Last Updated on May 19, 2020 by admin
कपूर कचरी (शटी) क्या है ? : What is Hedychium spicatum (Kapur Kachri) in Hindi
चरकसंहिता में श्वासहर एवं हिक्का (हिचकी) निग्रहण गणों में इस कपूर कचरी (शटी) की गणना की गई है। यह हरिद्रा कुल (सिटेमिनेसी) की वनौषधि है।
कपूर कचरी (शटी) का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? : Where is Kapur Kachri Found or Grown?
कपूर कचरी विशेषतः हिमालय प्रदेश में कुमायू, नेपाल, भूटान आदि में 5-7 हजार फुट की ऊँचाई पर होती है। यह चीन में भी बहुतायत से होती है।
कपूर कचरी (शटी) का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Hedychium spicatum (Kapur Kachri) in Different Languages
Hedychium spicatum (Kapur Kachri) in –
- संस्कृत (Sanskrit) – शटी, पलाशी
- हिन्दी (Hindi) – कपूर कचरी
- बंगाली (Bangali) – कपूर कचरी
- गुजराती (Gujarati) – कपूर काचरी
- मराठी (Marathi) – कपूर काचरी
- लैटिन (Latin) – हेडिचियम स्पेकेटियम (Hedychium spicatum)
कपूर कचरी (शटी) का पौधा कैसा होता है ? :
- कपूर कचरी का पौधा – कपूर कचरी के सुन्दर बहुवर्षायु क्षुप हरिद्रा (हल्दी) के समान लगभग तीन फुट ऊँचा होता है।
- कपूर कचरी के पत्ते –पत्र लगभग एक फुट लम्बे, अनियत चौड़ाई के चिकने होते हैं।
- कपूर कचरी का फूल – पुष्प ध्वज-लगभग एक फुट लंबा होता है जिस पर मृदु रोमश श्वेतवर्ण के पुष्प रहते हैं। पुंकेशर हल्के लाल रंग का होता है।
- कपूर कचरी का फल – फल गोलाकार और चिकना होता है। इस पर वर्षा ऋतु में पुष्प और फल लगते हैं।
- कपूर कचरी की जड़ – इसका मूल जमीन में अनुप्रस्थ (आड़ा) दिशा में फैलता है जो सुगन्धित होता है। औषधि के रूप में इन्हीं का संग्रह किया जाता है। इस मूल (कन्द) को जल में औटाकर गोल-गोल टुकड़े कर सुखाकर रखते हैं ऐसा करने से ये कृमि आदि से दूषित नहीं हो पाते हैं।
बंगाल में इन टुकड़ों को कपूर कचरी या एकांगी कहते हैं। ये टुकड़े लगभग 1/2 इंच व्यास के, बाहर की ओर रुखड़ी रक्ताभ भूरी त्वचा से आवृत, भीतर के ओर श्वेतवर्ण तथा यत्रतत्र उपमूलों से युक्त होते हैं।
कचूर और कपूर कचरी के इन टुकड़ों में यही अन्तर है कि कपूर कचरी के टुकड़ों के किनारों पर इसकी छाल लगी होती है इस छाल पर श्वेत गोल गोल चिन्ह भी होते हैं।
कपूर कचरी के प्रकार :
भारतीय किंवा देशी तथा चीनी किंवा विदेशी भेद से कपूर कचरी दो प्रकार की होती है। ऊपर का वर्णन भारतीय कपूर कचरी का है। चीनी कपूर कचरी भारतीय की अपेक्षा आकार प्रकार में बड़ी अधिक श्वेत किन्त बहत कम चरपरी होती है। इसमें तीक्ष्णता भी भारतीय की अपेक्षा कम पायी जाती है। यह दीखने में सुन्दर किन्तु गन्ध और गुणों में भारतीय से घटिया है। कभी-कभी कपूर कचरी की अन्य अमान्य प्रजातियों के मूल संग्रह भी कपूर कचरी के नाम से कर दिया जाता है।
कपूर कचरी का स्वाद :
कपूर कचरी कडुवी, तेज व सुगंधित होती है।
कपूर कचरी की तासीर (प्रकृति) :
कपूर कचरी गर्म प्रकृति की होती है।
कपूर कचरी का उपयोगी भाग : Beneficial Part of Kapur Kachri in Hindi
जड़
सेवन की मात्रा :
कपूर कचरी की मात्रा 1 से 3 ग्राम है।
कपूर कचरी का रासायनिक विश्लेषण : Kapur Kachri Chemical Constituents
कपूरकचरी की जड़ में राल (रेजिन), सुगन्धित द्रव्य, एक स्थिर तैल, स्टार्च, म्युसिलेज, ऐल्ब्युमिन, सेलुलोज, एवं शर्करा आदि तत्व पाये जाते हैं।
कपूर कचरी के औषधीय गुण : Kapur Kachri ke Gun in Hindi
- रस – कटु, तिक्त कषाय।
- गुण – लघु, तीक्ष्ण।
- वीर्य – उष्ण।
- विपाक – कटु।
- दोषकर्म – कफवातशामक।
- यह श्वासहर, कासहर और हिक्कानिग्रहण है।
