Last Updated on July 22, 2019 by admin
★ मनुष्य की जीवनशक्ति(jeevan shakti) जितने अंश में विकसित होती है, उतना ही वह आदमी हर क्षेत्र में सफल होता है । जीवनशक्ति जिन कारणों से विकसित होती है, वे कारण अगर समझ में आ जाय तो जीवन की तमाम गुत्थियाँ खोलने में आदमी सफल होता है और जिन कारणों से जीवनशक्ति का ह्रास होता है वे कारण अगर समझ में आ जाय तो ह्रास के कारणों को समझनेवाला ह्रास से बच जाता है ।
★ विकास के कारणों को समझने वाला उसका फायदा उठाता है । कोई चोट लगती है तो घाव दवाइयों से नहीं भरता, घाव जीवनशक्ति से भरता है । दवाइयाँ तो बेक्टेरिया-कीटाणु आदि का प्रकोप न हो, इसकी सुरक्षा करती हैं ।
★ हमारे कुछ क्रिया-कलाप से जीवनशक्ति का विकास होता है, और कुछ ऐसे क्रिया-कलाप हैं, जिनसे जीवनशक्ति का ह्रास होता है । प्राकृतिक जीवन जीने से जीवनशक्ति का विकास होता है । इन्द्रिय संयम करके ईश्वराभिमुख होने से जीवनशक्ति का विकास होता है, इन्द्रियों को छूटछाट देकर परफ्यूम आदि का उपयोग करने से जीवनशक्ति का नाश होता है । जो परफ्यूम आदि का ज्यादा उपयोग करते हैं, उनका मन और इन्द्रियाँ उनके काबू में नहीं रह सकते ।
★ गीताकार भगवान श्रीकृष्ण ने कहा :
‘पुण्योगंधः पृथिव्यां च…।
‘पृथ्वी में पुण्यशाली गंध मैं हूँ ।
सुगंध नहीं कहा । सुगंध तो परफ्यूम में हो सकती है । पृथ्वी में पुण्यशाली गंध है । जिस गंध से मन प्रसन्न हो और सात्त्विकता की तरफ जाय वह पुण्यशाली गंध है और भगवान कहते है कि ‘वह मैं हूँ । परफ्यूम की सुगंध पुण्यशाली गंध नहीं है । क्योंकि वह जीवनशक्ति का ह्रास करती है । वह दुःखदायी गंध है । जितने भी परफ्यूम है, जीवनशक्ति को क्षीण करनेवाले हैं, विकास करनेवाले नहीं ।
★ पहले के जमाने के लोग संयमी और कुदरती जीवन जीते थे इसलिए हमारे बाप दादाओं की आयु लम्बी रहती थी । अभी हम शहरों में तंग बस्ती में रहते हैं इसलिए हमें शुद्ध ऑक्सिजन नहीं मिलता । दुर्बल मन के व्यक्तियों के बीच जीते हैं तो हमारी जीवन शक्तियाँ नष्ट होती हैं । हम जो भी श्वास लेते हैं वह समष्टि से लेते हैं और समष्टि में जैसे लोग बसते हैं, उन्हीं के आंदोलनों का मिश्रण हमारे सांसों में आता है और उसका हमारे मन पर प्रभाव पडता है ।
★ इसलिए बुद्धिमान लोग एकांत मे चले जाते हैं अथवा खुले वातावरण में मौका पाकर चले जाते हैं । बुद्धिमान माताएँ अपनी गोद में बच्चा रोता है तो तुरंत बाहर आती है, प्रांगण में टहलती हैं । खुल्ली हवा में आने से बच्चे की जीवनशक्ति को सहायता मिलती है और बच्चे का रुदन बंद हो जाता है । उसके चित्त की खिन्नता और अशांति दूर हो जाती है ।
★ योगी पुरुष भी हिमालय में, नर्मदा किनारे, सरिता के किनारे रहना पसंद करते हैं । क्योंकि वहाँ खुल्ली हवा है । सूर्य की किरणें मिल रही है, चँदा की चाँदनी मिल रही है । इससे जीवनशक्ति का विकास होता है । जीवनशक्ति विकसित है तो योग में और योगेश्वर को पाने में सफलता मिलती है । जीवनशक्ति एक उर्जा है । जैसे Electricity है, जिससे आप बर्फ भी बना सकते हैं, आईसक्रीम भी बना सकते हैं और कतलखाना भी चला सकते हैं, यह आप पर निर्भर है ।
★ पावरहाउस की शक्ति तो शक्ति ही है । ऐसे ही जीवनशक्ति (jeevan shakti)आपके अंदर काम करती है । गलत कारणों से जीते हैं, गलत निमितों से जीते हैं या सोचते हैं तो जीवनशक्ति का बिगाड व ह्रास होता है । ठीक ढंग से जीते हैं तो जीवनशक्ति का सदुपयोग होता है । जीवनशक्ति का विकास करने की तरकीब आ जाय तो वह विकसित होती है ।
