Last Updated on August 12, 2020 by admin
स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण नियम को समझे :
हमारा शरीर स्वस्थ और सशक्त बना रहे इसके लिए यह बहुत ज़रूरी है कि जो आहार हम ग्रहण करें उसका पूरी तरह से पाचन होता रहे और ठीक ठीक अवशोषण भी होता रहे। आप यह तो जानते ही हैं कि भोजन करते समय चित्त प्रसन्न होना चाहिए और मन एकाग्र रहना चाहिए। प्रत्येक कौर को कम से कम 32 बार चबा कर ही निगलना चाहिए जैसी कि अंग्रेज़ी में कहावत है Eat your Liquids and drink your solids यानी तरल पदार्थ को खाओ और ठोस पदार्थ को पियो । ऐसा तभी हो सकता है जब ठोस पदार्थ को खूब अच्छी तरह चबाया जाए।
लेकिन आमतौर पर होता यह देखा गया है कि साधारण से दिखने वाले नियमों पर लोग ध्यान नहीं देते यानी उन पर इन नियमों का असर नहीं होता इसलिए या तो वे टी वी देखते हुए खाना खाते हैं या गपशप करते हुए खाते हैं यानी उनका ध्यान खाने और चबाने पर नहीं होता है तो थोड़ा बहुत चबाते हैं और निगल जाते हैं । ऐसे लोगों की ही संख्या ज्यादा है। इस लेख में इन महत्वपूर्ण नियमों को समझाने के लिए, शरीर क्रिया विज्ञान (Physiology) के आधार पर आवश्यक जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं।
आहार को ठीक से चबाने पर निर्भर है आपकी पाचन क्रिया :
भोजन को ठीक से चबाने और प्रसन्न चित्त व एकाग्र मन से भोजन करने के क्या लाभ होते हैं यह समझने के लिए, पाचन में, लार (Saliva) के कार्य एवं स्वाद की भूमिका क्या है यह जानना ज़रूरी है। आहार के पाचन की पूरी प्रक्रियाओं में, आहार को चबाना एक मात्र क्रिया है जो हम जानते हुए और एच्छिक रूप से करते हैं या कि कर सकते हैं बाक़ी आहार को निगलने के बाद आगे की सभी प्रक्रियाएं अनैच्छिक होती हैं यानी हमारी इच्छा के अनुसार या जानकारी में नहीं होता कि क्या और कैसी प्रक्रियाएं हो रही हैं। इसके बावजूद बाद की पाचन सम्बन्धी सारी प्रक्रियाएं ठीक से होती रहें यह आहार को ठीक से चबाने पर ही निर्भर होता है।
आहार पाचन का महत्वपूर्ण प्रथम चरण :
आहार का पाचन होने का काम कई चरणों (Phase) में सम्पन्न होता है। पहले चरण को मस्तिष्कीय चरण (Cephalic phase) कहते हैं। यह चरण आहार को मुंह में रखने से पहले वाली स्थिति का होता है जिसमें स्वादिष्ट व्यंजनों को देखना, उनकी सुगन्ध को सूंघना, इनके स्वाद को याद करना या चखना आदि गतिविधियां होती हैं और इनके प्रभाव से मुंह में लार का स्राव (Seeretion of Sliva) ही नहीं होता बल्कि इस स्थिति से पाचन संस्थान की ग्रन्थियों को, पाचक रस तैयार करने का निर्देश भी प्राप्त होता है और संस्थान की ग्रन्थियां पाचन क्रिया सम्पन्न करना शुरू कर देती हैं।
