Last Updated on December 11, 2020 by admin
काला जीरा क्या है ? (What is Black Cumin in Hindi)
काला जीरा शतपुष्पा कुल (अम्बेलिफेरी) की वनौषधि है । आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार यह दीपन द्रव्यों में श्रेष्ठ कही गई है अर्थात काला जीरा जठराग्नि को तीव्र और प्रज्वलित कर पाचन शक्ति को बढ़ाने में मददगार है ।
( और पढ़े – सफेद जीरा के औषधीय गुण और उपयोग )
काले जीरे का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Black Cumin in Different Languages)
kala jeera in –
- संस्कृत (Sanskrit) – कृष्ण जीरक, कृष्णाजाजी, काश्मीर जीरक।
- हिन्दी (Hindi) – काला जीरा, स्याह जीरा।
- गुजराती (Gujarati) – शाहजीरू।
- मराठी (Marathi) – शहाजिरे।
- बंगाली (Bangali) – शियजीरा।
- तामिल (Tamil) – शिमाई शिरगम।
- तेलगु (Telugu) – शीमाजिलकर।
- अरबी (Arbi) – कमूने अरमानी।
- फ़ारसी (Farsi) – जीरए स्याह।
- अंग्रेजी (English) – ब्लैक कैरवे (Black Caraway)।
- लैटिन (Latin) – केरम कारवी (Carum Carwi)।
काले जीरे का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :
काले जीरे का पौधा अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, ईराक के अतिरिक्त यहां काश्मीर, कुमाऊं, गढ़वाल आदि हिमालय के समीपवर्ती क्षेत्रों में पाया जाता है। इन स्थानों में इसकी खेती की जाती है।
काले जीरे का पौधा कैसा होता है ? :
- काले जीरा का पौधा – काले जीरे का वर्षायु क्षुप 2 से 3 फिट ऊंचा होता है। शाखाएं एकान्तर मृदु होती हैं।
- काले जीरे की पत्ती – काले जीरे के पत्र बहुखंडित दीर्घ होते हैं ।
- काले जीरे का फूल – काले जीरे के पुष्प स्वेत व छत्राकार होते हैं, जो श्वेत जीरे से कुछ छोटे होते हैं।
- काले जीरे का बीज – काले जीरे का बीज (फल) श्वेत जीरे से छोटे भूरापन लिये हुये काले, पतले धनुष के समान किंचित वक्र आयताकार, रेखाकार होते हैं।
- काले जीरे का फल – काले जीरे का फल शीर्ष और आधार पर क्रमशः नुकीले होते हैं। ये 3-7 मि.मी. लम्बे तथा 2 मि.मी चौड़े होते हैं बाह्य पृष्ठ पर हल्के रंग की पांच अनुलम्ब उन्नत स्पष्ट रेखायें होती है। इन रेखाओं के मध्यभाग अवनतोद (Concave) युक्त होते हैं। जिनमें 6 तैल नलिकाएं होती हैं बीजों में एक विशेष प्रकार की सुगन्ध होती है।
काले जीरे के प्रकार :
काले जीरे के अन्य दो प्रकार भी पाए जाते है जो क्रमशः a) विलायती काला जीरा और b) विषजीरा के नाम से जाने जाते है।
a). विलायती काला जीरा –
काले जीरे का एक विदेशी भेद विलायती कृष्ण जीरक स्याह जीरा (करुई फ्रक्टस-Carui Fructus) है यह मध्य एवं उत्तरी यूरोप में तथा ईरान में प्रायः सर्वत्र स्वयंजात पाया जाता है। हालेण्ड में इसकी अधिक खेती के जाती है। अमेरिका, अफ्रीका में भी यह बोया जाता है। भारत में इसका आयात मुख्यतः इग्लैण्ड और लेवांट से होता है ।
औषधीय दृष्टि से लेवांट का विलायती स्याह जीरा निकृष्ट माना गया है। विलायती कृष्ण जीरक में एक विशिष्ट प्रकार की सुगन्धि तथा स्वाद होता है। गुण धर्म देशी स्याह जीरे के समान ही होते हैं।
b). विषजीरा –
