी द्वारा बताये गये सम्पूर्ण लक्षणों को ध्यान में रखकर ही उपयुक्त औषधि एवं दवाकी पोटेन्सी (पावर)-का चयन करता है। यह चयन प्रक्रिया होमियोपैथ के अध्ययन और अनुभवपर आधारित रहती है।
होमियोपैथी चिकित्सा-प्रणाली के बारे में कुछ व्यावहारिक जानकारी : Homeopathy ke Niyam
(१) होमियोपैथिक दवाकी कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती है। (यदि दवाको धूप, धूल, धुंआ, तेज गन्ध तथा केमिकल्स से बचाकर रखा जाय तो यह दवा कई वर्षोंतक चलती रहेगी।)
(२) इस दवाके कोई साइड इफेक्ट (दुष्प्रभाव) नहीं होते हैं।
(३) इस दवा में कोई विशेष परहेज नहीं होता है। केवल तेज गन्धवाली वस्तुओंसे परहेज करना है।
(४) दवाको हाथ नहीं लगाना चाहिये, शीशीके ढक्कन से या सफेद कागजके टुकड़ेपर लेकर सीधे
मुँह में डालकर चूस लेना चाहिये। साधारणतः बड़ों को | चार गोली तथा बच्चोंको दो गोली।
(५) दवा लेनेके १५-२० मिनिट पहले तथा दवा लेनेके १५-२० मिनिट बादतक मुँहमें कुछ भी नहीं डालना चाहिये। भोजनमें ३०-३० मिनिटका पहले और बादमें समयका ध्यान रखना है।
(६) चाय-काफी-तंबाकू-पान-प्याज-लहसुन इनपर कोई बंदिश नहीं है, परंतु ध्यान रखें दवा लेनेके आधा घंटा पहले तथा दवा लेनेके आधा घंटा बादतक इनका उपयोग नहीं करें, अन्यथा तेज गन्ध दवाके पावरको कम कर सकती है।
(७) किसी भी कारण से आवश्यकता पड़नेपर यदि कोई अन्य पद्धतिकी दवाका प्रयोग करना पड़े तो उस समयतक के लिये होमियोपैथिक दवा बंद कर देनी चाहिये। उसके बाद दूसरे दिनसे पुनः यथावत् चालू कर सकते हैं।
(८) होमियोपैथी चिकित्सा-प्रणाली में रोगीके लक्षणों के आधारपर ही उपचार किया जाता है। लक्षणोंद्वारा ही अङ्ग-विशेष के रोगग्रस्त होने की जानकारी हो जाती है। इसी कारण साधारणत: अकारण रोगीकी भारी-भरकम खर्चीली जाँचें नहीं करायी जाती हैं।होमियोपैथिक चिकित्सा पद्धति सरल है, सस्ती है। और पुराने रोगों में स्थायी लाभ देनेका सामर्थ्य रखती है।
(९) होमियोपैथी चिकित्सा के बारेमें आवश्यक जानकारी के अभावमें कुछ लोगों में भ्रम, भ्रान्तियाँ तथा गलत धारणाएँ फैली हुई हैं, जिसकी वजहसे वे होमियोपैथी चिकित्सा कराने में हिचकिचाते हैं, उनके द्वारा अक्सर ऐसा कहा जाता है कि
(अ) होमियोपैथी दवा देरसे असर करती है।
(ब) होमियोपैथी में पहले रोग को बढ़ाया जाता है।
(स) होमियोपैथिक दवा से तात्कालिक लाभ नहीं होता है तथा दवा काफी लंबे समयतक लेनी पड़ती है।
(द) होमियोपैथी दवा समयपर बार-बार दिनमें कई बार लेनी पड़ती है।
(इ) कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इतने बड़े शरीर में ४-५ साबूदाने-जैसी गोली क्या असर करेगी?
ऐसी कई भ्रान्तियों एवं गलत धारणाओं के कारण होमियोपैथी की सही जानकारीके अभाव में रोगी तात्कालिक एवं क्षणिक लाभके लिये इधर-उधर भटकनेके उपरान्त अन्त में स्थायी लाभ के लिये होमियोपैथी चिकित्साके लिये आते हैं और जब वे इस संजीवनी चिकित्साविद्या से लाभान्वित होते हैं तो फिर इसे छोड़कर दूसरी चिकित्सा-पद्धति नहीं अपनाते ।
होम्योपैथी दवाओं के नुकसान : Homeopathy ke Nuksan
1-चिकित्सक द्वारा दी गई दवाईयों का सेवन अगर सिमित समय सीमा से अधिक समय तक किया जाए, तो इसका ओवर डोज रोगी के लिए नुकसानदायक भी हो सकता है।
2-आपातकाल स्थिति जैसे सर्जरी या अन्य स्थियों में, जब मरीज को तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है, तब होमियोपैथी आपकी कोई मदद नहीं कर सकती।