- तमक श्वास तथा इओसिनोफिलिया (उपसिप्रियता) की यह प्रशस्त औषधि है-“शय्यादि चूर्णं तमके चरकोक्तं प्रशस्यते”।
- कास (वातिक) को दूर करने हेतु शय्यादिलेह (व.नि.र.) प्रशस्त है।
- इसका ज्वरघ्न प्रभाव भी प्रशस्त है।
- शय्यादिगण को सन्निपात ज्वरघ्न कहा गया है।
- त्रिशतीकार ने अभिन्यास ज्वर को दूर करने के लिये शय्यादि क्वाथ का वर्णन किया है।
- यह रोचन, दीपन, शूल प्रशमन तथा ग्राही होने से अरुचि, छर्दि (उल्टी), अग्निमाद्य, उदरशूल, गुल्म एवं अतिसार आदि में उपयोगी है।
- चरक संहिता में जो शय्यादि चूर्ण एवं गुटिका वर्णित है ये दोनों योग गुल्म, प्लीहा, आनाह, अरुचि, अर्श आदि को दूर करने के अतिरिक्त कास, श्वास, हिक्का, हृद्रोग, हृच्छूल, कफोत्क्लेश (कफमिचली), पाण्डु, पार्श्वशूल, उदरशूल, बस्तिशूल, विविध शिर:शूल तथा सर्वदोषज प्रवाहिका में भी लाभदायक है।
- यह उत्तेजक होने से हृदयदौर्बल्य में, रक्तशोधक होने से रक्तविकारों में तथा त्वग्दोषहर (त्वचा रोग हरने वाला) होने से त्वग्दोषों में प्रयुक्त होती है।
- इसके अतिरिक्त कपूर कचरी बाह्य प्रयोगों में प्रयुक्त होकर शोथ का शमन करती है एवं वेदना को मिटाती है।
- कपूर कचरी के चूर्ण से मंजन करने से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है तथा दन्तशूल दूर होता है।
- सन्धि शोथ में कपूर कचरी का लेप किया जाता है।
- व्रणों तथा त्वचा के रोगों में भी कपूर कचरी का लेप या उबटन लाभप्रद होता है।
- कपूर कचरी के चूर्ण को तैल में मिलाकर लगाने से उड़े हुये बाल पुनः आने लगते हैं।
- शिरोरोगों में कपूर कचरी के चूर्ण को तैल में मिला कर उसका नस्य लिया जाता है।
- सिर पर लगाने के लिये प्रयुक्त तेल योगों में सुगन्धि के लिये भी कपूर कचरी डाली जाती हे।
- कई प्रकार के अबीर, बुक्का आदि बनाने में भी इकपूर कचरी का उपयोग होता है।
- घर की दुर्गन्ध तथा ग्रहबाधा निवारणार्थ कपूर कचरी के चूर्ण को धूप की तरह जलाते हैं।
कपूर कचरी के फायदे और उपयोग : Benefits of Kapur Kachri in Hindi
सर्दी-जुकाम (प्रतिश्याय) में आराम दिलाए कपूर कचरी का सेवन
कपूर कचरी (Kapur Kachri), भुई आमला, त्रिकटु ( सोंठ, मिर्च, पीपल) समभाग लेकर चूर्ण बनाकर दो ग्राम चूर्ण के साथ 6 ग्राम गुड़ तथा 6 ग्राम घृत मिलाकर सेवन करने से प्रतिश्याय, पार्श्वपीड़ा (निमोनिया) , हृदयशूल और बस्तिशूल (मूत्राशयशूल) का नाश होता है।
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खाँसी (कास) में लाभकारी है कपूर कचरी का सेवन
कपूर कचरी, काकड़ासिंगी, पीपली, भारंगी, नागरमोथा और धमासा के चूर्ण को गुड़ और तैल में मिलाकर सेवन करने से वातिक कास का शमन होता
श्वास रोग में कपूर कचरी से फायदा
कपूर कचरी, पीपलामृल, जीवन्ती, दालचीनी, मोथा, पुष्करमूल, तुलसी, भुई आमलकी, इलायची, पिप्पली, सोंठ और सुगन्धबाला का सम भाग चूर्ण बनाकर उसमें आठ गुनी शक्कर मिलाकर 4-5 ग्राम चूर्ण उष्णजल से सेवन करने से तमक श्वास एवं हिक्का में लाभ होता है।
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गुल्म (वायु गोला) मिटाए कपूर कचरी का उपयोग
कपूर कचरी, पोखरमूल, हींग, अम्लबेंत, चित्रक, यवक्षार, धनियाँ. अजवायन, विडंग, बालबच , सेंधानमक. चव्य, पीपलामूल, अनार, जीरा और अजमोद का चूर्ण गुल्म, प्लीहा, पार्श्वशूल आदि में लाभप्रद है।
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सन्निपात ज्वर में कपूर कचरी के सेवन से लाभ
कपूर कचरी (Kapur Kachri), पोखरमूल , छोटी कटेरी, सोंठ, दुरालभा, काकड़ासिंगी, पाढल, चिरायता. कुटकी का क्वाथ बनाकर पीने से सन्निपात ज्वर में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त यह खाँसी, पार्श्वशूल, श्वास आदि में भी हितकारक है। -च.सं.