काले जीरे का ही एक भेद विषजीरा होता है। जो विशेष उग्र एवं विषाक्त है। कोई भ्रमवश इसे ही कालीजीरी (अरण्य जीरक) मान लेते हैं। इसे अंग्रेजी में हेमलेक तथा लेटिन में कोनियम मेक्युलेटम (Couiim Maculatatum) कहत हैं यह भारत में तथा यूरोप में अधिक होता है। इसका प्रयोग विशेषतः एलोपैथिक चिकित्सा में अधिक होता है। यह प्रायः बाह्य प्रयोगों में ही उपयुक्त होता है। इसका कुल भी उक्त जीरों (श्वेत एवं कृष्ण) के समान ही है। यह जीरा विशेष काला किंवा गहरा बादामी रंग का 1/8 इंच तक का लम्बा चपटा होता है।
विषजीरा के स्वास्थ्य लाभ –
- यह कटु तिक्त उष्ण वीर्य, वेदनानाशक स्पर्शज्ञाननाशक, आक्षेप निवारक एवं वातशामक है।
- इसका लेप लगाने से स्पर्शज्ञान कम हो जाता है तथा वेदना की शान्ति होती है।
- यह किसी स्थान विशेष में जमे हुए रक्त को बिखेर देता है।
- पेशी समूह पर इसकी क्रिया अफीम के समान होती है।
- अर्बुद, गलगण्ड, गुल्म, प्लीहोदर, श्लीपद आदि रोगों में तथा अपस्मार, कम्पवात, धनुर्वात आदि रोगों में वेदना व आक्षेप निवारणार्थ इसका लेप करना हितकारी है।
- बालक की मृत्यु हो जाने से स्त्री के स्तनों में जो दूध का जमाव हो जाता है और असह्य पीड़ा होती है उसे दूर करने के लिये इसका लेप उपयोगी है।
- पुरुष या स्त्री के कामोन्माद के निवारणार्थ तथा शुक्रमेह में इसका लेप जननेन्द्रिय पर किया जाता है।
- आक्षेप (रोग जिसमें हाथ पैर रह-रहकर ऐंठतें और काँपते हैं) निवारणार्थ एवं वेदना को कम करने के लिये उक्त रोगों में इसका कुछ आभ्यन्तर प्रयोग भी किया जाता है।
आभ्यन्तर उपचारार्थ इसका अर्क या टिंचर दिया जाता है। 500 मि. ग्राम. से अधिक मात्रा में इसे सेवन करने पर पक्षाघात की सी स्थति होकर दम घुटने लगता है और श्वासावरोध होकर मृत्यु तक हो जाती है। अतः इसके आभ्यान्तर प्रयोग में पूर्ण सावधानी रखनी चाहिए।
काले जीरे पौधा का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Kala Jeera Plant in Hindi)
प्रयोज्य अंग – बीज।
अपमिश्रण – मंहगा होने के कारण काले जीरे में अनेक प्रकार की व्यावसायिक गड़बड़ियां मिलती है। इसमें तैल निकाले हुए फलों की मिलावट की जाती है। कभी-कभी पुराने हीन वीर्य फल भी मिलाये जाते हैं। जिनमें उत्पन्न तैल पहले से ही न्यून होता है। गाजर, सोया आदि के बीजों को रञ्जित कर असली कृष्ण जीरक में मिलाकर या अलग से कृष्ण जीरक के नाम से बेचे जाते हैं।
परीक्षण – असली काले जीरे को जानने के लिये उसका परीक्षण आवश्यक है। काले जीरे के पूर्व परिचय से इसकी परीक्षा कर लेनी चाहिए। उड़नशील तैल (Voletile Oil) निकाले हुए काले जीरे के रंग में अन्तर आ जाता है। वे अधिक काले पड़ जाते हैं तथा बाहर से सिकुड़े हुए होते हैं। इनमें उत्पत्त तैल निकल जाने के कारण सुगन्धि. कम पाई जाती है।
असली काले जीरे (कृष्ण जीरक) के फलों में गाजर, सोया के रञ्जित बीजों की मिलावट होने पर इन बीजों की आकृति रेखाएं खात, ग्रन्थियों का डिसेक्टिंग माइक्रोस्कोप की सहायता से अवलोकन कर निर्णय करना चाहिए। असली कृष्ण जीरक में वर्णित आकृति, रेखाएं, ग्रन्थियां सोया एवं गाजर के बीजों में नहीं होती। गाजर, सोया के रज्जित बीज गन्ध में असली कृष्ण जीरक के समान मनोरम उग्र गन्धि न होकर प्रायः गन्धहीन होते हैं।
काला जीरा सेवन की मात्रा :
मात्रा – 1 से 3 ग्राम।
काले जीरे का रासायनिक संगठन :
- काले जीरे एक सुगन्धित तैल 2 प्रतिशत होता है जिसके कारण तीक्ष्ण गन्ध आती है।
- इसमें उड़नशील तैल 7-8 प्रतिशत होता है।
- काले जीरे में स्थिर तैल और राल 6-10 प्रतिशत होता है।
काले जीरे के औषधीय गुण (Kale Jeere ke Gun in Hindi)
