Last Updated on August 18, 2022 by admin
केवड़ा का सामान्य परिचय : Kevda in Hindi
केवड़े का फूल या भुट्टा सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। इसकी मनमोहिनी खुशबू भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से लोकप्रिय रही है । इसका पौधा गन्ने के पौधे की तरह होता है जिसके लम्बे-लम्बे पत्ते रहते हैं । इन पत्तों के किनारे पर कांटे रहते हैं । इसका भुट्टा १५ से २५ सेंटीमीटर तक लम्बा रहता है ।
विविध भाषाओं में नाम :
- संस्कृत – धूलिपुष्पिका, गन्धपुष्प, इन्दुकलिका, नृपप्रिया, केतकी ।
- हिन्दी – केवड़ा, केतकी ।
- बंगाल – केवरी, केतकी ।
- दक्षिण – केवड़ा ।
- गुजराती – केवड़ा ।
- तामील – केदगई, केदगी ।
- तेलगू – केतकी, गोजंगी ,उई-केवरा ।
- लेटिन – Pandanus Odoratissimus ( पेंडेनस ओडारेटिसिमस ) Pandanus Tectorius ( पेंडिनस टिवटोरियम ) ।
केवड़ा के औषधीय गुण और प्रभाव :
आयुर्वेदिक मत –
- आयुर्वेदिक मत से इसके पत्ते, तीक्ष्ण, कट और सुगन्धमय होते हैं ।
- ये विष नाशक कामोद्दीपक और पथरी तथा अबुद में लाभदायक होते हैं।
- इसका फूल कड़वा, तीक्ष्ण और शरीर-सौन्दर्य को बढ़ानेवाला होता है ।
- इसकी केशर फेफड़े के ऊपर की झिल्ली ( Pruritus ) के प्रदाह मे उपयोगी होती है।
- इसका फल वात, कफ और मूत्राशय की तकलीफों में फायदा करता है ।
- गाय के दूध में केवड़े की जड़ ६ माशे से तोला भर तक घिस कर शक्कर मिलाकर प्रतिदिन सबेरे शाम पीने से भयंकर रक्तप्रदर भी शान्त होता है ।
- जिस स्त्री को हमेशा गर्भपात होने की शिकायत हो उसको भी यह औषधि गर्भ रहने के दूसरे महीने से चौथे महीने तक सेवन करने से गर्भपात बन्द हो जाता है ।
यूनानी मत –
- यह दूसरे दर्जे में गरम और खुश्क है। किसी-किसी के मत से समशीतोष्ण है।
- यह दिल की गरमी, मेदे की गरमी और मूर्च्छा को दूर करता है।
- दिल और दिमाग को ताकत देता है और खून को साफ करता है ।
- इसके पत्ते कुष्ट, छोटी माता, उपदंश, खुजली और हृदय तथा मस्तिष्क की बीमारियों में लाभदायक है।
- इसकी केशर कान के दर्द, कुष्ठ, विस्फोटक और रक्तविकार में फायदेमन्द है।
- इसके भुट्टे से निकाला हुआ तेल और इत्र उत्तेजक और आक्षेपनिवारक माना जाता है।
- यह सिरदर्द और संधिवात में उपयोग में लिया जाता है ।।
- यह विरेचक, कड़वा और कुष्ठ रोग में लाभ पहुंचाता है । इसमें इसेंशियल ऑइल पाया जाता है ।
केवड़ा के फायदे और उपयोग : health benefits of kevda in hindi
1. गर्मी से उत्पन्न रोग : केवडे़ के पत्तों के रस में जीरा व चीनी मिलाकर 7 दिनों तक पीने से गर्मी से उत्पन्न रोग समाप्त होते हैं।
2. गले का रोग : केवडे़ के फूल की पंखुड़ियों से बीड़ी बनाकर पीने से गले का रोग ठीक होता है।
3. बुखार : केवड़े का रस 40 से 60 मिलीलीटर की मात्रा में बुखार से पीड़ित रोगी को पिलाने से पसीना आकर बुखार उतर जाता है। इससे शरीर में स्फूर्ति भी आती है।
4. कमर दर्द : केवड़े के तेल से प्रतिदिन कमर की मालिश करने से कमर दर्द ठीक होता है।
5. खाज-खुजली : खाज-खुजली होने पर या त्वचा के दूसरे रोगों में केवड़ा के पत्तों को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
6. रक्तप्रदर : केवड़े की जड़ को पानी में घिसकर चीनी के साथ पीने से रक्तप्रदर की परेशानी दूर होती है।
7. अपस्मार (मिर्गी) : केवडे़ की टहनियां और केतकी के फूल बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें और मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को सुंघाएं। इससे मिर्गी का रोग नष्ट होता है।
8. गर्मी का सिर दर्द : केवडे़ को पानी और सफेद चन्दन के साथ घिसकर एक बर्तन में रखकर कपड़े से बांध दें और फिर यह रोगी को सुंघाएं। इससे गर्मी से होने वाला सिर दर्द ठीक होता है।
9. प्रमेह : केतकी के 20 मिलीलीटर रस को गर्म करके चीनी मिलाकर पीने से प्रमेह का रोग नष्ट होता है।
10. वायु गोले की दवा : केवड़े की सूखी जड़ों के टुकड़े करके मिट्टी को एक बड़ी हांडी में भर कर उस हुण्डी पर ढक्कन लगा कर उसकी सन्धियाँ आंटे से बन्द कर देनी चाहिये, जिससे उसका धुआ बाहर न जा सके । उसके बाद उसे चूल्हे पर चढ़ा कर नीचे से आग जला कर राख कर लेना चाहिये । जितनी राख हो उससे चौगुना पानी लेकर वह राख उसमें अच्छी तरह से घोल देना चाहिये । उसके बाद उस बरतन को 24 घण्टे स्थिर पड़ा रहने देना चाहिये । फिर जब राख नीचे बैठ जाय तब उसका पानी नितार कर आग पर चढ़ा कर उसका क्षार निकाल लेना चाहिये । यह केवड़े का क्षार 1 ग्राम, सोडा बायकार्ब 1 ग्राम और कूट 1 ग्राम । इन तीनों चीजों को मिलाकर 48 ग्राम तिल्ली के तेल के साथ पीने से अत्यन्त भयंकर वायुगोले का दर्द भी नष्ट हो जाता है ।
(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)