क्यों पैदा होते हैं जुड़वां बच्चे | How are Twins Born ?

Last Updated on July 22, 2019 by admin

जुड़वाँ बच्चे कैसे पैदा होते हैं ?

जुड़वाँ यानी दो या उससे अधिक संतानों का एक ही बार में जन्म यह कोई सामान्य घटना नही हैं। मनुष्यों में प्राय: एक बार में एक ही सन्तान जन्म लेती है, लेकिन कई बार जुड़वाँ और अत्यल्प संख्या में तीन या उससे अधिक बच्चों ने जन्म लिया, यह हम देखते हैं। या सुनते हैं। सहज रूप से हमें उत्सुकता होती है। अक्सर हम एक जैसे दिखाई देने वाले जुड़वाँ लड़के या लड़कियों को देखते हैं और आश्चर्य व्यक्त करते हैं कि यह कैसे संभव होता हैं? एक जैसे दिखने की वजह से उनके जीवन में कई मजेदार घटनाएं होती हैं, अक्सर हम सुनते हैं व देखते हैं। इसे लेकर लोगों में इतनी उत्सुकता है कि इस पर अनेक फिल्में बनाई गई हैं। जुड़वाँ बच्चे का आकर्षण एक अलग ही भावना है। सैकड़ों शादीशुदा महिलाओं से पूछने पर यह ज्ञात हुआ कि उनमें से 70 प्रतिशत महिलाओं ने जुड़वाँ बच्चे होने की इच्छा व्यक्त की। यह बात अलग है कि उनमें से केवल 5 या 6 प्रतिशत महिलाओं की ही यह इच्छा पूरी हुई।

मुख्य सवाल यह है कि जुड़वाँ बच्चों का जन्म कैसे होता है? उसमें दो लड़के या दो लड़कियाँ या फिर एक लड़का और एक लड़की ये कैसे होते हैं? ये दोनों एक-समान या अलग-अलग कैसे दिखाई देते हैं? जुड़वाँ बच्चे होना अच्छा है या नहीं? ऐसे अनेक सवाल हमारे मन में आते हैं।
इस विषय में आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान द्वारा बताए गए तथ्यों में बहुत थोड़ा ही फर्क है, लेकिन पाँच हजार साल पहले निदान करने वाली सोनोग्राफी जैसी कोई मशीनरी उपलब्ध न होते हुए भी केवल निरीक्षण के आधार पर लगाया गया अनुमान भी कितना सही था, यह सोचना आवश्यक है।

जुड़वाँ बच्चों का जन्म आयुर्वेद की दृष्टी में :

गर्भाधान के समय यानी स्त्री और पुरुषों के बीजों के संयोग के रज का प्रभाव (स्त्रीबीज) अधिक होने से कन्या का जन्म होता है। अगर स्त्री और पुरुष बीजों का संयोग होने के बाद वे एक बीज दो भागों में बंट गया तो जुड़वाँ बच्चे जन्म लेते हैं।
संयुक्त बीज में शुक्र बीज की मात्रा अधिक होने के कारण या वायु के कारण वह दो भागों में विभाजित हो जाए तो दो पुत्र जन्म लेते हैं। रज की अधिकता ज्यादा हो तो दो कन्याएं जन्म लेती हैं।
बीज का विभाजन होने के समय रज प्रधान और शुक्र प्रधान भाग बराबर विभाजित हुआ तो एक कन्या और एक पुत्र जन्म लेते हैं। अगर गर्भाशय के स्थान में वायु का प्रकोप अधिक होगा तो दो से भी अधिक सन्ताने एक साथ जन्म ले सकती हैं।

वात की विकृति के कारण कभी-कभी इन बीजों का विभाजन सही ढंग से पूरा नहीं हो तो तब एक-दूसरे से जुड़े जुड़वाँ बच्चे जन्म लेते हैं। जुड़वाँ बच्चों का जन्म होना बुरा नहीं है। क्योंकि उन बच्चों का पूरा विकास हुआ है, उनमें कोई विकृति या विकार नहीं है तथा उनका शारीरिक तथा मानसिक विकास बाकी सभी सामान्य बच्चों की तरह ही होता है। इसलिये इसमें कुछ अजीब बात नहीं है।

जुड़वाँ बच्चों का जन्म आधुनिक चिकित्सा शास्त्र की दृष्टी में :