- रस – कटु।
- गुण – लघु, रूक्ष।
- वीर्य – उष्ण।
- विपाक – कटु।
- दोषकर्म – कफवात शामक।
( और पढ़े – जीरा के 83 बेमिसाल फायदे )
काले जीरे का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Kala Jeera in Hindi)
आयुर्वेदिक मतानुसार काले जीरे के गुण और उपयोग –
- काले जीरे एवं श्वेत जीरक के गुणों में प्रायः समानता है किन्तु यह अधिक सुगन्धित होने से श्वेत जीरक से श्रेष्ठ माना गया है गरम मसालों में इसका उपयोग होता है।
- काला जीरा दुर्गन्ध नाशक के अतिरिक्त दीपन-पाचन, रेचन, ग्राही एवं उत्तम वातानुलोमन है।
- यह मुख दुर्गन्ध, अरुचि, वमन, अग्निमांद्य, अजीर्ण, आध्मान, संग्रहणी आदि रोगों में हितावह है। द्विजीरकादि वटी उक्त रोगों की श्रेष्ठ औषधि कही जा सकती है ।
- काला जीरा हृद्य और शोथहर होने से हृदय की दुर्बलता एवं शोथपरक व्याधियों में उपयोगी है ।
- काला जीरा ग्रहणी एवं कृमिनाशक भी कहा गया है।
- प्रसूतिकारों में यह गर्भाशय शोधन, स्तन्यजनन एवं दीपन के लियेकाला जीरा प्रयुक्त होता है।
- जीर्णज्वर में काले जीरे का प्रयोग करने से ज्वर शान्त होता है, अग्नि बढ़ती है तथा अन्न का पाचन ठीक होने से बल बढ़ता है।
- सन्निपातज्वर के ही एक अभिन्यास ज्वर में उद्वर्तन हेतु श्वेत जीरक के साथ काले जीरे को उपयोग में लाना हितकारी है ।
- प्रसव के बाद काले जीरे का क्वाथ सेवन करने से गर्भाशय संकुचित होता है।
- काला जीरा कृमियों के लिये हितकर है।
- विषमज्वर, ग्रहणी अग्निमांद्य, अजीर्ण और अतिसार में काला जीरा चित्रक के साथ सेवन किया जाता है।
- हाथ पैरों में हुए शोथ (सूजन) को इसका प्रलेप नष्ट करता है।
- कपड़ों में काले जीरे के बीज रखने से कपड़े कीड़ों के खाने से बच जाते हैं।
यूनानी मतानुसार काले जीरे के गुण और उपयोग –
- काला जीरा दूसरे दर्जे में गरम और खुश्क है।
- यह गरमी पैदा करता है, कफ को मिटाता है।
- काला जीरा अफरे को दूर करता है।
- काला जीरा भूख बढ़ाता है।
- यह मूत्र को खोलता है और रज का प्रवर्तन करता है।
- काले जीरे को मुख में चबाकर इसके रस को आंख में डालने से आंख में जमा हुआ खून पिघल जाता है।
- काले जीरे के काढ़े के कुल्ले करने से दांतो का दर्द मिटता है।
- यह कृमियों को भी नष्ट करता है।
- काला जीरा हिचकी को मिटाता है।
- काला जीरा गर्भाशय की सूजन को मिटाता है।
- काला जीरा बवासीर के मस्से और जुकाम में यह लाभ करता है।
रोगोपचार में काले जीरे के फायदे (Benefits of Kala Jeera in Hindi)
1). बवासीर (अर्श) में फायदेमंद काले जीरे का प्रयोग
- काले जीरे के क्वाथ से सेक करें।
- काले जीरे की पुल्टिस बनाकर सुखोष्ण बांधे।
2). गर्भाशय की सूजन दूर करने में लाभदायक काला जीरा
- काले जीरे के क्वाथ में स्त्री को बिठाने से गर्भाशय के शोथ-शूल का शमन होता है।
- काले जीरे के द्वारा बनाया शर्बत पीना हितकर है।
3). सर्दी-जुखाम मिटाए काले जीरे का उपयोग
काले जीरे के क्वाथ के वाष्प का नस्य लेने से सर्दी-जुखाम में लाभ होता है ।
4). दन्तशूल (दात दर्द) में काले जीरे के इस्तेमाल से फायदा
काले जीरे के क्वाथ के गण्डूष (कुल्ले) करने चाहिये।
5). नेत्रगत रक्तस्कन्दता में फायदेमंद काले जीरे का औषधीय गुण
काले जीरे को मुख में चबाकर इसका रस नेत्र में डालने से जमा हुआ रक्त पिघल जाता है।
6). जीर्ण ज्वर में काले जीरे के इस्तेमाल से लाभ