प्रसन्न चित्त और एकाग्र मन से भोजन को खूब अच्छी तरह चबाने से यह पहला चरण अच्छी तरह से सम्पन्न होता है। अब आहार के पाचन कार्य में लार (Saliva) की क्या भूमिका है इस पर चर्चा करने के साथ ही इसके अन्य कार्यों पर चर्चा करते हैं जैसे आहार को चबाना, स्वाद की अनुभूति करना, आहार चबाने पर पिण्ड का निर्माण होना, आहार निगलना, दांतों व मसूढ़ों तथा मुख गुहा की आन्तरिक परत की सुरक्षा करना आदि प्रक्रियाओं के बारे में चर्चा करते हैं। आइये जाने लार ग्रंथि व लार क्या होता है ? और इसके कार्य ।
लार एक रंगहीन, स्वादहीन, चिकना व तरल पदार्थ है जिसे तीन मुख्य लार-ग्रन्थियां (Salivary gland) स्रावित करती हैं ।
तीन मुख्य लार-ग्रन्थियां (Salivary gland) –
- पेरोटिड ग्रन्थि (Parotid gland)
- सबमेण्डीबुलर ग्रन्थि (Submandi-bular gland) और
- सब- लिंगुअल ग्रन्थि (Sublingual gland)
इनके अलावा मुखगुहा की आन्तरिक परत, नरम तालू और जीभ आदि में स्थित छोटी – छोटी ग्रन्थियां भी लार बनाती हैं। लगभग 1500 मि.लि. प्रतिदिन स्रावित होती है। लार के कार्य, उसकी तरलता तथा उसमें पाये जाने वाले विशिष्ट तत्वों से सम्बन्धितहोते हैं। लार के स्राव (Secretion) का संचालन एक प्रतिवर्त-चाप (Reflex arch) द्वारा किया जाता है जिससे भोजन के स्वाद का जो अनुभव होता है उसके संवेग को, मस्तिष्क में स्थित ‘ लार के स्राव’ के केन्द्र (Salivary centre) तक पहुंचाते हैं तथा मस्तिष्क से ‘आदेशात्मक सन्देश’ लार-ग्रन्थियों तक पहुंचाते हैं जिससे स्राव होने लगता है।
भोजन का उपस्थित होना, खाद्य-व्यंजनों की सुगन्ध और आहार को चबाने से भी इसी तरह के तन्त्रिकीय प्रतिवर्त (Neural Reflex) लार का स्राव कराते हैं। हालाकि लार का स्राव बिना किसी उद्दीपक (Stimulus) के भी होता है जिसे विश्राम के समय होने वाला या अनुदीप्त स्राव
(Resting or Unstimulated Salivary flow) कहते हैं। लार का स्राव होना, शरीर की जलीय स्थिति, शारीरिक पोषण, ग्रन्थि में लार के एकत्रित होने का समय, उद्दीपक का प्रकार व समय, भावनात्मक एवं मानसिक स्थिति आदि पर भी निर्भर करता है।
लार ग्रन्थियों की सक्रियता में मुख्यतः दो तन्त्रिकीय प्रक्रिया सहयोगी होती हैं। पहली प्रक्रिया, स्वाभाविक प्रतिवर्त (Unconditional reflex) द्वारा लार का निर्माण होना है जिसमें स्वाद कलिकाओं (Taste buds) में स्थित, ग्राही-क्षेत्र (Chemoreceptors) तथा दांतों के आसपास स्थित दबाव द्वारा उद्दीप्त (Stimulate) होने वाले ग्राही-क्षेत्र द्वारा मस्तिष्क के ‘लार-स्राव केन्द्र’ तक संवेग (Sensation) पहुंचते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा भोजन की गन्ध, स्वाद और चबाने की क्रिया आदि से लार का स्राव होता है। दूसरी प्रक्रिया है उपार्जित प्रतिवर्त (Conditional reflex) द्वारा लार का स्राव होना जिसमें खाद्य पदार्थ को याद करने या देखने से लार का स्राव होता है। आइये जाने लार के क्या कार्य है ?