आधुनिक चिकित्सा शास्त्र का इस बारे में क्या विचार है? आइये, यह भी देखें स्त्री के शरीर में गर्भाशय के बाहर दायीं और बायीं ओर एक-एक ऐसे बीजांड कोष होते हैं जिनमें हर महीने स्त्री बीज तैयार होता है अर्थात यह स्त्री बीज दोनों ओर से बारी-बारी से निर्माण होते हैं। एक महीने में दायीं ओर के कोश से बीज का निर्माण हुआ है तो अगले महीने बायीं ओर के कोश से बीज का निर्माण होता है। कभी-कभी एक ही समय पर एक के बदले दो स्त्री बीज बनते हैं और दोनों ही बीज शुक्राणुओं द्वारा फलित हो जाते हैं, तब ऐसी स्थिति में जुड़वाँ गर्भ तैयार होता है।

अगर शुक्रबीज से x और x गुणसूत्र का स्त्री बीज से मिलन हुआ तो दोनों कन्याएं होती हैं। अगर दोनों शुक्राणु से गुणसूत्र मिलते हैं तो दो पुत्र होते हैं और एक शुक्राणु से x और दूसरे से y गुणसूत्र मिलते हैं तो एक कन्या और एक पुत्र का जन्म होता है।

आजकल बंध्यत्व के लिये जो अलग-अलग प्रकार की हार्मोनल दवाइयाँ दी जाती हैं, उनसे एक ही समय पर स्त्री के बीजांड कोष में एक से अधिक कोष (follicles) बढ़ने लगते हैं और अनेक स्त्रीबीज तैयार होते हैं। उस समय प्राकृतिक संबंध से या अप्राकृतिक वीर्य प्रवेश के बाद दो स्त्री बीज फलित होने से जुड़वाँ बच्चे होते हैं।

ये दो गर्भ दो अलग बीजों से तैयार हुए और दो अलग-अलग गर्भाशय में ढूंढकर वहाँ पर फलित हुए तो वे पूर्णत: स्वतंत्र होते हैं। उन्हें रस-रक्त की रसद देने वाली वार-नाल, उनके आस-पास होने वाली गर्भजल की झिल्ली, सब अलग-अलग होते हैं और ऐसे जुड़वाँ बच्चे स्वभाव तथा दिखने में एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न होते हैं। इसी को चिकित्सा विज्ञान की भाषा में Dizygotic या fraternal twins कहते हैं। दो अलग-अलग वर्षों में जन्मे छोटे-बड़े सगे भाई-बहन एक-दूसरे से अलग होते हैं। वैसे ही जुड़वाँ भाई-बहन होते हैं। इनमें दो भाई, दो बहनें या एक भाई और एक बहन ऐसा कुछ भी हो सकता है।

दुसरी महत्वपूर्ण बात जो देखने में रोमांचक है, लेकिन वास्तव में थोड़ी खतरनाक है, वह है एक जैसे दिखाई देने वाले जुड़वाँ बच्चे। इसे चिकित्सा विज्ञान की भाषा में monoZygotic या identical twins कहते हैं। अगर विश्वास करें तो आज से पाँच हजार साल पहले आयुर्वेद के ऋषि-मुनियों ने दिव्य दृष्टि और अभ्यासपूर्वक कुछ निरीक्षण किये जिसका उल्लेख आयुर्वेदीय शास्त्र में देखकर आश्चर्य होता है। क्योंकि शरीर में विशेषत: स्त्री के गर्भाशय की जगह वातदोष विकृत होने से अचानक embryo या संयुक्त बीज दो भागों में बंट जाने से दो गर्भ बनते हैं। यह identical twins के बारे में हू-ब-हू सही साबित होती है।

Identical twins में दो स्त्रीबीज और दो पुरुषबीज ऐसा अलग-अलग मिलाप न होते हुए शुरू में ही एक स्त्रीबीज (ovum) और एक पुरुषबीज (sperm) इनसे एक ही गर्भ (embryo) निर्माण होता हैं, परंतु किसी अनजान कारण से यह embyo दो भागों में बंट जाता है और दो स्वतंत्र गर्भ विकसित होने लगते हैं। हालांकि इसमें दोनों गर्भ का लिंग एक ही होता है। दो लड़के या दो लड़कियाँ। इसमें एक लड़का और एक लड़की ऐसा हो ही नहीं सकता।

संभावित खतरे :

सूक्ष्म गर्भ का विभाजन जितना जल्दी होगा, उतनी ही समस्या कम होती है लेकिन यह विभाजन जरा देरी से हुआ तो कुछ गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वे परिणाम क्या होते हैं, आइये जानें
स्त्री और पुरुष बीजों का मिलन होने के बाद पहले चार दिन के अन्दर उनका विभाजन हुआ तो जुड़वाँ बच्चे दो स्वतंत्र सामान्य जुड़वाँ बच्चों (dizygotic twins) की तरह बढ़ते हैं। उनकी वार, गर्भनाभि नाड़ी, उनके आस-पास रहने वाली गर्भजल की थैली सब अलग-अलग बनती है।