★ जब हम प्रेम से बरते हैं, धन्यवाद से भरते हैं, हाथ ऊपर की ओर करते हैं तो प्राणशक्ति, मनःशक्ति, जीवनशक्ति ऊध्र्वगामी होती है । उसका अद्भुत विकास होता है और यही कारण है कि गौरांग के प्यारे, हरि के दुलारे भक्त हाथ ऊपर करते हैं, ‘हरि बोल” कहते हैं तो जीवनशक्ति बढती है, छलकती है और आनंद का अनुभव होता है । यह प्रत्यक्ष बात है ।
★ घृणा से, ग्लानि से, चिंता से, काम-विकार से और भय से जीवनशक्ति का नाश होता है । भयभीत व्यक्तियों के बीच बैठने से जीवनशक्ति का विनाश होता है । उच्च कक्षा के व्यक्तियों के बीच बैठने से जीवनशक्ति का विकास होता है ।
★ हिटलर का, सीजर का चित्र देखने से जीवनशक्ति का विनाश होता है । अच्छे शांतिप्रद चित्र देखने से जीवनशक्ति का विकास होता है । जैसे श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान शिव, जगदंबा और सच्चे संत महात्माओं के चित्र देखने से जीवनशक्ति का विकास होता है । क्योंकि उनका चित्र देखने से हृदय में प्रेम, भगवद् भावना और ईश्वर की याद आ जाती है । इससे जीवनशक्ति का विकास होता है जबकि आत्मा अहंकार पोषने के लिए हजारों निर्दोष व्यक्तियों की हत्या करनेवाले हत्यारों के चित्रों को देखने से जीवनशक्ति का ह्रास होता है ।
★ रास्ते में आप चलते जा रहे हैं और मरा हुआ पशु देखा, किसी का वमन देखा अथवा मलमूत्रादि देखा तो उस समय आपके चित्त में ग्लानि आती है । इससे जीवनशक्ति (jeevan shakti)के कुछ अंश क्षीण होते हैं । उस समय क्या करें ? महापुरुषों ने बताया कि सूर्यनारायण का स्मरण कर लो, उनकी ओर निहार लो, अग्नि का दर्शन कर लो, अथवा भगवान या किसी संत के चित्र को निहार लो, भगवन्नाम जप कर लो । क्षीण होनेवाली जीवनशक्ति इससे बच जायेगी ।
★ इन छोटी-छोटी बातों को अगर हम नहीं जानते हैं तो कितने ही जप करते हैं, कितनी ही खुराक खाते हैं फिर भी मन और इन्द्रियों को रोकने की या जीवनशक्ति का ठीक उपयोग करने की क्षमता हमारे पास नहीं रहती ।
★ कामी व्यक्ति के आभामंडल में सात फुट की गोलाई में काम के परमाणु होते हैं । जैसे कामी के परमाणु होते हैं, ऐसे लोभी के, भयभीत के, अशांत व्यक्ति के भी होते हैं और उनके आवेग जीतने कमजोर और क्षणिक होते हैं उतने ही उनके परमाणु की योग्यता कम होती है । निष्काम, निर्भीक, शांत, उदार, दयालु, निरहंकार, क्षमाशील पुरुष के निर्भयता, दया, शांति, उदारता, प्रसन्नता आदि के दिव्य परमाणु होते हैं । जिनकी मनःशक्ति, जीवनशक्ति जितनी ठोस होती है उतनी उनकी व्यापकता अधिक होती है । यही कारण है कि काकभुशुंडजी जहाँ रहते थे वहाँ सवा कोष तक कलयुग को, अशांति को और जीवनशक्ति का ह्रास करनेवाले वातावरण को प्रवेश नहीं मिलता था ।
★ जैन धर्म के जानकार व्यक्तियों ने विकसित जीवनशक्ति वाले संतों को तीर्थंकर कहा है । तीर्थंकर माना तीर्थों को बनानेवाले । आज तक जो भी तीर्थ बने हैं वे या तो भगवान के प्यारे संतो के निवास के कारण बने हैं अथवा तो भगवान के चरणानविंद के कारण बने हैं । वह भूमि तीर्थ में बदल गयी है ।
-पुज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू (Pujya Asaram Bapu Ji)
श्रोत – ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका (Sant Shri Asaram Bapu ji Ashram)
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