मुह की लार के फायदे और कार्य : Benefits of Saliva in Hindi
muh ki lar ke fayde in hindi
दांतों और मुख गुहा की सुरक्षा में भी लार विशेष भूमिका निभाती है। –
1). यह दांतों में फंसे अन्नकणों को साफ़ करती है और जीवाणु तथा नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों की भी सफ़ाई करती है।
2). अन्न से उत्पन्न अम्ल (Acid) को निष्प्रभाव करके लार दांतों का क्षय नहीं होने देती।
3). दरअसल किसी भी पदार्थ को निगलने की प्रक्रिया के बाद, थोड़ी मात्रा में लार मुंह में ही रह जाती है। लार में पाये जाने वाले तत्त्व म्युसिन (Mucins), एंजाइम्स, जीवाणुओं के विरुद्ध काम करने वाले तत्त्व प्रोटीन्स, लाइसोज़ाइम (Lysozyme), इम्यूनो-ग्लोब्यूलिन (I g A) आदि दांतों और मुखगुहा की रक्षा करते हैं।
4). मुख में रह जाने वाली लार की मात्रा, निगलने के पहले रहने वाली लार की मात्रा के अनुपात में होती है यानी अधिक बार चबाने से, लार का स्राव ज्यादा मात्रा में होता है जो दांतों व मसूढ़ों की रक्षा करने वाला होता है।
5). दांतों के ऊपर लार का एक और लाभकारी प्रभाव यह होता है कि लार, अम्ल (Acid) को निष्प्रभावी (Neutrilize) करने में सक्षम होती है। यह क्षमता लार में पाये जाने वाले बाइकारबोनेट्स (Bicarbonates), फास्फेट (Phosphate) और प्रोटीन्स (Proteins) जैसे तत्वों के कारण होती है। लार में बाइकारबोनेट्स की सान्द्रता (Concentration), लार-स्राव के प्रवाह की गति पर निर्भर करती है। यदि स्राव की गति कम हो तो इसकी सान्द्रता भी कम हो जाती है।
6). लार मुख में तरावट रखने के साथ-साथ जीवाणुओं की वृद्धि को भी रोकता है। लार में फंगस (Candida) के विरुद्ध कार्य करने वाला प्रोटीन भी होता है जिसे हिस्टेटिन (Histatin) कहते हैं।
7). आमाशय से आहार नली में आ चुके अम्ल (Gastric Reflux) को लार निष्प्रभाव तो करती ही है साथ ही साथ उसे साफ़ भी करती है।
8). मुखवास चबाने से लार स्राव बढ़ता है जिससे आहारनली में आये अम्ल (एसिड) को निष्प्रभाव करने में आसानी होती है। हमारी परम्परा में भोजन के अन्त में पापड़ खाने,भोजन के बाद पान, सौंफ सुपारी आदि खाने का प्रचलन रहा है जिसका उद्देश्य भी चबा चबा कर लार उत्पन्न करना है जो लाभप्रद होती है।
चबा चबा कर खाना खाने के फायदे : Benefits of Chewing Food Well in Hindi
bhojan chba chaba kar khane ke fayde
जहां लार के निर्माण और स्राव के लिए स्वाद का अनुभव करना एक मुख्य उद्दीपक (Stimulus) काम होता है वहीं मुख में लार की उपस्थिति, स्वाद का अनुभव करने के लिए ज़रूरी होती है क्यों कि अन्नकण लार में घुल कर ही स्वाद-कलिकाओं (Taste buds) के ग्राही क्षेत्रों को उद्दीप्त कर पाते हैं। इसके लिए आहार को खूब अच्छी तरह से चबाना ज़रूरी होता है और अच्छी तरह चबाना कई काम करता है जैसे आहार के टुकड़ों को सूक्ष्म छोटे छोटे कणों में बदलना ताकि पाचक रस आसानी से अपना काम कर सकें, लार को आहार कणों में अच्छी तरह मिला कर एक चिकना व नरम आहार पिण्ड बनाना ताकि उसे आसानी से निगला जा सके ।