काले जीरे के क्वाथ या चूर्ण के सेवन करने से ज्वर शान्त होकर आहार का पाचन ठीक होने लगता है।
7). हिचकी (हिक्का) दूर करे काला जीरा
काले जीरे के चूर्ण को सिरके में मिलाकर देना चाहिये।
8). जुलपित्ती (उदर्द) में काले जीरे से फायदा
काले जीरे और लामज्जक दोनों 5-5 ग्राम को125 मि. ली. जल में उबालकर अष्टमांश रहने पर छान लें, इस क्वाथ में 5 ग्राम शक्कर मिलाकर रोगी को पिला दें। दो तीन बार के इस प्रयोग से जुलपित्ती (Urticaria) एवं कोठ कोथ (ग्रैंग्रीन) का प्रशमन हो जाता है।
9). मलेरिया बुखार मिटाए काले जीरे का उपयोग
काला जीरा, एलुआ, सोंठ, मरिच, बकायन की निबौली, करंज की मींगी सबको पानी में पीसकर चने के बराबर गोली बनारक रख लें। 3-3 घंटे से दिन में तीन बार देने से मलेरिया ज्वर उतर जाता है।
विलायती (विदेशी) काले जीरे के कुछ सामान्य प्रयोग :
- श्वास – विदेशी काले जीरे की अधिक मात्रा को मुख में रखकर चबाने से कफ का शमन होता है। इससे आध्मान और आमाशय शूल एवं आमाशय की निर्बलता से हुआ श्वास रोग ठीक हो जाता है।
- उदरशूल – विदेशी काले जीरे के क्षुप को कुचलकर रस निचोड़कर पिलाने से वातजन्य उदरशूल में लाभ होता है।
- जलोदर – रोग के आरम्भ में विदेशी काले जीरे के क्वाथ में जैतून का तेल मिलाकर सात दिन तक पान करने से लाभ होता है।
- अजीर्ण – विदेशी काले जीरे को शाक में डालकर सेवन करने से आध्मान व विष्टंभकारक दोष दूर होकर वे शीघ्र पचते हैं। यह आमाशय की आर्द्रता को नष्ट कर अजीर्ण में लाभ पहुंचाता है।
5.कब्ज – विदेशी काले जीरे को हरीतकी एवं एरण्डफल मज्जा के साथ क्वाथ बनाकर पीने से कब्ज एवं विबन्ध जन्य रोगों का शमन होता है।
काला जीरा से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :
1). जीरकासव –
काले जीरे के एक भाग चूर्ण में 5 गुना मद्यसार (SPIRIT) मिलाकर बोतल में भरकर अच्छी तरह कार्क बन्द कर रखें । सात या चौदह दिन बाद मोटे कपड़े से खूब निचोड़ते हुए छानकर शीशीयों में भरकर रखें।
15 से 60 बूंद तक थोड़े गर्म जल में मिलाकर इसके सेवन से विषमज्वर, जीर्णज्वर, अग्मिांद्य एवं वातजन्य सम्पूर्ण उपद्रव नष्ट होते हैं । रक्तपिक्त में इसे शक्कर के शर्बत के साथ देने से शीघ्र लाभ होता है। -धन्व. वनौ. विशे.
2). जीरक अर्क (एक्वाकारी डेस्टिलेटा) –
काले जीरे का “अर्क विधि” से तैयार अर्क पाचक कहा गया है। इससे अजीर्ण का शमन होता है।
मात्रा – 15 से 30 मि.ली.।
3). जीरक अवलेह –
कृष्ण जीरक (स्याहजीरा) भुना हुआ 50 ग्राम तथा दालचीनी, कालीमिर्च, श्वेतमिर्च, बूरा अरमनी 7-7 ग्राम, सुदाबपत्र 12 ग्राम, सोंठ का मुरब्बा 35 ग्राम, हरड़ का मुरब्बा 60 ग्राम, सूर्यतापी गुलकन्द 66 ग्राम, खांड 250 ग्राम व शहद 125 ग्राम लेकर प्रथम गुलकन्द व मुरब्बों को पीसकर, खांड मिलाकर, आग पर रखें। पाकसिद्धि पर शेष द्रव्यों का चूर्ण मिलाकर अवलेह तैयार करें। यह यूनानी ग्रन्थों में ज्वारस कमूनी कबीर के नाम से जाना जाता है।
यह उदर के वातविकार, वातिकशूल, आध्मान, अजीर्ण, हिक्का (हिचकी) , वातोदर आदि को नष्ट करता है। यह कुछ रेचक भी है।
इसकी मात्रा 7 ग्राम है। इसे सौफ अर्क के साथ उपयोग में लाना चाहिये।
काला जीरा के दुष्प्रभाव (Kala Jeera ke Nuksan in Hindi)
- काले जीरे का अत्यधिक मात्रा में सेवन उल्टी, दस्त और पेट में मरोड़ का कारण बन सकता है ।
- काले जीरे के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)