यह विभाजन चार से आठ दिन के बीच हुआ तो वार और गर्भनाड़ी कई बार एक होती है। गर्भ को ढकने वाली पतली थैली (chorion) एक ही होती है, लेकिन जल की थैली (amnion) अलग-अलग होती है
यह विभाजन आठ दिन के बाद हुआ तो दोनों गर्भ की वार, गर्भनाभि नाड़ी और जल की थैली ये सब एक ही होती हैं। ऐसे जुड़वाँ बच्चे एक समान दिखाई देते हैं यानी वे mirror image जैसे होते हैं।

यह विभाजन अगर 12 दिन के बाद हुआ तो फिर विकृति का निर्माण होने लगता है, फिर एक दूसरे से चिपके हुए जुड़वाँ बच्चे (सयामी) होते हैं। कभी ये जोड़ हाथों की ओर से होता है तो कभी पेट की ओर से। इसमें और भी क्या- क्या विकृतियां हो सकती हैं, यह बताना मुश्किल है। कभी-कभी दोनों गर्मों के मिलाकर दो ही हाथ होते हैं तो कभी हाथपैरों की लंबाई या उंगलियों की लंबाई सामान्य से ज्यादा कम होती है। ऐसी और भी कई समस्याएं हो सकती हैं।

संक्षिप्त में सूक्ष्म गर्भ का विभाजन (ferblization) के बाद जितना देरी से होगा, उतनी ही विकृति अधिक होती है और यह गर्भ और दोनों के लिये ही बहुत हानिकारक है। एकदूसरे से जुड़े होने के अलावा और अनेक विकृति लेकर जन्म लेने वाले जुड़वाँ बच्चे माँ-बाप पर जिंदगी-भर के लिये बोझ बन जाते हैं। क्योंकि उन्हें अलग करना लगभग असंभव ही होता है। यह आज तक अनेक सयामी जुड़वाँ बच्चों पर की गई शल्य क्रिया (operation) से सिद्ध हो चुका है। बहुत पीड़ा और तिरस्कार से भरा जीवन वह बच्चे और उनके माता-पिता जीते हैं। इसमें गलती इनमें से किसी की भी नहीं होती। क्योंकि गर्भ रहने के बाद माँ के पेट में क्या चल रहा है, यह किसी को नहीं पता। गर्भधारण हुआ है, जब तक यह माँ की समझ में आता है, तब तक गर्भाशय में सभी क्रियाएं हो चुकी होती हैं। इसलिये ऐसी विकृति केवल हमारा भाग्य है, यही माना जा सकता है।

एक-बार Sperm और ovum का मिलन होकर Zygote तैयार होने के बाद में पेशियों की संख्या इतनी तेज गति से बढ़ती है कि हम उसका अंदाजा नहीं लगा सकते। रात-दिन चौबीस घन्टे यह काम चालू रहता है। इसलिये पेशियों की संख्या कम होती है तो embryo का विभाजन होने से विकृति का निर्माण न होकर दो अच्छे और स्वस्थ जुड़वाँ बच्चे जन्म लेते हैं। लेकिन ferblization के बाद बारह या पंद्रह दिन तक पेशियों की संख्या बढ़ जाने के बाद शरीर की अलग- अलग संस्थाएं निर्माण करने की तैयारियाँ शुरू हो चुकी होती हैं, मस्तिष्क का विकास चालू होता है। इस समय embryo का अचानक विभाजन होने से स्वाभाविक विकृति होती है, लेकिन कुल मिलाकर जुड़वाँ बच्चों की संख्या कम होती है। उसमें भी ऐसे विकृत या सयामी जैसे जुड़वाँ बच्चों की संख्या और भी कम होती है, लेकिन जुड़वां बच्चों की पूरी जानकारी लेने के लिये यह सब समझ लेना जरूरी है।

अगर जुड़वाँ बच्चे dizygotic होते हैं तो पूरे नौ माह कुछ भी तकलीफ न होकर बच्चों का जन्म हुआ तो खुशियाँ-ही-खुशियाँ हैं। उनका एक साथ जन्म लेना, बढ़ना, बड़े होना, साथ खेलना, कपड़े और खिलौने बाँटना, इतना ही नहीं आगे चलकर अपने विचार, गुप्त बातें आपस में बाँटना, एक-दूसरे का ख्याल रखना, बहुत प्यार करना, मानसिक attachment आदि ये सारी बड़ी सुखद प्रक्रियाएं होती हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं।

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