चबाने के दौरान, दांतों के आसपास पड़ने वाले दबाव से लार के स्राव की मात्रा बढ़ती है। चबाने की प्रक्रिया से उत्पन्न सन्देश पूरे पाचन तन्त्र को दिशा देते हैं। दरअसल अच्छी तरह से चबाना, पाचन के मस्तिष्कीय चरण (Phase) से सम्बन्धित होता है और हम भोजन को चबाने में जितना ज्यादा समय देते हैं यह चरण (Phase) उतना ही लम्बा हो जाता है क्योंकि ज्यादा देर तक चबाने से, भोजन ज्यादा देर तक नज़र के सामने बना रहता है, स्वाद की अनुभूति ज्यादा देर तक होती रहती है और गन्ध का अनुभव होता रहता है। खाने की मनमोहक खुशबू, मन को प्रसन्न और भोजन में रुचि पैदा करती है। इस तरह से भोजन करना जहां स्वाद का सुख और उदर तृप्ति देने वाला होता है वहीं यह अनैच्छिक पाचन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भोजन के स्वाद से उत्पन्न तन्त्रिकीय आवेग (Neural Impulse) पाचन तन्त्र की प्रक्रियाओं को दिशा देते हैं। ग्रहण किये गये भोजन के प्रकार का ज्ञान, मस्तिष्क को, स्वाद कलिकाओं से प्राप्त होता है जिससे मस्तिष्क पूरे पाचन तन्त्र की सम्बन्धित ग्रन्थियों को, आहार के अनुरूप, उपयुक्त पाचक रसों का निर्माण करने का आदेश देता है।
लार में दो पाचक एन्जाइम होते हैं। १-अल्फा अमाइलेज और २-लाइपेज
(1) अल्फा अमाइलेज (Alfa-amylase)-
इसे टायलिन (Ptyalin) भी कहते हैं। यह आहार में मौजूद स्टार्च का पाचन करना शुरू करता है।
यह क्षारीय माध्यम (Alkaline medium) में ही कार्य करता है इसलिए आमाशय में पहुंचने पर, वहां मौजूद अम्ल इसे निष्प्रभाव कर देता है। खूब अच्छी तरह देर तक चबाने से लार में एन्ज़ाइम की मात्रा बढ़ती है और स्टार्च का अच्छी तरह पाचन करने में सहायक रहता है। इसलिए स्टार्चयुक्त आहार जैसे अनाज में रोटी, सब्ज़ी में आलू, कदू सेम आदि शाकाहारी आहार के साथ अम्लयुक्त पदार्थ जैसे मांस, अण्डा, चीज़, खट्टे व गिरी वाले फल और प्रोटीन युक्त पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। खट्टे फल जैसे सन्तरा, कच्चा आम, अंगूर, अनन्नास भी इनके साथ नहीं लेना चाहिए। सूप, सब्ज़ी या फल के रस को निगलने से पहले मुंह में घुमाना चाहिए ताकि उसमें मौजूद स्टार्च के लार-एन्ज़ाइम द्वरा आंशिक पाचन हो सके इसीलिए कहा है Eat vour Liquids. दूध भी इसी तरह घूँट -घूँट करके मुंह में घुमा फिरा कर पीना चाहिए।
(2) लाइपेज (Lipase) –
यह लार में उपलब्ध दूसरा एन्जाइम है। यह ट्राइग्लीसराइड्स (Triglycerides) का पाचन आरम्भ करता है और आमाशय में भी यह काम जारी रहता है।
मुह मे लार कम बनने के कारण :
लार ग्रन्थियां जब अपना कार्य ठीक से नहीं करतीं तब इसके तत्वों में ही कमी नहीं होती बल्कि इसके स्राव में भी कमी होती है। थोड़े समय के लिए होने वाली यह गड़बड़ी जिन कारणों से होती है वे हैं –
- अवसाद, लार ग्रन्थि में संक्रमण होना या दवाओं के अनुषंगी प्रभाव (Side effects) का होना। अवसाद (Depression), farcil (Anxiely) ,उच्च रक्तचाप (Hypertension) के लिए दी जाने वाली दवाएं लार-ग्रन्थि के कार्यों को प्रभावित और बाधित करती हैं।
- मधुमेह और थायराइड ग्रन्थि के रोगों में भी लार ग्रन्थियां सही ढंग से काम नहीं कर पाती हैं।
यह विवरण संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है और सिर्फ उन्हीं मुद्दों पर चर्चा की गई हैं जिनके बारे में जानकारी हर व्यक्ति को होना ही चाहिए। संक्षिप्त होते हुए भी ज़रूरी जानकारी देने वाले इस लेख को पढ़ कर आपको यह तथ्य भली भांति समझ में आ गया होगा कि खूब अच्छी तरह चबा कर खाना क्यों जरूरी है।