अभिन्यास ज्वर में कपूर कचरी के इस्तेमाल से फायदा
कपूर कचरी, छोटी कटेरी. बेलगिरी, सोंठ, चित्रक, मंजीठ. रास्ना, कूठ, बनफ्सा, अडूसा, पीपली, बच इनका क्वाथ अभिन्यासज्वर में लाभप्रद है।
उल्टी (छर्दि /वमन) में कपूर कचरी का उपयोग लाभदायक
(क) कपूर कचरी (Kapur Kachri), दारुहल्दी, छोटी हरड़, सोंठ, पीपल का समभाग चूर्ण बनाकर 2-2 ग्राम चूर्ण को 6 ग्राम घी में मिलाकर सेवन करें इससे त्रिदोषज छर्दि का शमन होता है।
(ख) कपूर कचरी को गुलाबजल में पीसकर मटर जैसी गोलियाँ बनाकर दो-दो गोली थोड़ी-थोड़ी देर में
(ग) कपूर कचरी से चतुर्थांश सोनागेरु लेकर इन्हें सोंफ अर्क में घोटकर चने के बराबर गोलियाँ बनाकर ठण्डे पानी से पुनः पुनः देवें।
अम्लपित्त कम करने में कपूर कचरी करता है मदद
(क) कपूर कचरी, मुलेटी, आँवला, धनियाँ और मधर क्षार समान मात्रा में लेकर तीन-चार ग्राम चूर्ण दिन में दो तीन बार ठन्डे पानी से देने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
(ख) कपूर कचरी 10 ग्राम, आमलकी चूर्ण 20 ग्राम, अंविपत्तिकर चूर्ण 40 ग्राम मिलाकर 3-3 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार धान्यक हिम के साथ देना चाहिये।
अरुचि मिटाए कपूर कचरी का उपयोग
कपूर कचरी, सेंधानमक 100-100 ग्राम, सोंठ, जीरा 50-50 ग्राम, सोंफ 25 ग्राम और घी में सेकी हुई हींग 15 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर रखें। इस चूर्ण को 4 से 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से भोजन में रुचि उत्पन्न होती है।
अजीर्ण में कपूर कचरी के इस्तेमाल से लाभ
(क) कपूर कचरी (Kapur Kachri) का चूर्ण 2 से 3 ग्राम जल के साथ अथवा इसके क्वाथ के साथ ही सेवन करना चाहिये।
(ख) कपूर कचरी, सोंठ, सफेद जीरा, स्याह जीरा 50-50 ग्राम और कालीमिर्च, सेंधानमक 25-25 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर 2-3 ग्राम सेवन करने से अजीर्ण, अग्निमांद्य और अरुचि आदि रोग दूर होते हैं।
दस्त में कपूर कचरी के इस्तेमाल से फायदा –
3 ग्राम चूर्ण में समभाग शक्कर मिलाकर छाछ के साथ देने से अतिसार में लाभ होता है।
कपूर कचरी के दुष्प्रभाव : Kapur Kachri ke Nuksan in Hindi
- कपूर कचरी लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
- कपूर कचरी का अधिक मात्रा में उपयोग करना जिगर के लिए हानिकारक हो सकता है।
(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)